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Friday, October 7, 2016

मानव कौल द्वारा लिखी कहानी संवृह "ठीक तुम्हारे पीछे" की समीक्षा

मानव कौल लिखी और हिन्द युग्म से प्रकाशित कहानी संग्रह "ठीक तुम्हारे पीछे" की अंतिम कहानी को छोड़कर सारी कहानियां अभी ख़त्म की हैं। मानव कौल कहानियां नहीं लिखते है, वे शब्दों और वाक्यों के रंगों से पन्नों पर एक मॉडर्न पेंटिंग बनाते हैं। इस पेंटिंग में शुरू में आप को रंगों के छींटें यहां - वहां बिखरे लगते हैं। जैसे - जैसे आप आगे बढ़ते है, थोड़ी तश्वीर उभरनी शुरू होती है। ये तश्वीरें कैनवास पर अपना रूप बदलती हैं। और कहानी के अंततक पहुंचते - पहुंचते पूरे कैनवास पर छा जाती है। कभी आपको सबकुछ स्पष्ट और आवरणविहीन होता हुआ दीखता है तो कभी - कभी आपको स्पष्टता खोजनी पड़ती है। इसे आप अपने करीब कहीं घटित हुआ पाते है, या घटित हुआ होने की संभावना ढूढने लगते हैं। तभी आपको लगता है कि ये ठीक हमारे पीछे ही घट रहा है, घट चूका है या घटने वाला है।
अगर किसी कहानी में शुरू में स्पष्ट दृश्य नज़र आ रहे हो तो निश्चित मानिये अंत आते - आते आप उलझ जायेंगें और आपको अर्थ खोजने के लिए छोड़ दिया जाएगा , अकेला ही।
आप सोच रहे होंगे  कहानियों के बारे में लिखते हुए कहीं मैं खुद ही कहानियां तो रचने नहीं लग गया। नहीं , ऐसा बिल्कुल नहीं है। मेरे यह सब लिखने का एक ही अभिप्राय है कि इन कहानियों को पढ़ना शुरू करने के पहले आपका भी एक स्तर होना चाहिए जो कहानियों के स्तर तक पहुंचकर उसे महसूस कर सके। टाइम पास के लिए पढी जाने वाली कहानियां नहीं है ये। कहानियां ख़त्म होते - होते आपको कुछ सोचने पर मजबूर करती है। अगर बिना कुछ सोचे आप दूसरी कहानी पर शिफ्ट कर जाते हैं, तो आप कहानियों के उद्देश्य को पूरा नहीं करके खुद ही कहीं भटक जा रहे है और इसीलिये आपकी टिप्पणी होगी कि ये कहानियां भटका देती हैं। यह टिप्पणी बिलकुल सतही और भ्रम पैदा करने वाली है। सारे पात्र जैसे जीवन, अंतिमा, मुमताज़ भाई, लकी , सिमोन, कमल  हमारे आपके इर्दगिर्द से लिए गए है। इन्हीं पात्रों की कूचियों से जिंदगी के कई रंग मानव जी ने गढ़े हैं जो बेहद सजीले है।
--ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
  तिथि: 6-10-2016.

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