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Saturday, June 30, 2018

जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 28-05-2018, सोमवार, सातवां, Day 7

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जम्मु कश्मीर यात्रा वृतांत, 28-05-2018, सोमवार, सातवां दिन, Day 7
आज का कार्यक्रम काफी विशिष्ट था, क्योकि आज सोनमर्ग जाकर बर्फ का विस्तार देखना था।
आज सुबह चार बजे ही उठकर मैं और श्रीमति जी 5 बजकर 30 मिनट पर तैयार हो गये। हमलोगों को बस से सोनमर्ग के लिये नो इन्टरी से पहले ही अल्ल्सुबह निकल जाना था।
7 बजे प्रस्थान किये। रास्ते में ही टूर आयोजक द्वारा पोहा (चूड़ा से) और केला नाश्ते में दिया गया। हवाएँ काफी तेज बह रही थी। ठंढ भी ब्याप्त थी।। मैं अह्तियात के तौर पर शर्ट के अन्दर इनर थर्मल वीयर पहने था, इसलिये करीब 12 डिग्री तापक्रम होने के बावजूद भी ठंढ लग रही थी। मौसम जमशेदपुर में दिसम्बर जनवरी जैसा था। हमलोग वहां से आगे बढते हुये, सोनमर्ग के बेस तक पहुँच गये। यहां से बस का आगे जाना निषिद्ध था।
हमारे टूर आयोजक के अनुसार यहाँ से बस छोड़ देनी है। यहाँ  से जीरो पॉइन्ट तक जाने के लिये छोटी गाड़ी या एस यू भी करनी होती है। छोटी गाड़ी के लिये भाडा का तोल मोल करना होता है।
मुझे यहां पर शैलानियों की मदद के लिये किसी भी स्थापित पद्धति का अभाव दिखा। यहां पर जे ऐण्ड के टूरिज़्म की अनुपस्थिति और उसके द्वारा किसी पद्धति का स्थापित नहीं किया जाना बहुत खला। क्या ऐसा अनौपचारिक ढंग से लोकल लोगों के असन्गठित क्षेत्र को नौकरी के अवसर उप्लब्ध कराये जाने के लिये किया गया है? या जम्मु कश्मीर सरकार की शैलानियों के प्रति उदासीनता उसकी कार्य शैली का एक अंग है, कहा नहीं जा सकता। यहां आकर अतुल्य भारत, कहीं - न - कहीं असम तुल्य होकर बिखरता नज़र आया।
हमलोग आस पास बिखरे घास के मैदान, (meadows)और सामने बर्फ के सफेद लिहाफ में लिपटे गिरि शिखरों के दर्शन का लाभ लिये।
यहां पर टैक्सी ओनर का एक नेक्सस है, जो शैलनियों को भ्रमित करने में ही अपनी कुशलता दिखाने का कर्तब्य निभाते नजर आते हैं। उदहारण के लिये हमलोग 4 एस यू वी 4000रु में लिए, जो जीरो पॉइन्ट यानि पर्वत के शिखर पर, जहां बर्फ ही बर्फ है, वहां तक ले जाने की बात हुयी थी। बालटाल (अमरनाथ यात्रा के पथ में अन्तिम गांव, जहां अभी टेंट आदि का निर्माण किया जा रहा था, क्योंकि यात्रा जून में आरम्भ होने वाली है) से थोडा आगे तक सडक से ले जाने के बाद ड्राईवर ने ज़ोज़िल्ला पास पर पहुंचने के पहले ही कहा कि मेरा मलिक ने यहीं तक ले जाने को कहा है। हमलोगों के बहुत तर्क वितर्क के बाद भी वह आगे ले जाने को तैयार नहीं हुआ। निराश होकर तीनों गाड़ियाँ वापस आ गयीं। फिर वहां टैक्सी क्षेत्र के एजेंट से वाद विवाद शुरु हुआ, तो तय हुआ कि जिसे भी जाना हो, 6000रु में ज़िरो पॉइन्ट तक ले जायेगा। आखिर हम 6 लोग, एक एस यू वी पर चले। एक घन्टे के बाद जोज़िल्ला पास से होते हुये गुजरने लगे। जोजिल्ला पास के पास पहाड भयानक रूप से सीधे खडे, जगह - जगह पहाड़ से मिट्टी और गिट्टी सडक पर पसर हुआ, पिच सड़क बिल्कुल नहीं, एक तरफ ऊँचा पहाड़ और दूसरी तारफ अनन्त खाई, सड़क के किनारे कोई क्रैश बैरियर नहीं और सडक पर अनन्त जाम। स्थिति की भयन्करता में घने काले बादलों के घिरने की प्रबल सम्भावना ने अपूर्व योगदान दिया। उस समय 4 बज चुके थे। वहां से 12 कि मी चढ़ाई और बाकी थी। ड्राईवर के अनुसार इसमे एक घन्टा भी लग सकता था, दो घन्टे भी लग सकते थे। बारिश शुरु होने ही वाली थी। अब यह निर्णय लेना था कि क्या कच्छप गति से रेंगने वाले ट्रैफिक में शामिल रहते हुये अनिश्चितता की स्थिति में रहा जाय या यहाँ से लौट चला जाय।
ललन जी जो मेरे पड़ोसी भी हैं उन्हें मैने निर्णय लेने में मदद दी, वापस लौटने का अन्तिम निर्णय ले लिया गया। बारिश शुरु हो चुकी थी। बर्फ से ढंके पहाडों के उंची चोटियाँ, जो कुछ देर पहले सूर्य की रोशनी में चांदी के मुकुट के तरह चमक रही थीं, अब भयंकर दैत्य की तरह दिखने लगी थीं। हमलोग साढ़े पांच बजे तक बेस तक पहुंच चुके थे। बिना ज़िरो पॉइन्ट तक पहुँचे पेमेन्ट करते हुए दुख तो हुआ, परन्तु जोजिल्ला पास को पास से देखने और उस उंचाई से कहीं अधिक उंचाई पर कारगिल युद्ध में हथियार और रशद पहुंचाने की कलपना से ही हमें अपने सेनानियों पर गर्व महसूस करने का अहसास हुआ। ज्ञात हो कि कारगिल तक जाने का वही एकमात्र रास्ता है। इस राश्ते के भी रखरखाव में ऐसी उदासीनता के कारण ही कारगिल युद्ध के पहले पकिस्तान के सैनिक कई दिनों से पहाडों पर बंकर बनाते रहे और हमें खबर तक नहीं हुई। होटल की ओर वापसी की यात्रा करीब 7 बजे आरम्भ हुयी। 9 बजे तक वापस श्रीनगर होटल पहुन्च चुके थे।

