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Tuesday, April 28, 2020

यमराज के नाम पत्र संख्या 2 (हास्य व्यंग्य)

#BnmRachnaWorld
#coronasatire
#satireoncorona










यमराज के नाम पत्र संख्या 2:


परम आदरणीय यमराज जी,
दूर से पाँव लागी!
मैं, एक भारतीय नागरिक, ने पिछले पत्र में आपसे दूर से नमस्कार का प्रयोजन कोरोना के कारण सोशल डिस्टेंसिंग बतलाया था। साथ ही कातर शब्दों में कोरोना नामक विषाणु द्वारा फैलाये जा रहे संक्रमण से त्राण दिलाने के लिए अनुनय-विनय किया था। हमलोग आपको यह बताना चाहते हैं कि हमारे प्रधान मंत्री के कुशल नेतृत्व में कोरोना से लड़ने के लिए उनके द्वारा दिए गए आदेशों और बताए गए नियमों का अच्छी तरह पालन कर रहे हैं। फिर भी यहाँ संक्रमण के मामलों में कमी नहीं आ रही है। कुछ सिरफिरे जामात के लोग स्थिति की गंभीरता को नहीं समझते हुए नियमों की अवहेलना कर रहे हैं। उनके लिए सद्बुद्धि जगाने की प्रार्थना आपसे करते हैं। आपकी गदा पड़ेगी तभी वे सभी रास्ते पर आयेंगें।
प्रभु आपसे मेरा एक विनम्र और करबद्ध निवेदन है। कृपया इसपर आप अवश्य ध्यान दें। हमारे यहाँ जो व्यक्ति या समूह अपने घर-बार, परिवार से दूर रहकर कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए, कोरोना मरीजों को ठीक करने के लिए , कोरोना संक्रमितों के परीक्षण के लिए और लॉक डाउन के नियमों के पालन करवाने के लिए, गरीबों - भूखों के लिए भोजन या भोजन सामग्री को उपलब्ध कराने के लिए जुटे हैं, जूझ रहे हैं, उनके पास आप अपने यमदूतों को नहीं भेजें। अर्थात डॉक्टरों, नर्सों, सफाई कर्मियों, लैब टेक्नीशियनों, पुलिस, आशा वर्करों, फ़ूड सप्लाई और उसके चेन में काम पर जाने वाले ट्रांसपोर्ट में लगे लोगों, कोरियर और दवा उपलब्ध कराने वालों के पास अपने यमदूत न भेजें। उन्हें शक्ति, धैर्य और कोरोना संक्रमण के विरुद्ध रोग-प्रतिरोधक क्षमता से संपन्न कर दें। हम अपनी लड़ाई लड़ लेंगें। हम इस संक्रमण काल से मुक्ति के बाद अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार लेंगें। उम्मीद है, थोड़े में लिखे खत को विस्तार कर आप स्वयं समझ लीजियेगा। आप तो अंतर्यामी हैं, प्रभु! मेरी आवश्यकताओं और जरूरतों को समझते हुए विवेक दीजिएगा, ताकि संसाधनों का समुचित उपयोग करें, उनका दोहन न करें।
आपका एक विश्वासी भक्त
ब्रजेन्द्र नाथ, जमशेदपुर, झारखंड, भारत।

पता:
सेवा में,
यमराज, यमदूत कॉलोनी।
बंगलो न 1,
स्वर्गलोक।

Thursday, April 23, 2020

जीवन रस बरसाती है (कविता) #environment

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#environmment#poemonprakriti
#worldearthday#22ndApril














प्रकृति जीवन रस बरसाती है

प्रकृति हमारी माता है
वह जीवन रस बरसाती है।

जबसे वह अस्तित्व में आई
उसने बाँटे जीवन अनन्त।
ब्रह्मांड में वह पाई विस्तार
उर्जा फ़ैली दिग दिगंत।
हम सब उसकी संतानें है
अमृत रस पिलाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।

जीवन पोषित करने को
उसने दिए हवा और जल।
उसने दिए प्रकाश सूरज का,
उसने दिए अन्न और फल।
माँ का दूध दिया उसने
जो पुष्ट हमें कर पाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।

