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Friday, December 28, 2018

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की विशेष गोष्ठी, 27-12-18

#BnmRachnaWorld





27-12-2018 की शाम मेरे लिए खास बन गयी जब मैंने हिन्दी साहित्य और हिन्दी काव्य के देदीप्यमान हस्ताक्षर , अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संगठन मंत्री आदरणीय डा संजय पंकज जी को अपनी कार में लेकर आदरणीया मन्जू ठाकुर जी के आदित्यपुर एस टाइप मोड़ स्थित निवास स्थान पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद की विशेष बैठक सह लिटि पार्टी सह काव्य गोष्ठी के लिये लेकर पहुँचा। वहाँ आ शैलेन्द्र पाण्डेय शैल जी की अध्यक्षता और अभय सावंत तथा हुलास के संस्थापक आ चावला जी की विशिष्ट उपस्थिति रही। आ मन्जू ठाकुर जी के आतिथ्य ने सबों को अभिभूत कर दिया। बैठक में आ डा संजय पंकज जी ने संगठन के उद्देश्यों और आगे के रोड मैप को रेखांकित करते हुए, झारसुगुड़ा में होने वाले सम्मेलन में भाग लेने का आहवान किया। इसी अवसर पर मैने भी अपनी रचना
"एकलव्य कह रहा,,," का पाठ किया। उसकी कुछ पन्क्तियाँ मैं नीचे दे रहा हूँ।
इसी अवसर पर मैने डा संजय पंकज जी को अपनी पुस्तक "डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" भेंट की। उसी समय की कुछ तस्वीरें यहाँ पर देते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है।
कविता की कुछ पंक्तियाँ:
मुक्त छन्द--------------------

एकलब्य कह रहा,
अपने गुरु से:
मैं समझता हूँ
उस गुरु की वेदना को,
अंतर्द्वंदों में छलनी होती
टूटते सिद्धान्तों और आचार संहिताओं की
विवशताओं से निर्धारित होती
जीवन यापन की परिकल्पना को।

जिस गुरु को अपनी ही संतान के लिए,
आंटे के घोल को रंग दे सफ़ेद
आभास देना पड़ा हो दुग्धपान के लिए।
जिस गुरु को सर्वश्रेष्ठ धनुर्विद्या में
निष्णात होने के उपरांत भी,
अपनी संतान को पिलाने को दूध,
मांगनी पड़ी हो अपने ही परम मित्र से,
कम - से - कम एक गाय की भिक्षा।
जिसे अपमान का दंश
विवशताओं के विषदंत
के बीच देनी पड़ी हो
परिवार के पालन की घोर परीक्षा।

उस गुरु के दरबारी गुरु
में बदल जाने में बहुत कुछ
भीतर - भीतर मरा है।
बहुत कुछ भीतर- भीतर
मारना पड़ा है।
×××××××××
पूरी कविता इस लिन्क पर पढें
marmagyanet.blogspot.com/2018/09/blog-post.html?m=1




Monday, December 17, 2018

अमेरिका डायरी, 51 वाँ और 52 वाँ दिन(Day 51,52)

