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Saturday, March 28, 2020

यह युद्ध कोरोना का रोकेगा विस्तार (कविता) #coronawarriors

#BnmRachnaWorld
#coronawarriors




परमस्नेही आदरणीय साहित्यान्वेषी मित्रो,
आपको मैं शुद्ध साहित्यिक रचनाओं के चैनल "marmagya net" से जुड़ने का अनुरोध कर रहा हूँ, क्योंकि आजकी मेरी लिखी कविता "कोरोना योद्धाओं" की अग्रिम पंक्ति में जूझते लोगों के लिए है। कोरोना वायरस के कारण फैली इस वैश्विक महामारी में भारत में 21 दिनों के लॉक डाउन करके इसके विस्तार को रोकने की मुहिम में जो सबसे आगे यानि डॉक्टर,  पारामेडिकल स्टाफ, सफाईकर्मी, पुलिस, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में लगे दुकानदार, ट्रक चालक, पम्प ऑपरेटर और ऐसे तमाम कोरोना योद्धाओं के प्रति मेरी यह कविता समर्पित है।
कोरोना योद्धाओं के लिए:

यह युद्ध कोरोना का रोकेगा विस्तार


इसमें आप ही हैं योद्धा, आप ही हैं सारथी,
गली, मुहल्लों, सड़कों पर लड़ाई है जारी ।
विकट संकटकाल है, क्रुद्ध महाकाल है,
सारा विश्व बना रणक्षेत्र, फैली है महामारी।
यह युद्ध कोरोना का रोकेगा प्रहार।
यह युद्ध कोरोना का रोकेगा विस्तार।

कोरोना से इस लड़ाई में जो है आगे आगे,
जो जीत तय करते है सेवा से भाग्य जागे।
जो रात दिन लगे हैं जीवन बचाने को,
परहित में जुटे है, कोरोना को भगाने को।

डॉक्टर, पारा मेडिकल स्टाफ, पुलिस,
आवश्यक वस्तुओं के दुकानदार, वितरक।
पेट्रोल पम्प, गैस और सफाई कर्मी,
आपूर्ति श्रृंखला में लगे हुए ट्रक चालक।

इनके हौसलों को बढ़ाएं, रुकेगा अनाचार।
यह युद्ध कोरोना का रोकेगा विस्तार।

एक राह, एक लक्ष्य, एक प्रण
बढ़ चले, निरंतर कठिन सेवा व्रत।
छोड़ मोह माया को जूझ रहे अहर्निश
परहित प्राण रक्षा का ले सपथ, ले सपथ।

जो लगातार लगे है सेवा में रत है,
जान कर लगा रहे बाजी अपनी जान की,
संक्रमित मरीजों की जीवन रक्षा के लिए
परवाह नहीं कर रहे अपने प्राण की।

वे ही रोकेंगे कोरोना का अत्याचार,
यह युद्ध कोरोना का रोकेगा विस्तार।

कुछ कर सकते नहीं इस विकट काल में,
उनको तो दे सकते हैं थोड़ा सम्मान।
जब वे सेवा में जूझ रहे अस्पताल में
उनके परिजनों का थोड़ा तो रखे ध्यान।

समाज से इतना सा प्रेम चाहिए,
समाज से नही चाहिए कोई इनाम।
महान सेवा-रत-नायक- नायिकाओं को,
इज्जत मिले बस यही है अरमान।

उनके बारे में मत करें कोई दुष्प्रचार।
वे ही कोरोना का रोकेंगे विस्तार।

यह युद्ध कोरोना पर करेगा विकट प्रहार,
यह युद्ध कोरोना का रोकेगा विस्तार।
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/XWKviW7N1Vg

Thursday, March 26, 2020

कोरोना को मात देंगें बदलकर आचरण (कविता)