आगे की यात्रा में श्रीनगर और गुलमर्ग के संस्मरण है, अवश्य पढकर अपने विचार दें:
क्रमशः

जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 27-05-2018, रविवार, 6ठवाँ दिन, Day 6

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जम्मु कश्मीर यात्रा वृतांत, 27-05-2018, रविवार, 6 ठवाँ दिन (Day 6),
आज सुबह नाश्ते के बाद करीब 9 बजे हमलोग श्रीनगर के लिये निकल गये। रास्ते में बैट फैक्टरी देखने को मिला। यहाँ हल्का बैट बनाने वाली लकड़ी पायी जाती है। उसी से बैट बनता है। यहां कई लोगों ने सस्ते बैट लिये, जो अपने रिश्तेदारों को भेंट स्वरूप भी दे सकते हैं। 
रास्ते में अनन्तनाग शहर भी मिला। यहाँ से गुजरते हुये 1990 में हिन्दुओं के पलायन का मंजर सामने आ गया। आजाद भारत में हिन्दुओं को पलायन का सन्त्रास झेलना पड़े, इससे शर्मनाक और क्या बात हो सकती है।
इस ब्यथा को मन में समेटे हमलोग आगे बढें। बस को श्रीनगर से बाहर ही छोड़ देना पड़ा। क्योंकि दिन में बड़ी गाड़ियों का नगर में प्रवेश वर्जित था। मिनी बस से हमलोग होटल Four seasons पहुन्चे। 
दिन का भोजन 2 बजे हुआ। थोडा विश्राम कर हमलोग 5 बजे चाय लिये। चाय के बाद डल झील में नौका विहार, जिसे यहाँ शिकारा कहा जाता है, के लिये हमलोग चल पड़े। 
वहाँ पहुँचकर पेरिस ब्यूटी नामक नौका पर हमलोग सवार हो गये। वहीं पर आदरणीया शीला श्रीवास्तव, सेवा निवृत्त शिक्षिका, चिन्मया विद्यालय, जमशेदपुर से हुआ। डल झील करीब 22वर्ग किलो मीटर में फैली हुयी एक प्राकृतिक झील है। इसकी सतह पर नौकायन एक नये अनुभव से गुजरना था। शाम के पहले का उजाला और उसमें हमारी नौका जल के सतह पर धीरे-धीरे बढती रही। हमलोगों ने वीडियो लिये। तस्वीरें भी लीं। 
मैने अपनी एक ताजी कविता सुनाई, जिसका विडियो श्रीमती श्रीवास्तव ने लिया। बीच में नौका रोकी गयी और हमलोग नेहरु पार्क में प्रवेश किये। यह पार्क झील के बीच में बना हुआ है। शाम के धुन्धलके के उतरने के ठीक पहले झील के बीच इस छोटे से पार्क का सौन्दर्य कुछ निखर गया है। यहां भी फूलों के बीच तस्वीरें ली गयीं। इसके बाद झील पर शाम धीरे-धीरे उतरने लगी। 
आखिरी तस्वीर नेहरु पार्क के पास की छोटी सी पुलिया के नीचे फैलते शैवाल शरीखे घास की गन्दगी का है जो झील को घेरने पर उतारू है। झील के अस्तित्व को बचाने के लिये इन शैवालों को उखाड़ना होगा।
हमलोग नौका पर पुन: सवार हुये। शाम में रोशनी के बीच झील में दोनो ओर सजे हुये मीना बाज़ार से होकर नौका पर गुजरना अच्छा लगा। हालांकि हमलोगों ने कोई खरीददारी नहीं की। सीधे निर्धारित मिनी बस से वापस होटल आ गये।

क्रमश:

जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 26-05-2018, पाँचवाँ दिन, Day 5

