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Sunday, December 22, 2019

बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है (कविता)

#BnmRachnaWorld
#poeminspirational



बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है

सजाये हुये घर को यूं ना बर्बाद करो।
बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है।


एक महल जो दे रहा चुनौती
उंचे गगन में सिर उठाये तना है।
उसकी नींव में पलीता लगाओ मत
कितनों की पसीने की बूंद से बना है।
उसको हवाले मत करो आग के
जलाना आसान है, बुझाना कठिन है।


सम्बन्धों की सेज पर खुशबुओं को
सुगन्ध भरे फूलों से खूब महकाना है।
पूर्वाग्रहो के हर्फों से उकेरी गयी चादर को
सरहद के पार कहीं दूर फेंक आना है।
रिश्तों की डोर को, हवाले मत करो गांठ के
कि तोड़ना आसान है, जोड़ना कठिन है।


पेड़ की डालों को ऐसे झुकाओ मत
फलों से लदे हैं, सुस्वाद से सराबोर हैं।
लचक गयी डाल तो फल टपक जायेंगे
बांटते हैं स्नेह और ममता पोर पोर हैं।
जड़ों को सींचना कभी ना छोड़ना
सोखना आसान है, सींचना कठिन है।

वातावरण में ब्याप्त हो रहा कोलाहल है,
विष वमन हो रहा, फैल रहा हलाहल है।
क्या हो गया है, हर ओर क्यों शोर है?
कोई तो हो, जो सोचे, क्या फलाफल है?
इस यज्ञ में, दें अपनी आहुति, मिट जाएं,
अब मिटना आसान है, जीना कठिन है।

सजाये हुए घर को यूं ना बिखराओ 
कि बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है।

©ब्रजेंद्रनाथ

Thursday, December 5, 2019

तलवारों से खेलो बेटियों (कविता)

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#womenempoermentpoem














हैदराबाद में हाल में हुए रेपकांड और उसके बाद जलाए जाने की घटना से व्यथित हूँ। यह सरकार और समाज संवेदना विहीन हो गया है, तभी ऐसी घटनाओं पर विराम नहीं लग पा रहा है। अब बेटियों को ही खड़ग उठाना पड़ेगा। इसी ललकार की अभिव्यक्ति है, मेरी यह कविता, "तलवारों से खेलो बेटियों" सुनें:


तलवारों से खेलो बेटियों

नमन, वंदन, क्रंदन, विलपन, अब छोड़ो बेटियों,
खड्ग थामो, भुजा उठा, तलवारों को तोलो बेटियों!

पौरुषविहीन यह समाज, घाव तुम कबतक झेलोगी,
रणभेरी बजा, रणचंडी बन, वारों से खेलो बेटियीं।

जो नापाक हाथ बढ़े, उसको विलग करो कबंध से,
जो कुदृष्टि पड़े तुम पर, नोंच आंखों को, खेलो बेटियों।

क्रोध का मत करो शमन, ज्वाला को धधकाओ,
गर काल सामने आ जाये, संहारों से खेलो बेटियों।

बीते दिन जब कैंडिल लेकर मार्च किया करते थे,
आज के महासमर में, हथियारों से खेलो बेटियों।

ललकार रही यह कायनात, लांघो देहरी बनो प्रलय,
अत्याचारी, बलात्कारी के नरमुंडों से खेलो बेटियों।

तुम बन जा विद्युत - वज्र, गिरो उनको झुलसा दो,
व्यभिचारियों के अंगों के शतखंडों से खेलो बेटियों।

दमन, विष वमन, विभेदन, उत्पीड़न का अंत करो,
शेष नहीं अब समर, मत वारों को झेलो बेटियों।

जबतक न मिटे अनाचार अभियान नहीं रुकने देना,
जबतक जागे न जगत, ललकारों से खेलों बेटियों।

क्रंदन, विलपन, नमन, वंदन अब छोड़ो बेटियों,
भुजा उठा, खड्ग उठा, तलवारों से खेलो बेटियों!

