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Thursday, November 30, 2017

बेखौफ (कविता)

#poem#social
#BnmRachnaWorld

बेखौफ़


झूठ चिल्लाता रह गया,  शोर मचाता रह गया,
साथियों ने मेरा हाथ पकड़ा, और मैं आगे बढ़ गया।

दीवार पर टंगे थे इश्तेहार कई, सच छिपाने के लिए,
उन्हीं में से कुछ कूद गए, मेरा हाथ बढ़ाने के लिए।

लोगों ने लाठियां भांजी आँखों में खूँ लिए हुए,
मैं बेख़ौफ़ निकल गया, रूह में एक जुनूँ लिए हुए।

आपने मुझे खरोंच दिए इसका मुझे मलाल नहीं,
आपकी सोच बदल जाये, फिर कोई सवाल नहीं।

गर लड़ाई होगी सीधे, तो मेरे साथियों हो जाने दो,
कफ़न सर पर बंधे है, जिद्द पूरी अब हो जाने दो।

जिसका आगाज़ किया है, उसे अंजाम तक पहुंचा के दम लूंगा,
जिन्होंने साथ दिया  है, उन्हीं के साथ  मंज़िल पा के दम लूंगा।

©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र,
तिथि: 25-03-2017.
ऐरोली, नवी मुंबई।

नोट: यह कविता मैने इसी वर्ष मार्च में अपने मुंबई प्रवास के दौरान लिखी थी। इसे अपने ब्लॉग  पर आज डाल रहा हूं। इसके पहले यह कविता और कहीं भी प्रकाशित नहीं हुयी है।

2 comments:

Lalita Mishra said...

Is kavita ke bhaav baht hi krantikaari Hain. Dil ko jhakjhor dene wali rachna ke liye gazalkaar ko sadhuvaad!

Prakash said...

बहुत मार्मिक ...भावपूर्ण ...अतिसुन्दर !!!

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