सूरज की रोशनी उससे है
चन्दा में है धवल चांदनी।
बादल में तड़ित- प्रभा उससे
उससे ही है हरी धरिणी।
हमारी है अन्नपूर्णा माँ
वह लोरी गा हमें सुलाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।

जल बन कभी बहा करती है,
सरिता की निर्झरणी - सी।
आगे बढ़ सरितायें मिलकर,
बहती प्रवाहमयी तटिनी - सी।
धरती को उर्वर करती वह,
सींचित कर सरस बनाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।

क्या - क्या नहीं दिये उसने,
अगणित हैं उसके उपकार,
इसके बदले कुछ लिया नहीं,
कुत्सित हैं हमारे आचार।
हमने उसको दुःख दिए हैं,
वह सबको सहलाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।

धरती का कलेजा चीर - चीर,
खनिज निकाले हमने कितने।
सागर की अतल गहराई से भी
तेल निकाले कितने हमने।
फिर भी सहती रही चुप चाप
हमारे जीवन सरस बनाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।

बस्तियाँ बसाने में हमने
वन सारे उजाड़ दिए।
वन्य प्राणी अब जाएँ कहाँ
उनके बसेरे उखाड़ दिए।
वह चुपचाप हमारी करतूतों
पर आवरण डालती जाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।

अपनी सुविधाओं के लिए
कल कारखाने बनाये हमने।
पर उनके अवशेषों से दूषित
कर दी धरा और जल कितने।
माफ़ किया माँ ने पापों को
बादल बनकर धो जाती है।
वह जीवन रस बरसाती है।

अब तो चेत ऐ मानव जन
कर आवृत हरियाली से।
पर्यावरण बचा ले धरा का
बच्चे जीयें खुशहाली से।
माता का फैला है आँचल
वरदान तुझे दे जाती है
वह जीवन रस बरसाती है।
वह जीवन सरस बनाती है।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/aEPQBYjfKBM

Sunday, April 19, 2020

उनकी आहट से शबरी विकल ही गयी(कविता)

#BnmRachnaWorld
#poemspiritual#poemonshabari









विषय: शब्द आधारित सृजन
शब्द: आहट




यह कविता मेरे यूट्यूब चैनल "marmagya net" के नीचे दिए गए लिंक पर सुनें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएँ:
https://youtu.be/YumN6rix6ds

उनकी आहट से शबरी  विकल हो गयी।

आते हैं इस दुखियारी के द्वार प्रभु,।
समझ न सकी कैसे करूँ मैं स्वागत?
देखती अपनी जीर्ण शीर्ण कुटिया को,
समझ न सकी अपने तन की हालत ।

उसको सुध ना रही विह्वल हो गयी।
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।

जिनके लिए बुहारती रही वीथियों को
जिनके लिए हटाये पथ के शूलों को,
जिनके लिए चुने सुंदर सुंदर कलियाँ
जिनके लिए बिछाए पथ में फूलों को।

उन पाँवों की हलचल से चंचल हो गयी?
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।

जिनके लिए रखती रही बैरों को चखकर,
स्वच्छ थालों में सुरक्षित और सजाए ।
जिनके लिए आंखें बरसती रही आस में,
जिनके लिए युग युग से वे बूंदे बरसाए।

अब वह बहती धार अविरल हो गयी।
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।

आज मतंग ऋषि की वाणी साकार हो रही,
प्रभु के आने की आहट है सारे जलथल में,
शबरी के राम आज पधारे हैं कुटिया के आंगन
आज भरा उल्लास अवनि और अम्बर तल में।

आंसुओं से धोती पाँव शबरी निश्चल हो गयी।
उनकी आहट से शबरी विकल हो गयी।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

Thursday, April 16, 2020

छाँव के सुखभोग कहाँ (कविता)

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#poemonstruggle




विषय: चित्र आधारित सृजन
चित्र: सड़क के मोड़ पर पत्रविहीन पेड़ और क्षितिज से झांकती दो आंखें






छाँव के सुखभोग कहाँ

धूप से छाले सहे पर,
छाँव के सुखभोग कहाँ?

