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Friday, August 1, 2014

वर्तमान केंद्र सरकार क्या कुछ अलग कर सकती है ?

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वर्तमान केंद्र सरकार क्या कुछ अलग कर सकती है ?
केंद्र  सरकार  भारतीय  जनता  पार्टी  के  पूर्ण  बहुमत  से  बनी  है ।  लोगो  ने  काफी  उम्मीदों   से  इस पार्टी  के   हाथों  में  केंद्रीय   नेतृत्व  की  बागडोर  दी  है । 
   यह   सरकार  कुछ  ऐसा  कर   सकने  की  स्थिति  में  है   जो   लोक - लुभावन (पॉपुलस )   होकर लोकहित  और  राष्ट्रहित  को  ध्यान  में  रखकर  किया  जा  सके ।  आज़ादी   के  बाद  आजतक राष्ट्रहित  में  जरूरी  समझे  जानेवाले   निर्णय  ठंढे  बस्ते  में इसलिए   डाले जाते रहे हैं ताकि कोई तबका  नाराज   हो  जाय   इस  लेख  में  मैं  उन्हीं  कुछ  पीछे  की  ओर  धकेले  जाते  रहे  राष्ट्रीय ज्वलंत  समस्याओं  को  सामने  लाने  की  कोशिश  करूंगा , जो  बिलकुल  जरूरी  रहे  हैं , जो  विवाद से   परे  (uncontroversialरहे  हैं , जो  सबों  के  हित  में  रहे  हैं , जो  पंक्ति  में  खड़े  अंतिम  आदमी के  हित  के  लिए  निहायत  जरूरी  रहे  हैं ।  क्या  आज  की  यह  केंद्र  सरकार  स्वकेंद्रित  या आत्मकेंद्रित   घेरे   से  बाहर  निकलकर   इन  मुद्दों  की   ओर  सधे  कदमों  से आगे  बढ़  सकने  की  दृढ़ता  दिखा  पाएगीअगर  दिखा  पाती  है  तो  मोदी  सरकार  को  देश  के  इतिहास  को  बदलने  वाला  माना  जायेगा  और  आगे  आने  वाली  पीढ़ियों  के  लिए  गर्व  का  विषय  होगा ।
   केंद्र  सरकार  ने  इस  बार  चुनकर  आये  सांसदों  के  लिए  संसदीय  आचरण  और  ब्यवहार  पर कार्यशाला  आयोजित  कर  बहुत  अच्छी  शुरुआत  की  है ।  उन  सांसदों  से  भारतीय  जनता  पार्टीअबतक  जो  संसद  में  होता  रहा  है  उससे  कुछ  अलग  आचरण  की  उम्मीद  रखती  है ।  इसके  लिए आवश्यक  प्रशिक्षण  द्वारा  जिम्मेवारियों  का  अहसास  कराने  की  पहल  कर  भारतीय  जनता  पार्टी   ने   अलग    हटकर  एक  काम  किया है , जिसका  असर  संसद  के  कार्यकलाप  को  सुचारू  रूप  से  चलाने  में  और  ज्यादा  वक्त  जनता  और  उनसे  सम्बंधित  मुद्दों  को  उठाने  और  निर्णय  तक  ले  जाने  में  ब्यतीत  होगा । यह  एक  अच्छी  पहल  है । 
जनसँख्या स्थिरीकरण:
  आज  के  भारतवर्ष  की  सबसे  ज्वलंत  समस्या  है  कि  हेड  काउंट  में  हमारी  गणना  १२५ करोड़  हो  गयी  है ।  यह  पिछले  ६७  सालों  से  जनसँख्या  नियंत्रण / स्थिरीकरण  के  लिए  किये जाने  वाले  प्रयासों  की   पोल  खोल   दे  रही  है ।  आंकड़े  क्या  बताते  हैं ? दुनिया  का  1/6th आबादी   2.5%  जमीन   के  हिस्से  पर  रह  रही  है ।  यह  भारतवर्ष  है ।  आबादी  2.1%   प्रतिवर्ष   की  दर  से  बढ़  रही  है ।  क्या  होंगे  बढ़ती  हुयी  आबादी  के  नतीजे ?  यह  देश  के  विकास  की  दर को  हर  स्तर  पर   प्रभावित  कर  रहा  है ।  