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Friday, January 28, 2022

इस गणतंत्र टूट रहे सारे भ्रमजाल (कविता) # गणतंत्र दिवस 2022

 ##BnmRachnaWorld

#poemonrepublicday

#गणतंत्र दिवस








इस गणतंत्र  टूट रहे सारे भ्रम जाल।

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भारत नही त्रिपिटक लेकर
अब शांति प्रस्ताव पढ़ता है।
देश सत्य के लिए जीत की
परिभाषा खुद गढ़ता है।

विश्व समझे भारत की दृष्टि विशाल।
इस गणतंत्र  टूट रहे सारे भ्रम जाल।

जो रहे अब तक भ्रम में
गंगा- जमुनी तहजीब रटा करते थे।
जो रहे अब तक घात क्रम में,
देश को जर्जर किया करते थे।

उनकी पहचान हुई, सुलझे सब सवाल।
इस गणतंत्र  टूट रहे सारे भ्रम जाल।

अब वीर देश की जीत का
मुकुट धारण करता है।
प्रलय के मेघों का मुख मोड़
चट्टानों में राह बनाया करता है।

देश दुश्मनों की ताड़ चुका हर चाल।
इस गणतंत्र  टूट रहे सारे भ्रम जाल।

कुछ छद्म बुद्धिजीवी क्यों,
आस्थाओं पर करते हैं प्रहार?
उन्हें पता होना चाहिए,
नहीं देश को यह स्वीकार।

समझो हमारी भाषा वरना जाओगे पाताल।
इस गणतंत्र  टूट रहे सारे भ्रम जाल।


अमर जवान ज्योति, समर
स्मृति में हो रही है विलीन,
वीर भूमि के अमर शहीदों,
आपकी यादों में हम हैं तल्लीन।
आपके शौर्य से  होली में है रंग गुलाल।
इस गणतंत्र  टूट रहे सारे भ्रम जाल।


आओ देश के लिए जगाओ अंगार को,
आओ देश के लिए स्वर दो हुंकार को।
आओ देश के लिए गुंजाओ दहाड़ को।
आओ देश के लिए झुकाओ पहाड़ को,

जवानियों में धधक रहा है लाल - लाल ज्वाल ।
इस गणतंत्र  टूट रहे सारे भ्रम जाल।

इस कविता को मेरी आवाज में यूट्यूब के इस लिंक पर सुनें:

https://youtu.be/0lsUosOyLLo


Friday, January 21, 2022

वही वीर कहलायेगा (कविता)

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#motivational poem









वही वीर कहलायेगा


शतरंज के रण में राजा खड़ा,

खोज रहा है साथ,

घोड़े, हाथी, सैनिक दौड़ो,

होगी सह और मात।


आक्रमण की हो रणनीति

कि वह निकल न पाए,

दुश्मन पर करो प्रहार

कि वो फिर सम्हल न पाए।


चाल उसकी भाँपो और

अपनी चल तो ऐसी चाल,

दुश्मन के घोड़े - हाथी मारो,

मचा दो रण में बवाल।


बजाओ नगाड़े, घंटों को,

गूंजे दिशाएं ललकारों  से,

रुंड, मुंड, मेदिनी, अंतड़ियाँ

बेधो तीर- तलवारों से।


ऐसा रण हो, ऐसा रण

फिर कभी नहीं वैसा रण हो,

गिरती रहे बिजलियाँ,

विकट आयुधों का वर्षण हो।


एक युद्ध चल रहा अंतर में,

लड़ें उससे ऐसे रथ पर,

सत्य, शील की ध्वजा,

बल विवेक के घोड़े हो पथ पर।


क्षमा, कृपा , समता की रस्सी,

ईश भजन हो सारथी,

विराग, संतोष का कृपाण हो,

युद्ध में बने रहे परमार्थी।


यह संसार है महारिपु,

उससे युद्ध जो जीत जाएगा,

जिसका ऐसा दृढ़ संकल्प हो,

वही वीर कहलायेगा।

©ब्रजेंद्रनाथ

Friday, January 14, 2022

घड़ी की टिक टिक सुनाता हूँ (कविता)

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#poemmotivational












वक्त के साथ कुछ वक्त बिताता हूँ

आ तुम्हें घड़ी की टिक-टिक सुनाता हूँ,
चलो वक्त के साथ कुछ वक्त बिताता हूँ।

समय जो निकल गया लौट आएगा फिर,
इसी गलत फहमी में खुशियाँ मनाता हूँ।

दस्तक देता है समय, अवसरों के साथ
उनसे अनजान अपनी पहचान बनाता हूँ।

घड़ी का क्या वो तो निकलता जाएगा।
रेत भरी मुट्ठियों में जुगनूयें सजाता हूँ।

समय के पार कोई न निकला है कभी,
उसी दायरे में खुशी के पल चुराता हूँ।

©ब्रजेंद्रनाथ √

Saturday, January 8, 2022

नर्सिगवाड़ी, कोल्हापुर से होते हुए गगनबावड़ा का भ्रमण: (यात्रा संस्मरण)