#BnmRachnaWorld
#coronaafterlockdown


25-03-2020 के 0:00 घंटे के बाद पी एम द्वारा 21 दिन के लॉक डाऊन की घोषणा के बाद जोड़ा गया:
परम स्नेही मित्रों,
आज आपके अपने शुद्ध साहित्यिक रचनाओं के चैनल marmagya net से 101 से अधिक सब्सक्राइबर्स के जुड़ने के बाद सेलिब्रेशन का समय है। परंतु देश कोरोना के वैश्विक संक्रमण की चपेट में जिसतरह आ चुका है और उसे सीमित करने के लिए जूझ रहा है, उसके बाद सेलिब्रेशन तभी होगा जब लोकडौन यानि चिकित्सकीय आपातकाल का यह समय 14 अप्रील के बाद संक्रमण पर अपेक्षित नियंत्रण को प्रभावी बना सकेगा। अब यह कविता सुने जिसमें एक सीधा संदेश है...
कोरोना को मात देंगे बदलकर आचरण

24 मार्च से इक्कीस दिन का लॉक डाउन लागू हुआ,
घर में रहना है, परिवार के बीच परिवार के साथ साथ ।
स्वयं रहें सुरक्षित, दूसरे भी हों स्वस्थ और आनंदित,
देश, समाज, विश्व का हो कल्याण, सबों के साथ।
कोरोना के विषाणुओं का करें समूल भंजन।
कोरोना को मात देंगें बदल कर अपने आचरण।

आज हर व्यक्ति एक योद्धा है कोरोना के साथ मचा है युद्ध
हर सांस के लिए असि धार पर चलेंगे, विषाणु के विरुद्ध।
घर में एकांतवास, मौका है स्वयं से स्वयं के सहकार का,
लांघो मत देहरी की रेखा, डर है कोरोना से साक्षात्कार का।
कोने में रहने से भागेगा कोरोना, उखड़ेंगे उसके चरण।
कोरोना को मात देंगे, बदल कर अपने आचरण।

हथियार कुछ भी नही, खाली हाथ घर में रहें
बाहर निकलकर, मस्ती में बनें नहीं स्वार्थी।
इस युद्ध में हम ही हैं अर्जुन हम ही हैं कृष्ण,
सारे भारतीय हैं योद्धा, सारे ही हैं महारथी।
इस युद्ध में निष्क्रीयता ही है हमारा स्यन्दन,
कोरोना को हरायेंगें, बदल कर अपने आचरण।

बाहर निकलकर, भीड़ में चलकर मत हो भ्रमित,
कोरोना क्या बिगाड़ेगी, सोच को मत कर विचलित।
यह राजा और रंक को करती समान रूप से व्यथित,
जब यह घुस जाएगी, फेफड़े होंगे बेकार गिरोगे भूलुंठित।
सामुदायिक दूरी बनाकर कोरोना का नियत करें मरण।
कोरोना को हरायेंगें बदल कर अपने आचरण।

आप जतायें स्नेह अपनों से, जुड़ें सिर्फ दूरभाष से,
दिलों से दिलों को मिलने दे, रखें शारीरिक दूरी।
घरों से निकलो तभी, जब हो बहुत बहुत जरूरी,
इस रण में सब शामिल हों, वरना जीत है अधूरी।
कोरोना के विषाणु का करेंगें होलिका दहन।
कोरोना को हरायेंगें, बदल कर आचरण।

हैं तैयार हम कोरोना को देने के लिए मात,
हैं तैयार हम करने को भीषण आघात।
इस लड़ाई में कोरोना को करेंगें समूल नष्ट,
कोरोना के सुदृढ प्राचीर को भी करेंगे ध्वस्त।
विषाणु पर हमेशा के लिए लग जायेगा ग्रहण।
कोरोना को हरायेंगें, बदल कर अपने आचरण।
©ब्रजेंद्रनाथ

यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/KJk6UQJKT2U

Wednesday, March 25, 2020

कोरोना रोकने के लिए लॉकडाउन पीरियड 25 मार्च से 14 अप्रील कैसे बिताएं

#BnmRachnaWorld
#coronalockdown





परम स्नेही साहित्यान्वेषी मित्रों,
आज (25-03-2020) से 21 दिनों यानि 14 अप्रील तक लॉक डाउन लागू कर दिया गया है। इसमें घर पर ही रहना है। इसलिए परिवार के साथ वक्त बिताने का समय है, साथ ही समय है खुद के साथ कुछ वक्त बिताने का, खुद से मिलने का। ऐसे में आप टीवी के सामने समय बिताएंगे, एंड्राइड पर फेसबुक, व्हाट्सएप्प पर समय देंगें।
 मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूँ। आप थोड़ा समय निकालें और इसे पढ़ें:
आप अपना क्वालिटी टाइम निकालकर थोड़ा साहित्य के अन्वेषण में लगाएं। आप मेरी कुछ किताबें जो अमेज़न किंडल पर हैं, डाउनलोड कर पढ़ें। डाउनलोड का तरीका मैने विस्तार से नीचे बताया है। आप जैसे सुधी साहित्यान्वेषी इस धुंध भरे वातावरण में तेज रोशनी की तरह है।
★आप marmagyanet.blogspot.com पर मेरा ब्लॉग विजिट करें और मेरे रचना संसार से अवगत होकर अपने विचार दें।
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1) आप गूगल प्ले स्टोर से Amazon app डाउनलोड कर लें।
2) ऊपर दिए गए किसी भी लिंक पर आप क्लिक करेंगें तो आपको अमेज़ॉन के App के साइट पर ले जाएगा।
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4) अब आप किंडल app download कर लें। वहीं पर उस पुस्तक को "read now" पर क्लिक करने पर पूरी किताब पढ़ सकते हैं, कभी भी।
आप यूट्यूब के मेरे channel :
marmagya net पर जाकर मेरी रचनाओं के ओडियो और वीडियो को देखें, लाइक करें और subscribe भी करें।
मै जानता हूँ, इसमें हो सकता है कि दिक्कतें आएं। आप मुझे  e mail: brajendra.nath.mishra@gmail.com पर लिख भेजें।
डाउनलोड करने बाद अगर आपको लगता है कि  आपका पैसा बर्बाद हो गया, तो पुस्तक का कवर पेज और लास्ट पेज का स्क्रीन शॉट लेकर अपना Paytm नंबर मुझे भेज दें, मैं अपने Paytm वॉलेट से आपके पूरे पैसे आपके एकाउंट में ट्रांसफर कर दूंगा। उम्मीद है आपलोग मेरे सुझाव पर घ्यान देंगें और अपने एकांतवास के उस समय को साहित्य के अन्वेषण में लगायेंगें।
सादर! ब्रजेंद्रनाथ

Tuesday, March 24, 2020

कोरोना ने बदल दिए आचरण (कविता)

 BnmRachnaWorld
#coronapoem





परमस्नेही साहित्यान्वेषी मित्रों,
कृपया यह संदेश अवश्य पढ़ें:
एक लंबे अंतराल के बाद मैं, ब्रजेंद्रनाथ आपकी पसंद के शुद्ध साहित्यिक रचनाओं के चैनल marmagya net के द्वारा कोरोना के कहर और उससे छाए खौफ को थोड़ा कम करने के लिए हास्यात्मक अंदाज में एक कविता सुनाने जा रहा हूँ। कोरोना वायरस के फैलाव ने  हमारी आदतों को बदल दिया है। यह एक सकारात्मक बदलाव है। इसके दूरगामी अच्छे प्रभाव हो सकते हैं, अगर इसे कायम रखा जाय। तो प्रस्तुत है:
"कोरोना ने बदल दिए सबों के आचरण"