देश  का  क्षेत्रफल  तो  बढ़ाया  नहीं  जा  सकता ।  इसलिए आबादी  का  स्थिरीकरण (स्टेबिलाइजेशन)  सस्टेनेबल  विकास  की  प्रकिया  के  लिए  जरूरी  है । तभी  आर्थिक  विकास  का  लाभ  भारतीय  आबादी  के  हरेक  ब्यक्ति  के  जीवनस्तर  की गुणवत्ता  में  सुधार  के  रूप  में  प्राप्त  हो  सकता   है ।  केंद्र  सरकार   में  भारतीय  जनता  पार्टी इस  राष्ट्रीय  कार्य  को  करने  में  हर  तरह  से  सक्षम   है ।  इसके  लिए  कही  से  भी  कोई विरोध  का  स्वर  नहीं  उठ  सकता  क्योंकि  आपके  पास  संख्या  बल  है ।
महिलाओं के लिए आरक्षण एवं महिलाओं , बच्चों और बुजुर्गों को संरक्षण :
  महिलाओं   के   लिए  आरक्षण  का  मुद्दा   संसद  में  कई  बार  उठाया  गया , गरमाया  और  फिर ठंढा  हो  गया ।  यह  कहीं - - कहीं  महिलाओं  को  तबकों  में  बांटने  और  तबकों  के  कोटे  सिस्टम के  घेरे  में  घूमते - घूमते  अपनी   आवाज़  खोता  चला  गया ।   अभी  की  केंद्र  सरकार  इसपर त्वरित  और  ठोस  कदम  उठाने  में  सक्षम  है ।  इस  मुद्दे  का  महत्वपूर्ण  होना  ही  मायने  नहीं रखता ।  उसे  संसद  में  पास  करा  लेना  अधिक  मायने  रखता  है । अगर  यह  सरकार  ऐसा  कर  पाती  हैतो  इस  सरकार   का   ऐतिहासिक  कदम  होगा ।   
  इसी तरह कहा जाता है कि किसी  भी समाज , देश का भविष्य  वहां के शासन के महिलाओं , बच्चों और बुजुर्गों के  प्रति रवैये पर निर्भर करता है।  हमारी सरकारें अबतक  इस  तबके  के प्रति  बिलकुल ही संवेदनशील  नहीं रही हैं।  क्या  केंद्र की सरकार महिलाओं  की सुरक्षा, बच्चों  का पोषण  और शिक्षा तथा  बुजुर्गों  को  समाज  का अपनापन  लौटाकर  उन्हें  सम्मानजनक  स्तर  प्रदान  कर  सकेगी ?    केंद्र सरकार  करने में हर तरह से सक्षम  है।  अगर यह कर पाती है , तो कुछ अलग किया , ऐसा दिख सकता है।  अगर नहीं कर पाती है , तो अन्य सरकारों की तरह  यह सरकार भी कुछ हटके करने में असमर्थ है , यही माना जायेगा।
क्षेत्रवाद :
 भारतवर्ष  आज भी आर्थिक रूप से विकसित,  अविकसित  और  अर्धविकसित क्षेत्रीय हिस्सों में बंटा हुआ है।  इन हिस्सों में कभी - जभी स्वघोषित क्षत्रप सर उठाने में सक्षम हो जाते हैं और क्षेत्रीय विवादों को ताजा करके , सतह पर लाकर सस्ती लोकप्रियता भी हासिल करते रहे हैं।  यही नहीं राष्ट्रीय दल सत्ता से चिपकने की ललक में उनके पिछलग्गू होते दिखाई देते रहे हैं।  केंद्र सरकार में भा ज  पा के पास ऐसी मजबूरी नहीं है।  कोई भी क्षेत्रवाद का सहारा लेकर , अपने मुद्दे उछालने के लिए उसे नियंत्रित (डिक्टेट ) करने की  ज़ुर्रत   नहीं कर सकता है क्योंकि उसके पास संख्या का गणित फेवरेबल है।  उन्हें थोड़ा  अलोकप्रिय (अनपॉपुलर) होकर भी ऐसे तत्वों द्वारा क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाली कोशिशों के विरुद्ध  सख्ती से निपटना होगा।  इस पहल का समर्थन पूरे देश से मिलेगा क्योंकि यह देश   की अखंडता और संप्रभुता के लिए जरूरी है।    


