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Sunday, March 5, 2017

रक्त उबलता ही जाये (कविता)

#poems#patriotic
#BnmRachnaWorld

रक्त उबलता ही जाये


बिंधे देह, बिखरा हो रक्त,
लाशें बिछीं हो क्षत विक्षत।
लुटे श्रृंगार, बिखरी चूड़ियां
कैसे करें भावों को ब्यक्त!

बॉर्डर की हरीतिमा हुयी लाल,
सोते हुओं को कर गया हलाल।
 रक्त बह रहा रावी में फिर से
आया है एक नया भूचाल।

ललकारा है, रावी तट से,
सतलज, झेलम जम्मू तवी से
गंगा, यमुना,  ब्रह्मपुत्र को
दो आवाज़ सोन विप्लवी को।

जाओ, जाओ, उन्हें जगाओ
आज़ाद, दत्त, जतिन, सुभाष को
अशफाक, भगत , बिस्मिल, हमीद
राणा, शिवा, मंगल की सांस को।

कैसे सोये और मनाएं,
होली, विजया और दिवाली।
सीमा पर सो गया वीर,
लेकर साथ बंदूकों के नाली।

 प्रहरी तेरे साथ मुल्क है
आगे बढ़ो, प्रहार करो।
जाग गया जब शेर वहां,
तब अंदर घुसकर दहाड़ करो।

सीमाएं अब बदलेंगी,
बदलेंगी खींची कृत्रिम रेखाएं
सीमा के पार जो है गुलाम,
आज़ाद उन्हें हम कर पाएं।

आओ हों संकल्पित हम सब
 आग न ठंढी होने पाए,
भारत हो अक्षुण्ण, अखंड
रक्त उबलता ही जाये।

©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
  तिथि: 29-09-2016.

1 comment:

Lalita Mishra said...
This comment has been removed by a blog administrator.

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