©ब्रजेंद्रनाथ

इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के नए है दिए गए लिंक पर मेरी आवाज में सुनें और अपने विचार अवश्य दें। आपके विचार मेरे लिए बहुमूल्य हैं।

Link: https://youtu.be/c9ojBIFms-s


Friday, November 22, 2019

वंचितों की दुनिया (कविता)

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#poemdowntrodden





गत रविवार, 17 नवम्बर को नरवा पहाड़, जादूगोड़ा माइंस के शिव मंदिर परिसर में सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन, तुलसी भवन जमशेदपुर और साहित्य संगम जादूगोड़ा के संयुक्त तत्वावधान में कवि सम्मेलन सह वनभोज का आयोजन किया गया। इसी दिन बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के लिए खेल भी आयोजित किये गए। आप उसी समय ली गयी तस्वीरों का अवलोकन करें। इसमें प्राकृतिक छटा का दर्शन भी करें। इसमें आयोजित कार्यक्रम में पधारे गण्यमान्य अतिथियों और भाग लेने वाले कवियों एवं कवित्रियों के साथ उनके परिजनों को भी वन विहार में भाग लेते हुए देख सकते हैं।

मैंने जो कविता सुनायी उसके कुछ अंश यहाँ दे रहा हूँ। उस समय का वीडियो भी यहाँ देखें और अपने विचार अवश्य दें।

वंचितों की दुनिया
वंचितों की दुनिया में जिंदगी सहमी हुई है।
नीम अंधेरों में जैसे कोई रोशनी ठहरी हुई है।

गले में तूफ़ान भर लो, चीखें सुनाने के लिए,
शोर में दब जाती है,  गूंज भी गूंगी  हुई है।

मगरमच्छ हैं पड़े हुए उस नदी  में हर तरफ,
जो  खुशियों के समन्दर तक पसरी हुई है।

आह उठती है यहाँ, और पत्थरों से बतियाती है।
लहरों से टकराते हुए,  ये नाव जर्जर सी हुई है।

रेगिस्तां की आंधियों में इक  दिया टिमटिमाता है,
लौ थी थरथराती हुई, अब जाकर स्थिर हुयी है।

खुशबुएँ सिमट कर,  किसी  कोने में  नज़रबंद  थीं, 
उड़ेंगीं अब, हवाओ के  पंख में हिम्मत भरी हुई है।

उम्मीदों के फ़लक पर  आ गयी है जिंदगी,
सपनों के जहाँ की नींद भी सुनहरी हुयी है।

वंचितों की दुनिया भी अब है उजालों से भरी,
नीम अंधेरों  में भी अब  रोशनी पसरी हुयी है।
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/7zEqv_jNu0I

Tuesday, November 12, 2019

भारत भूमि की एकता के सूत्रधार (कविता)

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#poem#patriotic#sardarpatel





03-10-19 को जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की बैठक सरस्वती शिशु मंदिर, कदमा में हुई थी। उसमें कश्मीर का विलय दिवस, जो 26 अक्टूबर को मनाया जाता है, और 31 अक्टूबर, सरदार पटेल के जन्मदिन को एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है, और इसी दिन जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के पुनर्गठन की आधिकारिक घोषणा भी हुई, सारे दिवसों को सम्मिलित रूप से मनाया गया। मैंने सरदार पटेल पर लिखी अपनी कविता सुनाई, जिसे आप सरदार पटेल के जीवन वृत्तों का अवलोकन करते हुए सुनें।

सरदार पटेल पर कविता!

हे भारतभूमि की एकता के सूत्रधार,
है नमन तुझे मेरा शतबार!

कर्मपथ पर सजग,
जन की ब्यथा को अंदर समेटे,
यह कौन है, जो सुन रहा लोगो को,
लोगों के बीच जाकर ,
सेवा का समभाव, समरसता,
स्नेहसिक्तता को लपेटे।

वह कर्मयोगी,  लक्ष्य का  संधान करता
वह लोकसेवी रूप धर है प्राण भरता।
वह जहां जाता, एक नव संसार रचता,
वह जनहित की समस्याओं का निरंतर निदान करता।

हे निष्काम सेवा व्रती,
हे मानवता के ध्वजा वाहक,
हे जन जन के ह्रदय वासी,
हे वीर वसुंधरा के जननायक।

