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#tourtojammukashmir
जम्मु कश्मीर यात्रा वृतांत, 28-05-2018, सोमवार, सातवां दिन, Day 7
आज का कार्यक्रम काफी विशिष्ट था, क्योकि आज सोनमर्ग जाकर बर्फ का विस्तार देखना था।
आज सुबह चार बजे ही उठकर मैं और श्रीमति जी 5 बजकर 30 मिनट पर तैयार हो गये। हमलोगों को बस से सोनमर्ग के लिये नो इन्टरी से पहले ही अल्ल्सुबह निकल जाना था।
7 बजे प्रस्थान किये। रास्ते में ही टूर आयोजक द्वारा पोहा (चूड़ा से) और केला नाश्ते में दिया गया। हवाएँ काफी तेज बह रही थी। ठंढ भी ब्याप्त थी।। मैं अह्तियात के तौर पर शर्ट के अन्दर इनर थर्मल वीयर पहने था, इसलिये करीब 12 डिग्री तापक्रम होने के बावजूद भी ठंढ लग रही थी। मौसम जमशेदपुर में दिसम्बर जनवरी जैसा था। हमलोग वहां से आगे बढते हुये, सोनमर्ग के बेस तक पहुँच गये। यहां से बस का आगे जाना निषिद्ध था।
हमारे टूर आयोजक के अनुसार यहाँ से बस छोड़ देनी है। यहाँ से जीरो पॉइन्ट तक जाने के लिये छोटी गाड़ी या एस यू भी करनी होती है। छोटी गाड़ी के लिये भाडा का तोल मोल करना होता है।
मुझे यहां पर शैलानियों की मदद के लिये किसी भी स्थापित पद्धति का अभाव दिखा। यहां पर जे ऐण्ड के टूरिज़्म की अनुपस्थिति और उसके द्वारा किसी पद्धति का स्थापित नहीं किया जाना बहुत खला। क्या ऐसा अनौपचारिक ढंग से लोकल लोगों के असन्गठित क्षेत्र को नौकरी के अवसर उप्लब्ध कराये जाने के लिये किया गया है? या जम्मु कश्मीर सरकार की शैलानियों के प्रति उदासीनता उसकी कार्य शैली का एक अंग है, कहा नहीं जा सकता। यहां आकर अतुल्य भारत, कहीं - न - कहीं असम तुल्य होकर बिखरता नज़र आया।
हमलोग आस पास बिखरे घास के मैदान, (meadows)और सामने बर्फ के सफेद लिहाफ में लिपटे गिरि शिखरों के दर्शन का लाभ लिये।
यहां पर टैक्सी ओनर का एक नेक्सस है, जो शैलनियों को भ्रमित करने में ही अपनी कुशलता दिखाने का कर्तब्य निभाते नजर आते हैं। उदहारण के लिये हमलोग 4 एस यू वी 4000रु में लिए, जो जीरो पॉइन्ट यानि पर्वत के शिखर पर, जहां बर्फ ही बर्फ है, वहां तक ले जाने की बात हुयी थी। बालटाल (अमरनाथ यात्रा के पथ में अन्तिम गांव, जहां अभी टेंट आदि का निर्माण किया जा रहा था, क्योंकि यात्रा जून में आरम्भ होने वाली है) से थोडा आगे तक सडक से ले जाने के बाद ड्राईवर ने ज़ोज़िल्ला पास पर पहुंचने के पहले ही कहा कि मेरा मलिक ने यहीं तक ले जाने को कहा है। हमलोगों के बहुत तर्क वितर्क के बाद भी वह आगे ले जाने को तैयार नहीं हुआ। निराश होकर तीनों गाड़ियाँ वापस आ गयीं। फिर वहां टैक्सी क्षेत्र के एजेंट से वाद विवाद शुरु हुआ, तो तय हुआ कि जिसे भी जाना हो, 6000रु में ज़िरो पॉइन्ट तक ले जायेगा। आखिर हम 6 लोग, एक एस यू वी पर चले। एक घन्टे के बाद जोज़िल्ला पास से होते हुये गुजरने लगे। जोजिल्ला पास के पास पहाड भयानक रूप से सीधे खडे, जगह - जगह पहाड़ से मिट्टी और गिट्टी सडक पर पसर हुआ, पिच सड़क बिल्कुल नहीं, एक तरफ ऊँचा पहाड़ और दूसरी तारफ अनन्त खाई, सड़क के किनारे कोई क्रैश बैरियर नहीं और सडक पर अनन्त जाम। स्थिति की भयन्करता में घने काले बादलों के घिरने की प्रबल सम्भावना ने अपूर्व योगदान दिया। उस समय 4 बज चुके थे। वहां से 12 कि मी चढ़ाई और बाकी थी। ड्राईवर के अनुसार इसमे एक घन्टा भी लग सकता था, दो घन्टे भी लग सकते थे। बारिश शुरु होने ही वाली थी। अब यह निर्णय लेना था कि क्या कच्छप गति से रेंगने वाले ट्रैफिक में शामिल रहते हुये अनिश्चितता की स्थिति में रहा जाय या यहाँ से लौट चला जाय।
