जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल
जो ना मिला किसी से उसका गिला न कर,
जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल ।
तू बांटता चल अपनी मुस्कराहटें,
हो सके तो आंसुओं को छुपाता चला चल ।
जो लेता है दूसरों से याद रख उम्र भर,
जो देता है तू उसे भुलाता चला चल ।
तू कुछ दे सका है, ये उसकी नेमत है,
शकून बांटता चल, सौगातें लुटाता चल ।
जिंदगी कि परतें कुछ गीत लिख गयीं,
तू राही है उसे गुनगुनाता चला चल ।
एक राग - सी फाग में उभर के उठी है,
एक उत्सव है जिंदगी मनाता चला चल ।
मिलना बिछड़ना , बिछड़ना फिर मिलना,
ये सफर का सिलसिला है, भुलाता चला चल
धुंध छँटी, क्षितिज पे पौ फट रही,
तमस के कुहे को मिटाता चला चल ।
जो ना मिला किसी से उसका गिला न कर,
जो कुछ मिले किसी से लेता चला चल ।
--ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
जमशेदपुर ।
जमशेदपुर ।
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