कोरोना ने बदल दिए आचरण

जिन आदतों को अपनाने में झिझक होती थी,
जिन हाथों को जोड़कर कहते नहीं थे नमस्ते।
उन्हीं आदतों को जीवन में पुनः अपना रहे हैं,
अब तो हाथ मिलाते नहीं, जोड़ते, हंसते-हंसते।
कोरोना ने सिखाया, पूर्व परंपरा का अनुसरण।
कोरोना ने बदल दिए है सबों का आचरण।

जो हस्त पाद प्रक्षालन बिना प्रवेश कर जाते थे,
जो हाथों को धोए बिना चम्मच कांटे से खाते थे।
अब वे ही साबुन से हाथ धोते हैं मल मल कर,
अब वे ही कहते हैं, स्वयं से कभी मत छल कर।
कोरोना ने सिखला दिये, उत्तम गुणों का वरण।
कोरोना ने बदल दिए है सबों के आचरण।

जो मांसाहार के बिना एक दिन नहीं रह पाते थे,
जो चिकन पकाते, चटखारे ले लेकर खाते थे।
जो मीट स्टाल पर लाइन लगाकर खरीद करते थे,
पार्टियों में नॉन वेज के लूट को टूट टूट पड़ते थे।
कोरोना सिखलाये, शाक - भाजी खाने का चलन।
कोरोना ने बदल दिए हैं, सबों के आचरण।

जो प्यार जताने को, प्यार निभाने को, गले लगाने को,
मिलने जुलने को, दिल मिलाने को गले पड़ जाते थे।
आज वही दूर-दूर रहते है, देखते ही नजरें चुराते है,
अगर मिल भी जाए तो हँसकर ही प्यार जताते हैं।
कोरोना कह रही अब ऐसे ही करें मिलन।
कोरोना ने बदल दिए है सबों के आचरण।

ट्रेन के ए सी कोच में पर्दे हैं नहीं, न ही हैं कम्बल,
एयरपोर्ट पर उड़ाने हो सकती है बन्द,अब तो संभल।
आये हों विदेश से कराएं जांच, रहें क्वारएनटाइन में,
वीमारी फैलने से रोकें, भीड़भाड़, पार्टी में मत निकल।
कोरोना कह रही नियमों का मत करो उल्लंघन।
कोरोना ने बदल दिए हैं सबों के आचरण।
©ब्रजेंद्रनाथ
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पूरी कविता मेरे यूट्यूब चैनल 'marmagya net के इस लिंक पर सुनें, सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें। बेल आइकॉन भी दबा दें ताकि नया वीडियो अपलोड होने पर इसकी सूचना आपको मिल जाय।
आप मेरी अन्य कविताएँ मेरे कविता संग्रह "कौंध" को अमेज़न किंडल से डाउनलोड कर पढ़ें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं।
Link: https://youtu.be/GN0xc9ZmVZk
सादर! ब्रजेंद्रनाथ

Saturday, March 21, 2020

कोरोना वायरस (विषाणु) के फायदे (हास्य व्यंग्य)

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#Coronavirus #satireoncorona





