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Friday, July 15, 2016

छांव का सुख (कहानी संग्रह)

#chhanvkasukh : मेरी लिखी कहानी संग्रह "छांव का सुख" प्रकाशित हो चुकी है. यह पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है. मात्र 80 रुपये में पुस्तक आपके घर तक पहुंच जाएगी.  Link: http://www.amazon.in/Chhanv-Sukh-Brajendra-Nath-Mishra/dp/9384419265
सत्य प्रसंगों पर आधारित जिंदगी के करीब दस्तक देती कहानियों का आनंद लें. अपने मन्तब्य अवश्य दे.
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"छांव का सुख"
इस कहानी संग्रह के कुछ रोचक प्रसंग
     This story book is a journey of the joyful moments of life, the sorrows, the compulsions and the commitment to restore the emotional content embedded deep into making a man, more humane.
 यह पुस्तक जीवन - यात्रा में खुशी, दुःख, दबाओं और प्रतिबद्धताओं के पड़ाओं से परिचित कराता हुआ मानव - मन की सन्निहित संवेदनाओं को और भी पुष्ट करने की कोशिश करता है जिससे मानव कुछ और अधिक मानवीय बन जाय.
इसी पुस्तक से:
"...और पर्स मिल गया" कहानी का अंश:
"मेरा वॉलेट और मोबाइल लेकर कहाँ भाग गई थी? चलो - चलो जल्दी से मुझे मेरी चीजे लौटा दो।" वह कहे जा रहा था और लड़की मुस्कराये जा रही थी। "कैसा लड़का है? सामने एक सुन्दर - सी लड़की खड़ी है। उसीसे मिलने आई है। कोई हैल्लो, हाय, बस शुरू हो गए मेरी चीजें लौटाओ।
….रुमाल में लपेटा हुआ उसका वॉलेट और उसका मोबाइल और उसके साथ एक और नया वॉलेट उसकी ओर बढ़ा दिया था। उसने सारी चीजें लगभग झपटते हुए उससे ले ली थी मानो कहीं फिर वह झटक कर ले ना भागे। वह मुड़कर जाना ही चाह रही थी कि नितिन ने उससे कहा था, " बाई डी वे, मैं नितिन तलवारे। " लड़की बोली थी, "मैंने वॉलेट में रखे एड्रेस से नाम और घर का पता जान लिया था।" फिर वह जाने लगी।
उसने रोकते हुए कहा था, "जरा उस झाड़ी के पीछे चलिए …"
लड़की ने प्रश्नवाचक दृष्टि उसकी तरफ डाली थी। शायद सोच रही हो आखिर इसका इरादा तो सही है ?
और नितिन आगे - आगे चल पड़ा था। बिना यह देखे कि वह लड़की उसके पीछे रही है या नहीं। लड़की आश्वस्त हो गयी थी कि उसकी नीयत में कोई खोट नहीं है।
"बागीचे की चीखें" कहानी का अंश:
आंसुओं का बाँध आज टूट गया था। "भाभी आज मन भर रो लेने दीजिये। मना मत कीजिये। कितने दिनों से इन्हें पी - पीकर सम्हाले रखा है। आज इनकी मुराद तो पूरी हो जाने दीजिये।"
बुआ जी ने हिम्मत कर पूछा था, "नीलू सब ठीक है न। कोई तकलीफ तो नहीं है न।"
नीलू ने वेदनामिश्रित हास्य के साथ जवाब में कहा था, "भाभी, यही तो तकलीफ है कि कोई तकलीफ नहीं है।"
क्यों नीलू अपनी तकलीफें नहीं कह पा रही थी?
"ठगाने का संकल्प" कहानी का अंश:
  कभी - कभी आपके साथ जब वो - वो होने लगता है जो - जो आपने कभी सोचा ही नहीं, चाहे अच्छा या बुरा, तो आपके साथ अच्छा होना भी आपको खलने लगता है।
"छाँव के सुख" कहानी का अंश:
"तुमने मुझे माई कहा है न। अब तो माई की बात माननी पड़ेगी। अब तक तू अकेला था। इसलिए अपनी मर्जी से चलता था। अब तो तेरी माई तेरे साथ है। तो अब माई की मर्जी से चलना पड़ेगा।" माई के सख्त मगर सहज शब्दों से जदू का अंदर - बाहर सब ओतप्रोत हो गया था। क्या ऐसा सुखद बदलाव भी इतनी त्वरित गति से किसी अनाथ के जीवन में आता है? वह तो अपने जीवन के इस मोड़ पर, ऐसे घुमाव पर विस्मित था, "हे भगवान, कैसे आपने उसके जीवन को यु - टर्न पर घुमा दिया है? आपकी लीला अपरम्पार है, प्रभो।" शायद जीवन में पहली बार वह भगवान के प्रति कृतज्ञता के भाव से भर उठा था।
"संघर्ष के जज्बे" कहानी के कुछ अंश:
उनकी शादी तो एक पढ़े - लिखे नौजवान, जिसने डाक्टरी पास की थी, उससे हुई थी कि उसके पूरे परिवार से।  उन्हें इससे क्या मतलब  कि उनके पतियों  को  डॉक्टर बनाने में उनके बड़े भाई ने फ़ौज की नौकरी कर कितनी रातें जमती हुई  बर्फ की ठिठुरन में गोलियों की बौछारों के बीच, या फिर आंधी, तूफ़ान में जंगली पशुओं और साँपों की फुफकारों के बीच काटी थी। उन्हें तो बनी - बनाई रियासत मिली।  अब बस हुकूमत चलानी थी।
"दवाई" कहानी का अंश:
तीसरे दिन सुबह के अखबार के तीसरे पन्ने पर जिसमें शहर की सारी अमुख्य और महत्वहीन खबरे होती हैं ...... लिखा था," निचले इलाके में नाले के मुहाने पर वाले स्लूस गेट के खोलने पर एक सड़ी हुयी लाश मिली है। लगता है दो दिन पहले नीचे के इलाके में पानी घुसने के कारण यह मौत हुई  होगी।“ 
यह खबर फिर कहीं दब गयी कि खुला हुआ गटर एक और जान लील गया
सिद्धी मामा” कहानी का अंश:
सिद्धी मामा ऐसे इंसान थे, ऐसे इंसान थे, पता नहीं कैसे इंसान थे। लोगों ने उनका इस्तमाल किया और लोग उनका इस्तेमाल कर रहे हैं यह जानते हुए भी वे इस्तेमाल किये जाते रहे।   
…. मैं तो वाह! कह उठा। क्या टेस्ट था मामू का: एक तरफ हिन्दी की साहित्यिक किताबे जिसमें हिन्दी के तमाम अग्रिम पक्ति के साहित्यकार शामिल थे और दूसरी तरफ फ़िल्मी किताबो और अखबारों की दुनिया थी।
…. सिद्धी जी के  पहुँचने पर वैसा ही लगा जैसे हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर लंका पहुँच गए हो, मूर्छित लक्ष्मण को जीवन दान देने
"…आइ गए हनुमान, जिमि करुणा मँह वीररस।"
मैच हुआजमकर  सिद्धी मामू खेलेऔर मेरे गाँव की टीम ने दो गोलों से मैच जीत लिया। यह सब सिद्धी मामू की बदौलत ही हुआ।