हे स्वातंत्र्य वीर, किसान आंदोलन का किया आयोजन
अंग्रेजों के दमन कानूनों के खिलाफ खड़ा किया संगठन।

अंग्रेजो को झुकाया, खेड़ा के किसानों का कर माफ करवाया,
आजादी के संघर्ष में अपना दे योगदान, देश का फर्ज निभाया।

हे लौह पुरुष, हे निर्णायक,
भारत के भाग्य - विधायक।
तूने रियासतों का किया भारत भूमि में विलय,
तेरी दृढ़ता से भारत बना अखंड, अजय।

जम्मू कश्मीर का विलय रह गया था अधूरा,
जिसे वर्तमान में मोदी सरकार ने किया पूरा।

यह सरदार की प्रेरणा ही हुई आज साकार,
भारत माता पुत्रों पर बरसा रही स्नेह धार।

आज हम विनयावनत हो, याद करते आपका प्यार,
अपनी आग जगाने को, समर्पित करते हैं उद्गार।
आपकी सद्प्रेरणा से आलोकित रहे हमारा संसार!
भारत रहे अखंड अभेद बने विश्व का खेवनहार।

हे सरदार, है नमन तुझे मेरा शतबार!
है नमन तुझे मेरा शतबार!

©ब्रजेंद्रनाथ

यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/3B0zdsWbwsY

Friday, November 1, 2019

जगाने आ रहा हूँ (कविता)

#BnmRachnaWorld
#motivational#poemforyouth





 गत मंगलवार तारीख 29 अक्टूबर 2019 को अखिल भारतीय साहित्य परिषद, जमशेदपुर के तत्वावधान में एस टाइप आदित्यपुर स्थित सिंहभूम ब्यॉयज क्लब के काली पूजा पंडाल के प्रांगण में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में शहर के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यान्वेशी शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता मैने की और संचालन दीपक वर्मा जी ने किया। अन्य साहित्यकारों में आदरणीया उमा सिंह किसलय, सोनी सुगंधा, डॉ कुमारी मनिला, माधुरी मिश्रा, उमारानी पांडेय, सूरज सिंह राजपूत, बसंत कुमार, मनीष सिंह वंदन, सोनू पांडेय और जादूगोड़ा से आये बालकृष्ण आजमगढ़ी ने भी मंच की शोभा बधाई।
परिषद की संरक्षिका आदरणीया मंजू ठाकुर व संरक्षक जयंत श्रीवास्तव जी के साथ शशि प्रकाश, प्रकाश मेहता, संजीव सिंह, नीरू सिंह टुडू, संजय चाचरा और उपस्थित आयोजक मंडल के सदस्यगणऔर सुधी श्रोताओं ने कार्यक्रम को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की।
मैंने जो कविता सुनाई उसमें युवाओं को जागने का आह्वान किया गया है। कविता की कुछ पंक्तियाँ मैं दे रहा हूँ। पूरी कविता मेरे यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर जाकर सुने और चैनेल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें। आपके विचार बहुमूल्य है, इसलिए कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य दें। सादर!
ब्रजेंद्रनाथ

जगाने आ रहा हूँ…

लोरियाँ सुन - सुन कर, सो चुके बहुत तुम,
रास के सपनों में, खो चुके बहुत तुम।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।


मैं एक हाथ से उठाके, सूर्य को उछाल दूँ।
मैं चाँद को भींचकर, पीयूष को निकाल दूँ।
धरती की काया है प्यासी,
फैलती जा रही घोर उदासी।
अमृत - रस कण - कण में, बहाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।


सावधान, मिलावटी, मुनाफाखोरों,
सावधान, बेईमानों, रिश्वतखोरों।
शोणित भरे थाल से, काल के कपाल से,
लाल - लाल रक्त – कण, बहाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ,
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।


कौन टोक सकता है, सत्य - सपथ मेरा?
कौन रोक सकता है, विजय - रथ मेरा?
ले मशाल हाथ में, अग्नि - पुंज साथ में,
क्रांति का प्रयाण गीत, गाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।

अनाचार, अत्याचार देख, जो भी चुप रहता है,
उसकी रगों में रक्त नहीं, ठंढा - जल बहता है।
तेरी शिराओं में खून का,
उबाल उठाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।


