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Saturday, September 9, 2017

उन्माद शमन का निश्चय कर (कविता)

#poem#motivational
#BnmRachnaWorld

उन्माद शमन का निश्चय कर
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घर से चुपचाप निकल
दबाकर अपने पदचाप निकल,
उन्माद शमन का निश्चय कर
मिटाने को संताप निकल।

गलियों को देख जहां
सोये है लोग सताए जाकर।
उनके लिए उम्मीदों के छत का
तू एक वितान खड़ा कर।

तू सूरज का एक कतरा
लाने को रवि ताप निकल।
उन्माद शमन का निश्चय कर
मिटाने को संताप निकल।।    

 कोई नारा नहीं जो बदल दे
 सूरत आज और कल में।
मुठ्ठियों को भींच, छलकाओ,
अमृत कलश जल थल  में।

सिसकियों में सोते हैं, उनके
मिटाने को विलाप निकल।
उन्माद शमन का निश्चय कर
मिटाने को संताप निकल।

जो बीमार सा चाँद दिखे
तो तू लेकर उपचार चलो।
जंगल में जब दावानल हो,
तू लेकर जल संचार चलो।

लेते हैं जो छीन निवाले
बन्द करने उनके क्रिया कलाप चल।
उन्माद शमन का निश्चय कर,
मिटाने को संताप निकल।


भेद डालकर अपनो में
जो विग्रह करवाते  है,
यहां लड़ाते, वहां भिड़ाते,
खून का प्यासा  बनाते हैं।

वहां प्रेम का विरवा रोपें,
करवाने को मिलाप चल।
उन्माद शमन का निश्चय कर,
मिटाने को संताप निकल।

©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
 जमशेदपुर
ता: 08-09-2017

नोट: मेरी हाल में लिखी यह कविता OBO उत्सव 83, में स्थान पाई है। Open Books Online प्रसिद्ध साहित्य सेवियों और अनुरागियों की एक वेबसाइट है, जो हर महीने कविता, छंद और लघुकथाओं का आयोजन करता है। इसबार। " उन्माद" शब्द को केंद्रीय भाव बनाकर कविता लिखनी थी। मैंने उन्माद के सकारात्मक पक्ष को रेखांकित करते हुए यह कविता लिखी है।

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