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Sunday, October 29, 2017

तवरीख के पंख पर क्रांतियाँ (कविता)

#poem#social
#BnmRachnaWorld

चूल्हे जलते नहीं यहाँ किसी भी घर में,
फिर भी बस्ती से उठता हुआ धुआं तो देख।
महलों के कंगूरे गगन को चूमते हैं, मगर
मिलता नहीं यहाँ किसी को आशियाँ तो देख.

ये हरियाली जो दीखती है दूर तलक,
नजरें उठा, दूसरे तरफ का फैलता रेगिस्तां तो देख.

फूटपाथ पर सोये हैं जो लोग सट - सट कर,
उनके ऊपर का खुला आशमां तो देख.

जला चुके थे तुम जिन्हें चुन - चुन कर,
उस राख से उठती हुई चिंगारियाँ तो देख.

अब लाशें भी उठकर खड़ी हो गयी हैं,
हवा में उनकी तनी हुयी मुठियाँ तो देख.

ढूह में बदल जायेंगें महल दर - बदर,
खँडहर कहेंगे इन सबों की दास्ताँ तो देख.

वे जो सोते हैं भूख से बिलबिलाकर,
तवारीख के पंख पर लिखेंगे क्रांतियां तो देख.आ

by Brajendra Nath Mishra

1 comment:

citra said...

बहुत सुंदर

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