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Thursday, May 17, 2018

बेवाकीपन या बेहयापन (विचारोत्तेजक लेख)

#BnmRachnaWorld
#Essay#thoughtprovoking


नोट : यह लेख ' प्रतिलिपि हिन्दी' में अगस्त 2016 में प्रकाशित हुआ था, जिसे पाठकों को अपार स्नेह मिला था। यह "बोलो कि लब आजाद है"  नाम से आयोजित प्रतियोगिता में 4था स्थान प्राप्त कर सकी थी। उसके नामों की सूची नीचे दे  रहा हूं:
साथ ही इस लेख को प्रतिलिपी के साइट के इस लिंक पर भी पढ़ा जा सकता है:
"बेवाकीपन या बेहयापन", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :
https://hindi.pratilipi.com/story/d06p8vm4esz5?utm_source=android&utm_campaign=content_share
भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!
प्रतियोगिता में प्राप्त पुरस्कार की घोषणा का स्क्रीन शॉट इस प्रकार है:


बेवाकीपन या बेहयापन 

आज कल एक अजीब चलन चल गया है। शिष्टता की सीमा लांघना, बेवाकीपन और बोल्ड कहा जाने लगा है। अगर उसे कोई स्त्री, स्त्री विमर्श से जोड़कर उसे महिमामंडित करे तो वह बड़ी खबर बन जाती है। उसे वैश्विक स्तर पर भी स्वागत किया जाने लगा है। आप जन लेखक या जनसंवाद स्थापित करने वाले रचनाकार कहलाने लगते हैं, अगर आप ब्यवस्था को इतनी गालियां देते है कि पिछले कई दशकों तक नहीं दी गई होगी। आप लानत मलामत भेजने की होड़ में काफी आगे निकल पाते हैं। रातों रात मशहूर होने के बड़े आसान समीकरण का प्रचलन चल पड़ा है। चली आ रही दस्तूरें, दकियानूसियों से नवाज़ी जाने लगी हैं। मातृभूमि को गाली देना समाचार बन जाता है। मातृभूमि के लिए गोली खाना कोई समाचार नहीं बन पाता। हमें पोर्न अच्छा लगता है, क्योंकि इंटरनेट पर पोर्न 70 प्रतिशत से अधिक छाया हुआ है। अब साहित्य में अश्लीलता की चर्चा ही बेकार है। अब कामायनी, उर्वशी या शाकुन्तलम् में हम श्रृंगार नहीं ढूढते। हम पेटीकोट और dopadi में श्रृंगार ढूढते है। अफ़सोस तब होता है जब समाज को दिशा देने वाले साहित्यकार या प्रबुद्ध वर्ग भी सस्ती लोकप्रियता की चाह में हवा के उसी रुख में उड़ते हुए दीखते हैं। समाज की विद्रूपताओं को स्त्री के अंतरवस्त्रों(मैं यहाँ उनके नाम गिनाने से परहेज़ कर रहा हूँ) से जोड़कर स्त्री रचनाकारों के द्वारा प्रस्तुत किया जाना उन कतिपय तथाकथित लोगों को भले ही चटपटा, तीखा और स्वादिष्ट लगता हो, लेकिन स्त्री विमर्श की वकालत करने वालों को भी शिष्ट तो नहीँ ही लगता होगा। हाल में एक कविता चर्चित हो गई। उसके भाव कुछ इसतरह थे- उसने दरोगा के कहने पर पेटीकोट नहीं उतारा, उसकी दुधमुंही बच्ची अपनी बूढ़ी दादी के सूखे स्तनों को चूसती रही...वगैरह, वगैरह... यहां साहित्य बेवाकीपन का आवरण लिए जनसंवाद स्थापित करने को बेचैन दीखता है, ऐसा ही सन्देश देने का प्रयास किया जा रहा है। इसमें इसतरह का तथाकथित बेवाकीपन किस हदतक बेहयापन के करीब पहुँच गया लगता है, इसका आभास बहुतों को होते हुए भी वे सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के प्रयास में उस हद तक अपने को गिरने - गिराने में कोई भी संकोच करना नहीं चाहते। इसमें वे बोल्ड, बेवाक का ख़िताब भी हासिल करने में सफल हो ही जाते हैं।

साहित्य अगर न भी कहें तो आजकल का लेखन इस बात में होड़ करने में लगा है कि किसने सेक्स की रोशनाई में अपनी कलम कितनी डुबाई है और उसके बाद उसे कितने बोल्ड ढंग से कागजों पर उतारा है। आज का श्रृंगार रस, श्रृंगार से उतना अलंकृत नहीं होता जितना इरोटिका के रस से ओतप्रोत होता है। मैंने हाल में लिखी अपनी एक श्रृंगार रस की कविता की कुछ पंक्तियों को सोशल साइट FB पर डाली, यह देखने के लिए कि कैसी प्रतिक्रिया मिलती है । पक्तियां थी..

अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें। उत्कंठित मनसे, उद्वेलित तन से, उर्जा के प्रबलतम आवेग के क्षण से, यौवन से जीवन का अविचारित यात्री बन, अंतर में टूटते तटबंध को टटोंलें। अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।

इसपर बहुत कम लोगों की प्रतिक्रिया आई। शायद मैंने भारी भरकम शब्दों में कसकर श्रृंगार को ब्यक्त करने की कोशिश की थी जो इस समय की ग्रहणशीलता के अनुरूप नहीं है। अगर मैं उसे ब्यक्त करने के स्तर को थोडा नीचे ले आकर सॉफ़्ट पोर्न के आसपास रखता, तो शायद ज्यादा स्वीकार किया जा सकता था। बड़ी अजीब बात है जहां अभिज्ञान शाकुन्तलम्, कामायनी, उर्वशी जैसे श्रृंगार रस से सराबोर उत्तम रचनाएँ रची गई हों वहां आज का पाठक वर्ग श्रृंगार रस की कतिपय पन्क्तियों के प्रति भी ग्रहणशील नहीं है। इस समय अगर आदरणीय जयशंकर प्रसाद भी अपनी कामायनी को पुनर्मुद्रित करवाने को आएं तो प्रकाशक उन्हें अपने काम सर्ग और वासना सर्ग का नाम बदलकर पोर्न सर्ग और एरोटिक सर्ग करने कहेंगें, तभी उनका काब्य छापने लायक समझा जायेगा। जयशंकर प्रसाद उतने बोल्ड नहीं हो सके न। उर्वशी से राजा पुरुरवा के प्रणय दृश्यों को दिनकर जी खुलकर नहीं लिख सके न। मैंने हाल ही में एक कहानी में BHMB शब्द लिखा देखा जो किसी लड़की पर कसी गई फब्तियों का एक हिस्सा था। बाद में जब लड़की ने अपने सूत्रों से इसका मतलब जानना चाहा तो पता लगा कि इसका मतलब होता है, " बड़ा होकर मॉल बनेगी", और यह मतलब जानने के बाद लड़की शर्मिंदा नहीं महसूस कर , खुश होती है। ...और ऐसी कहानियाँ और किस्से खूब पढी जाती हैं। यह वैसे ही होता है जैसे अगर कहा जाय कि इसे मत देखो, या इसे मत पढ़ो, तो उसे लोग जरूर देखते या पढ़ते हैं। उसी तरह का है बोल्ड लेखन। बेवाकीपन अब बेहयापन की हद पार करने लग गया है। रचनाकर्मियों का भी कोई दायित्व होता है, उसे समझने की जरूरत है। तो इसे आप क्या कहेंगें, " बेवाकीपन या बेहयापन"। बोल्डनेस, फूहड़पन और बेहयापन की सीमा न लाँघ दे इसका खयाल रखा जाय, तो रचनाकार अपने सामाजिक दायित्व के निर्वहन में भी समुचित योगदान दे सकेंगे।
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- ब्रजेन्दनाथ

Thursday, May 10, 2018

एक रैली और निकाली जाये (कविता)

#BnmRachnaWorld
#poem#patriotic

मैने कुछ दिनों पहले शायद 23/24 अप्रील को एक वीडियो देखा था, जिसमें कुछ भयानक किस्म के बुद्धिजीवी अन्ग्रेजी में शेम शेम के नारे लगा रहे थे। यह स्थान लगता है कि मुंबई का गेटवे औफ इंडिया वाला चौराहा रहा होगा।
उससमय आसिफा वाला काण्ड भी सुर्खियों में था। ये बिल्कुल मेरे अन्दर के स्वप्रेरित भाव हैं। मैं किसी भी वाद के विवाद से दूर रहता हुआ,  कुछ कहने की कोशिश की है।
अभी तक अप्रकाशित कविता है।





आइये एक रैली और निकाली जाये


कसाब, दाउद, हाफिज को
सर कहकर आदर भाव देने वालों!
आओ लाखो कश्मीरी हिन्दुओं के घर बार छोड़
शरणार्थी की बदहाल जिन्दगी जीने वालों
के लिये भी थोड़ी करुणा दिखाई जाये।
आइये उनके लिये भी एक रैली और निकाली जाये।

कल्बुर्गी, व्ल्मुल्ला, गौरी लंकेश, पर
कैन्डील जला-जला अश्रुधार बहाने वालों!
एक बार बस्तर, दान्तेवाड़ा, गढ़चिरौली में
शहीद हुये सुरक्षा बलों के नौजवानों
के लिये भी थोड़ी नेत्रों में नमी लायी जाये।
आइये उनके लिये भी एक रैली और निकाली जाये।

