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Wednesday, May 21, 2014

अथक उड़ान हो (कविता)

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#bnmpoems#motivational

अथक उड़ान हो

परिंदे,  तू क्यों   गुमशुम   है ,
किन ख्यालों  में गुम है?
                                                             
गगन पुकारता, धरा निहारती ,
 भरो पंखों  में असीम शक्ति। 
नभ में तेरा अथक  उड़ान  हो,
तेरा प्रण    महान  हो
 तेरा प्रण     महान हो। 

भूल जा वो   घटना,
घटाओं का    घिरना,
हवाओं का तूफ़ान में बदलना,
तिनको से बने घोसले   का ,
झूलना , डोलना , टूटना,
अन्डो का गिरना , बिखरना,

ये तो आपदा है , विपत्ति है ,
तेरी नियति तुझसे छल करती है।

तू उन्हें पुकार  ले,
झुकाओ ललकार   ले,
पथ में काँटों पर सेज बना ,
फिर उठ जिंदगी संवार ले।

तू रुकना मत , थकना मत।
आशाओं से  भरा वितान हो ,
तू  चल, अथक उड़ान हो ,
तेरा   प्रण महान हो,
तेरा   प्रण महान हो। 

घटायें हो काली, मतवाली ,
हवाएँ रोकती  हो       बाहें  ,
तिमिर - घन में, तड़ित - प्रभा
से   खोजों   अपनी    राहें

जाना वहांपार क्षितिज है ,
हो जहाँ नफरत की कोई आँच,
प्यार ही प्यार बसा हो दिलों में,
प्रेम धुन पर हो मधुर - मधुर नाच।

ऐसा ही नया जहाँ बसाना है,
ऐसा ही नया पैगाम सुनाना है।
तू चल वहां पर , भले अथक उड़ान हो ,
तेरा प्रण महान हो, तेरा प्रण महान हो।


---ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
    जमशेदपुर

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