सहज सुभेद्य देश (Easily vulnerable nation) की छवि :
इस केंद्र सरकार को पिछली सरकार द्वारा भारत की सहज सुभेद्य देश (easily वल्नरेबल नेशन )  की छवि  को भी गलत साबित करना है।  यह एक ऐसी चुनौती है जिसे सार्वजनिक तौर पर चुनावपूर्व के भाषणो में मोदी साहब भी स्वीकार कर चुके हैं।  हमारे दो पड़ोसियों,  पाकिस्तान और चीन के तरफ से सीमा पर पिछले दो महीनो से ऐसी हरकतें हो रही हैं , जो उनके पिछले कई सालों से अपनाये जा रहे रवैये में थोड़ा भी परिवर्तन के संकेत नहीं दे रहे हैं।  ऐसा शायद इसलिए है की इधर से भी कोई संकेत नहीं जा रहा है - बदले  निज़ाम का और बदले मिज़ाज का । वे सब अभी भी वही भारत समझ रहे हैं जो मौन होकर सबकुछ सहता हुआ वार्ता की बात और आपसी सहयोग बढ़ाने की  बात करता रहा है।  आपने नेवी में युद्ध पोत में जाकर सैनिकों का और पी इस अल वी (PSLV) लांच के समय जाकर विज्ञानिकों का मनोबल बढ़ने का कार्य किया है,  जो सिद्धांततः सराहनीय है।  आपको डर तो नहीं है किसीसे।  १२५ करोड़ जनता आपके साथ है- देश की अस्मिता के लिए जान कुर्बान करने को।  कारगिल के शहीदो के प्रति  इस   सरकार   की सच्ची श्रद्धांजली यही होगी।  राष्ट्रकवि दिनकर ने १९६२ के चीन युद्ध के बाद अपनी पुस्तक 'परशुराम की प्रतीक्षा' में लिखा था :
गीता  में  जो  त्रिपिटकनिकाय  पढ़ते  हैं ,
तलवार      गलाकर  जो    तकली    गढ़ते    हैं ,
शीतल  करते  हैं  अनल  प्रबुद्ध  प्रजा  का ,
शेरों   को   सिखलाते हैं  धर्म   अजा  का।

लौलुप्य -लालसा  जहाँ ,  वहीं  पर  क्षय  है,
आनंद  नहीं  जीवन  का  लक्ष्य  विजय  है ।

     "मुख  में  वेद ,  पीठ  पर  तरकस,  कर  में  कठिन  कुठार,
   सावधान !   ले  रहा  परशुधर  फिर     नवीन    अवतार।"
इसका अहसास दुनिया को हो जाना चाहिए कि भारत का एक अजेय शक्ति के रूप में उदय हो चूका है . इसके बढ़ते कदम को रोक सको तो रोक लो.... . इसके लिए भारत को अंदर से मजबूत होना होगा।  हमारी अंदर से खोखली करनेवाली प्रवृतियों को सख्ती से कुचलना होगा।  उसे टेढ़े से सीधा करना होगा , इसके लिए थोड़ा अलोकप्रिय भी बनना पड़ सकता है।
आरक्षण:
ऐसा   ही  एक   दुश्चक्र  में  डालने  का  काम  आरक्षण  को  लेकर  और  उसके  वर्तमान  स्वरुप  में  लागू कर  वोट  बैंक  की  राजनीति  ने  देश  की  अस्मिता   और   अखंडता  के  साथ   किया  है ।  उसे उलटकर  सीधा  करना  होगा ।  ऐसा  कहा  जाता  है   कि संविधान  बनाने  के  समय  संविधान निर्माताओं  ने  कसम  खायी  थी  कि आरक्षण  आगे   आनेवाले   सिर्फ  दस  सालों  तक  ही  रहेगा ।  संविधान  के  मुख्य  प्रारूप  बनाने  वाले  डाक्टर  अम्बेडकर  भी    आरक्षण  के  विरुद्ध  थे ।  लेकिन आज  ६७  वर्षोँ   बाद  भी  आरक्षण  ने  एक  राजनीतिक  हथियार  का  रूप  ले  लिया  है ।  क्षेत्रीय दल  तो  आरक्षण  की  नीति  पर  ही  अपने  वोट  की  राजनीति  करते  रहे  हैं ।  लेकिन  जब  राष्ट्रीय दल  भी  इसी  आरक्षणनीति  को  सम्पोषित  करते  हुए  और  कुछ  क्षेत्रों  में  कभी  इस  तबके , कभी  उस  तबके  को  खुश  करने  के  लिए , उनका  वोट  प्राप्त  करने  के  लिए  आरक्षण  को  अस्त्र बनाने  लगते  हैं ,  तो   वे   एक  राष्ट्रघात  या  देशद्रोह   जैसा   पाप  करने  की  भूमिका   में  लगे  हुए प्रतीत  होते  हैं ।  आजतक  आरक्षण  का  लाभ  जिन  लोगों  ने  प्राप्त  किया  है , वह  स्पष्टतः  उन जातियों  में  जो  संपन्न  तबका  है  उसी  को  मिला  है ।  इसका  लाभ  क्रीमी  लेयर  (नवनीत सतह प्राप्त)  लोगों  को  क्यों  मिले  ?  क्या  इस  सरकार  में  दम  है ,  इसको  उलटकर  सीधा  करने  कादेश  का  प्रबुद्ध,  मननशील ,  उदार,  सहनशील   नागरिक  आजादी  की  दूसरी  फुहार  की  प्रतीक्षा  में टकटकी  लगाये  खड़ा  है ।
 कुछ   उम्मीद  लगा  बैठे  हैं  लोग,  कुछ  आस  लगा  बैठे  हैं  लोग,  क्या  बदलाव  की  बयार  बहेगी ?
चुनाव प्रक्रिया  का  शुद्धीकरण :