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जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 26-05-2018, शनिवार ,पांचवा दिन (Day 5)
  पहलगाम मेरी कश्मीर घाटी की यात्रा का पहला पड़ाव था। पता नहीं पहला पड़ाव था इसलिये या कुछ खास है इसकी निशब्द वादियों में, यह मेरा पहला प्यार भी बन गया। मैं बाद में सोनमर्ग, गुलमर्ग और श्रीनगर भी गया, लेकिन हर जगह प्रकृति के खुलापन में कुछ-न-कुछ बनावटीपन घुला हुआ लगा। यहाँ की प्रकृति अभी तक बिल्कुल अपने वास्तविक स्वरुप में है।
मैं जहाँ ठहरा हूँ, वह लिद्दर नदी के किनारे का एक रेसोर्ट है। मुझे संयोगवश वह कमरा मिला हुआ है, जहाँ से लिद्देर नदी का कल-कल स्वर सुनाई देता है। स्फटिक-सा साफ जल पत्थरों पर लगातार बहते-बहते उन्हें गोल बना देता है। उन्हीं पर फिसलती हुई नदी, एक रूहानी संगीत को स्वर देती हुयी बही जा रही है। यह घाटी, जो उँचे-उँचे पहाड़ों से घिरी है, उनके शिखरों पर इस मौसम में (मई के उत्तरार्ध) भी बर्फ की चादर देखी जा सकती है। यही बर्फ पिघलती है और झरनों की शक्ल में पहाड़ों से नीचे उतरती है और एक साथ मिलकर नदी का आकार ले लेती है। इस स्थान पर यह नदी बिल्कुल स्वच्छ और अप्रदूषित है, इसीलिये इसका सौन्दर्य अभी भी शास्व्त है, रूहानी है, आत्मिक है। मुझे रात में नदी के किनारे-किनारे जल को निहारते हुए कुछ दूर चलने का मन हुआ, परन्तु रात में पहाडों से होकर बहने वाली बर्फीली हवा के जोर के कारण तापमान 5 डिग्री के करीब गिर गया। मेरे पास जैकेट और मफलर रहने के बाव्हूद भी नदी के किनारे रात्रि भ्रमण का लोभ संवरण करना पड़ा।
सुबह नाश्ते के बाद, पहलगाम से सटे हुये कुछ स्थानों पर भ्रमण का कार्यक्रम निर्धारित था। इसलिये हमलोग नाश्ता करने के बाद होटल रिसेप्सनिस्ट की मदद से तीन स्थानों अरु घाटी, बेताब घाटी और चन्दन बाड़ी का भ्रमण के लिये तवेरा गाड़ी ठीक किया गया। हमारी यात्रा 9 बजकर 30 मिनट पर आरम्भ हुयी। हमलोग लिद्दर नदी के किनारे - किनारे सड़क मार्ग से होते हुये आगे बढने लगे। ठंढी हवा और पहाडियों से घिरी वादियों से गुजरते हुये नजारों के एक - एक पन्ने खुलते चले गये। पहाडों के शिखर बादलों को छूने के लिये एक दूसरे से होड़ में लगे हुये से दिखे। हमारी गाड़ी अरु घाटी की ओर बढ़ रही थी। रास्ते में कही - कहीं भेडों-बकरियों के झुण्ड की वजह से गाड़ी को धीमा रखते हुये सड़क के किनारे से गुजरना होता है। शायद आज भी भेड़ों के मालिक उन्हें चराते हुये दूर पहाडों के तरफ निकल जाते हैं। इसी के वे किसान हैं, और यही इनकी किसानी हैं। इनकी पूरी खेती चलायमान रहती है यानि भेड़ बकरियों की खेत और ये इसके किसान। सुना है ऐसे ही एक किसान ने अमरनाथ गुफा में स्थित बर्फ से बने शिवलिंग की खोज की थी।
अरु घाटी जो करीब 7500 फीट उंची है, एक सुरक्षित वन क्षेत्र है। इस वन क्षेत्र में हिरण, शेर और भालू बहुतायत में पाये जाते हैं। यहाँ के जंगलों में हाथी नहीं पाये जाते हैं। यहाँ पर दूर गिरि श्रिंगों पर सफेद बर्फ की चादर सूर्य की रोशनी में चमकती चांदी की तरह दिखाई देती है। हर ओर से बहते झरनों का संगीत, ऊँचे-ऊँचे पेड़ों से होकर झांकती सूर्य की किरणें पहाडों की खामोशी को संगीत से भर दे रहे थे। मुझे कुछ पक्तियों को रचने का मन करने लगा, जो इसतरह बाहर आ गया:

गिरि श्रिंगों  पर बर्फ की चादर
देवदार के पेड़ो की हरियाली
बहते झरनों का शोर छल छल
बुला रही है, थोडी बैठ तो आली।

उँचे- उँचे शिखरों से
खिंची है बर्फ की रेखा
रुई के फाहों से सनी
हवाओं में समय देखा।