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23-08-2018, इरवाइन, यू एस ए में 51 वाँ दिन (Day 51):
इस शहर का इतिहास इस क्षेत्र के "Gold Rush" (सोने के लिये दौड़) से शुरु होता है। विपुल वैभव और अकूत धन की खोज में 1849 ई में आये लोगों ने San Francisco के Banicia में अपना बसेरा बनाया था। उसी समय यहाँ की आबादी 1000 से 25000 हो गयी थी। अकूत अर्थ की चाहत इतनी अधिक थी कि समुद्री जहाजों से आये यात्रियों ने जहाजों को यूँ ही छोड़ दिया और सोने के खान की ओर सोना लूटने दौड़ पड़े थे। इस तरह SFO के बन्दरगाह पर करीब 500 जहाज वीरान छोड़ दिए, जिन्हें बाद में storeships hotel और Saloons के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। कई जहाजों के लिये वह स्थान कब्रगाह बन गया। बाद में जब वहाँ पर इमारतें खड़ी करने के लिए खुदाई होती थी, तो उन जहाजों का मलबा वहाँ पड़ा मिलता था। 1870 ई में Yerba Buena Cove क्षेत्र को भरकर, समुद्र के तट पर इमारतों कौ खड़े करने के लिए उस स्थान का नींव के रूप में उपयोग किया गया।
1850 ई में जब कैलिफोर्निया को राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ, तब US Golden Gate के दक्षिण में Sea Coast San Francisco Bay कीकी हिफाजत के लिए Fort Point का निर्माण किया गया था। यह किला American Civil War, जो US Army के द्वारा बाहर से आक्रमणकारी जहाजों से Bay Area की सुरक्षा के लिये हुआ था, के ठीक पहले बनकर तैयार हुआ ठा। अभी यह किला एक राश्ट्रीय ऐतिहासिक स्मारक के रूप में संरक्षित है। यहीं पर Golden Gate Recreational Area भी बना हुआ है।
San Francisco Bay की सुरक्षा के लिए समुद्र के बीच एक विशालकाय विस्तृत चट्टान नुमा Alcatrez Island पर भी एक किला बनाया गया।
Nevda राज्य के Comstock Lode में 1859 ई में Eastern Slope of Mount Davidson की ओर सिल्वर अयस्क (चांदी की खान), के मिलने पर यहाँ की आबादी में तेजी से इजाफा हुआ। इसतरह अपनी किस्मत आजमाने और उसे बुलंद बनाने वाले लोगों की बढ़ती भीड़ के कारण कानून ब्यवस्था की स्थितियाँ बिगड़ती चली गयीं। इस तरह शहर का Barbary Coast आपराधिक गतिविधियों, वेश्या और देह ब्यापार तथा जुआ का केन्द्र बन गया। क्रमशः

24-08-2018, इरवाइन, यू एस ए, 52 वाँ दिन (Day 52):
1849 ई में Gold Rush और 1859 ई में Nevda के Mount Davidson के पूर्वी ढलान से नीचे के क्षेत्र में चाँदी की खानों से इस क्षेत्र में जो समृद्धि आयी, उसे उद्योगपतियों ने ब्यापार के लिए नए मौके के रूप में देखा। शुरु के समय में बैंकिंग उद्योग ने इस क्षेत्र में पहलकदमी की। इसतरह Walls Fargo (1852 ई) और Bank of California (1864 ई) की स्थापना हुयी। 1869 ई में San Francisco बन्दरगाह US के रेल का महकमा Pacific Rail Road के बन जाने के बाद, रेल सुविधा से जुड़ने से यह क्षेत्र ब्यवसाय का मुख्य केंद्र बन गया। बढ़ती आबादी की और रुझान के अनुसार Levi Strauss नए एक Dry goods business और Doniango Ghiradalli ने चॉकलेट बनाने के लिये निर्माण केंद्र की स्थापना की।
बाहर से आये कामगारों से इस शहर में मिश्रित भाषी (polyglot) या बहुभाषीय संस्कृति का विकास हुआ। इसी के अन्तर्गत चाइना टाउन क्षेत्र का निर्माण हुआ। आज भी यह क्षेत्र उत्तरी आमेरिका में चाइनीज़ आबादी का सबसे बड़ा क्षेत्र है। 1870 ई तक यहाँ की एशियन आबादी करीब 8% हो गयी थी।
कहा जाता है कि 1893 ई मेँ यहाँ पहला केबल कार, clay street hill को तय करने के लिए सन 1873 ई में चलायी गयी थी। इसे किसने चलाया, इसके बारे में विवाद है, जिसकी चर्चा हम दूसरे दिन के पन्ने पर करेंगें।
उसी समय Victorian Houses जो रानी विक्टोरिया के समय में एक पंक्ति में  बने एक ही तरह के वास्तु के अनुसार बने घर थे, बनने शुरु हुए। आबादी जब बसनी शुरु हुयी तो स्थानीय नेताओं ने एक बड़े पार्क की माँग रखी। इसके बाद ही Golden Gate Park की योजना बनी।
क्रमशः  

Thursday, December 13, 2018

डा कमलकांत लाल से अविस्मरणीय मुलाकात, 13-12-2018

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#mulakaat#famous#personality