चुनाव  भारतीय  राजनीति  और  संसदीय  लोकतंत्र  का  वो  पर्व  है  जो  सांसद   जो  संसद  के  मंदिर  तक  पहुँचने    का  अवसर  प्रदान  करता  है ।  वहां  हत्या,  बलात्कार ,  डकैती ,  चोरी  आदि अपराधों  के  नामजद  या  सजाभोगी  ब्यक्ति  नहीं  पहुंचे ,  इसके  लिए  सभी  दलों  को  मिलकर  कठोर  कदम  उठाने  की  जरूरत  है ।  अबतक  सारे  दल  इसपर  सिद्धांततः  सहमत  होते  देखे  गए हैं ।   लेकिन  संसद  और  बिधान सभाएं  अभी  भी  ऐसे  लोगों  के  पहुँचने  का  स्थान   बना   हुआ  है ,  क्योंकि  सारे  दल  इसतरह  के  प्रत्याशी  खड़े  करते  रहे  हैं ।     इसके  लिए  कठोर  कानून  बनाये  जाने की  जरूरत  है ।  अगर  संविधान  में  संशोधन  की  जरूरत  है  या  अध्यादेश  के  द्वारा  कोई कानून  पास  कराया  जाना  है ,  तो  वह  कार्य  शीघ्र  होना  चाहिए ।  संसदीय  लोकतंत्र  चुनाव  के बाद  भी  जनता  की  भागीदारी  में  चले ,  इसका  प्रयास  होना  चाहिए ।  सांसदों  को  अपने  क्षेत्र  के विकास  के  लिए  एक  पूरी  रूपरेखा  देने  को  कहा  जाना  चाहिए ।  संसदीय  क्षेत्र  विकास  कार्यक्रम  के तहत  दिए  गए  राशि  का  समुचित  उपयोग  हो ,  इसके  लिए  कठोर  कदम  और  सटीक  ऑडिट भी  होना  चाहिए ।  नॉन  परफार्मिंग  नुमाईंदों  को  जनता  कैसे  वापस  बुला  सकती  है ,  इसके  लिए  बैठकर  चुनाव - प्रक्रिया  शुद्धीकरण  के  बिन्दुओं  पर  विचार  होना   चाहिए ।  बी जे पी  इसे  कर  सकती  है  क्योंकि  उसके  पास  पर्याप्त  बहुमत  है ।  इसके  लिए  इक्षा  शक्ति  को  एकत्र  करना  होगा  और  उसतरफ  सधे  कदमों  से  बढ़ना  होगा ।
शिक्षा   का   ब्यवसायीकरण :
शिक्षा  के  बढ़ते  ब्यवसायीकरण  के  कारण  शिक्षा  के  क्षेत्र  में  कॉर्पोरेट  वर्ल्ड  का  मुनाफा  कमाने  के  लिए  बढ़ती  भागीदारी  बहुत  बड़ी  चिंता  का  विषय  है ।  जो  लाखों  रुपये  केपिटैषण  फी  देकर डाक्टर   या  इंजीनियर  बनेगा ,  वह   नौकरी  मिलने  पर  सबसे  पहले  करोड़ों  कमाकर  उसकी  भरपाई  करना  चाहेगा ।  यह  भ्रष्टाचार   की  राह  के  नए  पथिकों  के  निर्माण  करने  जैसा  है ।  अभी  तो  यह  भी  देखा  जा  रहा  है  कि  थोक  ब्यापारी ,  मॉल   के  मालिक,  बिल्डर  आदि  भी  स्कूल   से    लेकर  उच्च  शिक्षा   के     नएनए  शिक्षण  संस्थान  खोलकर   उसके  प्रशासनिक निकाय    के   चेयरपर्सन  बन  गए   हैं ।  अब  ऐसे  लोग  अगर  शिक्षा  की  दिशा  और  दशा  तय  करेंगे तो  भगवान  ही  मालिक  है ।  केंद्र  सरकार  का  मानव  संसाधन  मंत्रालय  इसपर  रोक  लगाने  के लिए  कठोर  कदम  उठा  सकता   है  ताकि  शिक्षा  के  निजीकरण  और  कॉर्पोरेटिजेसन  पर  तुरत     विराम  लगाया  जा  सके ।  शिक्षा  की  गुणवत्ता  पर  किसी  तरह  का  कोई  भी  समझौता  नहीं  होना चाहिए ।  हर  तबके  के  मेधावी  छात्र/ छात्राओं  को    ऊंची  से  ऊंची  शिक्षा  के  अवसर  प्राप्त  हों,  इसके लिए  कानून  बनाने  चाहिए  या  वर्तमान  कानून  में  उचित  फेरबदल  होने  चाहिए । 

