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Saturday, July 23, 2016

मैं हूँ लंगूर, मैं हूँ लंगूर (कविता)

#bnmpoems

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लिंक: http://yourstoryclub.com/poetry-and-poem/hindi-poem-jal-ki-boonden-aur-jeewan/

FB एड्रेस: https://www.facebook.com/brajendranath.mishra
This poem is about the feelings of an ape (monkey) who has lost his way and entered the big city which has become a jungle of concrete. 

मैं हूँ  लंगूर, मैं हूँ लंगूर

वनों, बागों , बागीचों से ,
भागता , फिरता पहुंचा हूँ ,
कंक्रीट के जंगल में ,
भटकता इतनी  दूर।
मैं हूँ  लंगूर, मैं हूँ लंगूर। 

पेड़ों  की  डालों पर चढ़ता ,
झूलता, झूमता उन झूलों पर ,
 इतराता , इठलाता , मटकता चलता,
सुगंध  लेता उन फूलों पर,
लय में  नाचता जैसे मयूर।
मैं हूँ लंगूर, मैं हूँ  लंगूर।

तेरे  इशारों  पर नाचा 
मैं तो  हूँ सीधा - साधा ,
कूदता, फांदता   और  हंसाता,
अपना मजाक बना डाला।
क्या  मेरी अदायें भायी मेरे हुजूर ?
मैं हूँ लंगूर , मैं हूँ लंगूर।

राम की सेना का अंग बना,
लड़ा   क्रूर रावण से युद्ध,
मेरा  बल अतुलित ब्याप्त  है ,
आसुरी शक्तियों  के विरुद्ध।
जहाँ   भी अत्याचार हुआ,
मैं जा पहुंचता हूँ जरूर।
मैं हूँ लंगूर , मैं  हूँ लंगूर।

वन उजाड़  डाले मानव ने ,
और  उजड़ते  ही  जा रहे ,
कहाँ रहूँ मैं , कैसे रहूँ मैं ,
समाधान कोई भी नहीं पा  रहे।
क्यों   मनुष्य बन गया क्रूर?
मैं हूँ लंगूर , मैं  हूँ लंगूर।

अब  मैं  जाता नहीं राम
की कथा जहाँ होती है ,
पीले  पत्तों  के   बीच  मौन,
मेरी ऑंखें बस यूँ रोती हैं।
जी  लिया  बहुत अब मेरे राम,
अब  चला  यहाँ  से बहुत दूर।
मैं हूँ लंगूर , मैं  हूँ लंगूर।

--- ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र, 3A, सुन्दर गार्डन, संजय पथ, डिमना रोग, मानगो, जमशेदपुर। E-mail: brajendra.nath.mishra@gmail.com,

1 comment:

pintujee said...

bahut hi sundar kavita sir. bahut prasangik bhi hai. har pankti ko padh mann kutch sochne par vivash hua .

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