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26 दिसंबर 2021: रविवार

 नर्सिगवाड़ी, कोल्हापुर से होते हुए गगनबावड़ा का भ्रमण: 

सुबह नर्सिघवाडी के मंदिर दर्शन के लिए तैयार होने में सभी लगे थे। साढ़े आठ बजे का समय निर्धारित था। मैंने शेव किया, स्नान किया और परिधान परिवर्तन कर चल दिये, कृष्णा किनारे। वहाँ पहुँचकर शांत दोनों किनारों में जल परिपूरित दक्षिण की ओर प्रवाहमान कृष्णा नदी के दर्शन हुए। भारतवर्ष में नदियों ने सभ्यता और सनातन धर्म के पोषण और परिवर्द्धन में जैसी भूमिका निभाई है, वैसी कहीं और दृष्टि गत नहीं होती है। इसीलिए हमारी सभ्यता को सिंधु सरस्वती सभ्यता कहा जाता है। दक्षिण की चार नदियाँ, गोदावरी, कावेरी, नर्मदा और कृष्णा निरंतर सलिला हैं। जिनके तटों पर कई धार्मिक और सांस्कृतिक नगर बसे हुए हैं।

कृष्णा नदी महाबालेश्वर से निकलती है। यह महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। 

कृष्णा नदी का यह तट पंचगंगा और कृष्णा नदी का संगम स्थल है। कहा जाता  है कि पञ्चगंगा में पांच नदियाँ और पंच गंगा और कृष्णा यानि सात नदियों का संगम है।  हमलोग कृष्णा के तट पर भगवान दत्तात्रेय के मंदिर का दर्शन किये। पंडित जी ने संकल्प भी करवाये। एक घंटे के अंदर पूजा की सारी प्रक्रिया समाप्त हुई। बाहर निकलकर 'होल्सरे' डोसा होटल में डोसा खाये। होटल में प्रवेश के ठीक पहले वहाँ एक बुजुर्ग को निपुणता और शीघ्रता से होटल में  डोसा बनाते हुए देखकर  मन प्रसन्न हो गया। उनसे मैंने पूछा तो उन्होंने ही बताया कि उनकी उम्र 67 वर्ष है। 

वहाँ से होटल आकर पैकिंग किया और साढ़े ग्यारह  बजे गगनबावड़ा की ओर निकल पड़े। रास्ते में कोल्हापुर में अम्बाई मंदिर के भी दर्शन करने थे। 

कोल्हापुर तो शीघ्र पहुँच गए। बीच में कोल्हापुर के एम आई डी सी क्षेत्र से गुजरना हुआ। उसी के चौराहे पर 'अमृत तुल्य' ब्रांड, जो महाराष्ट्र में हर जगह अपनी आधुनिक टपरी स्थापित कर चुका है, में दो कप चाय एक साथ पी। मूल्य भी सामान्य, दस रुपये कप। सचमुच चाय बहुत अच्छी थी। 

"येवले अमृत तुल्य" की कहानी  पुणे जिल्हा के पुरंदर तहसील के छोटे से गाँव अस्करवाड़ी के दूध बेचने वाले दसरथ येवले के उत्कर्ष की कहानी है, जिसने अमृततुल्य ब्रांड को चाय के मिश्रण के स्पेशल ब्रांड के रूप में "येवले अमृत तुल्य" को स्थापित किया।  इस ब्रांड में, के एफ सी, मैकडोनाल्ड, डोमिनोज, सबवे आदि से आगे निकलने की अपार सम्भावनाएं हैं। हमलोगों ने कोल्हापुर के अम्बाई मंदिर में अम्बा माँ के दर्शन किये। 

लाइन लंबी थी, फिर मैनेज कर दर्शन सुनिश्चित किया गया। 

रामकृष्ण होटल में दिन का भोजन किया ।वहाँ से हमलोग गगनबावड़ा, जो करीब 4500 फीट ऊंचाई पर रत्नागिरी पहाड़ों के एक श्रृंग पर एक गुफा मंदिर है, के लिए चल पड़े। गगनबावड़ा के रास्ते में ही कोल्हापुर में रंगला लेक था। यह काफी दूर में फैला हुआ 75 फीट गहरा लेक है। आठवीं सदी में यह एक स्टोन क्वेरी था। नवीं सदी में एक भयंकर भूकंप में वह क्वेरी  जल से भर गया। साथ ही जल के स्वतः निर्मित श्रोत से भी यह सुंदर लेक परिपूरित हो गया। मन तो इस झील के किनारे घूमने का हो रहा था, लेकिन गगनबावड़ा के उतुंग शिखर पर रात होने के पहले चढ़ जाना आवश्यक था।  गाड़ी भी एक सीमा तक ही जा सकती थी। उसके बाद करीब डेढ़ सौ सीढ़ियों की सीधी चढ़ाई थी। इस चुनौती को पार करना आवश्यक था। सीढ़ियों पर विद्युत प्रकाश की व्यवस्था नहीं थी। इसीलिए लेक घूमने का लोभ संवरण करना पड़ा। 