मित्रों, अपने ब्यस्ततम ब्यवसाय से भी कुछ समय को चुराकर पुस्तकों के प्रति अपने प्रेम, चाहे वह लेखन हो या पठन पाठन बहुत कुछ किया जा सकता है, इसे साबित कर दिखाया है, इसी जमशेद्पुर  शहर के प्रसिद्ध डाक्टर कमल कान्त लाल जी ने।  अपने आकाशदीप प्लाजा, गोलमुरी स्थित क्लिनिक में मरीजों का इलाज भी करते हैं और उसी क्लीनिक से सटे हुए संग्रहनीय साहित्यिक और वैचारिक पुस्तकों की लाइब्रेरी सह बिक्री केंद्र मे वे  मस्तिष्क के खुराक के लिये पुस्तकें भी उपलब्ध करवाते हैं। आज अपराह्न डेढ़ बजे अल्पावधि मुलाकात में ही  उनसे जो आत्मीयता स्थापित हुयी उसे स्थायी बनाने के लिये मैने इसी वर्ष जनवरी में दिल्ली पुस्तक मेले में लोकार्पित अपना उपन्यास " डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन"  उन्हें भेंट की, और उन्होने भी अपना लिखा उपन्यास "अपराध बोध"  मुझे दिया। उसी समय ली गयी सेल्फी साझा करते हुए मैं आहादित हूँ, आनंद विभोर  हूँ। सादर!

Monday, December 10, 2018

''कविता, कल आज कल" के लोकार्पण पर ता ९-१२-१८ को मुख्य वक्ता के रूप में मेरा वक्तब्य

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कविता, कल आज कल के लोकार्पण पर ता ९-१२-१८ को मुख्य वक्ता के रूप में मेरा वक्तब्य

सम्माननीय मंच पर  मौजूद अध्यक्ष श्री श्यामल सुमन जी, मुख्य अतिथि विशिष्ट पत्रकार डी  इस आनंद जी, आदरणीया मंजू ठाकुर जी, मंचस्थ विशिष्ट अतिथि आ ज्योत्सना अस्थाना जी, मंजू ठाकुर सम्मान से सम्मानित शिक्षाविद आ अनीता शर्मा जी, और मुख्य वक्ता के रूप में  मैं, डा आशा गुप्ता, डा मनोज आजीज, आ सीता सिंह जी और मंच संचालिका आ कल्याणी कबीर जी, तथा इस होटल बुलेवर्ड के सभागार में उपस्थित साहित्यान्वेषी बन्धुगण और मातृशक्ति:

तारिख 09-12-2018 को  मुकेश रंजन जी के द्वारा सम्पादित "कविता" पत्रिका के विमोचन और लोकार्पण में मुख्य वक्ता के रूप में मेरा अभिभाषण:
स्थान: बुलेवर्ड होटल, बिस्टुपुर, जमशेदपुर
सम्माननीय मंचस्थ.............