तेरी नसों में खून, शिवा का महान है।
सोच ले, दबोच ले, यहाँ जो भी शैतान है।
उठा खड्ग तू छेदन कर, ब्यूह का तू भेदन कर।
तेरे साथ शौर्य - गान, गाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत, सुनाने आ रहा हूँ।

तेरी   लेखनी से, सिर्फ प्रेम - रस ही झरता।
तुझे वेब जाल पर, सिर्फ पोर्न ही है दिखता।
जवानी के दिनों को, मत यूँ ही निकाल दो,
मांसपेशियों को कसो तुम, फौलाद - सा ढाल दो।
तुझे मैं सृजनधर्मा, बनाने आ रहा हूँ।
जवानियाँ उठो तुझे, जगाने आ रहा हूँ।
जागरण के गीत सुनाने आ रहा हूँ।
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/x5F773eHvJ0

Saturday, October 26, 2019

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ (कविता )

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#poemondiwali






अंतस का तमस मिटा लूँ

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
गम का अँधेरा घिरा आ रहा है,
काली अंधेरी निशा क्यों है आती?
कोई दीपक ऐसा ढूँढ लाओ कहीं से,
नेह के तेल में  जिसकी डूबी हो बाती।
अंतर में प्रेम की कोई बूँद डालूं,
तब बाहर का दरिया बहाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
इस दीवाली कोई घर ऐसा न हो,
जहां कोई दीया न हो टिमटिमाता।
इस दीवाली कोई दिल ऐसा न हो,
जहाँ दर्द का कोई कण टिक पाता।
गले से लगा लूँ, शिकवे मिटा लूँ,
तब बाहर की दुश्मनी मिटाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
क्यों नम है आंखें, घिर आते हैं आँसू,
वातावरण में क्यों  छायी उदासी?
घर में एक भी अन्न का दाना नहीं है
क्यों गिलहरी लौट जाती है प्यासी?
अंत में जो पड़ा है, उसको जगाकर,
उठा लूँ,   गले  से लगाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
तिरंगे में लिपटा आया  लाल जिसका
कि पुंछ गयी हो, सिन्दूर - लाली।
दुश्मन से लड़ा, कर गया प्राण अर्पण
घर में कैसे सब मनाएं दीवाली?
घर में घुसकर अंदर तक वार करके
दुश्मन को लगाकर ठिकाने चलूँ ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
धुंआ उठ रहा है, अम्बर में छाया,
तमस लील जाये न ये हरियाली।
बंद हो आतिशें, सिर्फ दीपक जलाओ,
प्रदूषण - मुक्त हो, मनाएं दीवाली।
स्वच्छता, शुचिता, वात्सल्य, ममता
को दिल में गहरे बसाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।


तिथि : 18-10-2016
वैशाली, दिल्ली, एन सी आर।

यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/ckW_IQ-EgbQ

Thursday, October 24, 2019

जीने की चाह करें (कविता )

#BnmRachnaWorld

#poemonstreetchild





आओ दोस्तों, थोड़ी अपनी भी परवाह करें,
आओ खेलें, मेल बढ़ाएं, जीने की चाह करें।

कोई हाथ बढ़ाने वाला,
क्या आएगा कभी यहाँ?
कोई हमें थामने वाला,
क्या आएगा कभी यहाँ?

चाह नहीं इसकी अब भी,
पहले भी कभी नहीं रही,
मस्ती में जीवन कटता है,
कभी कमी भी नहीं रही।

ऐसे जीवन में मलंग
भी गीत जीत का गाता है,
कल का किसने देखा है,
आज सूरज से नाता है।

रातें कटती, करते बातें,
कभी चाँद, तो कभी सितारे,
आँखे झँपती, जगी हैं आंतें,
रिश्ते सारे स्वर्ग सिधारे।

ऐसे में क्या सोंचे, क्या कोई गुनाह करें?
मेल बढ़ाएं, खेल बढ़ाएं, चलो जीने की चाह करें।

मेरे मन में जगती आसें,
लहरों पर दौड़ें, पंख फुलाएं,
जंग जीतनी है, जीवन की,
क्षितिज पार से कोई बुलाये। 