Date 04-11-2015:
FB/Twitter पर डाले गए VIDEO के अंश:
YouTube ka link: https://youtu.be/gXXwWT3A54k
"छाँव का सुख" पुस्तक की कहानियाँ आपके - हमारे इर्द - गिर्द अंकुरित होती हैं. कभी वे चुपचाप रहती हैं, कभी उनका मौन मुखर हो जाता है, तो वे बोल पड़ती हैं. कभी वे बेबस - सी लगती हैं, कभी वे विवशता को फेंक कर बाहर निकल पड़ती हैं, उन्मुक्त आकाश में, खुले वितान में, पंख फैलाती नभ को नापती हैं.
इसके पन्ने कभी आपको ठगी - सी नदी की तीर पर बैठी हुई लगती हैं, कभी उन पन्नों पर आप अपनी संवेदना की आहट सुनकर, नदी की धार को पारकर, कुछ विकल्पों को छोड़कर संकल्पित होने लगते हैं.
इसी पुस्तक में डाली गई एक कविता का अंश:
आओ दोस्तों, थोड़ी अपनी भी परवाह करें,
आओ खेलें, मेल बढ़ाएं, जीने की चाह करें।

कोई हाथ बढ़ाने वाला,
क्या आएगा कभी यहाँ?
कोई हमें थामने वाला,
क्या आएगा कभी यहाँ?

चाह नहीं इसकी अब भी,
पहले भी कभी नहीं रही,
मस्ती में जीवन कटता है,
कभी कमी भी नहीं रही।

ऐसे जीवन में मलंग
भी गीत जीत का गाता है,
कल का किसने देखा है,
आज सूरज से नाता है।


रातें कटती, करते बातें,
कभी चाँद, तो कभी सितारे,
आँखे झँपती, जगी हैं आंतें,
रिश्ते सारे स्वर्ग सिधारे।

ऐसे में क्या सोंचे, क्या कोई गुनाह करें?
मेल बढ़ाएं, खेल बढ़ाएं, चलो जीने की चाह करें।

मेरे मन में जगती आसें,
लहरों पर दौड़ें, पंख फुलाएं,
जंग जीतनी है, जीवन की,
क्षितिज पार से कोई बुलाये। 

वहां प्रेम का दरिया बहता,
ठिठुरन भरी नहीं हैं रातें,
पेट भरे की नहीं है चिंता,
रोज नई दावतें उड़ाते।

कल्लू, जददू, आओ, बैठो थोड़ी तो सलाह करें,
आओ खेलें, मेल बढ़ाएं, जीने की चाह करें।




1 comment:

soni said...

This synopsis of the story book is very interesting. I cannot imagine how interesting the book will be. A must read for all.

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