कोरोना वायरस (विषाणु) के फायदे
(हास्य व्यंग्य)
कोरोना का कहर चीन से लेकर सारे विश्व में व्याप्त हो रहा है। इसके कुछ फायदे भी देखने में आ रहे हैं। जिन आदतों को हम भूल चुके थे या छोड़ चुके थे, उसे पुनः अपनाने की ओर अग्रसर हो रहे है।
जिनसे दोस्त समझकर मिलाते थे हाथ,
उन्हीं को करते हैं 'नमस्ते' जोड़कर हाथ।
इस विषाणु की उत्पत्ति भले ही चीन में हुई हो, परंतु अभी जापान, दक्षिण कोरिया और योरोपीय देशों, खासकर इटली, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी में फैलते - फूलते हुए, अमेरिका में पैर पसारकर ईरान, टर्की से होते हुए भारत में दाखिल हो चुका है।
मैंने चचा से पूछा, "चचा, मालूम है कोरोना नाम का विषाणु भारत में आ गया है और लोगों को शिकार बना रहा है।"
चचा हँसे और उनकी हँसी से हमें लगा कि इस वक्तव्य का वे उपहास कर रहे हैं।
" बबुआ, कोरोना के आने से यहाँ भारत में क्या होगा? यहॉं तो पहले से ही भायरसों की भरमार है। हमलोगों को भायरसों के साथ रहने का बड़ा लंबा अनुभव है। कोरोना हमारा क्या बिगड़ लेगा?"
"चचा, ऐसा मत कहिए। जब पकड़ लेता है, तो समझिए जकड़ लेता है। कितना भी छुड़ाइये, छुड़ाया नहीं जा सकता। और चचा, बूढ़े लोगों से इसे खास प्यार होता है।"
"अरे बबुआ यह हमको क्या पकड़ेगा? हम सुबह में नेति-धोती करते हैं।"
"आप किस नीति की बात कर रहे हैं? सरकार ने अपनी नीति साफ - साफ जनहित में जारी कर दी है।"
"हम नीति नहीं, नेति की बात कर रहे हैं। तू लोग नया जमाना के बबुआ लोग है न। नेति कहाँ से जानोगे?"
"आप बताइएगा नहीं, तो हम जानेंगे कैसे?"
"सुबह-सुबह शौचादि से निवृत्त होने के बाद खाली पेट नासिका के एक छिद्र से जल डालकर दूसरे नासिका से प्रवाहित करने की क्रिया को नेति कहते हैं।"
"चचा, आप क्या कहते है? नाक का पानी अगर कान में चला गया, तो जीवन भर के बहरे हो जाएंगे। आप यही चाहते हैं क्या? कोरोना के भगाने के चक्कर में मुझे बहरा नहीं होना।"
"नहीं, नहीं, हम तुमको करने के लिए नहीं कह रहे हैं।"
"चचा, करेंगें नहीं, तो होगा कैसे? ये तो बाबा रामदेव भी कहते हैं।"
"इसे किसी जानकार की देखरेख में ही करना चाहिए। हम अभी करने के लिए नहीं कह रहे हैं। पर इससे सारी सर्दी, बलगम सब दूर हो जाएगा, और कोरोना साला दुम दबाकर भाग जाएगा।"
"अच्छा चचा, और आप कोरोना को भगाने के लिए क्या-क्या करते हैं या क्या-क्या करना चाहेंगे और दूसरों को क्या करने की सलाह देते हैं?"
"बस मस्त रहो, व्यस्त रहो, और सबों से मेलजोल रखो।"
"क्या बात करते हैं, चचा? सरकार सबों से दूर रहने को कहती है। आप कहते है, मेलजोल बढ़ाकर मिलते-जुलते रहो।"
"मेलजोल नहीं रखोगे तो शाम को अकेले चिलम फूंकने में थोड़े ही मजा आएगा?"
"क्या कह रहे है, चचा? ये चिलम फूंकने से आपका क्या मतलब है?"
"तू लोग नया जमाना के बबुआ लोग है न। तू लोग के चिलम समझ में नहीं आएगा।"
"आप समझाएगा नहीं, तो कैसे समझ में आएगा?"