वहाँ से जंगल और घाट के घुमावदार रास्ते से होते हुए गगनबावड़ा के उस स्थान तक पहुँचे, जहाँ से सीढ़ियों की सीधी चढ़ाई आरम्भ होती थी। हमलोग सूर्यास्त होते - होते ऊपर चोटी तक पहुँच चुके थे। वहाँ पहुँचते ही सारी थकान दूर हो गई। यहाँ के बापू (जो यहां के वर्तमान संचालक है) के यात्रियों के प्रति अद्भुत वात्सल्य देखकर मन आनन्दित हो गया। रात्रि भोजन शुद्ध और सात्विक,  एक आश्रम जैसा। रात्रि विश्राम भी सुखानुभूति से परिपूर्ण। यहां ठंढ बिल्कुल नहीं थी, बस हवाएँ तेज चल रहीं थी। रात में थकावट के कारण गहरी नींद आयी।

Saturday, January 1, 2022

नव वर्ष में नव हर्ष के विस्तार का हो अभिनंदन (कविता)

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परम स्नेही साहित्यान्वेषी सुधीजनों,

नमस्ते👏!

आपको और आपके पूरे परिवार , समस्त कुटुम्बीजनों और मित्रों को नव वर्ष की शुभकामनाएँ💐!

शुद्ध साहित्यिक रचनाओं के मेरे ब्लॉग से जुड़ने  पर मैं ब्रजेन्द्र नाथ आपका हार्दिक नववर्षाभिनन्दन करता हूँ | अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष का आरम्भ हो गया है | विगत वर्ष के दंशों और विकारों को विस्मृत कर इस वर्ष के हर्ष और उत्कर्ष के लिए प्रयासों और प्रयत्नों को सुनियोजित कर आगे विकास के उच्च पथ पर आइये बढ़ चलते हैं : मेरी इस रचना के ऐसे ही भाव हैं, आप सुनें --

आपके लिए यह वर्ष उल्लास और उमंगों से ओतप्रोत हो | आप उत्कर्ष के नए शिखरों को प्राप्त करें, यही मेरी शुभकामनाएं हैं |

*नव हर्ष के विस्तार का अभिनंदन*

नव वर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।
नव हर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।

सन इक्कीस के उस
दंश को भूलना है कठिन ।
हमने खाये तीर कई,
जिन्हें भूलना है कठिन ।
फिर भी नव संचार का करते हैं हम सर्जन।
नव वर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।

नव वर्ष की नव रश्मियाँ
दे रहीं संदेश पल - पल।
सुधियाँ वही जो दे खुशी,
हो यही उद्घोष प्रतिपल।

नव स्फूर्ति के नवाचार का करते है संचरण।
नव स्पर्श के विस्तार का करते है अभिनंदन।
नव वर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।

नव पल्लवों पर ओस की
बूंदें टिकती,  जैसे ज्योति।
पवन रचता है  हिंडोला
सीप में पलती है मोती।

नव - प्रकृति - आधार का करते हैं अवलोकन।
नव संस्पर्श के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।
नव वर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।

कोहरा छाया है गगन में,
सूरज का रश्मिरथ रुका।
किरणें फिर भी चीरती है,
लो रथ का पहिया चल पड़ा।

सदप्रयास के प्रचार का रुकता नहीं है कभी चरण।
नव उत्कर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।
नव वर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनन्दन।

इस वर्ष देखेगा जमाना
नया एक हुंकार प्रबल।
इस वर्ष छायेगा जगत में
भारत का नवाचार निश्छल।

विश्व में हम व्यापार का देते है नव संस्करण।
नव अर्श के विस्तार का करते है अभिनंदन।
नव वर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।

स्तुत्य है,  हमारे लिए लीं
सीने पे जिसने गोलियाँ।
उनकी जागती  रहती हैं आँखें
माएँ सुनाएँ लोरियाँ।
 
शौर्य है अपार उनका, करते है नितवंदन।
नव कंदर्प के विस्तार का करते है नित चयन।
नव वर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।

नव स्थापनाओं के लिए
मन्तव्य का  मंथन करो।
शोध में नयी सोच का
विविध विश्लेषण करो।

विमर्श के स्वीकार का, करते हैं अन्वेषण।
नव वर्ष के विस्तार का करते हैं अभिनंदन।
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक:

https://youtu.be/0FVj0o9qPSg

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ब्रजेन्द्रनाथ


माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...