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Sunday, December 17, 2017

यायावरी गीत लिखूँ (कविता)

#poem#romantic#emotional
#BnmRachnaWorld





मैं यायावरी गीत लिखूं और बँध-मुक्त हो जाऊँ।

मैं तितली बन फिरूँ बाग में,
फूलों पर कभी ना मडराऊँ ।
मैं गुन्जन करुँ, डाल-डाल पर,
उसको  कभी ना  झुकाउं।

मैं करुँ मधु - संचय और मधु- रिक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बँध-मुक्त हो जाऊँ।

मैं नदी,  सर्पिल पथ से
इठलाती-सी बही जा रही।
इतने बल कमर में कैसे
कहाँ- कहाँ से लोच ला रही?

मैं संजोती आस, किनारों को लांघूँ, उन्मुक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बँध-मुक्त हो जाउँ।

मेरे गीत उड़ चले अम्बर में,
जहां पतंगें उड़ती जाती।
जहां मेघ सन्देश भेज रहा,
यक्ष- प्रेम में जो मदमाती।

उस आंगन में बरसूं  मेघ बन, जल-रिक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बँध-मुक्त हो जाउँ।

गीत तरंगें चली लहरों पर
कभी डूबती, कभी उतराती।
कभी बांसुरी की धुन सुनने
यमुना तट पर दौड़ी जाती।

मैं भी चलूँ गोपियों संग, स्नेह-रिक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बँध-मुक्त हो जाउँ।

मैं जाउँ संगम - तट पर
धार समेटूं  आँचल में ।
मैं चांदनी की लहरों पर
गीत लिखूं , हर कल कल में।

मैं जाउँ निराला-तप-स्थल में, छन्द मुक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बँध-मुक्त हो जाउँ।

मैं घूमूं काशी की गलियां,
पूछूं तुलसी और कबीर से।
आओ कभी गंगा-घाटों पर
पसरे कचरे बीनो तीर से।

तुम्हारे छन्दों, दोहों को दुहराउँ, शोध-युक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बँध-मुक्त हो जाउँ।

मैं गीत लिखूं और तुम टेरो
शहनाई की धुन में कोई राग।
जिसमें से उड़े धूल  मिट्टी की,
जिसमें हो पुरबी लय में फाग।

अणु-वीणा के सप्त सुर गूंजे, बोध युक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बँध-मुक्त हो जाउँ।


@ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
 ता: 27-10-2017
 कोलकाता, निजाम पैलेस।


नोट:  ता: 17-12-2017
आज सिंहभूम हिन्दी सहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में स्थानीय तुलसी भवन में "काब्य कलश" का आयोजन हुआ। इस समारोह की अध्यक्षता तुलसी भवन के  मानद सचिव आदरणीय नर्मदेश्वर पाण्डेय जी ने की और संयोजन श्री यमुना तिवारी ब्यथित जी ने की। आदरणीया मन्जू पाण्डेय उदिता, कवियत्री और उत्तराखंड के शिक्षा पदाधिकारी की गरिमामय उपस्थिति तथा    डा . आशा गुप्ता की विशिष्ट उपस्थिति से इस समारोह ने नई उंचाईयों को छू लिया। अन्य सहित्य अनुरागियों में श्री श्रीराम पाण्डेय भार्गव जी, श्री आनन्द पाठक जी, श्रीमती सुष्मिता पाठक मिश्र, श्रीमती ममता सिंह, श्रीमती नीते, श्रीमती प्रतिभा, श्री अर्देन्दु, श्री देवेन्द्र कुमार, श्री अलबेला  जी, श्री पोद्दार जी, श्री कन्हैयालाल जी, ने अपने काब्य पाठ से उत्सव को सफल बनाया। समारोह में श्री केडिया जी ने भी शिरकत की। मैने भी अपनी कविता "मैं यायावरी गीता लिखूँ और बँध मुक्त हो जाउँ" सुनाई। उसी समय की कुछ तस्वीरें ऊपर दी गयी हैं।

28 अप्रैल, 2019 दिन रविवार, शाम को 5.00 बजे “सेंट्रल पार्क” सेक्टर-4 वैशाली , गाज़ियाबाद (दिल्ली एन सी आर)  में मासिक साहित्यिक गोष्ठी "पेड़ों की छांव तले रचना पाठ" के 55वें संस्करण में “सृजन मेँ प्रकृति प्रेम” विषय से संबन्धित गीत गजल कविताओं का दौर देर शाम तक अनवरत चला। आप सबों को यह बताता चलूँ कि आदरणीय अवधेश सिंह जी, जो हाल ही में बी एस एन एल के उच्च अधिकारी पद से सेवा निवृत्त हुए है और  हृदय से कवि हैं, के संयोजन में पिछले 4 वर्षों से भी अधिक समय से यह सत्र आयोजित किया जाता रहा है।
गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल स्थित भारतीय दूतावास में तैनात सांस्कृतिक व साहित्यिक अटैची रघुवीर शर्मा की उपस्थित विशेष उल्लेखनीय रही , अध्यक्षता डॉ वरुण कुमार तिवारी और संचालन संयोजक अवधेश सिंह ने किया व आभार प्रदर्शन परिंदे साहित्यिक पत्रिका के संपादक ठाकुर प्रसाद चौबे ने किया ।
मैन इसी कविता का पाठ किया उसके यूट्यूब वीडियो का लिंक यहां दे रहा हूँ।

https://youtu.be/sXVz3LARz9U

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इस गोष्ठी की खबर दिल्ली एन सी आर के नवभारत टाइम्स में भी छपी है:









3 comments:

Lalita Mishra said...

Bahut sunder shabd shilp se susajjit kavita.

Lalita.mishra.jsr@gmail.com

Lalita Mishra said...

Is kavita ka shabd shilp aur unaka samaayojan kamaal ka hai. Ek saarthak aur saargarbhit Archana!

Prakash said...

सुन्दर कविता ..अतिसुंदर...!

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