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Saturday, October 9, 2021

पश्चाताप का ताप (कहानी) लघुकथा

 #BnmRacbnaWorld

#hindikahani#laghukatha








पश्चाताप का ताप


यह कहानी अमेरिका की पृष्ठभूमि पर है, लेकिन सार्वदेशिक और सर्वकालिक कही जा सकती है।
इस शहर में मॉल संस्कृति है, परंतु बहु मंजिला मॉल  नहीं के बराबर हैं। हाँ, मॉल जितने क्षेत्र में फैला होता है, उससे दुगने अधिक क्षेत्र में वाहनों को पार्क करने की व्यवस्था है। यहाँ जो भी ग्राहक आते हैं, उनके पास एक वाहन अवश्य होता है, जिसमें वे आवश्यकता की खरीदी हुई सारी सामग्रियों को रखकर अपने निर्दिष्ट स्थान तक ले जा सकें।
ऐसे ही एक मॉल से सामानों को खरीदकर एक ट्रॉली में भरकर मेरा लड़का बिलिंग काउंटर की पंक्ति में लगा हुआ था। मैं बाहर उसका इंतजार कर रहा था। उसी पंक्ति में उसके पीछे एक बुजुर्ग महिला अपनी सामानों से भरी ट्रॉली लिए हुए बिलिंग कॉउंटर तक पहुंचने की अपनी बारी का इंतजार कर रही थी।
पंक्तिबद्ध होकर सभी धीरे - धीरे अपनी ट्रॉली के साथ आगे बढ़ रहे थे। मेरे लड़के ने आगे कदम बढ़ाया ही था कि पीछे से उस बुजुर्ग महिला की ट्रॉली से उसके पैर में हल्का सा स्पर्श हुआ। मेरे लड़के ने पीछे मुड़कर उस महिला को सिर्फ देखा भर था, कि उस महिला ने, अंग्रेजी में उसे "आई एम वेरी वेरी सॉरी" कई बार बोली। मेरे लड़के ने "इट इस ओके" कहा और यह समझते हुए कि बात आई - गई हो गयी, वह पंक्ति में आगे बढ़ गया। उसने जब अपना बिलिंग करा लिया और आगे बढ़कर वह सारे सामान को ठीक से व्यवस्थित कर लिया, वह बुजुर्ग महिला अपनी ट्रॉली से भरा समान लिए हुए उसकी तरफ आयी और उसने मेरे लड़के का हाथ पकड़ लिया।
वह आश्चतचकित था। "अब क्या हो गया इन्हें?" वह सोच ही रहा था कि वह महिला अंग्रेजी में बोलने लगी, "मैं आपके पीछे पंक्ति में खड़ी थी। उससमय मैं कुछ विचारों में खोई थी कि आपके पाँव को मैंने ट्रॉली से चोट पहुंचाई। मेरी त्रुटि क्षम्य नहीं है। फिर भी आप जबतक माफ नहीं करेंगें, मुझे संतोष नहीं होगा।" वह उसका हाथ पकड़े रही। उसकी आँखों में आँसू थे। वह अपनी आंसुओं से अपने पश्चाताप के ताप को स्निग्ध करती रही।
मेरे लड़के ने उनसे कहा कि मैम आप दुखी नही हों। मैंने आपको माफ कर दिया।
तब उन्होंने मेरे लड़के का हाथ छोड़ा। शायद अब वह स्वयं को अपराधमुक्त महसूस कर रही थी।
ब्रजेंद्रनाथ

(ध्यातव्य: इस लघुकथा को सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में तुलसी भवन, जमशेदपुर में 26  सिंतबर को आयोजित मासिक कथा गोष्ठी के कार्यक्रम "कथा मंजरी " में मैंने सुनायी , जिसका यूटुब लिंक इसप्रकार है:

https://youtu.be/QZ85iZiBvnU



10 comments:

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया कामिनी सिन्हा जी, कल मंगलवार 12 अक्टूबर के चर्चा अंक के लिए मेरी इस रचना के चयन पर हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। कल की चर्चा में मैं अवश्य भाग लूंगा। सादर!--ब्रजेंद्रनाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया कामिनी सिन्हा जी, कल मंगलवार 12 अक्टूबर के चर्चा अंक के लिए मेरी इस रचना के चयन पर हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। कल की चर्चा में मैं अवश्य भाग लूंगा। सादर!--ब्रजेंद्रनाथ

विष्णु बैरागी said...

आपकी इस लघु-कथा ने मुझे ठेठ अन्‍दर तक झकझोर दिया। राष्‍ट्रीय चरित्र इसी तरह उजागर होता है।

Manisha Goswami said...

बहुत ही उम्दा लघुकथा!

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय विष्णु वैरागी जी, आपकी टिप्पणी से उत्साहित और ऊर्जस्वित हूँ। आपका हृदय की गहराइयों से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया मनीषा गोस्वामी जी,आपके सराहना के शब्द मुझे सृजन के लिए प्रेरित करते रहेंगे। सादर आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Sudha Devrani said...

सच का पश्चाताप जब हो तों आँसू स्वतः आ जाते हैं...पर आजकल तो सॉरी सॉरी कहते कहते और भी उदण्डता बरतते दिखते हैं लोग...पश्चाताप के ताप में सिर्फ सॉरी पर्याप्त नहीं लगता..
बहुत सुन्दर एवं सार्थक लघुकथा।

जिज्ञासा सिंह said...

जीवन संदर्भ को समझाती सुंदर भावपूर्ण कथा ।आपको नवरात्रि पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ।

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया जिज्ञासा सिंह जी,शारदीय नवरात्र की महाष्टमी की ढेर सारी शुभकामनाएँ! मेरी कहानी पर आपके सकारात्मक अनुमोदन ने मुझे सृजन के लिए उत्साहित कर दिया है। आपको हृदय तल से सादर आभार!--ब्रजेंद्रनाथ

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीया सुधा देवरानी जी, आपने सही कह है, सच के पश्चाताप हो तो आंसू आ ही जाते हैं। आपके उत्साहवर्धन से ऊर्जस्वित हूँ। हार्दिक आभार! शारदीय नवरात्र की ढेर सारी शुभकामनाएँ!

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