ये कौन भर रहा कल कल उमंग है।
ये पत्थरों में उकेरता तरंग है।

ये कौन मचा रही नित धमाल है।
खुशियाँ दूँ सबको ये मेरे लाल हैं।

कैसे धरा को बुहार दूँ।
कैसे धरा को संवार दूँ।

अरु वैली के बाद हमलोग चन्दन बाड़ी गये। यह स्थान अमरनाथ यात्रा का पावर व्हीकल द्वारा तय किये जाने वाला अन्तिम पड़ाव है। इसके बाद की यात्रा पैदल या घोड़े पर तय की जाती है। यह समुद्र से 9500 फीट पर है। वहां बर्फ की मटमैली चादर बिछी थी। रुई के फाहों जैसी बर्फ एक-पर-एक जमा होकर बर्फ का लिहाफ बन गयी है। हमलोग उसपर कुछ दो कदम चले भी। कहीं-कहीं बर्फ पांव तले पड़ कर कीच बन गयी । प्रकृति को मानव जब पैरों तले रौंदने लगता है, तो वह मैली हो जाती है। उसे वैसे ही रहने देना चाहिये, जैसी वह है। कहीं कहीं बर्फ के छाते जैसे जमाव के नीचे से पानी का झरना नि:सृत हो रहा है। झरना ढलान पर वेगवान हो जाता है।
यही सारे झरने एक साथ मिलकर नदी का जल श्रोत बन जाते हैं। इतना कुछ प्रकृति ने जीवन को पोषित करने के लिये दिया हुआ है, फिर मानव ही और अधिक पाने के लिये, वह भी कम समय में, उसका बेपरवाह, बेहिसाब दोहन करने लगता है।
वहां से लौटते हुये बेताब वैली का विहन्गम दृष्टि से अवलोकन किया। नीचे जाकर देखने का समयाभाव था। सन्नी देवल, अमृता सिंह अभिनीत फिल्म "बेताब" का फिल्मांकन यहीं पर हुआ था।
इसे अब ब्यवसायिक रेसोर्त में बदल दिया गया है, जहां अन्दर जाने के लिये प्रति ब्यक्ति 100रु के टिकट लगते हैं। यह ब्यवसाय सरकार चला रही है या सरकार ने पट्टे पर किसी को दे दिया है, यह पता नहीं चल सका।
शाम तक हमलोग होटल आ गये।

क्रमश:



जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 25-05-2018, शुक्रवार, चौथा दिन, Day 4

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जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 25-05-2018, शुक्रवार, चौथा दिन, Day 4,

पत्नी सीधे तैयार होने चली गयी। वे तैयार होकर निकली, तो मैं तैयार हो हुआ। हमलोगों की पहलगाम की यात्रा 9 बजे सुबह से शुरु हुयी। हमलोग एक तवेरा suv पर सवार होकर उधमपुर, कज़ीगुन्ड से होते हुये पहलगाम शाम 6 बजे शाम को पहुंचे।
इस यात्रा में नयी बनी सुरंग, चेननी- नसरी के पास , करीब नौ किलोमीटर लम्बी, को पार करना एक नये तरह के अनुभव से गुजरना था। इस सुरंग ने जम्मु से श्रीनगर की 300 किमी दूरी को कम करके 250 किलोमीटर कर दिया है। हिमालय पर्वत के अन्दरूनी पहाडों को बेधकर इतनी बडी दो सुरंगों का निर्माण, तकनीक और निवेश के साथ दृढ़ इच्छा शक्ति का भी परिचायक है। ये दोनों सुरंगें हर 300मीटर के बाद गुफाओ से आपस में जुडी हुयी है। शायद यह एसिया की अबतक की सबसे बड़ी सुरंग है। रामबाण जिले में यह सुरंग पटनी टॉप आदि सुन्दर परिदृश्यों वाले स्थानों को बिना प्रभावित किये बनाई गयी हैं।
इस सुरंग से करीब 44 एव्लान्च और लैन्ड स्लाईड वाले क्षेत्रों में आसन्न खतरों से भी बचाव हो सकेगा।
चेनाब नदी के किनारे-किनारे उंचे पहाडों को काटकर बने सर्पीले सडक मार्ग से गुजरना भी नये ऐडवेंचर की तरह था। अभी इस सडक को फ़ॉर लेन बनाने का कार्य जोरों पर है। इससे ड़ायवरसन की भरमार है। धूल उड़ाती हुयी तवेरा लेकर हमारे चालक तारिक भट्ठ सुकून के साथ गाड़ी आगे बढ़ाते रहे।
इसी में बनीहाल पास की जवाहर टनेल छोटी सुरंग (ढाई कीलो मीटर) को भी हमने पार किया। कहा जाता है कि सर्दियों में इस सुरंग का प्रवेश द्वार बर्फ से ढंक जाता है, जिसे हमेशा साफ करने के लिये मशीने लगी होती हैं। यह सुरंग कश्मीर घाटी का प्रवेश द्वार है। बनिहाल अब रेल लिन्क से श्रीनगर से भी जुड़ गया है। काज़िगुन्ड कश्मीर घाटी का पहला छोटा शहर है।
इसी सड़क से होते हुये आगर सीधे चलें तो अनंतनाग, 20 किलोमीटर और श्रीनगर करीब 60 किलो मीटर है। अगर दाहिने मुड़ जाएँ, तो 40 किलो मीटर पर पहलगाम है।
हमलोग कटरा से 8 घन्टे की यात्रा के बाद शाम में पहलगाम पहुँचे। यह अनंतनाग जिले का एक तहसील है। इसकी समुद्र तल से उंचाई करीब 7200 फीट है। लिद्देर नदी का स्फटिक की तरह साफ जल ने हमलोगों का स्वागत किया।
वहां हमलोग लिद्देर नदी से सटे हुये एक रेसोर्ट में ठहरे। वहां मैं जिस कमरे में ठहरा था उसके ठीक पूर्व में उंचा पहाड़ था। सामने कल कल, छल छल करते हुये लिद्देर नदी बह रही है।
वैसे यह मंजर बहुत सुन्दर है, लेकिन एक चिन्ता की बात है। इस नदी के स्फटिक जैसे स्वच्छ जल में जब इन रेसोर्ट से निकले कचरे के अवशेष नदी में घुलेन्गें तो क्या नदी की स्वच्छता शाश्वत रह पायेगी?
पहलगाम के पड़ाव पर भ्रमण का वृतान्त अगले पोस्ट में अवश्य पढें।
क्रमश:





Friday, June 29, 2018

जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 24-05-2018, बृहस्पतिवार, तीसरा दिन, Day 3

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जम्मु कश्मिर यात्रा वृतान्त, 24-05-2018, बृहस्पतिवार, तीसरा दिन, Day 3
आज सुबह पांच बजे ही मैं और ललन जी वहां पहुँचे जहां पर्ची कटती थी, पुराने बस स्टैंड के पास। वहाँ हमारे समूह से कुछ और लोग भी लाईन में थे। हमलोग उनके साथ जुड़ गये। करीब साढे 9 बजे यह घोषणा हुई कि अभी तक यात्रा शुरु होने की कोई समय सीमा नहीं दी गयी है, इसलिये आप लोग लाईन में नहीं में अनावश्यक नहीं खड़े रहे।
वहां पर मेरे साथ पिछले 21-22 अप्रील को मेरे साथ जम्मु कश्मीर अध्ययन केन्द्र के workshop में भाग ले रहे, गोरखपुर के महेश कुमार सिंह जी से मुलाकात हुई। वे पेशे से शिक्षक हैं। वे अपने पूरे परिवार यानी पत्नी, बच्चों और माता पिता के साथ आये हुये थे। आग लगने के कारण और यात्रा के रुक जाने के कारण कई लोग जो दूर दराज जगहों से आये हुये थे, बच्चों और बुजुर्गों के साथ काफी कष्ट में पड़ गये हैं। वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड अनजान दिख रहा है या अनजान बने रहने में अपनी पीठ की थपथपाई कर रहा है। श्राईन बोर्ड के तरफ से ना कोई घोषणा, ना कोई अह्तियात बरतने का सुझाव लोकल न्यूज़ पेपर में या स्टेशन पर ही कोई घोषणा, कुछ नहीं देखा गया। हालाँकि यह उनके लिये हमेशा होते रहने वाली छोटी सी घटना हो सकती है, लेकिन आम आदमी जो एक-एक पैसे धर्मार्थ के लिये बचाकर या कहीं से उधार लेकर ही अपने पूरे परिवार के साथ माता रानी के दर्शन के लिये यहाँ आते है, उनकी बढी हुई परेशानियों से बेखबर सरकार और श्राईन बोर्ड उन यात्रियों के प्रति अपनी जिम्मेवरियों से किनारा कैसे कर सकती हैं?
हमलोग वहां से वापस अपने ठहरने के स्थान पर आ गये। वहां नाश्ता किये। नाश्ते के बाद सोचे कि चलें थोड़ा देख आयें कि क्या स्थिति है। वहाँ पहुँचते ही पता चला कि पर्ची मिलनी शुरु हो गयी है। काफी भीड़ इकट्ठी होनी शुरु हो गयी। वहाँ काऊंटर तक पहुंचने के काफी पहले से सिर्फ एक ही लाईन में घुसना था। उस जगह से लेकर पीछे एक किलो मीटर तक पहले दो लाईन, फिर चार - चार पन्क्तियाँ बन गयीं। उपर सूरज लग रहा था कि आज आग बरसाने में कोई कमी नहीं रखनी है। बच्चे, बूढे सबों की फिजिकल उपस्थिति जरूरी थी, इसलिये सारे पक्तिबद्ध थे। इतने में देखा गया कि एक बच्चा बेहोश हो गया। जो पुलिस सबों को डण्डे दिखाकर पन्क्तिबद्ध करने में अपने ड्यूटी का मुश्तैदीपना दिखा रही थी, उसे उस बच्चे का बेहोश हो जाना दिख नहीं रहा था। हमारे प्रधान मन्त्री देश को स्वच्छता से लेकर देशभक्ति का मन्त्र पूरे देश को दे रहे हैं लेकिन तन्त्र अपने पुराने अंदाज में ही काम कर रहा है। मेरा सुझाव है कि देश की सारी पुलिस को कुछ दिन मिलिट्री कैम्प में ट्रेनिंग दी जानी चाहिये और उनकी बॉर्डर पर पोस्टिंग भी दी जानी चाहिये, तभी शायद उनमें देश भावना की समझ आ जाये। अन्यथा वे आम जन को वैसे ही समझते रहेन्गें जैसे अंग्रेजों के जमाने की ब्रिटिश पुलिस फोर्स आम भरतीय को समझते रहे थे।
हमलोग अखिकार दो घन्टे लाईन में खड़े रहने के बाद करीब बारह बजे अपनी - अपनी पर्चियां लेकर डेरे पर आ गये। तय हुआ कि हमलोग तुरत नहा- धोकर यहीं से तैयार होकर तुरत वैष्णो देवी भवन की यात्रा शुरु करेंगें। मैने अपनी पत्नी और ग्रुप के साथ बाण गंगा प्रवेश द्वार तक पहुंचकर अपनी यात्रा करीब एक बजे अपराह्न शुरु कर दिये।
