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Monday, February 10, 2014

हादसा होते होते..

Mail sent to Prabhatkhabar on 10-02-2014

मैँ आपके 'अखबार नहीं आंदोलन' के माध्यम से यह पत्र हर उस ब्यक्ति की ब्यथा कथा को शब्द देने की कोशिश कर रहा हूँ जो इस तरह की फजीहत से गुजर चुके हैं या भविष्य में गुजर सकते हैं. जिस फजीहत का मैं वर्णन करने जा रहा हूँ वह एक हादसा में तब्दीएएल हो सकता  था अगर भुक्तभोगी एक बुजूर्ग, महिला या बच्चा हो.

बात तारिख ०१-०२-२०१४ दिन शनिवार की है. मैँ और मेरी पत्नी ( उम्र ६१ और ५८ साल) गया  जंक्शन पर अमृतसर से गया  होकर टाटानगर तक चलनेवाली जलिआंवाला एक्सप्रेस का इंतज़ार कर रहा था. ट्रेन के आने का निश्चित समय गया में १४:२८ घंटा था जो ३.३० घंटे विलम्ब से  चलकर  करीब  शाम १८:०५ घंटे में पहुंचने वाली थी. काफी पूर्व सूचना के अनुसार ट्रेन तीन नंबर प्लेटफार्म पर आने आली थी. अचानक करीब १७:३५ बजे बिना कोई पूर्व सूचना के दिल्ली से चलकर गया तक आनेवाली महाबोधि एक्सप्रेस तीन नंबर प्लेटफार्म पर आ जाती है. प्लॅटफोटम नंबर  ४ उससमय बिलकुल खाली था.  ठीक १७:४५  में घोषणा होती है की जलिआंवाला  बाग़ एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर ४ पर १८:०५ घंटे में आ रही है. अब तीन नंबर प्लेटफार्म पर इस ट्रेन के लिए इंतज़ार करनेवाले यात्रियों में एक अफरातफरी सी मच गयी. दस मिनट में सारे यात्रियों को ३ नंबर से ओवर ब्रिज  से होकर ४ नंबर प्लेटफार्म पर अपने अपने कोच के पास पहुँचाना था क्योंकि यह ट्रेन वहाँ ५ मिनट ही रूकती है. बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को सामान सहित ओवर ब्रिज होकर स्थान परिवर्तन करने में कुछ भी हादसा हो सकता था. ४ नंबर प्लेटफार्म भी खाली था तो महाबोधि एक्सप्रेस जो गया में ही टर्मिनेट होती है उसे स्पर डाला जा सकता था. इसतरह पूर्ब घोषणा के अनुसार जलियनवाला बाघ एक्सप्रेस ३ नंबर पर ही आती और यात्रियों को इस आकस्मिक परेसानी से गुजरना नहीं पड़ता.
यद्यपि यह घटना छोटी सी है क्योंकि कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ. इसलिए न यह रेलवे अधिकारीयों का ध्यान आकर्षित करता है और न मीडिया का ही. लेकिन यह फिर कुछ सवाल खरे करता है..
१) ऐसी स्तिथियों में पहले भी भगदड़   के कारन हादसे हो चुके हैं. रेलवे विभाग ने संवेदनशील होने और यात्रियों के प्रति उत्तरदायी होने के लिए कितने और हादसों में कितनी और जानें जाने का लक्ष्य रखा  है? वही जाने .
२) यहाँ आदमी की जान जाने के लिए ही तो  है. सरकारी महकमो को आम आदमी की जान लेने का पूरा हक़ है  क्यों? अगर आदमी बच्चा, बुजुर्ग और महिला हो तो उसकी जान की कीमत आर भी कम है.
हमारे रोजमर्रा की जिंदगी ऐसी घटनाओं से घिरी हुई है . बेबस आम आदमी खुदा  या भगवान् का नाम लेकर आधी अधूरी जिंदगी जिए जा रहा हैं..









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