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Friday, August 12, 2022

हर घर तिरंगा लहरायेंगे कविता)

 #BnmRachnaWorld

#amritmagotsavpoem

#हर घर तिरंगा फहरायेंगे








परमस्नेही मित्रों,
 आजादी की अमृत महोत्सव के तहत 13 से 15 अगस्त तक हर घर तिरंगा फहराने के अभियान का आरम्भ हो रहा है. इस अवसर पर, स्वतंत्रता को कैसे हासिल किया गया, किन अनाम और गुमनाम वीरों ने उस यज्ञ में आहुति दी और अब स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे कंधों पर कर्त्तव्यो की क्या जिम्मेवारी है, उन्हें रेखांकित करते हुए मेरी कविता सुनें "हर घर तिरंगा लहरायेंगे"

हर घर तिरंगा लहरायेंगे 
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आओ मनायें  आजादी का अमृत महोत्सव

स्वतंत्रता की शौर्य गाथा का विजयोत्सव |

सन सैतालिस में तिरंगा जो लाल किले पे लहराया था.
उसमे शहीदों का लाल लहू पाँचवाँ रंग कहलाया था.

आजादी के संघर्षों का इतिहास याद  कर लो प्यारो,
गोली खाकर खेत हुए,  कुछ शूली पर चढ़ गए यारों.

याद करो आजाद, भगत, सुखदेव, राजगुरु, बिस्मिल को,
याद करो आजाद हिन्द वालों  की क्रांति की बिगुल को.

याद करो जो जालियांवला बाग़ में खून बहाए थे.
याद उन्हें भी कर लेना जो अनाम शहीद कहाए थे.

भूल उन्हें भी मत जाना संथाल क्रांति के वीरों को,
सिद्धू - कान्हू, बिरसा मुंडा, फूलो - झामो के तीरों को.

मंगल पांडे, तात्या टोपे, वीर कुंवर,  लक्ष्मीबाई को,
पीर अली, नाना साहेब, जैसे बांकुरों की अथक लड़ाई को.

बर्फ़ानी, बारिश में, आंधी में, रेतीले तूफ़ानों में,
घहराते युद्धक विमानों में, तोपों के विकट दहानों में.

जो डटे रहे, बढ़ते रहे किंचित भी विचलित नहीं हुए.
जो चढ़ गए चोटियों पर, तनिक थकित भी नहीं हुए.

जो तिरंगे में लिपट गए, राष्ट्र - शक्ति - शौर्य - सम्मान किया,
उन्हें याद करते हैं हम, तिरंगे के पांचवे रंग को मान दिया.

उन्हीं की शान में तिरंगा हर  घर में फहराएँगे,
देशाभिमान निज स्वार्थ से ऊपर, राष्ट्र भक्त कहलाएंगे.

आजादी का अमृत पर्व है राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने का,
सत्य सनातन से सशक्त कर विश्व वंन्धुत्व भाव जगाने का.

स्वतंत्रता प्राप्ति का  विजयोत्सव हर गली मोड़ पर मनाएंगे,
आजादी के अमृत पर्व का संदेश घर घर में फैलाएंगे.

राष्ट्रप्रेम की अलख जगाएं
हर घर तिरंगा लहारायें.
हर घर तिरंगा लहरायें.

©ब्रजेन्द्र नाथ

इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल "marmagya net" के इस लिंक पर सुने







Thursday, August 4, 2022

पूरण की फसल (कहानी) #लघुकहानी

 #BnmRachnaWorld

#laghukaani #purankifasal










भीषण बाढ़ में एक किसान के  धान की फसल के बर्बाद होने के बाद उस आपदा को अवसर में बदलने की कहानी है "पूरण की फसल". 