यात्रा की चढ़ाई मेरे जैसे 65 वर्ष के थोडे कमजोर घुटने वाले ब्यक्ति के लिये कठिन थी। मेरी पत्नी ने अन्य लोगों के साथ पैदल ही यात्रा करने की ठानी। मैं भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर करीब दो घन्टे चला होगा। इतने में मेरे घुटने जवाब देने लगे। मैने पत्नी को कहा, "क्या किया जाय?"
उन्होने कहा, "आप घोड़ा ले लीजिये।"
मैने पूछा, "आप क्या पैदल जायेंगीं? "
उन्होने कहा, "जब तक चल सकूं, पैदल चलून्गी। नहीं, तो घोड़ा ले लूंगी।"
शायद वे समूह के अन्य लोगों के साथ देने की अहमियत से भी बंधी हुयी साथ चलने के निर्णय पर चल रही हों। या धर्मार्थ कार्यों में कष्ट सहन करने के सन्स्कारगत मान्यताओं से बन्धे हुये भी उन्होने माता रानी के चरणों तक चरणों से ही जाने की कठिन व्रत पालन करने के प्रति प्दतिबद्धता का निरर्वहण कर रही हो। अर्धकुमारी से चढाई सीधी थी। उसमें थकावट ज्यादा महसूस होती है।
इसतरह हम सभी लोगों को भवन के करीब 7 बजकर 30 मिनट शाम में पहुँच गये होन्गे। समान जिसमें मोबाइल आदि रखने जरूरत के लिये लॉकर रुम के लिये कोशिश में लगे तो पता चला कि उसके लिये लम्बी लाईन लगी है। और शायद यह भी खबर आयी कि लॉकरों की संख्या भी खत्म हो गयी है। श्राईन बोर्ड की अब्यवस्था या ऐसी स्थिति को सम्भाल सकने की अक्षमता साफ - साफ दिख गयी। अब हमलोगों को अपनी योजना बदलने की जरूरत आ पड़ी।
निर्णय यह हुआ कि मैं और ललन जी सामान के साथ इन्तजार करेंगें और बाकी लोग पक्तिबद्ध हो गेट न 3 से प्रवेश करेंगें। इसी में मेरी पत्नी भी थी। इतने में देवी जी की आरती का समय हो गया। पूरी की पूरी पंक्ति का मूवमेंट भी रुक गया। पीछे के तरफ भीड भी बढ़ती जा रही थी। यह भीड अब्यवस्थित हो रही थी। पुलिस बल भी तैनात थी। लेकिन उससे ऐसी अब्यवस्था से निबटने के लिये पुलिस बल और श्राईन बोर्ड की किसी कार्य योजना का नहीं होना हमलोगों बहुत खला।
जब हमलोग इन्तजार कर रहे थे, उससमय कुछ लोग अपनी परेशानी का बयान कर रहे थे, वहीं पर बैठे हुये एक बुजुर्ग जैसे सज्जन ने कहा, " भैया, जबतक आप यहां हैं, परेशानियों के बावजूद भी दर्शन किये, वह यहीं तक याद रहेगा। जब यहां से निकल जाओगे, यहां की सारी परेशानियाँ भूल जाओगे और सिर्फ याद रह जायेगा की माता रानी के दर्शन हमने कर लिया है।" मुझे उनका यह वक्तब्य काफी सकारात्मक लागा।
हमलोगों के कफ़ी इन्तजार के बाद रात के 11 बजे वे लोग दर्शन के बाद वापस आये। आते ही पहली खबर मिली कि पत्नी के कान के एक तरफ का कर्णफूल किसी ने खींच लिया। इसके बाद  करीब 45 मिनट में घुमावदार मार्ग से होते हुये देवी जी की पुरानी गुफा से होते हुये टनेल मार्ग पर जा पहुंचे। वहां दर्शन का लाभ लेकर हमलोग अपने समूह से आकर मिल गये।
अब डेरे लौटने की जल्दी थी। हमलोगों को सुबह सात बजे ही पहलगाम के लिये प्रस्थान करना था। मैने तो घोडा लेने का निर्णय ले लिया। पत्नी ने पुन: अपने धर्मार्थ कष्ट सहन में पुण्य अर्जन करने में प्रतिबद्ध दिखी। वे भी समूह के साथ पैदल उतरने का निर्णय लिया। मैं 4 सुबह बजे तक बाण गंगा के पास पहुंचा। वहां से औटो लेकर मैं अपने ठहरने के स्थान तक आ पहुंचा।
आते ही मैं थोड़ी नीन्द ले लेनी चाहिये, सोचकर मैं सो गया। पत्नी करीब 6 बजे पहुंची। फिर उनका निर्णय मुझे कुछ अविवेक पूर्ण लगा था। आखिर उनलोगों को अर्धकुमारी यानी आधी उतरायी के बाद घोडा लेना ही पड़ा, अन्यथा सवेरे प्रस्थान में उनके कारण विलम्ब हो सकता था।

