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Friday, July 30, 2021

पाठकों से मन की बात भाग 6 (लेख):

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#पाठकों से मन की बात

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पाठकों से मन की बात भाग 6:
परमस्नेही प्रबुद्ध पाठक और कलमकार मित्रों,
पिछले "पाठकों से मन की बात" में मैने कहानी लेखकों को अच्छे साहित्यकारों की कहानियों को पढ़ने का आग्रह किया था, जिसका अनुमोदन आ दामिनी, आ गरिमा मिश्रा और आ सरोज सिंह जी ने भी किया था। आ ब्रजमोहन पाण्डेय जी और आ संतोष जी की भी सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई। लेखक सारी मेहनत और शोध कर अपनी रचना प्रस्तुत करता हो, और उसे पाठक से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती हो तो लेखक क्या करे? लेखक कुछ नहीं कर सकता। नाराजात्मक और नकारात्मक प्रतिक्रिया तक तो ठीक है, लेकिन प्रतिक्रियाएं जब शालीनता और संयमशीलता की हद पार करती हुई लगे तो आप क्या करें? 
हम समझ सकते हैं कि हर पाठक की रुचि साहित्य में नहीं होती, तो वह ★ या  ★★ रेटिंग देकर छोड़ देंगे। यह भी आप बर्दास्त कर लेते हैं। अगर आप अपनी रचनाओं में साहित्य का समावेश करते हैं, और पाठक अगर उसे नहीं समझ पाता है तो उसकी प्रतिक्रियाएं क्या होंगी?  कुछ उदाहरण:
"आप कहानी को बहुत तल रहे हैं , सर" , "समय बर्बाद किया है, प्रतिलिपि में आप जैसों को क्यों लिखने दिया जाता है?" " बहुत ही घटिया लिखा है , आपने।" आदि, इत्यादि।
आपने सचमुच मेहनत कर, आधी रातों को शांत वातावरण में जागकर, पात्रों के स्वरूप और घटनाओं में खुद को ढालकर, उनकी  भावनाओं में डूबकर प्रस्तुत किया है, तो आपको कितना गुस्सा आएगा, आपकी धमनियों में  रक्त का दबाव अवश्य बढ़ जाएगा।  इसपर मेरी  दो राय है: एक :लेखक के रुप में आप तुरंत अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करें।
दो: आप अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इतना ही लिखें कि आपकी शिकायत सही हो सकती है। आप मेरे मेल आई डी पर अपनी शिकायत विस्तार से लिख भेजें, मैं आपकी शिकायत दूर करने की कोशिश करूंगा। शायद उनकी शिकायत कभी नहीं आएगी। ऐसी प्रतिक्रियाएं वे ही पाठक देते है, जिन्होंने कभी न अच्छा साहित्य पढ़ा होता है और न लिखा होता है।
एक बात और : हर लेखक अपनी रचना के अंत में अवश्य लिखें: " पाठकों की  शालीन और साहित्यिक भाषा में संयमित प्रतिक्रिया का हृदय से स्वागत है। आप अपने बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं।"
अगले अंक में: पाठक को, अगर किसी रचना को पढ़ने के बाद लगे कि यह स्तरहीन है, तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए?
अपना और अपनों का ख्याल रखें, सुरक्षित रहें।

©ब्रजेन्द्रनाथ

Saturday, July 24, 2021

पाठकों से मन की बात भाग 5 (लेख)

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पाठकों से मन की बात भाग 5:

परमप्रिय स्नेही प्रबुद्ध पाठक और कलमकार मित्रों,
पिछले "पाठकों से मन की बात" में मैंने पाठकों से नीर क्षीर विवेकी होकर सत्साहित्य के चयन का उत्तरदायित्व निभाने की बात कही थी। इसपर आ उषा वर्मा जी, आ दामिनी जी, आ गरिमा मिश्रा जी , आ प्रीतिमा भदौरिया जी, और आ संतोष साहू "संतो" जी की जीवंत और सारगार्भित प्रतिक्रिया प्राप्त हुई। आ उषा वर्मा जी ने सही लिखा है कि  लेखकों से यही अपेक्षा है कि वे उत्तरोत्तर लेखन के कथ्य और शिल्प की सूक्ष्मता को परखें और स्तरीय सामग्री देने का प्रयास करें।
कथा शिल्प सिर्फ घटनाओं का विवरण और उसका रिपोर्ट जैसा नहीं होता है। कथा शिल्प में हर सम्वाद के पीछे उस पात्र की और सामने जिससे वह संवाद रत है, उसकी मनोभावनाओं की भी अभिव्यक्ति की अपेक्षा होती है। इसमें लेखक की अपनी परोक्ष टिप्पणी भी साथ - साथ चलती है। लेखक संवेदना को प्रभावी बनाने के लिए वातावरण का भी सहारा लेता है। उदाहरण के लिए अगर पात्र या पात्रों के मन में उल्लास होगा, तो उसे का उन्हें सुबह का सूर्य विहंसता हुआ अपने चेहरे पर फैली लालिमा को क्षितिज पर बिखेर कर उसे लाल करता दिखाई देगा।
अगर पात्रों के मन में उदासी होगी तो लगेगा कि सूरज रात भर जागा है, उसकी आंखें लाल है, वही लालिमा क्षितिज पर फैल रही है। इस तरह की उपमाएं कहानी को नई ऊँचाई प्रदान कर सकते हैं। इसके लिए लेखकों को साहित्य जगत के प्रसिद्ध कथाकारों, जैसे अज्ञेय, निर्मल वर्मा, हिमांशु जोशी, नरेंद्र कोहली को पढ़ना चाहिए।
पाठकों को भी अपनी रुचि को वैसी कहानियों और कथाकारों की रचनाओं से  जोड़ना चाहिए।
एक और संवाद के साथ जुड़ते है, अगले शुक्रवार को:
©ब्रजेन्द्रनाथ

