महकाएँगे जग को देकर नव सन्देश
हम बच्चे हैं फूल उपवन मेरा देश,
हम महकाएँगे जग को देकर नव सन्देश।
भेदभाव सब मिट जायेंगें,
आपस में हिलमिल गायेंगे ,
एक हमारा नारा है,
सारा विश्व हमारा है ।
एक सांस है एक हृदय है , भिन्न - भिन्न हैं वेश ।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।
झगड़े आपस में निपटाएं,
प्रेम - लता के बीज उगाएं,
दुश्मन को भी दोस्त बनाएँ,
सारे जग को बंधू बताएं ।
होगा हरदम स्नेह से मेरे ममता का उन्मेष ।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।
उदास कहीं न हो बचपन,
किसी गली में न हो क्रंदन,
बहनें कहीं न अपमानित हों,
आशाओं को न लगे ग्रहण ।
भारत में फिर स्थापित हो माओं का सम्मान विशेष।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।
बुद्ध ने जग को मार्ग दिखाया,
गांधी ने विश्वास जगाया,
हिंसा का छोड़ो अवलम्बन,
सत्य प्रेम के ढृढ कर बंधन ।
अब न धरा पर रह पायेगा दुःख,द्वेष और क्लेश ।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।
आज मचा जो हाहाकार,
नहीं दुःख का पारावार,
जग बंधु का नाता जोड़ो,
शांति - धार के रास्ते मोड़ो ।
प्रेम और बँधुत्व ही हो अब जीवन का उद्देश्य ।
हम महकाएंगें जग को देकर नव सन्देश ।
--ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
जमशेदपुर
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http://www.poemhunter.com/brajendra-nath-mishra/poems/
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