वहां प्रेम का दरिया बहता,
ठिठुरन भरी नहीं हैं रातें,
पेट भरे की नहीं है चिंता,
रोज नई दावतें उड़ाते।

कल्लू, जददू, आओ, बैठो थोड़ी तो सलाह करें,
आओ खेलें, मेल बढ़ाएं, जीने की चाह करें।
ब्रजेन्द्रनाथ 

Tuesday, October 22, 2019

माँ तुम्हीं मेरा संबल हो! (कविता)

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#poem spiritual#durgamaa

गत रविवार ता 20 अक्टूबर 2019 को अपराह्न 4 बजे से स्थानीय तुलसी भवन बिष्टुपुर में सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में आयोजित "काव्य कलश" कार्यक्रम में मैनेअपनी कविता "माँ तुम्हीं मेरा संबल हो!" सुनायी। इस समारोह की अध्यक्षता मानद सचिव डॉ नर्मदेश्वर पांडेय जी ने की। इस कार्यक्रम को प्रभात खबर समाचार पत्र के चौथे पृष्ठ पर स्थान मिला है।




मेरी कविता मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net पर मेरी आवाज में सुने, चैनेल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें। तुलसी भवन में काव्य पाठ में शामिल सुधीजनों की तस्वीरों का भी अवलोकन करें:

माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!
पड़ी रहीं जो पगडंडी पर,
पाँव तले हैं कुचली जाती।
मिट्टी टूटकर धूल बनी पर,
पथिक पाँव को वे सहलाती.
माँ, मेरा जीवन भी सार्थक,
काम आये उनके जो विकल हों,
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो।

मेरा चढ़ना, गिरना, उठना,
चल देना तूफानों में,
नीरव वन में, फुंकारों में,
सन्नाटों में, और दहानों में.
पार करूँ मैं उनको हरदम,
साहस मेरा अडिग, अटल हो।
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!


साधन बना मैं, स्वारथ - हित का,
मैं तो ठहरा सीधा- साधा।
लोगों ने रक्खी बंदूकें,
मेरे काँधे पर से साधा।
बचा लिया तूने माँ, मुझको,
तुम्ही बनी मेरा सतबल हो।
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!

मैं चल रहा उन राहों पर,
जहां हैं पंक और फिसलन।
जो गिर पडूँ, उठाना माँ तुम,
सुलझा देना मेरी उलझन।
तुम्हीं मेरे प्राणों में बहती,
धार निरंतर, गंगाजल हो।
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/HAVTZeh1lf8

Sunday, October 6, 2019

जन-जन में रसधार बहा दो (कविता) - माँ दुर्गे पर

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#poemdevotinal#maadurgapoem



















माँ की ममता का विस्तार ही यह सारा जगत है। माँ की ममता से ही अभिलाषाएं पाँव-पाँव चलने लगती हैं। आकाश पुरुष के भाल पर सूरज की पगड़ी सज उठती है। चंद्रमा सुहाग के टीके सा रजनी के भाल पर फब उठता है। नदी लहर-लहर तट पर आकर रेत पर लकीर-लकीर स्वागत गीत लिख जाती है। माँ अपने अमृत कणों की रसधार हमेशा बहाती रहती है। मेरी इस कविता में इन्हीं भावों को स्वर देने का प्रयास किया गया है। आइए दृश्यों का अवलोकन करते हुए इसे सुनते हैं मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर:
कुछ पंक्तियाँ:

जन - जन में रसधार बहा दो...

माँ, अपने अमृत - कणों से,
जन - जन में रसधार बहा दो।

माँ, तुम कितनी प्रेममयी हो!
कृपा तुम्हारी सब पर है,
कुछ बच्चे जो ठिठुर रहे है,
आसमान ही छत है उनका,
घुटने मोड़े किकुर रहे हैं।
उनका भी उद्धार करा दो,
जन - जन में रसधार बहा दो...

माँ, तुम कितनी ममतामयी हो!
वात्सल्य तुम्हारा सब पर है,
अपने घर से निष्कासन हो गया,
जिनका रातों रात सब बिखर गया।
उनके टूटे सपनों को,
फिर से इक आकार दिला दो।
जन - जन में रसधार बहा दो...

