#BnmRachnaWorld
#poeminspirational
सजाये हुये घर को यूं ना बर्बाद करो।
बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है।
फलों से लदे हैं, सुस्वाद से सराबोर हैं।
लचक गयी डाल तो फल टपक जायेंगे
बांटते हैं स्नेह और ममता पोर पोर हैं।
जड़ों को सींचना कभी ना छोड़ना
सोखना आसान है, सींचना कठिन है।
वातावरण में ब्याप्त हो रहा कोलाहल है,
विष वमन हो रहा, फैल रहा हलाहल है।
क्या हो गया है, हर ओर क्यों शोर है?
कोई तो हो, जो सोचे, क्या फलाफल है?
इस यज्ञ में, दें अपनी आहुति, मिट जाएं,
अब मिटना आसान है, जीना कठिन है।
सजाये हुए घर को यूं ना बिखराओ
कि बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है।
#poeminspirational
बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है
सजाये हुये घर को यूं ना बर्बाद करो।
बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है।
एक महल जो दे रहा चुनौती
उंचे गगन में सिर उठाये तना है।
उसकी नींव में पलीता लगाओ मत
कितनों की पसीने की बूंद से बना है।
उसको हवाले मत करो आग के,
जलाना आसान है, बुझाना कठिन है।
उंचे गगन में सिर उठाये तना है।
उसकी नींव में पलीता लगाओ मत
कितनों की पसीने की बूंद से बना है।
उसको हवाले मत करो आग के,
जलाना आसान है, बुझाना कठिन है।
सम्बन्धों की सेज पर खुशबुओं को
सुगन्ध भरे फूलों से खूब महकाना है।
पूर्वाग्रहो के हर्फों से उकेरी गयी चादर को
सरहद के पार कहीं दूर फेंक आना है।
रिश्तों की डोर को, हवाले मत करो गांठ के
कि तोड़ना आसान है, जोड़ना कठिन है।
पेड़ की डालों को ऐसे झुकाओ मतसुगन्ध भरे फूलों से खूब महकाना है।
पूर्वाग्रहो के हर्फों से उकेरी गयी चादर को
सरहद के पार कहीं दूर फेंक आना है।
रिश्तों की डोर को, हवाले मत करो गांठ के
कि तोड़ना आसान है, जोड़ना कठिन है।
फलों से लदे हैं, सुस्वाद से सराबोर हैं।
लचक गयी डाल तो फल टपक जायेंगे
बांटते हैं स्नेह और ममता पोर पोर हैं।
जड़ों को सींचना कभी ना छोड़ना
सोखना आसान है, सींचना कठिन है।
वातावरण में ब्याप्त हो रहा कोलाहल है,
विष वमन हो रहा, फैल रहा हलाहल है।
क्या हो गया है, हर ओर क्यों शोर है?
कोई तो हो, जो सोचे, क्या फलाफल है?
इस यज्ञ में, दें अपनी आहुति, मिट जाएं,
अब मिटना आसान है, जीना कठिन है।
सजाये हुए घर को यूं ना बिखराओ
कि बिखेरना आसान है, समेटना कठिन है।
©ब्रजेंद्रनाथ