Saturday, July 17, 2021

पाठकों से मन की बात भाग 4 (लेख)

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पाठकों से मन की बात भाग 4:
परम प्रिय प्रबुद्ध पाठकगण,
मैंने अपने पिछले वक्तव्य में "व्यूज और लाइक्स में फंसा सद्साहित्य" शीर्षक से अपने विचार व्यक्त किये थे। इसपर परम स्नेही आ सरोज सिंह जी, प्रीतिमा भदौरिया, गरिमा मिश्रा और रितेश कुमार बरनवाल "आर्य" जी की प्रतिक्रिया प्राप्त हुई। मुझे खुशी हुई कि मेरे इस लेख ने इस युग में तुरत सफलता पाने की लक्ष्य पूर्ति के लिए कृत्रिम रूप से वाहवाही प्राप्त करने के सोशल मीडिया के तिलस्म से सावधान रहने की जरूरत का आपने भी समर्थन किया है। इस युग में जब बाजार हावी है, उसके प्रभाव को स्वीकार करते हुए और झेलते हुए , पाठकों को नीर - क्षीर को विलग करने की विवेकशीलता के प्रति और भी उत्तरदायी बनाता है। उसी तरह लेखक का भी कर्तव्य होता है कि वह प्रचलित कंटेंट से अधिक परिष्कार युक्त कंटेंट प्रस्तुत करने पर ध्यान दे। इसके लिए हो सकता है कि उसे अधिक शोध करना पड़े, अधिक रातों को जागते हुए बिताना पड़े, अधिक साहित्य का अध्ययन करना पड़े, उसे जिसे अंग्रेजी में कहते हैं न "एक्स्ट्रा माइल" , चलना पड़े।
प्रतिलिपि का अधिकांश पाठक वर्ग प्रबुद्ध है, इसीलिए कोई भी लेखक को इससे जुड़ने पर गर्व महसूस होता है। जब आप किसी भी कंटेंट पर अच्छा कमेंट लिखकर भी ★ या ★★ स्टार देते हैं, तो बात समझ में नहीं आती। आप लेखक की रचना के किस भाग को और बेहतर देखना चाहते है, उसे अवश्य अंकित करें। यह एक स्वस्थ संवाद की प्रक्रिया है, जिसे लेखकों को भी स्वीकार करना चाहिए। लेखकों को अपनी अभिव्यक्ति में शब्द साधना के स्तर को उत्तरोत्तर उत्कर्ष की ओर ले जाना चाहिए। पटल पर डालने के पहले उसे अच्छी तरह संशोधित कर लें ताकि टंकण की अशुद्धियाँ नहीं हो। अगर कोई पाठक इन अशुद्धियों की चर्चा करते हैं, तो उन्हें सकारात्मक रूप में लेना चाहिए और उन अशुद्धियों को संशोधित भी कर लेना चाहिए। इसकी व्यवस्था प्रतिलिपि के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम में अन्तरविद्ध (embedded) है। आज के लिए इतना ही।
फिर मिलते है, अगले शुक्रवार को एक ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा के साथ...
क्रमशः...
©ब्रजेन्द्रनाथ

Saturday, July 10, 2021

पाठकों से मन की बात भाग 3 (लेख)