प्रिय मुकेश जी के भागीरथ प्रयत्न से "कविता" पत्रिका का महिला रचनाकारों पर यह विशेषांक आपके हाथों में है| यह पत्रिका पिछले नौ वर्षों से कभी अर्धवार्षिक और अभी वार्षिक रूप में प्रकाशित होकर अपना वजूद बनाये हुए है| किसी भी साहित्यिक पत्रिका की यह यात्रा, विभिन्न अवरोधों, मोड़ों और कुछ तीखे मोड़ों और ठहरावों से होती हुई अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कर रही है, यह मुकेश के अनवरत परिश्रम और उनके सार्ह जुड़ी साहित्यकारों की सम्पादक मण्डल के द्वारा प्रदत्त मार्गदर्शन को जाता है।
मुझे यह पत्रिका मुकेश जी ने एक सप्ताह पूर्व दी थी| मैंने इसके अतिसाधारण आवरण पृष्ठ को देखा| सहसा विशवास ही नहीं हुआ की यह पत्रिका है| मुझे तो यह लघु पुस्तिका जैसी लगी| आवरण की रूप सज्जा की यही सरलता इसे सहज और विशिष्ट बनाती है| इसका  पता मुझे तब  लगा जब मैंने इसके अंदर झांकने का क्रम शुरू किया| अंदर भी कोई तामझाम नहीं, कोई रंगीन तस्वीर नहीं| परन्तु इसके शब्दों और पंक्तियों से गुजरने पर जितने रंग उभरते हैं वो पन्नों के रंगीन बनाने से संभव नहीं थे| मुकेश जी ने अपने सम्पादकीय  वक्तव्य में इसे इंद्रधनुष का आठवां रंग कहा है| विज्ञान के लोग इंद्रधनुष के आठवें रंग की खोज करेंगें, पर साहित्य  की विधा में आठवे रंग की अभिब्यक्ति तो हो ही गयी है| अतिथि सम्पादक आदरणीया कल्याणी जी ने सही कहा है कि इसके पीछे यानि इस पत्रिका के आठवे रंग को उकेरने के पीछे खड़ा है, "मुकेश का बुलंद हौसला, साहित्य से जुड़े रहने की जिद और कुछ अलग करने की ख्याहिश|"
मुझे गुरु नानक जी के जीवन का एक प्रसंग याद आ रहा है:
एक बार गुरु नानकदेव जी अपने कुछ शिष्यों के साथ किसी गाँव में गए| वहाँ उन्होंने उपदेश दिए| गाँव के लोगों ने उनकी खूब आवभगत की| उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम यहीं पर खूब बढ़ो, तरक्की करो|
इसके बाद वे एक दूसरे गाँव में गए| वहाँ के लोगों ने उनकी गुरुवाणी सुनी| उसे जीवन में उतारने का संकल्प लिया| वे उनकी और उनकी मंडली का उतना  सत्कार नहीं कर सके जितना कि पिछले गाँव वालों ने किया था| जब वे वहां से चलने लगे, तो उस गाँव वालों को उन्होंने आशीर्वाद दिया कि तुमलोग बिखर जाओ| अब उनके शिष्यों को चौंकने की बारी थी| उनके एक शिष्य ने उनसे पूछा, "गुरु जी, जिन गाँव वालों ने आपके उद्देश्यों को जीवन में उतारने का संकल्प लिया उसे आपने बिखर जाने का आशीर्वाद दिया जबकि उन गाँव वालों को जिन्होंने आपकी खूब आवभगत की और आपके उपदेशों  पर अमल करने का संकल्प नहीं ब्यक्त किया,  उसे आपने खूब बढ़ने का आशीर्वाद दिया| ऐसा क्यों, गुरूजी?"
गुरुनानक देव जी ने जवाब दिया, "मैंने पहले गाँव वालों को जिन्होंने सिर्फ आवभगत में ही रूचि दिखलाई,  उनको मेरे उपदेशों में कोई रूचि नहीं थी, उससे कोई मतलब नहीं था| उन्हें अपने गाँव में ही रहकर खूब बढ़ने का आशीर्वाद दिया| ऐसे लोगों को एक ही जगह पर सीमित रहना ज्यादा अच्छा है|
दूसरे गाँव वालों को, जो हमारी आवभगत उतनी नहीं कर सके जितनी पहली गाँव वाले ने की थी, परन्तु मेरे उपदेशों को आत्मसात किया और उन्हें अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया, उन्हें  मैंने बिखर जाने का आशीर्वाद दिया, क्योंकि अगर वे मेरे उपदेशों को आचरण में स्थापित करते हुए बिखर जायेंगें यानि फैलेंगे, तो वे मेरे उपदेशों को सारी दुनिया में फैलाएंगे|”
आप सभी रचनाकार अपनी - अपनी सीमा रेखाओं से परे साहित्य  की सुगंध फैलाने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं | यह बहुत बड़ी बात है| इसपर  अपनी लिखी कुछ पंक्तियों मैं उद्धृत करना चाहता हूँ:
लताओं पर कलियों को लचकने तो दो,
शाखों पर परिंदों को चहकने तो दो|
आज खुशबुओं को कैद मत करो,
उसे फिजाओं में फैलकर कर महकने तो दो|
कल की कल देखी जाएगी दोस्तों,
आज इस शाम चाहतों को मचलने तो दो|
आप सबों को इस कार्यक्रम के धागे में पिरोकर "कविता"पत्रिका के माध्यम से एक मंच पर लाकर खड़ा किया गया है| इसका श्रेय मुकेश का पूर्वाग्रह होना और सम्पादक मंडल के दिशा निर्देशन को जाता है | "कविता, कल आज कल" में आपका साक्षात्कार जमशेदपुर के सात महिला रचनाकारों और जमशेदपुर के बाहर मुजफ्फरपुर की एक रचनाकार से होगा| इन रचनाकारों की समीक्षा हिंदी साहित्य के लब्धप्रतिष्ठ सख्शियतों  द्वारा की गयी है|
जैसे आ प्रेमलता ठाकुर के रचना संसार पर माधुरी  मिश्रा ने समीक्षा लिखी है| आ पद्मा मिश्रा के साहित्य संसार के  बारे में डा मनोज "आजिज" ने विश्लेषण किया है| आ अनीता शर्मा जी की रचनाओं पर डा कल्याणी कबीर की समीक्षा आयी है| आ अनीता सिंह "रूबी" के बारे में प्र प्रसिद्ध साहित्यविद डा सी भास्कर राव ने लिखा है | आ उमा सिंह "किसलय" के बारे में वीणा पांडेय "भारती" ने अपने उदगार ब्यक्त किये हैंमुजफ्फरपुर की आ मीनाक्षी मीनल और आ सोनी सुगंधा का परिचय प्रिय मुकेश रंजन ने करवाया है| आ सरिता सिंह के साहित्य संसार की समीक्षात्मक प्रस्तुति आ ज्योत्सना अस्थाना ने की है| सारे महिला रचनाकारों की प्रतिनिधि कविताओं को भी इसमें सम्मिलित किया गया है| आप अगर उन कविताओं को पढेंगें तो आपको कहीं रिश्तों की रिमझिम सेतो कहीं रीतेपन से, समाज की विद्रूपताओं से कहीं स्त्री विमर्श के लिए तैयार आगे बढ़ती नारी से, कहीं नए आकाश की और उड़ान भरने को आतुर  नारी सेतो कहीं अपने वजूद को पुन: परिभाषित करती नारी से परिचय पा सकेंगें| जैसे-जैसे आप इन कविताओं में रमते हैं, आप पाते हैं कि ''माँ, मैं जीना चाहती हूँ" की पुकार लगाती नारी "देह, देहरी से  बँधकर दंश" झेलने को तैयार नहीं है, वह लक्ष्मी, इंदिरा, टेरेसा, तस्लीमा और मलाला  युसुफजाई बनकर आसमान छूना चाहती है| इसलिए
"जब विद्या बालन' की देह
संभाल रही होती - 'डर्टी  पिक्चर की कमान'
और दर्शक सीटियाँ मारते नहीं,
सिसकियाँ भरते सिनेमाघरों से बाहर निकलते हैं
तो पहली बार लगता है
औरत का मतलब 'एंटरटेनमेंट' नहीं होता |"
इन कविताओं में बरसाती नदी का उफान नहीं है, एक नीरव बहती धार है| लेकिन इस धार के अंदर उष्मा है, धाह है, गर्मी है| मुझे याद आता है  "बंदिनी" और "आनंद" फ़िल्में देखकर खामोशी से, चुपचाप बाहर आते दर्शक| ये कवितायें भी उसी प्रकार की है| ये  मंचीय कवितायें नहीं कही  जा सकती, जहां कविताओं के शब्दों को तोड़ा और मोड़ा जाता है, ताकि तालियाँ बटोरी जा सके| इन कविताओं से गुजरने के बाद आप कुछ कुछ खामोश हो जाते हैं, अंतर्मुखी हो जाते है, चुपचाप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं
अब मैं इसमें कुछ स्वकथन को जोड़ना चाहूँ तो कहूंगा:
'नहीं होता औरत माने 'बोल्ड और बेवाक' रूप में चित्रित या प्रस्तुत किया जाना | इसे सती - विमर्श से नहीं जोड़ा जा सकता| चली आ रही दस्तूरे, रवायतें, दकियानूसीपन ही नहीं होती | अब वह युग फिर आएगा जब हम इंटरनेट पर बिखरे पोर्न में सौंदर्य को न ढूँढ़कर 'कामायनी, उर्वशी और अभिज्ञान शाकुंतलम' में श्रृंगार ढूढ़ेंगें | इसका दायित्व समाज को दिशा देने वाले हम साहित्यकारों पर आ जाता है| समाज की विद्रूपताओं को हमेशा आवरणहीनता से ही जोड़कर नहीं दिखाया जाना चाहिए| यह मशहूर हो जाने एक फार्मूला भले ही लगे, लेकिन यह साहित्य को दिशा देना नहीं कहा जा सकता|

धन्यवाद|



माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...