माँ, तुम कितनी करुणामयी हो!
लाचारों, बेबसों, शोषितों को,
पीड़ित, ब्यथित, थकित, बंचितों को।
जीवन के संघर्षों में से,
रोशनी का उपहार दिला दो।
जन - जन में रसधार बहा दो...

माँ, तुम कितनी शौर्यमयी हो!
सीमा पर जो डटे प्रहरी हैं,
गोली की बौछारों में जो,
आंधी, बर्फीली, तूफानों में जो,
साँसों और संहारों में जो,
सीना ताने खड़े सजग हैं।
देश नमन करता है उनको,
माँ, उनके अंतस्थल में भी,
शक्ति, वीरत्व, अपार दिला दो।
जन - जन में रसधार बहा दो…

माँ, तुम कितनी विवेकमयी हो!
भटक गए जो सत्य शपथ से,
गिर पड़े जो रश्मि रथ से,
प्रज्ञापुत्र, जो जन्म लिए हैं,
मुंह मोड़ खड़े जो सत्य शपथ से,
उनके मन का विकार मिटा दो।
जन - जन में रसधार बहा दो…

माँ, तुम कितनी आनंदमयी हो!
ध्यान हमें ये सदा रहे,
तेरे चरणों में सिर झुका रहे,
ज्योति - पुँज अंतर में फैले,
तमस हमारा मिटा करे।
मन में स्पंदन हो सुविचारों का,
माँ, ऐसा अहसास करा दो।
जन - जन में रसधार बहा दो...

--ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
 जमशेदपुर,


यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/BT5h3Ub9KO4


Sunday, September 22, 2019

बिजली आती जाती रहने के फायदे (हास्य व्यंग्य निबंध)

