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Monday, February 22, 2021

प्रकृति नटि कर रही श्रृंगार है (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#naturepoem










प्रकृति कर रही श्रृंगार है


सरस शुभ्र, फेनिल जल,
सरित - वारि प्रवाह अविरल
अरुण - किरणों का तरुओं
से हो रहा संवाद अविचल।

जीवनानंद ले रहा विस्तार है। 
प्रकृति नटी कर रही शृंगार है।

पादपों की लंबी कतारें,
गगन को चूमती फुनगियाँ।
धरा ओढ़े पीत चूनर
मगन ज्यों प्यारी दुल्हिनियाँ।

स्वयं समष्टि कर रही संवार है।
प्रकृति नटी कर रही श्रृंगार है।

एकत्र जलराशि अतल तल
ले रहा विस्तार झील ।
अम्बर झाँक रहा दर्पण में,
घुल गयी है जल में नील।

करूँ नर्तन, कर रही विचार है।
प्रकृति नटी कर रही शृंगार है।

मलय पवन, शान्त विचरण
मादक फैल रही गंध है।
भ्रमर स्वर गुंजित प्रतिपल
पुष्प पर शोभित मकरंद है।

सप्तरंगों की छा रही बहार है।
प्रकृति नटी कर रही शृंगार है।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र


मेरी इस कविता पर आदरणीय सुरेश दत्त पाण्डेय जी का फेसबुक पर लिखी गयी समीक्षा देने से मैं अपने को नहीं रोक पा रहा हूँ:

मेरे फेसबुक वाल  से 24 फरवरी 21को प्राप्त:

अखिल भारतीय साहित्य परिषद, जमशेदपुर द्वारा आयोजित "वासंती काव्य-गोष्ठी,"के आयोजन के लिए भाई वसंत जमशेदपुरी को साधुवाद।

कभी कथा-साहित्य के लिए पहचाने जाने वाले प्रियवर ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र इन दिनों शिद्दत के साथ काव्य-मंचों पर भी शिरक़त कर रहे हैं,यह सुखद है। वे वर्षों से साहित्य-साधना में लगे हुए हैं एवं नगर के वरिष्ठ रचनाकारों में शुमार होते रहने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी जगह बनाने के लिए प्रयासरत हैं।

ब्रजेंन्द्र की  कविता "कर रही श्रृंगार", "वासंती-नवगीत की खुशबू  लिए हुए है।प्रथम चार पंक्तियां पढ़ते हुए ही अपनी लयात्मकता का परिचय दे देती है-

संरस-शुभ्र, फेनिल-जल,

सरित-वारि प्रवाह अविरल

अरुण किरणों के तरुओं से

हो रहे संवाद अविरल ।

स्वयं समष्टि कर रही संवार है,

प्रकृति-नटी कर रही श्रृंगार है।"

क्या खूब लिखा है ब्रजेंद्र जी ने। शब्द कोमल है, प्रकृति-प्रसंगो के संगत एवं अनुकूल अपनी रागात्मकता बनाए रखते हैं। तत्सम शब्दों के उपयुक्त प्रयोग से कविता जीवंत बन पाई है।निराला-जयंती के लगभग रची इस कविता द्वारा प्रकृति का अभिनन्दन करने के साथ-  साथ महाप्राण निराला को श्रृद्धांजलि अर्पित भी की है कविवर ने। बधाई ऐसी सुंदर कविता के लिए ब्रजेंन्द्र भाई को।

*सुरेश दत्त प्रणय।


Tuesday, February 9, 2021

कहानी पर टिप्पणी (लेख) संस्मरणात्मक

 #BnmRachnaWorkd

#laghukatha










कहानी पर टिप्पणी

" अरे भाई साहब, कोई ट्रेन छूट रही थी क्या जो कहानी को एकदम से पूरा कर दिया। क्या यार पता ही नहीं चला।"
हिंदी पाठकों द्वारा सबसे अधिक पढ़े जाने वाले वेबसाइट 'प्रतिलिपि' पर प्रकाशित मेरी कहानी "मुस्कान को घिरने दो" पर आई इस टिप्पणी को पढ़कर पहले मुझे बहुत गुस्सा आया। अभी तक किसी पाठक ने मेरी इस कहानी पर इस तरह की टिप्पणी नहीं दी थी। कुछ पलों बाद मैं संयत हुआ।
वैसे भी मेरी यह आदत है, जब बहुत गुस्सा आ रहा हो, तो न मैं मौखिक रूप से किसी को जवाब देता हूँ और न ही लिखित रूप में। कुछ पलों बाद मैं संयत हुआ और मैने उसका प्रतिउत्तर लिखना शुरू किया:

