#BnmRachnaWorld
#poemdowntrodden
गत रविवार, 17 नवम्बर को नरवा पहाड़, जादूगोड़ा माइंस के शिव मंदिर परिसर में सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन, तुलसी भवन जमशेदपुर और साहित्य संगम जादूगोड़ा के संयुक्त तत्वावधान में कवि सम्मेलन सह वनभोज का आयोजन किया गया। इसी दिन बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के लिए खेल भी आयोजित किये गए। आप उसी समय ली गयी तस्वीरों का अवलोकन करें। इसमें प्राकृतिक छटा का दर्शन भी करें। इसमें आयोजित कार्यक्रम में पधारे गण्यमान्य अतिथियों और भाग लेने वाले कवियों एवं कवित्रियों के साथ उनके परिजनों को भी वन विहार में भाग लेते हुए देख सकते हैं।
मैंने जो कविता सुनायी उसके कुछ अंश यहाँ दे रहा हूँ। उस समय का वीडियो भी यहाँ देखें और अपने विचार अवश्य दें।
वंचितों की दुनिया
वंचितों की दुनिया में जिंदगी सहमी हुई है।
नीम अंधेरों में जैसे कोई रोशनी ठहरी हुई है।
गले में तूफ़ान भर लो, चीखें सुनाने के लिए,
शोर में दब जाती है, गूंज भी गूंगी हुई है।
मगरमच्छ हैं पड़े हुए उस नदी में हर तरफ,
जो खुशियों के समन्दर तक पसरी हुई है।
आह उठती है यहाँ, और पत्थरों से बतियाती है।
लहरों से टकराते हुए, ये नाव जर्जर सी हुई है।
रेगिस्तां की आंधियों में इक दिया टिमटिमाता है,
लौ थी थरथराती हुई, अब जाकर स्थिर हुयी है।
खुशबुएँ सिमट कर, किसी कोने में नज़रबंद थीं,
उड़ेंगीं अब, हवाओ के पंख में हिम्मत भरी हुई है।
उम्मीदों के फ़लक पर आ गयी है जिंदगी,
सपनों के जहाँ की नींद भी सुनहरी हुयी है।
वंचितों की दुनिया भी अब है उजालों से भरी,
नीम अंधेरों में भी अब रोशनी पसरी हुयी है।
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/7zEqv_jNu0I
#poemdowntrodden
गत रविवार, 17 नवम्बर को नरवा पहाड़, जादूगोड़ा माइंस के शिव मंदिर परिसर में सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन, तुलसी भवन जमशेदपुर और साहित्य संगम जादूगोड़ा के संयुक्त तत्वावधान में कवि सम्मेलन सह वनभोज का आयोजन किया गया। इसी दिन बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के लिए खेल भी आयोजित किये गए। आप उसी समय ली गयी तस्वीरों का अवलोकन करें। इसमें प्राकृतिक छटा का दर्शन भी करें। इसमें आयोजित कार्यक्रम में पधारे गण्यमान्य अतिथियों और भाग लेने वाले कवियों एवं कवित्रियों के साथ उनके परिजनों को भी वन विहार में भाग लेते हुए देख सकते हैं।
मैंने जो कविता सुनायी उसके कुछ अंश यहाँ दे रहा हूँ। उस समय का वीडियो भी यहाँ देखें और अपने विचार अवश्य दें।
वंचितों की दुनिया
वंचितों की दुनिया में जिंदगी सहमी हुई है।
नीम अंधेरों में जैसे कोई रोशनी ठहरी हुई है।
गले में तूफ़ान भर लो, चीखें सुनाने के लिए,
शोर में दब जाती है, गूंज भी गूंगी हुई है।
मगरमच्छ हैं पड़े हुए उस नदी में हर तरफ,
जो खुशियों के समन्दर तक पसरी हुई है।
आह उठती है यहाँ, और पत्थरों से बतियाती है।
लहरों से टकराते हुए, ये नाव जर्जर सी हुई है।
रेगिस्तां की आंधियों में इक दिया टिमटिमाता है,
लौ थी थरथराती हुई, अब जाकर स्थिर हुयी है।
खुशबुएँ सिमट कर, किसी कोने में नज़रबंद थीं,
उड़ेंगीं अब, हवाओ के पंख में हिम्मत भरी हुई है।
उम्मीदों के फ़लक पर आ गयी है जिंदगी,
सपनों के जहाँ की नींद भी सुनहरी हुयी है।
वंचितों की दुनिया भी अब है उजालों से भरी,
नीम अंधेरों में भी अब रोशनी पसरी हुयी है।
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/7zEqv_jNu0I