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चलो करते हैं रक्त से तर्पण
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सीमा पर आ गया है दुश्मन
चलो करते हैं रक्त से तर्पण।
माँ चंडी का थाल ले चलो,
हाथों में करवाल ले चलो।
मस्त सिंह की चाल ले, चलो,
दिशाओं से भूचाल ले चलो।
चलो करते हैं,पग से अरि मर्दन।
चलो करते हैं रक्त से तर्पण।
वक्त नहीं, त्रिपिटक निकाल पढने का,
यह वक्त नही है पंचशील दुहराने का।
यह वक्त नहीं है सत्य, अहिंसा की दुहाई दे
तीर त्याग, तकली, चरखा चलाने का।
जागो वसुंधरा का कण कण।
चलो करते हैं रक्त से तर्पण।
अरुणाचल,लद्दाख, सिक्किम, भूटान से,
तेज करो तलवार धार को खींच म्यान से।
अरि पर चढ़ो हुंकार करो
तोपों से विकट प्रहार करो।
हवाओं की रणभेरी सुन सनन - सनन।
चलो करते हैं, रक्त से तर्पण।
सन बासठ के शहीदों का कर्ज पुकार रहा।
हिम किरीट के लिए हमारा फर्ज पुकार रहा।
इस बार नही हम ओढ़ेंगें श्वेत बर्फ की चादर,
इस बार फनों को कुचलेंगे तेरे ओ विष धर।
निकला हूँ, लगा भाल पर रक्त चन्दन।
चलो करते है रक्त से तर्पण।
लोहित कुंड से निकालकर कठिन कुठार ले चलो
जगाओ परशुराम को फरसे की धार ले, चलो।
छेदन करो सीमा पर सहस्त्र बाहु का,
काटो सिरों को, केतु और राहु का।
निभाना है, भारत माँ को दिए वचन।
चलो करते हैं रक्त से तर्पण।
जगाओं युवाओं को, जो ब्यस्त है वेब जाल में।
सो गया, रक्त जिनका कंचन के वृत्त चाल में।
अंदर की ज्वाला को दे आहुति धधकाओ,
जागो- जागो, वीर शत्रु मस्तक पर चढ़ जाओ।
आगे बढ़ चलो, रुके न कभी चरण।
चलो करते है, रक्त से तर्पण।
--ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
जमशेदपुर
तिथि: 10-07-2017.
स्मरणीय: दिनांक संध्या 5 बजे से सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन के तुलसी भवन के सभागार में आदरणीय श्री नर्मदेश्वर पांडेय जी की अध्यक्षता, श्री संजय पांडेय विशेष पदाधिकारी, अक्षेष, मानगो सम्मानित विशिष्ठ अतिथि और श्री यमुना तिवारी ब्यथित के संयोजकत्व में काव्योत्सव का आयोजन हुआ। श्री श्रीराम पांडेय भार्गव, श्री ग़ाज़ीपुरी, श्री सुमन, श्री शैलजी, श्री अशोक जी, श्री वरुण जी, श्री वीणा पांडेय, श्रीमती माधुरी, श्रीमती माधुरी, श्री शशि ओझा, श्री अमित, श्री अशोकजी, श्री हयात और शहर के अन्य गण्यमान्य साहित्यानुरागियों ने इसमें शिरकत की। इसमें स्थानीय साहित्यकारों को पुस्तक भेंट कर संम्मानित भी किया गया।
मैंने भी गोस्वामी तुलसीदास के और हम सबों के आराध्य श्री राम के चरणों में प्रणाम निवेदित करते हुए, इस देशभक्ति से ओतप्रोत कविता का पाठ किया।
नोट: यही कविता मैंने ता: 19-08-2017, दिन शनिवार को आजाद पार्क गया में, गया जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में आयोजित "काब्य सन्ध्या" में भी सुनायी। वहाँ के प्रबुद्ध साहित्यानुरगियों नें काफी प्रशंसा की। उसी समय की कुछ स्मृतियां इन तस्वीरों में देखें:
यही कविता मैने ता: 28-01-2018 को प्रिय अवधेश जी के सयोजकत्व में और "पेड़ों की छांव तले रचना पाठ" के तत्वावधान में सेंट्रल पार्क, सेक्टर 4, वैशाली, दिल्ली एन सी आर में आयोजित काब्य गोष्ठी में भी पढ़ी। इसके अन्तिम दो छन्दों को विडियो में कैद किया गया। उस वीडियो का youtube लिन्क इस प्रकार है। देखें और उसे subscribe भी करें:
https://youtu.be/6WB5ND_sCpw
1 comment:
Veer ras se otprot josh jagaane wali shaandaar kavita...
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