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Saturday, November 23, 2013

छाँव के सुख भोग पथिक (कविता)

#BnmRachnaWorld
#Hindi#motivationalpoetry

छाँव के सुख भोग पथिक

छाँव के सुख भोग पथिक,
गर धूप के छाले सहे हैं

सूर्य तो जलता रहा है,
विश्व को देकर उजाला
अग्नि की चिंगारियां भी
दे सकेगी तभी ज्वाला

जब हवा के रुख को तुम
मोड़ रे अब मोर पथिक

नींद के सुख भोग पथिक
गर जागरण झोंके सहे हैं
छाँव के सुख भोग पथिक
गर धूप के छाले सहे हैं

दुखों के इस तिमिर घन में,
तड़ित प्रभा से राह खोजो
खे सकोगे इस पार से
उस पार नाविक नाव को

गर त्वरित इस धार को,
तुम मोड़  रे अब मोड़  पथिक
जिंदगी का गान सुन
गर गर्जना के स्वर सुने हैं
छाँव के सुख भोग पथिक
गर धूप के छाले सहे हैं।

भूल जा वो क्षण
जो थे तुम्हें विच्छिन्न करते
लासरहित, निरानंदित,
श्रमित, थकित, व्यथित करते।
नागदंश की विष वारुणी को
पी सको तो पी पथिक

अमृत का सुख भो पथिक,
गर जहर प्याले पिये हैं।
छाँव के सुख भोग पथिक,
गर धूप के छाले सहे हैं।

भाग्य की विडम्बनाएँ
तुझे छलती ही रही है
तू उन्हें भी पार करके,
विजय-रथ स्थिर किये हो।

अशुभ संकेतो से निडर
गर जी सको तो जी पथिक
उड़ान के सुख भोग पथिक
गर आरोहण प्रण किये हैं।
छाँव के सुख भोग पथिक,
गर धूप के छाले सहे हैं।

Brajendra Nath Mishra
3A, Sunder garden, Sanjay Path, New Subhash Colony, Dimna Rd, Mango, Jamshedpur-12, e-mail: brajendra.nath.mishra@gmail.com. 

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