#poem#nature
#BnmRachnaWorld
ओ बी ओ (open books online) साहित्य मर्मज्ञों द्वारा संचालित अन्तरजाल है, जो हर महीने ऑन लाईन उत्सव आयोजित कर्ता है। इस बार यह उत्सव 13-14 अक्टूबर को आयोजित किया गया था।
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-84
विषय - "सूर्य/सूरज"
आयोजन की अवधि- 13 अक्टूबर 2017, दिन शुक्रवार से 14 अक्टूबर 2017, दिन शनिवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
उपरोक्त उत्सव में मैने भी अपनी रचना भेजी थी। अभी आज सूर्योपासना का महान पर्व "छठ" का समापन हुआ है। "सूर्य/सूरज" विषय पर मैने अपनी रचना डाली थी उसे दे रहा हूँ।
रौशनी का गान सूरज
रौशनी का गान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
सुबह की पसरी ओस,
किरण की एक डोर।
ठहरती उन बूंदों पर ,
बिखरती चहुँ ओर।
सुनहरी मोतियों का
खड़ा करता मचान सूरज।
रौशनी का गान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
पंछियों को, पादपों को,
मनुजों को, तलैया को।
किरणों की बूंदें बरसाता,
नहाने को, गौरैया को।
समष्टि का मान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
रौशनी का गान सूरज।
सूर्य- रश्मियों में नहाई,
प्रकृति कैसे विचर रही!
झूम रहा कदम्ब-तरु भी,
तान- मुरली पसर रही।
डोलता बहती उर्मियों संग,
यमुना को देता सम्मान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
रौशनी का गान सूरज।
दोपहर की धूप
जलाती है बदन।
सूखते ताल, नलकूप,
चैन देता, डोलता पवन।
सन्ध्या संग मिलन को
जाता वेगवान सूरज।
रौशनी का गान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
@ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
ता: 08-10-2017
वैशाली, दिल्ली एन सी आर।
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ओ बी ओ (open books online) साहित्य मर्मज्ञों द्वारा संचालित अन्तरजाल है, जो हर महीने ऑन लाईन उत्सव आयोजित कर्ता है। इस बार यह उत्सव 13-14 अक्टूबर को आयोजित किया गया था।
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-84
विषय - "सूर्य/सूरज"
आयोजन की अवधि- 13 अक्टूबर 2017, दिन शुक्रवार से 14 अक्टूबर 2017, दिन शनिवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
उपरोक्त उत्सव में मैने भी अपनी रचना भेजी थी। अभी आज सूर्योपासना का महान पर्व "छठ" का समापन हुआ है। "सूर्य/सूरज" विषय पर मैने अपनी रचना डाली थी उसे दे रहा हूँ।
रौशनी का गान सूरज
रौशनी का गान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
सुबह की पसरी ओस,
किरण की एक डोर।
ठहरती उन बूंदों पर ,
बिखरती चहुँ ओर।
सुनहरी मोतियों का
खड़ा करता मचान सूरज।
रौशनी का गान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
पंछियों को, पादपों को,
मनुजों को, तलैया को।
किरणों की बूंदें बरसाता,
नहाने को, गौरैया को।
समष्टि का मान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
रौशनी का गान सूरज।
सूर्य- रश्मियों में नहाई,
प्रकृति कैसे विचर रही!
झूम रहा कदम्ब-तरु भी,
तान- मुरली पसर रही।
डोलता बहती उर्मियों संग,
यमुना को देता सम्मान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
रौशनी का गान सूरज।
दोपहर की धूप
जलाती है बदन।
सूखते ताल, नलकूप,
चैन देता, डोलता पवन।
सन्ध्या संग मिलन को
जाता वेगवान सूरज।
रौशनी का गान सूरज।
प्राणियों का प्राण सूरज।
@ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
ता: 08-10-2017
वैशाली, दिल्ली एन सी आर।
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