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पाठकों से मन की बात भाग 3:
व्यूज और लाइक्स के मकड़जाल में फंसा सद्साहित्य
गायक आदित्य सिंह उर्फ बादशाह की स्वीकृति ने कि उसने सोशल मीडिया पर अपने गाने "पागल है" के व्यूज बढ़ाने के लिए 72 लाख दिए, सोशल मीडिया के फेक व्यूज और लाइक्स के बनावटीपन को उजागर कर दिया है। फेक व्यूज बनाने वाली कंपनियां कितना पैसा बनाती है, आप सोच सकते है।
अब सामान्य पाठकों और लेखकों के सामने पढ़ने के लिए कुछ भी चयनित करने के पहले उसके कंटेंट को जाँचना परखना जरूरी है। क्या सामान्य पाठक के पास इतना समय होता है कि वह हर कहानी के कंटेंट को पढ़ने के बाद परखे? शायद नहीं। तो उसके पास क्या विकल्प राह जाता है। बस वह व्यूज और लाइक्स देखकर पढ़ना या देखना आरंभ कर देता है। जो भी थोड़ा - सा वक्त उसके पास होता है, उसमें वह अरुचिकर कहानियाँ पढ़ता रहता है। ये कहानियाँ न उसकी रुचि का परिष्कार करती हैं, न उसकी कल्पनाशीलता को विस्तार देती हैं।
इस बाजार और विज्ञापन के जमाने में सही कंटेंट अपने सही पाठकों की तलाश में कहीं खो जा रहा है। मैंने प्रतिलिपि पर ही कई लेखकों की कहानियाँ और कविताएँ पढ़ी हैं, जिनका स्तर बहुत ऊंचा है, लेकिन व्यूज और लाइक्स की संख्या दौड़ में कहीं पीछे रह गए हैं। यह वैसा ही है जैसे कोई लेखक अपनी प्रकाशित पुस्तक का विज्ञापन सबसे अधिक सर्कुलेशन वाले अखबार के मुख्य पृष्ठ पर पूरे पेज का देता है। उसे ही हम बेस्टसेलर समझकर अपने बुक शेल्फ में सजाने में शान समझते हैं।
क्या यह सोच बदलनी नहीं चाहिए?
प्रेमचंद और जैनेंद्र के समय में भी चलताऊ लेखक थे लेकिन पाठकों के हर वर्ग ने उन्हें पढ़ना बंद नहीं किया था।
ऐसी ही एक विचारोत्तेजक मुद्दे पर चर्चा के साथ जुड़ते हैं, अगले शुक्रवार को।
©ब्रजेन्द्रनाथ

Friday, July 2, 2021

पाठकों से मन की बात भाग 2

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पाठकों से मन की बात भाग 2:

अश्लीलता या इंटरटेनमेंट वैल्यू : भाग 2
मैं कथा साहित्य के बारे में चर्चा कर रहा हूँ।
पिछले लेख में मैंने एंटरटेनमेंट वैल्यू के नाम पर परोसी जाने वाली अश्लीलता का उल्लेख किया था। मैंने यह भी लिखा था कि पाठक या दर्शक जो भी चाहता है, उसे ही लिखा जाए क्या? इस दिशा में लेखकों की कोई जिम्मेवारी होती है या नहीं?
उसी बात को आगे बढ़ाते हुए, मैं प्रतिलिपि से जुड़े प्रबुद्ध पाठकों के बारे में और लेखकों के बारे में भी बात करूँगा।
हिंदी पढ़ने वाले पाठक सामान्यतः तीन वर्गों में विभाजित किये जा सकते हैं:
1) पहले खाने में वे पाठक हैं जो सीधी सीधी सरल भाषा में लिखी रचना पसंद करते है। कहानी बढ़ती रहे। हर पंक्ति में कहानी एक दिशा में प्रवाहमान रहे।
2) दूसरे खाने में वे पाठक आते हैं जो कहानी में रोमांच चाहते हैं। हर पल कहानी मोड़ लेती रहे।
3) तीसरे खाने में वे पाठक आते हैं जो कहानी के साथ, उसे कहने का अंदाज, उसमें शिल्प के साथ प्रवाहमयता का निर्वहण और सार्थक संदेश भी ढूढते है।
पहली कैटेगोरी में पाठकों की संख्या सबसे अधिक यानि 50- 60 प्रतिशत होगी । दूसरी में 20-30 प्रतिशत और तीसरी में 19-20 प्रतिशत।
लेखकों के सामने यह चुनौती है कि वे अपनी रचना के कथ्य में शिल्प का ध्यान रखते हुए, कथा में रोमांच के क्षणों को डालते हुए , प्रवाहमयी शैली में पहली कैटेगिरी के पाठकों के स्तर के उत्कर्ष का निरंतर प्रयास करते रहें।
हिंदी के पाठक हैं तो आपसे भी अनुरोध है कि लेखकीय उत्कृष्टता की प्रशंसा अवश्य करें, इससे रचनाकार अनिर्वचनीय उत्साह से भर उठता है। आप अगर प्रेमचंद को पढ़ते हैं, तो उनकी रचनाओं पर ★★ या ★★★ तो नहीं दें। अगर आप ऐसा करते है, तो आपकी अध्ययनशीलता और ग्रहणशीलता पर ही सवाल उठेंगे।
उसी तरह चलताऊ टिप्पणी न देकर सारगार्भित और संजीदा टिप्पणी दें, जो लेखक का भी मार्गदर्शन कर सके।
सादर आभार!
फिर मिलते है, अगले शुक्रवार को एक नई चर्चा के साथ!
©ब्रजेन्द्रनाथ

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...