ललन जी जो मेरे पड़ोसी भी हैं उन्हें मैने निर्णय लेने में मदद दी, वापस लौटने का अन्तिम निर्णय ले लिया गया। बारिश शुरु हो चुकी थी। बर्फ से ढंके पहाडों के उंची चोटियाँ, जो कुछ देर पहले सूर्य की रोशनी में चांदी के मुकुट के तरह चमक रही थीं, अब भयंकर दैत्य की तरह दिखने लगी थीं। हमलोग साढ़े पांच बजे तक बेस तक पहुंच चुके थे। बिना ज़िरो पॉइन्ट तक पहुँचे पेमेन्ट करते हुए दुख तो हुआ, परन्तु जोजिल्ला पास को पास से देखने और उस उंचाई से कहीं अधिक उंचाई पर कारगिल युद्ध में हथियार और रशद पहुंचाने की कलपना से ही हमें अपने सेनानियों पर गर्व महसूस करने का अहसास हुआ। ज्ञात हो कि कारगिल तक जाने का वही एकमात्र रास्ता है। इस राश्ते के भी रखरखाव में ऐसी उदासीनता के कारण ही कारगिल युद्ध के पहले पकिस्तान के सैनिक कई दिनों से पहाडों पर बंकर बनाते रहे और हमें खबर तक नहीं हुई। होटल की ओर वापसी की यात्रा करीब 7 बजे आरम्भ हुयी। 9 बजे तक वापस श्रीनगर होटल पहुन्च चुके थे।
आगे की यात्रा में श्रीनगर और गुलमर्ग के संस्मरण है, अवश्य पढकर अपने विचार दें:
क्रमशः
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जम्मु कश्मीर यात्रा वृतांत, 28-05-2018, सोमवार, सातवां दिन, Day 7
आज का कार्यक्रम काफी विशिष्ट था, क्योकि आज सोनमर्ग जाकर बर्फ का विस्तार देखना था।
आज सुबह चार बजे ही उठकर मैं और श्रीमति जी 5 बजकर 30 मिनट पर तैयार हो गये। हमलोगों को बस से सोनमर्ग के लिये नो इन्टरी से पहले ही अल्ल्सुबह निकल जाना था।
7 बजे प्रस्थान किये। रास्ते में ही टूर आयोजक द्वारा पोहा (चूड़ा से) और केला नाश्ते में दिया गया। हवाएँ काफी तेज बह रही थी। ठंढ भी ब्याप्त थी।। मैं अह्तियात के तौर पर शर्ट के अन्दर इनर थर्मल वीयर पहने था, इसलिये करीब 12 डिग्री तापक्रम होने के बावजूद भी ठंढ लग रही थी। मौसम जमशेदपुर में दिसम्बर जनवरी जैसा था। हमलोग वहां से आगे बढते हुये, सोनमर्ग के बेस तक पहुँच गये। यहां से बस का आगे जाना निषिद्ध था।
हमारे टूर आयोजक के अनुसार यहाँ से बस छोड़ देनी है। यहाँ से जीरो पॉइन्ट तक जाने के लिये छोटी गाड़ी या एस यू भी करनी होती है। छोटी गाड़ी के लिये भाडा का तोल मोल करना होता है।
मुझे यहां पर शैलानियों की मदद के लिये किसी भी स्थापित पद्धति का अभाव दिखा। यहां पर जे ऐण्ड के टूरिज़्म की अनुपस्थिति और उसके द्वारा किसी पद्धति का स्थापित नहीं किया जाना बहुत खला। क्या ऐसा अनौपचारिक ढंग से लोकल लोगों के असन्गठित क्षेत्र को नौकरी के अवसर उप्लब्ध कराये जाने के लिये किया गया है? या जम्मु कश्मीर सरकार की शैलानियों के प्रति उदासीनता उसकी कार्य शैली का एक अंग है, कहा नहीं जा सकता। यहां आकर अतुल्य भारत, कहीं - न - कहीं असम तुल्य होकर बिखरता नज़र आया।