क्रमशः


जम्मु कश्मीर यात्रा वृतान्त, 23-05-2018, दूसरा दिन, Day 2

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23-05-2018, बुधवार, यात्रा का दूसरा दिन, Day 2

सुबह कटरा स्टेशन पर उतरने के बाद एलेवेटर से सामान सहित उपर टैक्सी स्टैंड तक पहुँचकर टैक्सी से वरुण होटल में 2 घन्टा इन्तजार के बाद कमरा ना, 407 आबंटित हुआ। कमरे की सफाई हो ही रही थी कि हमलोग अपने सामान के साथ कमरे में घुस गये। सफाई कर्मचारी ने कहा कि सभी लोग 414 नम्बर कमरे की सफाई में ब्यस्त है, क्योंकि वहां कोई बड़े पुलिस अधिकारी के रिस्तेदार आने वाले हैं। यह VIP culture को पोषित करना उस देश में कब बंद होगा?
आखिर हमारे सामान को हटा हटा कर सफाई हुआ। बैड रोल पहले ही बदल दिया गया था। हमलोग नहा धोकर तरो ताजा होने के बाद यात्रा को ओर्दिनेटोर के अपने कूक मण्डली से बनाया खाना हमलोगों ने लिया। कार्यक्रम के अनुसार आज विश्राम के बाद हमलोगों को वैष्णो देवी के दर्शन के लिये पर्वत पर जाना था।
हमलोग विश्राम कर ही रहे थे कि समाचार आया कि यात्रा बंद कर दी गयी है। उपर पर्वत पर आरोहण पथ में कही आग लग गयी थी। हमलोगों ने अपने होटल के कमरे की खिडकी से ही झांक कर देखा यो पर्वत के ऊपरी धरातल पर धुआं उठता हुआ दिखाई दिया। हमलोगों की उत्सुकता बढी, तो फिर नीचे जाकर सडक पर जैसे हे बढे, धुआँ और आग दोनों दिख पड़ा। अब तो लगने लगा कि वैष्नो देवी श्राईन की यात्रा असम्भव है। हमलोग माँ का नाम लेते हुये, शाम को हमलोग निकले और नज़दीक के काऊंटर न 2 के पास जाकर देखा। लोग अपने सारे सामान के साथ इन्तजार करते दिखे। लाईन लगाना बेकार था। सुबह 5 बजे काउन्टर खुलता था। उससमय भी पर्ची कटेगी या नहीं, इसकी कोई निश्चितता नहीं थी। विचार हुआ की कल अल्ल्सुबह ही आकर कोशिश की जायेगी।

नोट: मैं कतरा स्टेशन की तस्वीर भी दे रहा हूँ। इसकी तुलना एक आधुनिक स्टेशन से की जा सकती है।
क्रमश:

Sunday, June 17, 2018

कैसे धरा को संवार दूँ?(कविता)

# BnmRachnaWorld
#poems#nature

फूलों में रंग कौन भरता है?
पत्तियों में रंग कौन भरता है?
बादलों के संग कौन घिरता है?
हवाओ के संग कौन उड़ता है?

ये वसुंधरा लेकर नयी नयी
रूप राशि, नित सजा रही।

ये किसकी कूचियों से खींचे चित्र हैं।
ये किसके वितान पर मेले विचित्र हैं।

ये कौन कर रही नित शृंगार है।
शृन्गों पर बैठी कर रही विचार है।

कैसे धरा को संवार दूं,
कैसे धरा को संवार दूँ?

गिरि शृन्गों पर बर्फ की चादर
देवदार के पेड़ो की हरियाली
बहते झरनों का शोर छल छल
बुला रही है, थोडी बैठ तो आली।

उँचे- उँचे शिखरों से
खिंची है बर्फ की रेखा
रुई के फाहों से सनी
हवाओं में समय देखा।

ये कौन भर रहा कल कल उमंग है।
पत्थरों में कौन उकेरता तरंग है।

ये कौन मचा रही नित धमाल है।
खुशियाँ दूँ सबको ये मेरे लाल हैं।

कैसे धरा को बुहार दूँ।
कैसे धरा को संवार दूँ।

मैं आ गया हूँ कश्मीर में,
जहाँ वदियाँ विहंस रही हैं।
जहाँ चिनार, खुबानी के पेड़ों में,
जिन्दगी झांकती हुलस रही है।

जहाँ के लोगों में तहजीब है
जहाँ के लोग बांटते हैं खुशियाँ ।
जहाँ प्यार लुटाना जानते हैं
जहाँ नहीं है कोई भी कमियाँ।

जहाँ हर पल साँस लेती है
जीवन खुलने को आतुर है।
जहाँ हर मोड़ पर है चाहतें
जहाँ सौगात लुटाने को नेहातुर हैं।

फिर कौन है जो
वादियों में बारूद बुनता है।
वो कौन है जो
हरियाली में चिंगारियां चुनता है।

जब जानते हो यह सब
खामोश क्यों हो?
क्यों डरे से सहमे हुए
बेहोश क्यों हो?

तुम बुला लो, तुम सम्हाल लो
उन पडोसियों को जिन्हें निष्कासन दिया है।
उठो खडे हो, सत्य के लिये लड़ो
उनके लिये ढाल बनो जिन्हें आश्वासन दिया है।

ये जवाब होगा, जो चाहते हैं बांटना,
ये जवाब होगा, जो चाहते हैं खून चाटना।
चलो धरा को मनुहार दूँ।
चलो धरा को संवार दूँ।
- ब्रजेन्दनाथ
 ता: 01-06-2018
 जम्मु कश्मीर की 10 दिनों की यात्रा से लौटने के बाद 
तुलसी भवन में सुनाई  गयीं इस कविता का यूट्यूब लिंक:
https://youtu.be/_kxSrU4tiHY

Friday, June 1, 2018

जम्मु कश्मीर यात्रा वृतांत, 22-05-2018, मंगलवार, प्रथम दिन, Day 1)