मक़बूल बट्ट, बानी, गुरु अफजल, अजादी गैंग को
नारे लगा - लगा महिमामंडित करने वालों!
एक बार शहीद फैयाज़ और युसुफ पण्डित
के घरों में कोहराम के बाद पसरे सन्नाटे के
लिये भी थोड़ी सान्त्वना दिखाई जाये।
आइये उनके लिये भी एक रैली और निकाली जाये।

भारत के विभाजन के सूत्रधार
मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर लगा उच्चासन देने वालों!
एक बार विभाजन के समय लाखों परिवारों
के घर बार उजड़ने पर रोते बिलखते, लाशें ढोते
लोगों के लिये भी दिल में संवेदना जगायी जाये।
आइये उनके लिये भी एक रैली और निकाली जाये।


उन्नीस सौ सैन्तलीस में कबायली के वेश में
पाकिस्तानी सेना द्वारा मारे गये हिन्दु मुसलमां के परिवार वालों!
इस बार उनके लिये मुट्ठियाँ बांधो, हाथों से हाथ मिलाकर
आओ जम्मु कश्मीर की मिट्टी की सौगन्ध ले,
पाक अधिकृत क्षेत्र को वापस लेने की कसम दुहराई जाये।
आइये इस कसम के नाम एक रैली और निकली जाये।

-ब्रजेन्द्रनाथ, तिथि 05/05/2018
दिल्ली एन सी आर, वैशाली।

Tuesday, May 1, 2018

कविता निकलकर आ रही है (कविता)

#BnmRachnaWorld
#poemmotivational



कविता निकलकर आ रही है

कोई कविता निकल कर आ रही है।

प्रसव वेदना की पीर सी
चुभ रही है नुकीली तीर सी
बाहर निकलने को देखो तो
वह कितनी छटपटा रही है।
कोई कविता निकलकर आ रही है।

अंतरावेगों को संवारती सी,
वाह्य-आवेगों को विचारती सी।
बाहर निकलने को देखो तो,
वह कितनी अकुला रही है।
कोई कविता निकलकर आ रही है।

कहीं चुपके से झांकती सी,
उस पार की पीर को आन्कती सी।
गुमसुम सी हुई देखो तो
वह कितनी पिघलती जा रही है।
कोई कविता निकलकर आ रही है।

गौरैया की चोंच की नोक सी
कुन्जों में कोयल की कूक सी
कौऔं के कांव कांव के मध्य भी
कितनी चहकती जा रही है।
कोई कविता निकलकर गा रही है।

वह विशिख-दन्त-कराल-ब्याल सी
कुन्डली कसती जा रही महाकाल सी
दुश्मनों को झपटने दबोचने को
देखो अपना फ़न फैला रही है।
मेरी कविता निकल कर गा रही है।

वह रण मत्त हो विषवाण सी
रक्त-दन्त-रंजित विषपाण सी
सीमा पर अरि मर्दन करने को
शोणित थाल देखो सजा रही है।
मेरी कविता रण राग सुना रही है।
मेरी कविता निकलकर गा रही है।

-ब्रजेन्द्रनाथ।
कोलकता, भवानीपुर, निजाम पैलेस
ता: 24-03-2017,

नोट:  दिनांक 29-04-2018, दिन रविवार को अपराह्न 5 बहे से स्थानीय दिल्ली एन सी आर, वैशाली सेक्टर 4 स्थित हरे भरे मनोरम सेन्ट्रल पार्क में "पेड़ों की छाँव तले रचना पाठ" की 43वीं गोष्ठी में रचना पाठ का सुअवसर प्राप्त हुआ।
यह अनौपचारिक साहित्यिक गोष्ठी प्रिय अवधेश कुमार सिंह, असिस्टेंट जनरल मैनेजर बी एस एन एल, दिल्ली, जो ब्यवसाय से भले ही तकनीकी प्रबन्धन से जुड़े हों, पर हृदय से कवि हैं, के संयोजन में पिछले तीन वर्षों से अधिक से निरन्तर आयोजित किया जा रहा है। यह गोष्ठी संवेदनात्मक, कोमल, भावपूर्ण अनुभूति की अभिब्यक्ति को प्रस्तुत करने का वह नैसर्गिक, प्राकृतिक मंच है, जो आज अपने मासिक आयोजन के 43वें पायदान पर सभी नियमित रचनाकारों और श्रोता बंधुओं का एक पारिवारिक आयोजन सा लगने लगा है।
इस रचना का पाठ मैने इसी आयोजन में किया है।
इस गोष्ठी में मेरे द्वारा किये गये कविता पाठ के विडियो का यू टयूब लिन्क:
link: https://youtu.be/4NW4CME5XEw
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माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...