कल्पनाओं के क्षितिज पर,
जो सपन मैं बुन सका था।
नयन निलय के नर्तन में
हरीतिमा को चुन सका था।

वे सपन सब खो गए,
प्रकृति के भीषण प्रलय में।
विमूढ़ सा देखा किया,
विस्फोटों के वह्नि - वलय मे।

पथ पर सूर्य - किरणें,
तपिश - सी दे रही,
पाँव के छालों को
आराम का संयोग कहाँ?
धूप से छाले सहे पर
छाँव के सुखभोग कहाँ?

वेदना के शीर्ष पर
सब भाव पिघलते जा रहे।
आशाओं की आस में,
सब अर्थ धुलते जा रहे।

पोर - पोर पीर से
भर उठा है, क्या कहूं?
दर्द के द्वार पर,
उदगार रीते जा रहे।

छीजती इस जिंदगी को,
हँस - हँस कर जी सकूँ,
कोई कोई कर सके तो करे,
मेरे बस में ये प्रयोग कहाँ?
धूप से छाले सहे पर
छाँव के सुखभोग कहाँ?

दलदल भरी कछार में,
दरार होती नहीं।
बह गए वृक्षों पर,
कभी बहार होती नहीं।

चिड़ियों की चहचहाहट
अब यादों  में बसती है।
जड़ से जो उखड़ गए,
उनमें संवार होती नहीं।

जो खो चुके सबकुछ
इस सफर में उस सफर में।
उन्हें और कुछ भी
खोने का वियोग कहाँ?
धूप से छाले सहे पर
छाँव के सुखभोग कहाँ?

(वह्नि-आग)
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

मिला नव स्पर्श है (कविता)

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#poemonmaa




विषय: चित्र आधारित सृजन
चित्र: माँ बच्चे को चूमती हुई।








मिला नव स्पर्श है

शिशु - नयन की भाषा में,
माँ के उल्लसित हृदय में,
संचरित हो रही ममता की
अविचल धार निलय में।
माँ के जीवन की बगिया में छाया नव हर्ष है।
माँ का शिशु की साँसों को मिला नव स्पर्श है।

यह भाषा अलिखित सी,
मौन भी है मुखरित हुआ।
माँ के मुस्कानों में दिखता
शिशु प्रेम पल्लवित हुआ।
पुष्प खिला सुंदर, सर्वत्र आंगन में उत्कर्ष है।
माँ का शिशु की सांसों को मिला नव स्पर्श है।

बालक माँ की पढ़ लेता
प्यार ममत्व की भाषा को।
आनन पर छायी विश्रान्ति
थकान और निराशा को।
माँ के दुलार में ही हमारे जीवन का अर्श है।
माँ का शिशु की सांसों को मिला नव स्पर्श है।

कितना सुकून है माँ के
आँचल में बीते बचपन।
माँ तेरी ममता से सिंचित
हो मेरे प्राणों का पोषण ।
शिशु के सुदृढ आलय का माँ ही तो फर्श है।
माँ का शिशु की सांसों को मिला नव स्पर्श है।

माँ मेरे तू रहती पास
स्नेह की देती शीतल छाँह,
माँ मेरी विघ्नों पर देती,
समाधान की त्वरित सलाह।
माँ तू ही मेरे समस्त जीवन का निष्कर्ष है।
माँ का शिशु की साँसों को मिला नव स्पर्श है।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

Tuesday, April 14, 2020

जीतेंगे हम शान से (कविता) #coronapoem

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#coronapoem









जीतेंगे हम शान से
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आज मचा जो हाहाकार,
नहीं दुखों का पारावार।
कोरोना के फैलाव से
ठप्प पड़े सब कारोबार।
इन विषम स्थितियों में
भी लगे हुए जी जान से
जीतेंगे हम शान से।

लक्ष्मण रेखा है देहरी
इसका रखेंगे ख्याल।
बाहर कही निकलेंगें
मुख पर रखेंगें रुमाल।
जीवन की रक्षा करेंगे,
हम जीतेंगे जहान से ।
जीतेंगे हम शान से।

