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Sunday, June 17, 2018

कैसे धरा को संवार दूँ?(कविता)

# BnmRachnaWorld
#poems#nature

फूलों में रंग कौन भरता है?
पत्तियों में रंग कौन भरता है?
बादलों के संग कौन घिरता है?
हवाओ के संग कौन उड़ता है?

ये वसुंधरा लेकर नयी नयी
रूप राशि, नित सजा रही।

ये किसकी कूचियों से खींचे चित्र हैं।
ये किसके वितान पर मेले विचित्र हैं।

ये कौन कर रही नित शृंगार है।
शृन्गों पर बैठी कर रही विचार है।

कैसे धरा को संवार दूं,
कैसे धरा को संवार दूँ?

गिरि शृन्गों पर बर्फ की चादर
देवदार के पेड़ो की हरियाली
बहते झरनों का शोर छल छल
बुला रही है, थोडी बैठ तो आली।

उँचे- उँचे शिखरों से
खिंची है बर्फ की रेखा
रुई के फाहों से सनी
हवाओं में समय देखा।

ये कौन भर रहा कल कल उमंग है।
पत्थरों में कौन उकेरता तरंग है।

ये कौन मचा रही नित धमाल है।
खुशियाँ दूँ सबको ये मेरे लाल हैं।

कैसे धरा को बुहार दूँ।
कैसे धरा को संवार दूँ।

मैं आ गया हूँ कश्मीर में,
जहाँ वदियाँ विहंस रही हैं।
जहाँ चिनार, खुबानी के पेड़ों में,
जिन्दगी झांकती हुलस रही है।

जहाँ के लोगों में तहजीब है
जहाँ के लोग बांटते हैं खुशियाँ ।
जहाँ प्यार लुटाना जानते हैं
जहाँ नहीं है कोई भी कमियाँ।

जहाँ हर पल साँस लेती है
जीवन खुलने को आतुर है।
जहाँ हर मोड़ पर है चाहतें
जहाँ सौगात लुटाने को नेहातुर हैं।

फिर कौन है जो
वादियों में बारूद बुनता है।
वो कौन है जो
हरियाली में चिंगारियां चुनता है।

जब जानते हो यह सब
खामोश क्यों हो?
क्यों डरे से सहमे हुए
बेहोश क्यों हो?

तुम बुला लो, तुम सम्हाल लो
उन पडोसियों को जिन्हें निष्कासन दिया है।
उठो खडे हो, सत्य के लिये लड़ो
उनके लिये ढाल बनो जिन्हें आश्वासन दिया है।

ये जवाब होगा, जो चाहते हैं बांटना,
ये जवाब होगा, जो चाहते हैं खून चाटना।
चलो धरा को मनुहार दूँ।
चलो धरा को संवार दूँ।
- ब्रजेन्दनाथ
 ता: 01-06-2018
 जम्मु कश्मीर की 10 दिनों की यात्रा से लौटने के बाद 
तुलसी भवन में सुनाई  गयीं इस कविता का यूट्यूब लिंक:
https://youtu.be/_kxSrU4tiHY

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