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#satire#essay



















बिजली आती जाती रहने के फायदे

इसके पहले कि मैं बिजली 'आती जाती रहने' के फायदे गिनाऊँ, बिजली 'आती जाती रहने' का मतलब समझना जरूरी है।
यह उस क्षेत्र की शोभा है, जहां बिजली उसके तारों में एक बार दौड़ तो गई, लेकिन एक बार दौड़ लगाने के बाद इतनी थक गई है कि अब वह आती है, तो कब जाएगी, इसका इंतजार उपभोक्ताओं को ज्यादा देर नहीं करना पड़ता।
बिजली आती जाती रहने का सबसे अधिक फायदा बच्चों की पढ़ाई को लेकर होता है। बिजली रहने से छोटे बच्चे स्कूल से आते ही टीवी के सामने बैठकर कार्टून चैनेल देखना शुरु कर देते हैं। अब वहीं पर उन्हें लंच, डिनर सबकुछ चाहिये।
बन्द हो जाती है पढ़ाई,
मम्मी अगर टीवी बंद कर पढ़ने को कहती है,
तो शुरु हो जाती है लड़ाई।
शाम को बाहर खेलने भी नहीं जाते। आउटडोर खेल नहीं खेलने से मोटापा बढ़ता है। बढ़ा हुआ मोटापा अपने साथ कई बीमारियों का मूल कारण बनता है।
इन सबों से उबरने का सिर्फ एक उपाय, बस बिजली का प्रवाह निरन्तर नहीं हो।आती जाती रहे।
'आती जाती रहना' या 'आते जाते रहने' का एक और मतलब देखिये या समझिये:
बहुत गहरे अर्थ में यह कथन प्रयुक्त होता है।
जैसे आप किसी दोस्त के यहां जाते हैं। वह आपको अपने घर या फ्लैट की ओर जाने वाले रास्ते के उदगम स्थल यानी कि सीढ़ी या लिफ्ट के पास ही रोक ले, और कहे, "बहुत दिनों बाद मिले। मैं अभी फलाना काम निपटा कर आ रहा हूं। तुम आते-जाते रहना।"
इसका सीधा अर्थ यही हुआ कि अभी तुम आ गये सो आ गये, आगे कभी मत आना।
और अगर आप उसके दरवाजे के पास पहुंच गये और इत्तेफाक से उसीने दरवाजा खोला, आप तो बहुत खुश हो जायेंगे, चलो, आज तो घर पर ही मिल गया। वह आत्मीयता दिखलाते तुरत बोलेगा, "मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था। अचानक एक अर्जेन्ट काम आ गया है। अच्छा मुझे अभी निकलना होगा। तुम आते जाते रहना।"
कहकर वह दरवाजा बन्द करने लगेगा या कर देगा। साफ जाहिर है कि वह आपको 'आते जाते रहना' कहकर इसपर जोर देना चाह रहा है कि इधर कभी नहीं आना या आने का रुख भी नहीं करना।
अब यह आप जैसे घड़ा मानुष के चिकनेपन पर निर्भर करता है कि आप उसके इसतरह दुत्कारने की शरहद तक पहुंचे शब्द सुनाने के बावजूद भी कितना ठहरता है। यानी आप वहां उसका इन्तजार करते हुये थेथरपन के किस हद तक जाते हैं।
बिजली आती जाती रहने से बिजली विभाग उपभोक्ताओं को यह सीधा सन्देश दे रहा होता है कि हम तो ऐसे ही आपूर्ति करेंगें। है आपके पास कोई उपाय तो करके देख लीजिये।
आजादी के बाद पिछले सत्तर सालों से उपभोक्ता इसका आनन्द उठा रहे हैं और आपको तकलीफ हो रही है।
उसका सन्देश साफ है, "बिजली रहेगी, टीवी खोलकर उलुल जलूल षडयंत्र से भरा सीरियल देखियेगा या न्यूज़ चैनलों में पैनल विचार विमर्श के नाम पर कुकुरहाव देखियेगा।
उससे अच्छा है कि स्वयं कुछ लिखिए पढिए, क्रिएटिव बनिये।"
मेरी समझ में इस दृष्टि से बिजली विभाग विद्युत के बाधित वितरण प्रणाली को कायम रखकर उपभोक्ताओं को रचनात्मक बनने का सन्देश दे रही है। इसतरह वह राष्ट्र हित में सबसे युगान्तकारी और क्रान्तिकारी कार्य कर रही है। हम भले उसे कोसें, लानत मलामत भेजें, परन्तु आने वाली नस्लें उसके रचनात्मक योगदान के लिये हमेशा याद करेगी।
आप याद करें महान विद्वान और समाज के दिशा निर्देशक इश्वर चन्द विद्यासागर को। वे बाहर के सडक पर स्थित लैम्प पोस्ट की रोशनी में पढ़ाई किये और विद्वता हासिल के। अगर उनके घर में बिजली होती तो क्या वे कभी इतना संघर्ष कर पाते? क्या उनकी रचनात्मकता इतनी विकसित हो पाती? वे घर में बिजली के पंखे में हवा खाते और आलस्य में अपना समय गुजार देते।
उनके संघर्ष के जज्बे को धार किसने दिया? उन्हें रचनात्मकता का पहला पाठ किसने पढाया? बिजली विभाग ने। उनके घर में बिजली की सप्लाई नहीं देकर।
उससमय अंग्रेजी सरकार थी। सबों को बिजली का कनेक्शन नहीं दिया जाता था। अगर अभी की कोई सरकार होती, जिसे वेलफेयर सरकार भी कहा जाता है, बिजली का मुफ्त कनेक्शन दे देती तो देश और समाज एक विद्यासागर से बंचित रह जाता। यह एक उदहारण है। मुझे समझ में आ गया है कि जहां बिजली की निरन्तर आपूर्ति की जा रही है, वहां कितनी प्रतिभायें विद्यासागर बनने से बंचित रह गयी हैं।
सरकार को फिर से सोचना चाहिये कि बिजली की लगातार सप्लाई राष्ट्र निर्माण के लिये कितना घातक है।
हमें जहाँ बिजली की निरन्तर आपूर्ति नहीं है और जहां बिजली की निरन्तर आपूर्ति की जा रही है, दोनों स्थानों में उभरते प्रतिभाओं की तुलना करनी चाहिये।
तुलना में अवश्य यह बात साफ हो जायेगी कि जहां बिजली की बाधित आपूर्ति है, उस क्षेत्र के रहवासियों में जुगाड़ पर अधारित प्रतिभा के धनी लोग, बालक और बालिकाएं अधिक है।
इसीलिये उर्जा मंत्रालय द्वारा यह आदेश तुरंत निर्गत किया जाना चाहिये की विद्युत की रुक रुक कर आपूर्ति करें। इससे उर्जा की बचत होगी। प्रतिभाओं के विकास में उर्जा विभाग का योगदान राष्ट्र के लिये गौरव की बात होगी।
इसके साइड इफेक्ट यानि अगल बगल या बामपृष्ठ प्रभाव भी दूर गामी और लाभ कारक हैं।
जैसे अगर बिजली आती जाती रहेगी तो उसकी निरन्तर उपलब्धता बनी रहे इसके लिये लोग इन्वर्टर खरीद लेंगें। इन्वर्टर वह यन्त्र है जो बिजली रहने पर बिजली से बैटरी को चार्ज करता है और बिजली चले जाने पर उसी बैटरी से बिजली की आपूर्ति होनी शुरु हो जाती है। इसतरह बिजली की आपूर्ति की निरंतरता बनी रहती है।
इनवर्टर के बनाने से लेकर लगाने और उसके रखरखाव के लिये लोगों की नियुक्तियां होगी। इस तरह बेरोजगारी की समस्या को हल करने में बिजली विभाग का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
शर्त इतनी-सी है कि किसी भी स्थिति में बिजली आती जाती रहे, झलक दिखलती रहे, तो एक नई नवेली चन्द्रमुखी दुल्हन की तरह हमेशा ही दर्शनीय रहेगी वर्ना हमेशा बिजली के प्रकाश में अगर दिखती रहेगी तो चन्द्रमुखी से ज्वालामुखी दिखने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
इसीलिये मेरा उन उपभोक्ताओं को, जिन्हे लगातार बिजली मिलती रहती है, मेरा फ़्री या मुफ्त में सुझाव है कि वे उस क्षेत्र में अपना निवास बदल लें, जिधर बिजली आती जाती रह्ती है। उन्हें वे सारे फायदे अनायास ही प्राप्त हो जायेंगें, जिन्हें मैं ऊपर गिना चुका हूं।
©ब्रजेंद्रनाथ

