#poems#love
#BnmRachnaWorld
आज 04-11-2017 दिन शनिवार को कार्तिक पूर्णिमा है। यह तस्वीर मैनें अपने मानगो, जमशेदपुर के अपने छत के टेरेस से मोबायील के कैमरे से लिया था।
मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
तू अनमनी सी खड़ी मोड़ पर
नेत्र -जल भर लिए, नेह तेरे लिए।
आस में सांस को उलझाते हुए,
प्राण को अंतरतम से पुकारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर, निहारता रहा।
कुछ तो ऐसा किया मैंने अनजाने में
जिसकी सजा में तेरी बेरुखी मिली।
मुझे आता नहीं, कैसे मनाऊं तुझे,
अपलक नीर नैनों में संवारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
काश! आते मेरी गोद में चाँद-बन
लिपट जाती तुझसे मैं चाँदनी बन।
तू आये क्रय मूल्य में आंकनेे मुझे
जैसे सौदागर कोई विचारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
मेरी खता माफ़ कर दो प्रिय
प्रेम जल से तुझे मैं सिंचित करूँ।
सोते - सोते, जागते - जागते,
सुस्वप्नों को मन में पसारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
अन्धकार से खींच कर बांह तेरी
लिख दूँ एक पाती तेरे नाम की।
ओठ रख दूँ तेरे ओठ के छोर पर
अपने नैनों में नींद को विसारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
जमशेदपुर, 03-03-2017
--------/////---------
#BnmRachnaWorld
आज 04-11-2017 दिन शनिवार को कार्तिक पूर्णिमा है। यह तस्वीर मैनें अपने मानगो, जमशेदपुर के अपने छत के टेरेस से मोबायील के कैमरे से लिया था।
रात भर निहारता रहा
तू ताकती ही रही चाँद को,मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
तू अनमनी सी खड़ी मोड़ पर
नेत्र -जल भर लिए, नेह तेरे लिए।
आस में सांस को उलझाते हुए,
प्राण को अंतरतम से पुकारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर, निहारता रहा।
कुछ तो ऐसा किया मैंने अनजाने में
जिसकी सजा में तेरी बेरुखी मिली।
मुझे आता नहीं, कैसे मनाऊं तुझे,
अपलक नीर नैनों में संवारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
काश! आते मेरी गोद में चाँद-बन
लिपट जाती तुझसे मैं चाँदनी बन।
तू आये क्रय मूल्य में आंकनेे मुझे
जैसे सौदागर कोई विचारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
मेरी खता माफ़ कर दो प्रिय
प्रेम जल से तुझे मैं सिंचित करूँ।
सोते - सोते, जागते - जागते,
सुस्वप्नों को मन में पसारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
अन्धकार से खींच कर बांह तेरी
लिख दूँ एक पाती तेरे नाम की।
ओठ रख दूँ तेरे ओठ के छोर पर
अपने नैनों में नींद को विसारता रहा।
तू ताकती ही रही चाँद को,
मैं तुझे रात भर निहारता रहा।
©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
जमशेदपुर, 03-03-2017
--------/////---------
7 comments:
Ati Sunder hirdyasparshi bhawnatmak rachna.Kavi ke purane Dard kavya rup mein chalak aaye hain.Hriday vedna ko hardik naman.
Ati Sunder hirdyasparshi bhawnatmak rachna.Kavi ke purane Dard kavya rup mein chalak aaye hain.Hriday vedna ko hardik naman.
Ati Sunder hirdyasparshi bhawnatmak rachna.Kavi ke purane Dard kavya rup mein chalak aaye hain.Hriday vedna ko hardik naman.
Ati Sunder hirdyasparshi bhawnatmak rachna.Kavi ke purane Dard kavya rup mein chalak aaye hain.Hriday vedna ko hardik naman.
प्रिय बी के,
आपके उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय तल से बहुत - बहुत आभार! आप मेरा ब्लॉग और अन्य साईट पर जिसका लिंक मैं नीचे दे रहा हूं, पढ़ते रहें और मुझे सुझाव देते रहें। आपका सुझाव मेरे लिए बहुत ही मूल्यवान है।
This is a beautiful poem of ramanticism which recalls the rhythmic poetry of famous Hindi poet Neeraj...
Post a Comment