बड़े बूढ़ों की सेवा को
अपना लक्ष्य बनाएं ।
उनपर हो ध्यान विशेष
संक्रमण दूर रख पाएँ।
ध्येय हमारा होगा पूरा,
बुजुर्गों के सम्मान से।
जीतेंगे हम शान से।

आसपास में देखें जाकर
छत है जिनका आसमान।
पेट में अन्न का दाना है या
हवा ही है उनका जलपान।
उन्हें जीने का मकसद दें
मुक्त हो वे अपमान से।
जीतेंगे हम शान से।

नए जीवन की नयी शोध है,
नव चिंतन की नयी पौध है,
मन में विचरण नई सोच है,
निरंतर कर रहे नई खोज है।
कोरोना को देंगें मात
हम नए विज्ञान से ।
जीतेंगे हम शान से।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

यूट्यूब लिंक:
https://youtu.be/ksYNEz_G_uU

Friday, April 10, 2020

यमराज को कोरोना के लिए पत्र संख्या 1 (हास्य व्यंग्य)

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यमराज को पत्र: (हास्य व्यंग्य)

आदरणीय यमराज जी,
दूर से नमस्ते!
हमसब यहाँ सकुशल नहीं हैं। पर आप तो गैरेज में अपने भैसें के साथ वहाँ कुशलपूर्वक ही होंगे।
आप सोच रहे होंगे कि इसबार के पत्र में मैने आपको दूर से नमस्ते क्यों लिखा? मैंने आपको सादर चरण स्पर्श क्यों नहीं लिखा? आप तो जानते हैं और आप को मालूम ही होगा कि आपके यमदूतों द्वारा धरती पर से आत्माओं को ले जाने की गतिविधि में अचानक इतनी वृद्धि कैसे हो गयी? आपके यमदूतों ने आपको रिपोर्ट दी होगी कि यहाँ एक कोरोना नाम के विषाणु का तेजी से फैलाव हो रहा है। यह स्पर्श से और छींकने, खाँसने से तेजी से फैला है।
मैं धरती पर के एक भारतीय होने के नाते दूसरों का भी ख्याल रखता हूँ। आप को कहीं संक्रमण ना हो जाय, इसीलिए मैंने आपको दूर से ही नमस्ते लिखा है।
परन्तु आपने ये क्या कर दिया है? क्या धरती पर से आप मानव सभ्यता को मिटाना चाहते हैं। मैं देवराज इंद्र और ब्रह्मा के पास नहीं गया हूँ। चाहता हूँ कि समस्या का समाधान आप ही निकाल दें। मैं मानता हूँ कि धरती पर के कुछ सिरफिरे लोग पशु - पक्षियों और समुद्री जीवों का शिकार कर अपनी स्वादेषणा (स्वाद पूर्ति की वृत्ति) की पूर्ति में लगे हुए हैं, जबकि प्रकृति ने वनस्पतियों का अपार भंडार दे रखा है। इस अपराध के लिए आप पूरी मानव जाति को क्यों दंडित कर रहे हैं, प्रभु? जिन्होंने अपराध किया है उन्हें अवश्य दंडित करें। परंतु जो निरपराध हैं, उन्हें किस दण्ड विधान के अंतर्गत आप सजा दे रहे हैं।
मैं एक भारतीय हूँ। आपसे ही मैने देवसंस्कारों को ग्रहण किया है। आपने देखा है कि इस विपत्ति में भी बिना कोई भेदभाव के हमने अन्य देशों के नागरिकों की मदद की है। वे इस विषाणु के फैलाव के केंद्र में फंसे थे, वहाँ से मैंने उन्हें हवाई जहाज द्वारा लाया और उनकी यथासंभव मदद की थी। अभी भी मैंने अपने को आर्थिक शक्ति समझने वाले देशों को दवा पहुँचा कर वहाँ के नागरिकों की सेवा की है। आप ही कहते हैं कि परमार्थ करने से पुण्यफल बढ़ता है। प्रभु इन सारे प्रयासों से अगर हमारे पुण्यफल बढ़े हों, तो वे सारे पुण्य जिन्होंने अपराध किया है उनके अपराधों को क्षमा करने में लगा दें। मानव जाति को इस त्रासदी से त्राण दिला दें प्रभु! एक भारतीय की इस कातर पुकार पर ध्यान दीजिए प्रभु! थोड़े में अपनी समस्या लिखी है। स्वयं विस्तार कर समझ लीजिएगा। सादर!
जन्म जन्म तक आपका हृदय तल से आभारी!
एक भारतीय नागरिक
जमशेदपुर, झारखंड, भारत।

