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Tuesday, March 9, 2021

विश्व महिला दिवस पर (लेख)

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#worldwomenday













यह लेख विश्व महिला दिवस को समर्पित है।

सबसे पहले विश्व महिला दिवस की अशेष शुभकामनाएँ!

मैंने एक कविता लिखी थी जब तीन मगिलायें पहली बार पायलट बनी थीं। उसे साझा करना चाहता हूँ:

चीर नापने नभ को

(भारतीय वायुसेना में तीन महिलाओं, अवनि चतुर्वेदी, मोहना सिंह जितवाल, भावना कंठ  को 2016 में पहली बार पायलट बनने पर।)

चल पड़ी वह लाँघ देहरी,
चीर नापने नभ को,
अग्नि-दाह से भस्म करने
अरि-समूह-शलभ को।

पहन वेश सेनानी का 
वह बनी देश की शान है।
धूल चटाने दुश्मन को
छिड़ा समर - अभियान है।

देखो वह नीले पथ पर,
गगन में भर रहा उडान।
घहरात पवि - सा विराट
स्वर ध्वनित गुंजायमान।

वह वायु-युद्ध की सेनानी,
बरसाएगी अग्निवाण। 
भयाक्रांत विवर्ण शत्रु का
मर्दन करेगी मिथ्या मान। 

अम्बर में गरजा विमान,
घिर गया गिद्धों का झुंड।
ध्वस्त हुए आतंक - शिविर
बिखर गये उनके नर मुंड ।

शत्रु की छाती का शोणित
रण चंडी बन पान करेगी।
भारत माँ की बिन्दी को
पुत्रियाँ प्रभावान करेगी।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

"यंत्र नार्यस्तु पूज्यन्ति रमन्ते तंत्र देवता"
यह शास्त्रों में सिर्फ लिखा नहीं है, इसे मैंने महसूस किया है। भारतीय समाज की उन्नति को स्त्रियों के सम्मान के स्तर पर ही आंका जाता है। स्त्रियों के शोषण पर आधारित मान्यताओं को हमारे सामाज ने ही ध्वस्त किया है। यहां देवताओं का अवतरण भी माँ के गर्भ से ही हुआ है। गार्गी, लीलावती जैसी विदुषी नारियों की जन्मस्थली भी यह देश रहा है।
साहित्य के क्षेत्र में भी नारियों का अभूतपूर्व योगदान रहा है। मीरा, महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान, ममता कालिया, कृष्णा सोबती, निर्मला सिन्हा, मालती जोशी आदि। नारियाँ "आँचल में दूध और आंखों में पानी" के युग से "चीर नापने नभ को" के युग में प्रवेश कर चुकी हैं। इस वास्तविकता से पुरूषों को शीघ्र ही अपनी समझ में सुधार, ( अगर जरूरत हो तो), करने की आवश्यकता है।
आपसी समझ से समरसता के विकास और पोषण के द्वारा ही हमारा समाज आगे बढ़ता रहा है। महिलाएँ, पुरुषों की सहभागिनी हैं, इसलिए उनके साथ संवेदना और सहानुभूति की नहीं, सहृदयता और सदाशयता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बढ़ने की जरूरत है।
नारियाँ जिस मंजिल को हासिल करने के लिए आगे बढ़ती हैं, उनकी उड़ान के लिए उन्हें सशक्त बनने की आश्यकता है, नए क्षितिज के नए आसमान स्वयं खुलते चले जायेंगें।

©ब्रजेंद्रनाथ


2 comments:

कविता रावत said...

आँचल में दूध और आंखों में पानी" के युग से "चीर नापने नभ को" के युग में प्रवेश कर चुकी हैं। इस वास्तविकता से पुरूषों को शीघ्र ही अपनी समझ में सुधार करने की आवश्यकता है।
बिलकुल सही
धीरे-धीरे ही सही लेकिन एक दिन नहीं एक युग महिलाओं का आएगा जरूर

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया कविता रावत जी, नमस्ते!👏! आपने मेरे लेख और मेरी कविता पर सकारात्मक टिप्पणी की है, इसके लिए हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

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