आदरणीय ........ जी, आपकी टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार! आपकी असंयत, अशिष्ट, असाहित्यिक और अनैतिक टिप्पणी से लगता है कि आपने हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ लेखकों को नहीं पढ़ा है। यह कहानी है, कोई उपन्यास या धारावाहिक सीरियल या वेबसीरिज नहीं है, कि वह रबर की तरह खिंचती जाएगी। कोई भी टिप्पणी करने के लिए आप निर्मल वर्मा, हिमांशु जोशी, नरेंद्र कोहली, आदि कहानीकारों को जरा पढ़ा कीजिये। मैं इन कहानीकारों के करीब भी नहीं हूँ। लेकिन उस ओर मार्ग पर चलने के लिए प्रयत्नशील हूँ। टाइम पास के लिए अगर कहानियाँ पढ़नी हो तो, और भी कई लेखक है। मैंने अपनी कहानी के अंत में नोट में लिख दिया है, कि आपके संयत, शालीन, शिष्ट, नैतिक और साहित्यिक प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। उसमें किसी भी मानक पर आपकी प्रतिक्रिया सही नहीं उतरती। इसलिए प्रतिक्रिया सोच समझकर दिया कीजिये। सादर!
--ब्रजेंद्रनाथ
इस टिप्पणी को लिखते हुए मेरे मन में कई विचार उठ रहे थे। मैं या मेरे जैसे अन्य सज्जन और सकारात्मक विचार रखने वाले लेखक इसे अनदेखा या नजरअंदाज कर सकते थे। परंतु इससे उन पाठक महोदय को इसका ज्ञान कैसे होता कि जब आप कोई साहित्यिक रचना पढ़ रहे हों, तो आपकी ग्रहणशीलता का भी एक स्तर होना चाहिए, जिससे आप रचनाकार की रचना के विभिन्न बिंदुओं को इंगित करते हुए रचना पर अपनी समीक्षा दे सकेें। इसके लिए आप रचना की मौलिकता, कथा-शिल्प, प्रस्तुति, भाव- भूमि, संदेश आदि पर लेखक से अपने संवाद कायम करते हुए, अपने विचार संयत, शालीन और शिष्ट भाषा में रख सकते थे। कविवर मैथिली शरण गुप्त ने अपने काव्य जयद्रथ बद्व में लिखा है:
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है ।।