पता:
श्री यमराज,
यमदूत कॉलोनो,
बंगलो नंबर 1,
स्वर्गलोक।

Tuesday, April 7, 2020

कोरोना, तेरे नुकीले तीरों को हम भी देखेंगें (कविता).#coronapoem

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परमस्नेही साहित्यान्वेषी  सुधीजनों,
आप शुद्ध साहित्यिक रचनाओं के अपने यूट्यूब चैनल "marmagya net" से जुड़ चुके हैं। मैं ब्रजेंद्रनाथ आपको याद दिलाना चाहता हूँ, उस हिम प्रलय का जिसमें एकमात्र मनु बचे थे और उन्होंने श्रद्धा और इड़ा के साथ मिलकत मानव सभ्यता का निर्माण किया था। जयशंकर प्रसाद जी की कामायनी की कुछ पंक्तियाँ:
"हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह, एक पुरुष, भींगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह।"
उस भयंकर संकटकाल में मनु ने आशा का त्याग नहीं किया और मानव सभ्यता को खड़ा किया। आज भी कोरोना विषाणु के कारण एक घोर संकट आया हुआ है।
कल हमने आशा का दिया जलाया था। आज हम जीत का बिगुल बजाने न रहे हैं: सुनें:

कोरोना, तेरे चल रहे नुकेले तीरों को
हम भी देखेंगें
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ज्वालामुखी के विस्फोटों से धरा विकम्पित
जल का था विस्तार, भूमि समाई उसमें।
गगन गूंजता, रही धरा डोलती पल पल,
क्षण क्षण गर्जन ध्वनि समाई उसमें।

मानव सभ्यता का निर्माण किया मनु ने
जब धरती ध्वस्त हुई थी हिम प्रलय में।
वनस्पतियों को चुन चुन प्रभावी बनाया,
जब प्रचंड जंतु भरे थे नगर निलय में।

ऐ कोरोना, तेरे तप्त तासीरों को
हम भी देखेंगें।
तेरे चल रहे नुकीले तीरों को
हम भी देखेंगें।

माना तेरे खूनी पंजों का प्रहार है जारी,
माना तेरे चुभते खंजर का प्रहार है जारी।
तुमने मानी नहीं हमारी कोई भी विनती,
बढ़ती रही धरा पर ताज़ा लाशों की गिनती।

तू है अदृश्य और घुस जाता है शरीर में,
तू स्वसन तंत्र को छिन्न भिन्न करता है।
तू छींकने खाँसने से बढ़ता ही जाता है,
तू शारीरिक शक्ति को विछिन्न करता है।

तेरे फैलते लंबी जंजीरों को
हम भी देखेंगे।
तेरे चल रहे नुकेले तीरों को
हम भी देखेंगें।

रक्तबीज - सा छलता अनगिन रूपों में,
समझ नहीं आता, कहाँ छिप जाता है?
तू है अति सूक्ष्म, दिखाई नहीं पड़ता है,
तू अंदर ही अंदर घात किये जाता है।

तू नहीं छोड़ता है चाहे वो हो राजा या रंक
तू मानवता का शत्रु , यह युग याद रखेगा।
विश्व, विष के प्रभाव से पड़ा हुआ भूलुंठित,
शव गिरने होंगें बंद, यह युग याद रखेगा।

