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Saturday, September 23, 2017

बरसात का संहारक रूप (कविता)

#poems#nature
#BnmRachnaWorld

क्यों जलप्लावन कर जाते हो
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जल से भरी बूंदें बरसाते हो।
बूंदें बरसाकर  कहाँ छिप जाते हो?

बादल में कभी दिखते हो,
बिजली की रेखाएं बनकर।
कभी अंधेरी रातों में भी,
चमकते हो सितारे बनकर।

घटाओं में  घिरकर पहाड़ पर
धाराओं में बह जाते हो।
जल से भरी बूंदें बरसाते हो।
बूंदें बरसाकर कहाँ छिप जाते हो?

कल तक जिसके लिए तरसते,
आज वही निरंतर बरस रहा।
तालाबो, नदी के तोड़ किनारे,
जल शैलाब निर्बाध पसर रहा।

क्यों यह भीषण संहारक रूप दिखाते हो?
बूंदें बरसाकर कहाँ छिप जाते हो?

माना जल ही जीवन है
जीवन में जो पानी है।
पानी के निरंतर निर्बाध वर्षण से
सब हो जाता पानी - पानी है।

पानी का बहाव जब हो
विकराल, भयावह और भयंकर।
नहीं मुझे लगता है तब भी
तुम्हीं उसमें करते सब जाकर।

तू अपना सृजन रूप छोड़ कहाँ पर आते हो?
बूंदें बरसाकर कहां छिप जाते हो?
जल से भरी बूंदें बरसाते हो।

बहुत हो चुका मेरे गिरिधर,
मेरे पालनहार,  महेश्वर।
अपने विनाशक रूप त्यागकर
मानवता का पोषण अब कर।

उतनी ही बूंदें बरसाओ
जितना से भींगे अंतर्मन
अमृत तत्व का संचालन हो,
ओतप्रोत हो जाए जनमन।

अब बस कर दो,  आसमान से
क्यों जलप्लावन कर जाते हो?
क्यों जल से भरी बूंदें बरसाते हो?
बूंदे बरसाकर कहां छिप जाते हो?

--©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
    ता: 29-08-2017, एरोली, मुम्बई
    मुंबई में हो रही लगातार तेज बारिश पर।








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