न्याय के अर्थ को सुदृढ करना आवश्यक था, इसीलिए इसकी चर्चा आवश्यक थी। परंतु अगर लेखक की सज्जनता और
संतत्व पर विचार किया जाय तो गोस्वामी तुलसी दास की यह चौपाई याद आती है,
"काटहिं परसु मलय सुनु भाई।
निज गुण देही सुगंध बसाई।।"
संत ऐसे होते हैं जैसे चंदन को काटने वाली कुल्हाड़ी में भी चंदन जैसा अपना सुगंध बसा देते हैं। इसके आगे तो यह भी प्रश्न शेष रह जाता है कि क्या कुल्हाड़ी उस गंध को अपने में समाकर रख पाता है? अगर ऐसा होता तो कोई भी कुल्हाड़ी फिर किसी चंदन के तने या डाल पर नहीं चलती। चंदन को कुल्हाड़ियों से अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी, आज के समय का यही युगधर्म है। संत को भी अगर अपने संतत्व को संभालना है, अपने स्वभाव के प्रभाव को सुस्थिर रखते हुए निरंतरता प्रदान करनी है तो राम की तरह पहले अनुनय-विनय और फिर महाप्रलय की तरह टूटना पड़ेगा:
विनय न माने जलधि जड़, गए तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होहि न प्रीत।
आगे गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है:
शठ सन विनय कुटिल सन प्रीति।
सहज कृपण सन सुंदर नीति।।
ममता रत सन ज्ञान कहानी।
अति लोभी सन विरति बखानी
कामिहि क्रोधिहि सम हरिकथा।
ऊसर बीज बाए फल यथा।।
यही समय सापेक्ष युगधर्म है।
मैं ऐसे विचारों को धारण कर दृढ़ करते हुए उस टिप्पणी को पटल पर पोस्ट करने ही जा रहा था कि मेरे एक वरिष्ट लेखक मित्र का कॉल आया। वे कह रहे थे कि आजकल आपकी कहानियाँ कितनी भी सरल क्यों न हों पाठक का आपकी कहानियों को पढ़ना और पसंद करना आजकल के ट्रेंड पर निर्भर करता है। इसलिए कभी - कभी किसी पाठक की प्रतिक्रिया असंयत भी हो सकती है। इससे हम लेखकों को किंचित भी विचलित नहीं होना चाहिए। हमें पाठकों की रुचि के परिष्कार की भी जिम्मेवारी है। उन्हें समझाना भी हमारी जिम्मेवारी है। उनकी बातों ने लेखकों की जिम्मेवारियों का भी अहसास हमें करवाया। आज हम रचनाकार दोहरे उत्तरदायित्व - बोध से गुजर रहे हैं। हमें पाठकों की वृत्ति और प्रकृति को भी परिष्कृत और प्रक्षालित करते हुए आगे बढ़ना होगा। इस भाव के आते ही मैंने पूर्व लिखित टिप्पणी डिलीट कर दी, हटा दी।
©ब्रजेंद्रनाथ 


नोट: मेरी उक्त कहानी "मुस्कान को घिरने दो" मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस् लिंक पर जाकर मेरी आवाज में सुन सकते हैं:

भाग 1 : https://youtu.be/AAcrg_7O724

भाग 2: 

https://youtu.be/qYvMKDx5bW4

भाग 3:

https://youtu.be/ARNs-NVRrHI




Monday, February 1, 2021

नमन सशत्र बलों के धैर्य को (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#poempatriotic










ऐसे तत्वों का संकट काल आएगा


तिरंगे को लज्जित करने वाले,
तुझमें कोई भी संस्कार नहीं।
तुम अपने जो कुछ भी कह लो,
पर भारत से तुझको प्यार नहीं।

इस ध्वज की खातिर देश के
कितने वीरों ने दी थी कुर्बानी।
कितने माँओं की गोद हुई सूनी,
बहनों की सूनी सुहाग - निशानी।

तुझपे लज्जित होगी माता तेरी,
क्यों ऐसा पुत्र मैंने बड़ा किया?
तुझपे लज्जित होगी कायनात,
क्यों ऐसे शैतान को खड़ा किया?

तूने विदेशी पैसों की लालच में,
माँ का आँचल तार - तार किया।
तू अफीम, हेरोइन के नशे में चूर,
देशहित का सरेआम व्यापार किया।

जो देश का मान मिटाएगा,
जो देश की शान गँवायेगा।
देश के गौरव को गिरायेगा,
वह मिट्टी में मिल जाएगा।

आंदोलन की आड़ लेकर
देशद्रोह को पालने वाला है।
यह किसान नहीं हो सकता है,
उनको लांछित करनेवाला है।

जिसने पत्थर सहकर भी
अपना धैर्य नहीं खोया।
है नमन उन सशस्त्र बलों को
उनका शौर्य नहीं था सोया।

सिरफिरों पर वार नहीं करके,
वर्दी को नहीं किया कलंकित।
कायरों की गीदड़ भभकियों पर,
खामोश रहे, नहीं हुए विचलित।

उन वीरों की धैर्य परीक्षा को
शब्द - सुमन अर्पित करता हूँ।
उन धीर - वीर गंभीरों को अपनी
स्याही का शौर्य समर्पित करता हूँ।

यह देश अब ऐसे कृत्यों को
कभी माफ नहीं कर पायेगा।
ऐसे तत्वों का संकट - काल,
अब आएगा, अवश्य आएगा।

©ब्रजेंद्रनाथ

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...