Followers

Thursday, January 25, 2018

इस गण तन्त्र सुलगता सवाल (कविता)

#poem#patriotic
#BnmRachnaWorld





इस गणतन्त्र ये सुलगता सवाल है।


सांसदों का टास्क था,
बनायेन्गें एक आदर्श ग्राम।
जहाँ होगी स्वच्छता, सम्पन्नता,
मिट जायेगी गरीबी तमाम।
आज तो उसकी ना कोई पड़ताल है।
इस गणतंत्र ये सुलगता सवाल है।

आज भी बन रही, सड़कें कई नई
विद्यालयों में बन रहीं नई दीवारे हैं।
एक वर्ष बीतते-बीतते ही उनमें
क्यों दिख रहीं तिरछी दरारें हैं?

सांसदों के मद की राशि-भत्ता बढता रहे,
वे ही होते रहें निरन्तर मालामाल हैं।
इस गणतंत्र ये सुलगता सवाल है।

गलियों में, सडकों पर,
सरकारी जमीनों पर।
दबन्गों का कब्जा है।
हरतरफ मज़ा ही मज़ा है।

फिर भी सब कह रहे
अच्छा है, ठीक हाल है।
इस गणतन्त्र ये सुलगता सवाल है।

नोटबन्दी के समय लगी कतार में,
दिखा नहीं कोई भी नेता।
कोई भी उद्योगपति, ब्यवसायी
या कोई भी सेलिब्रिटी अभिनेता।

जनता तो बनी है, उठाने को परेशानी
नेताजी आराम में हैं, देश खुशहाल है।
इस गणतन्त्र ये सुलगता सवाल है।

आज भी कुछ बच्चे हैं
बीन रहे क्यों कचरे हैं?
कचरा का कैसे हो प्रबन्धन
चल रहा है, चिन्तन-मनन।

फिर भी नहीं समाधान मिल रहा
लोग कहते है, समस्या विकराल है।
इस गणतन्त्र ये सुलगता सवाल है।


जी एस टी गर समाधान है,
तो ब्यापारी क्यों परेशान हैं?
ग्राहक के पॉकेट में सेंध लगी
कीमतो पर क्यों नहीं लगाम है?

आम उपयोग की चीजो के
मूल्य में फिर क्यों इतना उछाल है?
इस गण तन्त्र ये सुलगता सवाल है।

संसद, विधान सभाओं में
लोकनीति कहीं पिस रही।
भाई-भतीजों और दागी हैं नेता,
भ्रष्टनीति हर तरफ बिहंस रही।

भ्रष्टाचार मुक्त भारत होगा कब?
इसी सवाल पर मच रहा बवाल है।
इस गण तन्त्र ये सुलगता सवाल है।

काला धन कहाँ था?
आया अभी क्यों नहीं?
जनता बाट जोह रही,
बुरे दिन फिरेन्गें कभी?

इन सभी मुद्दों पर जरूरी पड़ताल है।
इस गण तन्त्र ये सुलगता सवाल है।

जनसंख्या नियन्त्रण जरूरी है,
देशहित के लिये यह सर्वोपरी है।
तो सरकार क्यों मौन है?
उसे रोक रहा कौन है?

लागू हो सख्ती से राष्ट्र नीति
चुप हो जाएं जो भी वाचाल हैं।
इस गणतन्त्र ये जलता मशाल है।
हल हो जाएं ये सारे सवाल है।
अगला गणतन्त्र ये सुलगता सवाल है।
अगला गणतंत्र ये सुलगता सवाल है।

हर मनुष्य का जीवन स्तर
क्यों नही समान है?
क्यों है इतना कोलाहल
क्यों मच रहा घमासान है?
आओ सुलझाएं ये सारे जलते प्रश्न
सोचें हर नागरिक, तो मिट जाये मलाल है।
अगला गण तन्त्र ये सुलगता सवाल है।

तिथि: 25-01-2018
वैशाली, ग़ज़ियाबाद!

इसी कविता के कुछ छंदों के साथ, कुछ नए छंदों को जोड़कर मैंने गणतंत्र दिवस 2019 की पूर्व संध्या पर स्थानीय तुलसी भवन में सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में आयोजित "काव्य कलश" कार्यक्रम में सुनायी थी, जिसका YouTube वीडियो लिंक इसप्रकार है। आप मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net को सब्सक्राइब करें,  लाइक करें, साझा करें और अपने कम्मेंट भी अवश्य दें।
Link: https://youtu.be/G9QMX1YmIII
ब्रजेंद्रनाथ























5 comments:

Lalita Mishra said...

In this POEM some burning questions, which need to be answered, has been reminded. Before we celebrate the 69th Republic Day we should ask these questions to those in power and to ourselves also.

Unknown said...

This is a very realistic questions asked through this satarical poem..

loveuhindijagrika said...

very nice.

Marmagya - know the inner self said...

श्रद्धेय, मेरी इस रचना पर उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिये हृदय तल से आभार! आप इसी ब्लॉग पर मेरी अन्य रचनाओं पर भी अपने विचार अवश्य दें!

KARUNA KUMARI said...

इस गणतंत्र दिवस पर किये गए वादों और धरातल पर उन्हें उतारने के प्रयासों के पड़ताल का भी समय है। उसी पर आधारित सुन्दर रचना।

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...