तेरे घाव गंभीरों को
हम भी देखेंगें।
तेरे चल रहे नुकेले तीरों को
हम भी देखेंगें।

ढूढ़ लिए, कुछ ऐसे व्यक्ति, समूहों को,
जो मनुजता के दुश्मन बने फिरते हैं।
जिन्हें क्वारंटाइन में जाना नहीं पसंद,
तेरे वाहक बनकर विष वमन किया करते है।

हम है प्रबल, अटल इन झंझावातों में,
प्रहार झेलते रहते है, प्रचंड संघातों में।
एक मरेंगे, दस वीर समर में आ जूझेंगें,
मानव बंदी होगा नहीं सिरफिरे जामातों में।

तेरे टेढ़े तिरछे शोख
शमशीरों को हम भी देखेंगें।
तेरे चल रहे नुकेले
तीरों को हम भी देखेंगें।

©ब्रजेंद्रनाथ
पूरी कविता मेरी आवाज में मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर देखें और सुनें:
Link: https://youtu.be/krnYuoAkkdA

Saturday, April 4, 2020

कोरोना होगा भस्मीभूत (कविता) हास्य व्यंग्य #coronapoem

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कोरोना होगा भस्मीभूत

नवंबर 2019 के किसी दिन:
यमदूत आए यमराज के पास
यमराज पूछे क्यों हो वत्स उदास?
धरती पर अब मौतें होती कम
हम क्या करें आप बताएं श्रीमन।
हमलोगों में बहुतों को कोई नहीं है काम,
अब तो आउट ऑफ जॉब होंगे हम तमाम।
आप ही बताएं क्या तरकीब अपनाएं
कैसे हो हमलोगों के जॉब सुरक्षा का इंतजाम?

यमराज ने यमदूतों की सभा बुलाई,
किसी यमदूत को कोई भी तरकीब समझ न आई।
कोने में चुपचाप दिखा एक यमदूत,
यमराज ने उससे पूछा क्यों तुम हो चूप?
मैं डर रहा हूँ आपसे श्रीमान
अगर कहूँ मैं अपनी बात,
ऐसा न आप सब कर दे हमें बदनाम।

तुम हो जाओ निर्भीक,
पर बोलो जो भी बात सबों को लगे ठीक।
पर बात में अगर नहीं हुआ कोई भी तथ्य
तो तुमको दिखलायेंगे बाहर का पथ।
महाराज अगर बचानी है हमारी जॉब,
तो मैं जैसा कहता हूँ, वैसा करें आप।
बोलो भी अपने मन की बात
पर हो वह सभी नियमों के साथ।

मैं प्रभारी रहा हूँ,
मध्य एशिया के वुहान वन का
वहाँ पर जमीन है विषाणुओं
के निरंतर प्रजनन का।
मैं कहता हूँ, आप अगर दिखलायें साहस,
मैं इन्सर्ट कर दूँ कुछ वायरस।

क्या यह था नियमों के अधीन?
पर यमदूतों के जॉब की विकट थी स्थिति।
यमराज ने दुखी मन से
कुछ अंतराल के लिए दी इसकी स्वीकृति।

वहाँ से फैलने लगा वायरस कोरोना,
विश्व में व्याप्त हो गया यह कोना - कोना।
सभी यमदूत भागे आये दौड़े-दौड़े,
बेहाल, फटेहाल यमराज के पाँवों में गिर पड़े।
महाराज, रक्षा करे, रक्षा करे हम करते है विनती,
धरती पर शवों की बढ़ती जा रही गिनती।
आप करें उपाय कुछ, इसपर लगाए विराम,
धरती पर नहीं रहेगा मानवों का नामो निशान।
यमराज तुरंत गए इंद्र से करने को मंत्रणा,
उनके यमदूतों से ही ऐसा वातावरण बना।

यमराज आये यमदूतों को करने को आश्वस्त,
कुछ उपाय करेंगें देवराज कोरोना होगा ध्वस्त।
भारत की धरती पर भेजेंगे देवदूत,
वही करेगा कोरोना वायरस को भस्मीभूत।
भारत भूमि से ही कोरोना होगा भस्मीभूत।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

माता हमको वर दे (कविता)

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