"चिलम यानि गांजे की कली।
जो न पिएं गांजे की कली,
उस लड़का से लड़की भली।"
"चचा, आप गांजे की कली पीकर, नेति-धोती का सब अच्छा प्रभाव धुआँ में उड़ा दे रहे हैं।"
"तू लोग नया जमाना के बबुआ है न। तू लोग नहीं समझेगा। गाँजे का धुआँ जब अंदर जाता है न, तब अंदर का सब भायरस भरभरा कर भाग जाता है। अब अगर कोरोना कोई वीमारी का दीवार शरीर के अंदर बनाएगा भी, तो वह दीवार भड़भड़ा कर भहरा जाएगा।"
"वाह, चचा! आपका जवाब नहीं। आप तो सारा सिद्धांत बदल दिए।"
चचा बोले, "तब तुहु बतावs। का करेके चाहीं।"
मैंने चचा को सरकार की ओर से संक्रमण के रोकथाम के लिए जारी सारे एहतियातों के बारे में संक्षेप में बताया।
"चचा, आपको घर में रहना चाहिए। घर में भी हर दो घंटे पर साबुन से 20 सेकंड तक हाथ धोते रहना चाहिए। बाहर निकलना जरूरी हो तभी निकलें। बाहर अगर निकलते हैं, तो मास्क यानि मुखौटा पहनकर निकलिये।
लोगों से 2 मीटर की दूरी बनाकर रखिये। घर आते ही साबुन से हाथ धोइये।"
मैं तो कहता ही जा रहा था कि चचा ने टोका, "अच्छा, बबुआ ई बताओ कि जब मुखौटा पहन लेगा, तब खैनी या पान खाकर थूकेगा कैसे? गलती से अगर मुखौटे में थूक दिया, तो पूरा का पूरा पीक अपने चेहरे पर आ जायेगा।"
मुझे बहुत जोरों की हँसी आई, पर हंसी को जबरन रोकते हुए मैंने पूछा, "चचा, साबुन से हाथ धोने में कोई दिक्कत तो नहीं है?"
चचा गम्भीर थे। चेहरे पर विशेष गंभीरता ओढ़ते हुए और प्रश्नवाचक ढंग से मोड़ते हुए बोले, "जब घर में रहते हुए भी हर दो घंटे में हाथ धोते रहना है, तो हम अपना बेड भी बॉथरूम में लगा लेते हैं। तू लोग नया जमाना के बबुआ लोग है न। बात तो तुम्हारा मानना ही पड़ेगा।"
मैं क्या कहता? मैं प्रतिउत्तर विहीन हो गया। चचा जैसे लोग हमारे चारों तरफ फैले हैं। इनकी सोच को कोई बदल नहीं सकता।
मैं अपनी बात कहकर और चचा की बातों से निराश होकर सोचता जा रहा था, कोरोना के द्वारा लाये गए बदलावों पर। मॉल, रेस्त्रां, मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारा, ऑफिस, स्कूल, कॉलेज सब बंद, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, एयर पोर्ट में कम आवाजाही। क्या परिवर्तन है!!
एक महाशय जो हाल है में अत्यावश्यक कार्य से रेल की द्वितीय श्रेणी ए सी कोच में यात्रा किये थे, बता रहे थे, "रेल की ए सी बोगी में चढ़ा, तो देखा कि कोई पर्दा नहीं है। खिड़की के शीशे पर भी नहीं। प्रवेश द्वार पर लिखा था, कंबल मांगने पर ही मिलेगा, ए सी का तापक्रम 25-26 डिग्री से. रखा जा रहा है। मैं तो उतरने लगा था, कि शायद गलत डिब्बे में चढ़ गया हूँ। उतरते हुए एक बैठे हुए जनाब से पूछा, क्या यही ए सी 3 है? उसने कहा, "हाँ भाऊ यही ए सी 3 है। कोरोना के बढ़ते प्रभाव का परिणाम है। मैं अपनी सीट पर स्थित हुआ, फिर भी व्यवस्थित नहीं हो पा रहा था। लग रहा था कि किसी निर्वसन निलय में निठल्ले की तरह बिठा दिया गया हूँ। ट्रेन