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बसन्त-सा मौन, जीवन जिनका सेवा-व्रत है
आज की इस बसन्त पंचमी में, जिस दिन महाप्राण निराला जी का जन्म दिन है, शृंगार, सेवा और शौर्य के मिले जुले रंगों में शब्दों को रंगकर इस कविता का सृजन किया गया है। आप सबों के स्नेह और आशीर्वचन दोनों की अपेक्षा है। सादर!
वे बसन्त - सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा-व्रत है!
वृन्तों पर फूलों का उत्सव,
धरती पहने साड़ी धानी ।
आम्र-पत्र ढँके मन्जरियों से,
भौरें गुन्जाये प्रेम-कहानी।
प्रकृति दे रही है वरदान
कण-कण पसर रहा अमृत है।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा - व्रत है।
पीली सरसों की क्यारियों से,
झांक रहा, कौन रन्ग बन।
गेंदे के फूलों में विहन्सता,
बरस रहा जीवन-तरंग बन।
धरती जिसका बनी बिछौना,
विस्तार यह सम्पूर्ण जगत है।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा-व्रत है।
कोयल बाग में कूक रही है,
गून्ज रही है ध्वनि दिगंत में।
जगा रही वह हूक हृदय में,
कंत दूर हैंं, इस बसन्त में।
अपने स्वभाव में मस्त मगन
अपनापन लुटा रहे सर्वत्र हैं।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा-व्रत है।
जो जूझ रहे दुश्मन से
सीमा पर सीना ताने।
उनका हर मौसम बसंत है,
वे रण-चंडी के दीवाने।
मौत से टकराने वालों के,
भाल सजा चन्दन, अक्षत है।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा-व्रत है।
राजनीति में देशनीति हो
आओ लें हम आज सपथ।
देश मान ना झूकने देंगें,
भले सजा हो अग्निपथ।
परमार्थ में जीवन अर्पण
स्वयं से उँचा ये जनमत है।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा-व्रत है।
ता: 22-01-2018
बसन्त पंचमी
स्थान: वैशाली, गाज़ियाबाद
यही कविता मैंने 2019 में वसंत ऋतु के आगमन पर आप अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर अपने YouTube चैनल marmagya net के इस लिंक पर डाली है। आप मेरे यूट्यूब चैनल।marmagya net को सब्सक्राइब करें, लाइक करें, साझा करें और कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य दें। आपके विचार मेरे लिए अमूल्य हैं।
Link: https://youtu.be/r1zLRcNpq8U
ब्रजेंद्रनाथ
जीवन जिनका सेवा-व्रत है!
वृन्तों पर फूलों का उत्सव,
धरती पहने साड़ी धानी ।
आम्र-पत्र ढँके मन्जरियों से,
भौरें गुन्जाये प्रेम-कहानी।
प्रकृति दे रही है वरदान
कण-कण पसर रहा अमृत है।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा - व्रत है।
पीली सरसों की क्यारियों से,
झांक रहा, कौन रन्ग बन।
गेंदे के फूलों में विहन्सता,
बरस रहा जीवन-तरंग बन।
धरती जिसका बनी बिछौना,
विस्तार यह सम्पूर्ण जगत है।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा-व्रत है।
कोयल बाग में कूक रही है,
गून्ज रही है ध्वनि दिगंत में।
जगा रही वह हूक हृदय में,
कंत दूर हैंं, इस बसन्त में।
अपने स्वभाव में मस्त मगन
अपनापन लुटा रहे सर्वत्र हैं।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा-व्रत है।
जो जूझ रहे दुश्मन से
सीमा पर सीना ताने।
उनका हर मौसम बसंत है,
वे रण-चंडी के दीवाने।
मौत से टकराने वालों के,
भाल सजा चन्दन, अक्षत है।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा-व्रत है।
राजनीति में देशनीति हो
आओ लें हम आज सपथ।
देश मान ना झूकने देंगें,
भले सजा हो अग्निपथ।
परमार्थ में जीवन अर्पण
स्वयं से उँचा ये जनमत है।
वे बसन्त-सा रहते मौन
जीवन जिनका सेवा-व्रत है।
ता: 22-01-2018
बसन्त पंचमी
स्थान: वैशाली, गाज़ियाबाद
यही कविता मैंने 2019 में वसंत ऋतु के आगमन पर आप अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर अपने YouTube चैनल marmagya net के इस लिंक पर डाली है। आप मेरे यूट्यूब चैनल।marmagya net को सब्सक्राइब करें, लाइक करें, साझा करें और कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य दें। आपके विचार मेरे लिए अमूल्य हैं।
Link: https://youtu.be/r1zLRcNpq8U
ब्रजेंद्रनाथ
3 comments:
Basant ritu ke ek naye paksha ko pratipadit karti sundar aur saargarbhit kavita. Maine padhakar poora aanand uthayuthaya. Lekhak ko sadhuvaad...
बेहद खूबसूरत सर , आंखों के सामने अब घूमने लगा
नेहाभारद्वाज
आदरणीया नेहा भारद्वाज जी, आपने कविता पढ़ी और उसपर उत्सावर्धक प्रतिक्रिया दी, उसके लिये हृदय तल से आभार। आप मेरी अन्य रचनायें पढ़ें और उनपर भी अपनी टिप्पणी अवश्य दें।
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