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Friday, September 30, 2016

बहना के दिल में रहना (कविता)

#bnmpoems
बहना के दिल में रहना

भैया तुम जाओ दूर देश पर,
बहना के दिल में रहना।
तुम्हे होगा याद मगर
मेरे में मन में बसी हुई हैं
बचपन की यादों की छाया।
धींगा मस्ती, दौड़ा दौड़ी,
गलती करना, फिर दुहराना,
पापा के डाँट के डर से
माँ के पल्लू में छुप जाना।
छत पर जाना, पतंग उड़ाना,
पतंग अगर कट जाए तो,
एक नया फिर पतंग बनाना।

साथ लिए बचपन की यादें,
मैं गई अपने घर जैसे,
एक पराये घर में
यहाँ नहीं वह धींगा मस्ती,
नहीं वहां का मस्तनापन
मर्यादाओं में बाँध दी गई,
पाना नहीं मगर फिर भी
देना है, बस देना है,
सबको अपना अपनापन।

मैं भी लेकर बैठ गई
तुझे सुनाने अपनी कहानी।
दुखी नहीं होना तुम सुनकर
मैं सुख से हूँ, हरी भरी हूँ,
नहीं कहीं है वीरानी।
एक मेरी ,बस विनती मेरी
माँ पापा की उम्र हो गई,
उनके संघर्षो की कहानी
नई आई भाभी से कहना,
कैसे वे फांके करके भी
हमें दे सके राह नई
जीने को अपना सपना।

उनको कोई क्लेश नहीं हो
हम सब उन्हें विश्वास  दिला दें।
जी तो नहीं सके वे जीवन
मर तो सकें चैन से सुख से,
उनको यह अहसास करा दें।
इन्ही भावों को धागों में पिरोकर
भेज रही हों मैं ये राखी
रोड़ी को माथे पे लगाकर,
बांध कलाई पर ये राखी।
याद कर लेना इस बहना को
मन में कोई बात रखना
भले बसे हो दूर देश पर
बहना के दिल में रहना।
बहना के दिल में रहना।

--ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
   जमशेदपुर, तिथि: 11-08-2016.


द्रष्टब्य: यह कविता मैंने  सन  2016 के रक्षाबंधन के पहले लिखकर ओपन बुक्स ऑनलाइन जो एक साहित्यिक रूचि रखने वालों की वेब साइट है उसके उत्सव 72 में पोस्ट की थी। इसे वहां काफी सराहा गया. उसके बाद मैंने इस रचना को प्रतिलिपि के साइट पर  प्रकाशित किया। इसे मैं अपने ब्लॉग में भी डाल रहा हूँ ताकि यह सुरक्षित रहे।

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