पूरण की फसल

बाँध का पानी पिछली रात को छोड़ दिया गया है। पूरण धान की रोपणी के बाद अच्छी फसल के सपने संजोए रात में सोया था। आज सुबह अपने खेत के ऊपर मटमैले पानी के फैलाव को वह देख रहा है और देख रहा है, अपने सपनों को ढहते हुए,  देख रहा है, पानी में हाल में रोपे गए धान के पौधे को धार  में बहते हुए...
देख रहा है अपने बैलों के चारे के अभाव में दम तोड़ते हुए ...देख रहा है अपनी मां की खाँसी के इलाज के अभाव में छटपटाते हुए ...  देख रहा है बिटिया की शादी के लिए पैसे नहीं जुटाने की स्थिति में जमीन को गिरवी रखते हुए ... देख रहा है बैंक के कर्जे की किश्त नहीं जमा करने पर खुद को फंदे से...
नहीं, नहीं वह अपने सपने को पानी की धार में ऐसे बिलाते हुए नहीं देख सकता। उसने बैंक के ऋण से ही उत्तम कोटि के  अच्छे बीज और खाद का इंतजाम कर फसल लगाई थी। खाद अभी बचा ही हुआ था, जिसका इस्तेमाल वह पौधों को खड़ा हो जाने बाद भादो के महीने में करने वाला था।
उसका घर ऊँचे टीले पर बना था, इसलिए घर में पानी नहीं घुसा था। वहीं से छत पर खड़ा हुआ वह चारो ओर फैले समंदर की मानिंद जलजमाव को अपने कातर नयनों से  निहार रहा था।
अपने घर के ऊंचे छत पर, बैठ गगन की  भींगीं छाँह,
पूरण  अपने  भींगे नयनों से देख रहा है प्रलय प्रवाह।
इतने में वह देखता है कि एक बड़े से काठ के कुंदे के एक छोर पर बड़ा सा अजगर और दूसरे छोर पर भींगे पँख लिए मैना बैठी है और कुंदा तेजी से बहा जा रहा है। वह सोचता है अगर सामान्य स्थिति होती तो अजगर मैना को झपटकर निगल जाता। पर  आज उसे अपनी जान बचाने की फिक्र अधिक है, बनिस्वत कि जान लेने की। जब खुद की जान पर बन आती है तो हर जीव में जीजिविषा प्रबल होती है और भयंकर जीव भी अहिंसक हो जाता है। जीजिविषा ने ही दोनों को सहयात्री बना दिया है।
पूरण भी अपनी जीजिविषा को जगा हुआ महसूस करता है। वह जीयेगा और अपने सपने पूरे करेगा... वह अपने सपने को मरने नहीं देगा।
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अब पानी धीरे धीरे उतरने लगा है। खेत में रोपा  हुआ धान का एक भी पौधा नहीं बचा है। पर खेत की मिट्टी के ऊपर भूरे मटमैले मिट्टी की एक और परत पसर गयी है। पूरण ने मन में ठान लिया है खेती को फिर शुरू करेगा। वह पारंपरिक खेती के ढंग को ही बदल देगा।
वह बैंक के ऋण के बचे पैसे से सब्जियों जैसे भिंडी, टमाटर, बैगन, लौकी, नेनुआ, करेला आदि का बीज ले आता है। अपनी डेढ़ एकड़ की जमीन के आधे भाग में वह इन सारे बीज को रोप देता है। आधे भाग को वह छोड़ देता है, जिसमें अगहन में वह गेहूँ लगा देगा। तीन महीने के भीतर ही सब्जियाँ लहलहा उठती हैं।  बाढ़ में बह आई मटमैली मिट्टी की उर्वर गोद में इतनी अच्छी सब्जियों की फसल की संभावना को पहले किसी ने देखा ही नही था। वह किसी तरह के रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं करता है।
इसलिए सब्जियाँ ऑर्गेनिक के नाम दूगने दाम पर बिकने लगती हैं। शहर के मॉल वाले और बड़े-बड़े होटल वाले सीधे पूरण की ऑर्गेनिक सब्जियाँ उसके खेत के पास से ट्रकों में भर-भरकर ले जाते हैं। उसे नकद पैसे मिलते हैं। पूरण अपने सपने को सच होते हुए देखता है।
उसका नैराश्य भाव दूर हो जाता है। उसके जीवन में आशा की कोंपलें बढ़ने लगती है।
©ब्रजेंद्रनाथ


इसे दृश्यों के संयोजन के साथ मेरी आवाज़ में यूट्यूब के इस लिंक पर जाकर सुनें और कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य लिखें. सादर!
यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/igH7WVr3w5g



माता हमको वर दे (कविता)

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