Monday, September 16, 2019

जिंदगी जीने का सलीका (कविता)

#BnmRachnaWorld
#Inspirationalpoem




आजकल यह देखा जा रहा है कि नकारात्मकता बहुत तेजी से फैल रही है। उसके फैलाने के कारकों की कमी नहीं है। ऐसे में विधेयायात्मक या पॉजिटिव सोच को कायम रखते हुए कैसे बढ़ाया जाए, यह एक बड़ा प्रश्न है। यह खुश रहने से संभव हो सकता है। पर जिन्दगी में खुश रहने के तरीके को कैसे अपनाया जाए ताकि विधेयात्मक चिंतन धारा प्रवाहित रह सके। आज की मेरी कविता का यही विषय है। सुनें:

जिंदगी जीने का सलीका

जिसे खुश रहने का तरीका आ जाता है।
उसे जिंदगी जीने का सलीका आ जाता है।

तूफान में थपेड़ों से नाव डगमगायेगी जरुर,
मौत भी करीब आकर छू जाएगी जरूर।

ऐसे में किश्ती को जो किनारे लगा पाता है।
उसे जिंदगी जीने का सलीका आ जाता है।

कैसे कैसे तूफान आयेंगें तेरे हिस्से में।
तू बदल देना उन्हें जांबाजी के किस्से में।

देखें गुर्वत कब तक तेरे साथ टिक पाता है।
उसे जिंदगी जीने का सलीका आ जाता है।

किसी के सीने में अगर अंकुआते है सपन कई,
कोई जीता है अगर इसी जनम में जनम कई।

उसे ही उड़ान भरने का मौका आ जाता है।
जिसे खुश रहने का तरीका आ जाता है।
उसे जिंदगी जीने का सलीका आ जाता है।

पूरी कविता मेरे यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर सुनें, चैनल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें। आपका विचार मेरे लिए बहुमूल्य है, इसलिए कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य दें। सादर!
Link: https://youtu.be/UHmKYM_d9K4
ब्रजेंद्रनाथ

माता हमको वर दे (कविता)

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