हमलोग आस पास बिखरे घास के मैदान, (meadows)और सामने बर्फ के सफेद लिहाफ में लिपटे गिरि शिखरों के दर्शन का लाभ लिये।
यहां पर टैक्सी ओनर का एक नेक्सस है, जो शैलनियों को भ्रमित करने में ही अपनी कुशलता दिखाने का कर्तब्य निभाते नजर आते हैं। उदहारण के लिये हमलोग 4 एस यू वी 4000रु में लिए, जो जीरो पॉइन्ट यानि पर्वत के शिखर पर, जहां बर्फ ही बर्फ है, वहां तक ले जाने की बात हुयी थी। बालटाल (अमरनाथ यात्रा के पथ में अन्तिम गांव, जहां अभी टेंट आदि का निर्माण किया जा रहा था, क्योंकि यात्रा जून में आरम्भ होने वाली है) से थोडा आगे तक सडक से ले जाने के बाद ड्राईवर ने ज़ोज़िल्ला पास पर पहुंचने के पहले ही कहा कि मेरा मलिक ने यहीं तक ले जाने को कहा है। हमलोगों के बहुत तर्क वितर्क के बाद भी वह आगे ले जाने को तैयार नहीं हुआ। निराश होकर तीनों गाड़ियाँ वापस आ गयीं। फिर वहां टैक्सी क्षेत्र के एजेंट से वाद विवाद शुरु हुआ, तो तय हुआ कि जिसे भी जाना हो, 6000रु में ज़िरो पॉइन्ट तक ले जायेगा। आखिर हम 6 लोग, एक एस यू वी पर चले। एक घन्टे के बाद जोज़िल्ला पास से होते हुये गुजरने लगे। जोजिल्ला पास के पास पहाड भयानक रूप से सीधे खडे, जगह - जगह पहाड़ से मिट्टी और गिट्टी सडक पर पसर हुआ, पिच सड़क बिल्कुल नहीं, एक तरफ ऊँचा पहाड़ और दूसरी तारफ अनन्त खाई, सड़क के किनारे कोई क्रैश बैरियर नहीं और सडक पर अनन्त जाम। स्थिति की भयन्करता में घने काले बादलों के घिरने की प्रबल सम्भावना ने अपूर्व योगदान दिया। उस समय 4 बज चुके थे। वहां से 12 कि मी चढ़ाई और बाकी थी। ड्राईवर के अनुसार इसमे एक घन्टा भी लग सकता था, दो घन्टे भी लग सकते थे। बारिश शुरु होने ही वाली थी। अब यह निर्णय लेना था कि क्या कच्छप गति से रेंगने वाले ट्रैफिक में शामिल रहते हुये अनिश्चितता की स्थिति में रहा जाय या यहाँ से लौट चला जाय।
ललन जी जो मेरे पड़ोसी भी हैं उन्हें मैने निर्णय लेने में मदद दी, वापस लौटने का अन्तिम निर्णय ले लिया गया। बारिश शुरु हो चुकी थी। बर्फ से ढंके पहाडों के उंची चोटियाँ, जो कुछ देर पहले सूर्य की रोशनी में चांदी के मुकुट के तरह चमक रही थीं, अब भयंकर दैत्य की तरह दिखने लगी थीं। हमलोग साढ़े पांच बजे तक बेस तक पहुंच चुके थे। बिना ज़िरो पॉइन्ट तक पहुँचे पेमेन्ट करते हुए दुख तो हुआ, परन्तु जोजिल्ला पास को पास से देखने और उस उंचाई से कहीं अधिक उंचाई पर कारगिल युद्ध में हथियार और रशद पहुंचाने की कलपना से ही हमें अपने सेनानियों पर गर्व महसूस करने का अहसास हुआ। ज्ञात हो कि कारगिल तक जाने का वही एकमात्र रास्ता है। इस राश्ते के भी रखरखाव में ऐसी उदासीनता के कारण ही कारगिल युद्ध के पहले पकिस्तान के सैनिक कई दिनों से पहाडों पर बंकर बनाते रहे और हमें खबर तक नहीं हुई। होटल की ओर वापसी की यात्रा करीब 7 बजे आरम्भ हुयी। 9 बजे तक वापस श्रीनगर होटल पहुन्च चुके थे।
आगे की यात्रा में श्रीनगर और गुलमर्ग के संस्मरण है, अवश्य पढकर अपने विचार दें:
क्रमशः