#BnmRachnaWorld
#TourtoJammuKashmir
जम्मु कश्मीर यात्रा संस्मरण, 22-05-2018,मंगलवार, प्रथम दिन, Day 1)
मित्रों, मैं अभी जम्मु कश्मीर की यात्रा पर हूँ। इस यात्रा के दौरान जिन अनुभवों से गुजर रहा हूँ, उसे मैं लिपिबद्ध करने की कोशिश कर रहा हूँ। जम्मु कश्मीर में डाटा जाम कर दिये जाने के कारण आज पहला पोस्ट डाल रहा हूँ, जो श्रीनगर के होटल के वाईफाई के मार्फत सम्भव हो पाया है। प्रस्तुत है पहले दिन का  यात्रा वृतांत:




22-05-2018, मंगलवार (प्रथम दिन, Day 1)
ऊँ हौं जुं स:। ऊँ भूर्भव: स्व:।
ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम।
उर्वारुकम बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।
स्व: भूर्भव: ऊँ। स: जुं हौं ऊँ।
जम्मु कश्मीर की यात्रा मेरे वर्तमान निवास स्थान वैशाली सेक्टर 4 से 2बजकर 46 मिनट अपराह्न से आरम्भ हुई। ओला कैब से नयी दिल्ली स्टेशन आकर जमशेदपुर से आये अन्य यात्रा के पथिकों के समूह में, मैं अपनी पत्नी के साथ शामिल हो गया। वे सभी करीब 1 बजे अपराह्न ही पहुंच चुके थे। उनसे ज्ञात हुआ कि उनकी यात्रा कल ही शुरु हो चुकी है। वे जमशेदपुर से बस द्वारा रांची आये और वहां से गरीब रथ ट्रेन से दिल्ली आ गये। ट्रेन दो घन्टे लेट थी। उनका लंच यहीं स्टेशन पर हुआ। मेरे जमशेदपुर निवास सुन्दर गार्डेन कैंपस से श्री ललन प्रसाद सिंह जी अपनी पत्नी, अपनी बहन और जीजा जी के साथ आये हैं। उन सबों से यहीं दिल्ली स्टेशन पर मुलाकात हुयी। मेरी इस यात्रा का उद्देश्य समूह में यात्रा का आनन्द लेना है। दूसरा अभी जब जम्मु कश्मीर में रमजान के महीने में सेना का आतक वादियों के विरुद्ध ओफ्फेन्सिव कार्य कलाप बंद है, तब स्थिति को करीब से जानना! इस यात्रा में यात्रा कोओर्दिनेटर हॉलिडे त्रैवेल्स के श्री उत्तम चौधरी का सहयोग प्राप्त हो रहा है। उन्होने 6 बजे शाम के करीब मिक्चर और पेस्ट्री रोल के पैकेट पेश किया। इसके साथ हमलोगों ने चाय का आनन्द लिया।
आज आठ बजे जो यात्रा पर्ची प्रमाण परीक्षक आये, वे बहुत ही सजग दिखे। उन्होने टिकट का परीक्षण ही नहीं किया बल्कि सबों के आई डी प्रमाण पत्र की भी परीक्षा की। सामान्यत: ट्रेनों में हमलोग जैसे वरिष्ट नागरिकों से यात्रा प्रमाण पर्ची पर आबंटित सीटो की जानकारी लेकर आगे बढ़ जाते हैं। साथ ही अगर मेरी और मेरी पत्नी का एक ही पी एन आर में यात्रा पर्ची(टिकट) है, तो मेरा परिचय प्रमाण पत्र देखकर ही संतुष्ट हो जाते है। इन्होने मेरा और मेरी पत्नी दोनों का परिचय प्रमाण पत्र का परीक्षण किया। यह उनके कर्तब्य निरवहण के प्रति निष्ठा को दर्शाता है। ऐसे कर्तब्य परायण परीक्षक भारतीय रेल के प्रकाश स्तम्भ हैं। हाँ, बहुत से लोग होंगें जो उनके इस ब्यवहार को उनके पदाधिकारी जन्य अहंकार से जोड़ सकते हैं।
बड़ी विचित्र स्थिति है। जब कोई सरकारी पदाधिकारी या कर्मचारी अपने कर्तब्य का निर्वाह चुस्ती से करता है, तो वह आम जन की नजरों में पद का अहंकार दिखा रहा होता है। जब वह ऐसा नहीं करता है तो लोग उसे ढीला ढाला घोषित कर देते हैं।
रात्रि यात्रा तृतीय श्रेणी के शयन स्थान पर श्री शक्ति एक्सप्रेस/मेल से यात्रा करते हुये सम्पन्न हुयी। पूरी ट्रेन लगभग भरी हुयी थी। इससमय स्कूलों में छुट्टियां होने के कारण कफ़ी यात्री वैश्नोदेवी यात्रा के साथ कस्मीर की यात्रा की भी योजना बनाते हैं। हमारे समूह में करीब 31 यात्री और 4 -5 को ओर्दिनेटोर के स्टाफ हैं। जम्मु से कतरा की यात्रा एक नया अनुभव साबित होती अगर यह दिन में होती। इस रेल खण्ड का निर्माण खुद मे एक तकनीक और अभियंत्रण के समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण है। दिन में यात्रा करने पर रेल का पहाडों पर वादियों और सुरंगों को पार करते हुये देखना एक रोमांचकारी अनुभव होता।
क्रमश:,,,

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...