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इस कविता के द्वारा कवि इस युग की युवा पीढ़ी को जगाने के लिए स्वयं तत्पर होता है. युवा पीढ़ी सजग, सशक्त और सुदृढ़ होकर ज़माने की विद्रूपताओं को सुधारने के लिए आगे बढ़ता चले, कवि का ब्यथित मन युवाओं को इसके लिए प्रेरित करना चाहता है. यह कविता इस लिंक पर भी देखी और पढी जा सकती है.
जगाने आ रहा हूँ…
इस कविता के द्वारा कवि इस युग की युवा पीढ़ी को जगाने के लिए स्वयं तत्पर होता है. युवा पीढ़ी सजग, सशक्त और सुदृढ़ होकर ज़माने की विद्रूपताओं को सुधारने के लिए आगे बढ़ता चले, कवि का ब्यथित मन युवाओं को इसके लिए प्रेरित करना चाहता है. यह कविता इस लिंक पर भी देखी और पढी जा सकती है.
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This poem in Hindi calls upon the youths to rise from the slumber, muster strength and root out the evils in the system and the society.
लिंक: http://yourstoryclub.com/poetry-and-poem/hindi-poem-jagaane-aa-raha-hun/
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जगाने आ रहा हूँ…
लोरियाँ सुन - सुन कर,
सो चुके बहुत तुम,
रास के सपनों में,
खो चुके बहुत तुम।
जवानियाँ उठो तुझे,
जगाने आ रहा हूँ,
जागरण के गीत,
सुनाने आ रहा हूँ।
मैं एक हाथ से उठाके,
सूर्य को उछाल दूँ,
मैं चाँद को भींचकर,
पीयूष को निकाल दूँ।
धरती की काया है प्यासी,
फैलती जा रही घोर उदासी,
अमृत - रस कण - कण में,
बहाने आ रहा हूँ,
जवानियाँ उठो तुझे,
जगाने आ रहा हूँ,
जागरण के गीत,
सुनाने आ रहा हूँ।
सावधान, मिलावटी,
मुनाफाखोरों,
सावधान, बेईमानों,
रिश्वतखोरों,
शोणित भरे थाल से,
काल के कपाल से,
लाल - लाल रक्त - कण
बहाने आ रहा हूँ,
जवानियाँ उठो तुझे,
जगाने आ रहा हूँ,
जागरण के गीत
सुनाने आ रहा हूँ।
कौन टोक सकता है,
सत्य - सपथ मेरा?
कौन रोक सकता है,
विजय - रथ मेरा?
ले मशाल हाथ में,
अग्नि - पुंज साथ में,
क्रांति का प्रयाण गीत,
गाने आ रहा हूँ,
जवानियाँ उठो तुझे,
जगाने आ रहा हूँ,
जागरण के गीत,
सुनाने आ रहा हूँ।
अनाचार, अत्याचार देख,
जो भी चुप रहता है,
उसकी रगों में रक्त नहीं,
ठंढा - जल बहता है,
तेरी शिराओं में खून का,
उबाल उठाने आ रहा हूँ,
जवानियाँ उठो तुझे,
जगाने आ रहा हूँ,
जागरण के गीत,
सुनाने आ रहा हूँ।
तेरी नसों में खून,
शिवा का महान है।
सोच ले, दबोच ले,
यहाँ जो भी शैतान है।
उठा खड्ग तू छेदन कर,
ब्यूह का तू भेदन कर,
तेरे साथ शौर्य - गान,
गाने आ रहा हूँ,
जवानियाँ उठो तुझे,
जगाने आ रहा हूँ,
जागरण के गीत,
सुनाने आ रहा हूँ।
तेरी लेखनी से,
सिर्फ प्रेम - रस ही झरता,
तुझे वेब जाल पर,
सिर्फ पोर्न - रस ही दिखता,
जवानी के दिनों को,
मत यूँ ही निकाल दो,
मांसपेशियों को कसो तुम,
फौलाद - सा ढाल दो,
तुझे मैं सृजनधर्मा,
बनाने आ रहा हूँ,
जवानियाँ उठो तुझे,
जगाने आ रहा हूँ,
जागरण के गीत
सुनाने आ रहा हूँ।
- --ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
तिथि: 04-06-2015
जमशेदपुर।
2 comments:
अति सुन्दर महोदय जवानी में शिथला रहे है उनको जगाने आया हूँ...
आदरणीया, मेरे ब्लॉग को विजिट करने के लिए आभार! आपने इस कविता की सराहना की इसके लिए आपका विशेष आभार। इस कविता से मैंने नयी पीढी को झकझोरने का प्रयत्न किया है। शायद उसमें मैं कुछ हद तक सफल होऊं!
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