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चंदा रे शीतल रहना
जगत भर को तपन से त्राण देने के लिए
करोड़ों को सुधा का दान देने के लिए.
चंदा रे शीतल रहना - 2
सूरज की तपन लेकर के
तू करता है अवशोषण.
छिटकाई जो तूने किरण,
करती चित्त का है शमन.
तू उज्जवलता का जग को दे रहा है दान रे
तू मानवता का हरदम रख रहा है मान रे.
चंदा रे तू अविचल रहना.
चंदा रे शीतल करना - 2
तुझे शिव ने किया धारण
तेरा विस्तार ज्यों वामन.
हुआ समुद्र का मंथन
तेरा जनम, एक रतन.
अम्बर के सितारों में तू गोलाकार है
ह्रदय में, नयन में, तू ही बस साकार है.
चंदा रे अचंचल रहना.
चंदा रे शीतल रहना - 2
विश्व में विष का शमन
बुद्धि में प्रभु का मनन.
कराता ईश का वंदन
हमारे रुके नहीं चरण.
तेरी उपमा है दी जाती, तू मामा है बच्चों का,
तेरी महिमा सुहाती है, तू प्रेमा के मुखड़े सा
चंदा रे, अविरल रहना.
चंदा रे, शीतल रहना - 2
©ब्रजेन्द्रनाथ
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