इन  सबों  के  अतिरिक्त  कुछ  ऐसे  कदम  भी  सरकार  को  उठाने  होंगे  जिससे   लोगों  को   लगे   कि यह  कुछ  अलग  करना  चाहती  है ।   इस  सरकार   को  चलाने  वालों  के  अंदर  एक  आग  है  जो बदलाव  लाना  चाह  रही  है  और  उस  बदलाव  को  स्थाई  बनाना  चाह  रही  है ।
पिछले  दो  महीनों  के  अंदर  ऐसा  कुछ  दिखाई  नहीं  दे  रहा  है ।   लोग  कहने  लगे  हैं  कि  अगर यह  सरकार  भी  ऐसी  ही  है  तो  पिछली  सरकार  क्या  बुरी  थी ।  क्या  केंद्र  सरकार  अपनी  इस तश्वीर  को  बदल  सकेगी  ?  जितना   जल्द  तश्वीर (इमेज)  बदले  उतना  ही  अच्छा  होगा ,  वरना जनता  का  भ्रम  अगर  टूट  गया  तो  पता  नहीं  क्या - क्या  होगा  ?? 

  तिथि :  01-09-2014
575463_402545343209558_1544328495_n   --- ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र, 3A, सुन्दर गार्डन, संजय पथ, डिमना रोग, मानगो, जमशेदपुर।
मेतल्लुर्गी*(धातुकी)   में इंजीनियरिंग ,   पोस्ट  ग्रेजुएट  डिप्लोमा  इन  मार्केटिंग मैनेजमेंट ।  टाटा स्टील  में  39  साल  तक   कार्यरत । पत्र पत्रिकाओं में टेक्निकल और  साहित्यिक  रचनाओं  का  प्रकाशन । सम्प्रति  जनवरी  से  'रूबरू दुनिया ' भोपाल  से  प्रकाशित  पत्रिका  से जुड़े है । जनवरी 2014 से सेवानिवृति के  बाद  साहित्यिक  लेखन कार्य  में  निरंतर  संलग्न ।
E-mail: brajendra.nath.mishra@gmail.com, Blog:http://marmagyanet.blogspot.com
Mob No: +919234551852




1 comment:

KARUNA KUMARI said...

very thoughtful write up. Very aptly you have described the challenges of Modi govt. which has never be raised in any forum or media. These are the issues which are alwyas overlooked by govt., unknowingly or deliberately..congrats..

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...