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Thursday, June 15, 2017

कलम से शब्दों के जाल बुन रहा हूँ (कविता)

#poetry #motivational
#BnmRachnaWorld

 कलम से शब्दों के जाल बुन रहा हूँ।
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इसी कलम से कभी श्रृंगार सजाता हूँ।
इसी कलम से कभी मल्हार गाता हूँ।।
इसी कलम से शब्दों के सुर ताल सुन रहा हूँ।
इसी कलम से शब्दों के जाल बन रहा हूँ।

इसी कलम से शब्दों को अंगार बनाता हूँ।
इसी कलम से रणचंडी का त्यौहार मनाता हूँ।
इसी कलम से शब्दों के शैवाल चुन रहा हूँ।
इसी कलम से शब्दों के जाल बुन रहा हूँ।

इसी कलम से जमा करता हूँ मसान  की राख,
इसी कलम से चुनता  हूँ हड्डियों की शाख।
इसी कलम से जीवन का वैराग्य गुन रहा हूँ।
इसी कलम से शब्दों के जाल बुन रहा हूँ।।

इसी कलम से खोजता हूँ ठहरी एक छाँव,
इसी कलम से जाता हूँ, अपना छूट गया गांव।
इसी कलम से महुआ का बवाल
सुन रहा हूँ।
इसी कलम से शब्दों के जाल बुन रहा हूँ।

©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
   जमशेदपुर।


नोट: मेरी हाल में लिखी यह कविता ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-80,  आयोजन अवधि 9-10 जून 2017  में स्थान पाई है। Open Books Online प्रसिद्ध साहित्य सेवियों और अनुरागियों की एक वेबसाइट है, जो हर महीने कविता, छंद और लघुकथाओं का आयोजन करता है। इसबार "कलम/लेखनी" शब्द को केंद्रीय भाव बनाकर कविता लिखनी थी। मैंने "कलम" को ध्यान में रखकर यह कविता लिखी है ।



2 comments:

Lalita Mishra said...

Kalam ki mahimaa bayaan karti achchhi kavita...

Lalita Mishra said...

Kalam ki mahimaa bayaan karti achchhi kavita...

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