चली तो ठीक ही चली। यात्रियों की संख्या कम थी। रात्रि में तो प्रकाश बंद कर सो गए। दिया गया चादर ही काफी था। कम्बल की जरूरत नहीं पड़ी। पर सुबह में जहाँ ट्रेन में यात्रा करते हुए कभी भी आठ बजे से पहले नहीं उठते थे, खिड़की के शीशे पर पर्दा नहीं होने की वजह से आज सूर्योदय होते ही सूर्य की किरणें सीधे डिब्बे में निर्बाध प्रवेश कर रही थी, जैसे कह रही हों सुबह हो गयी, उठो और खाली पेट कपाल भाती, अनुलोम विलोम करना शुरु करो, कोरोना को भगाना है न।"
उनकी रेल यात्रा का विवरण विस्तार ग्रहण कर ही रहा था, कि मैंने अत्यावश्यक कार्य का बहाना कर उनसे अपना पिंड छुड़ाया।
और भी सकारात्मक परिवर्तन साफ दृष्टिगत हो रहे हैं। स्कूल कॉलेज बंद हैं। इसलिए बसें नहीं चल रही हैं। बहुत सारी प्राइवेट संस्थाओं और फर्मों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने को कहा है। तो उन कंपनियों की बसें और एम्प्लाइज की कारें भी सड़कों पर नहीं हैं। इसतरह सड़क पर गाड़ियों की भीड़भाड़ कम होने से गाड़ियों के कारण प्रदूषण स्तर बिल्कुल नीचे आ गया है और हवा गुणवत्तापूर्ण हो गई है।
यह भी देखा जा रहा है कि स्टेशन, मेट्रो, ट्रेनों के अंदर ,एयरपोर्ट लाउंज और अन्य सार्वजनिक स्थानों का विशेष प्रस्वच्छीकरण (सैनीटाईजेशन) किया जा रहा है। हमलोग जब डरे हुए होते हैं, तो कितना अच्छा काम करते हैं, इसका इससे अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता है। पर ये सब सकारात्मक परिवर्तन ऊपर से भले दिख रहे हों, पर हैं तो कोरोना के नकारात्मक फैलाव को रोके जाने से पैदा होने वाले। इसलिए इसे स्थायी नहीं कहा जा सकता।
मैं घर की तरफ लौट ही रह था कि चचा से फिर भेंट हो गयी। मुझे लगा जैसे चचा छुप छुपाकर, नज़रें बचाकर निकलना चाह रहे हों। ऐसे में मैं भला टोके बिना कैसे रह सकता था, "क्यों चचा जी कहाँ से आ रहे हैं और नजरें बचाकर क्यों निकलना चाह रहे हैं?"
"अरे, नहीं बबुआ। यही जरा गुप्ता जी के यहाँ गए हुए थे।"
"क्या हुआ? गुप्ता चचा ठीक तो हैं? उनके लड़के की तो हाल ही बड़ी धूमधाम से शादी हुई थी।"
"हाँ, ठीक ही हैं।" कहकर चचा कुछ छिपाते हुए निकलना चाह रहे थे। मैं तो उनकी इस चेष्टा को ताड़ गया।
"चचा, मुझे लगता है कि आप कुछ छुपा रहे हैं?" मैंने प्रश्न दागते हुए जैसे चचा के अंदर के चोर को रंगे हाथ पकड़ लिया हो।
"तुम बहुत तंग करते हो, बबुआ।"
"हाँ चचा, हम नए जमाने के बबुआ हैं न, ऐसे छोड़ने वाले में से नहीं हैं।" चचा का डायलॉग चचा पर ही झाड़ते हुए मैने अल्टीमेटम दे दिया।
चचा को रहस्य पर से पर्दा उठाना ही पड़ा।
तो सुनो, "गुप्ता जी का लड़का फरवरी में शादी के बाद करीब एक महीने के लिए हनीमून मनाने इटली गया था। अभी वह घर आने वाला था। मैं उनके यहाँ यही पता लगाने गया हुआ था कि आया या नहीं। इटली में तो यह कोरोना भयंकर रूप में फैल गयी है।"
इसके बाद चचा चुप हो गए। मैंने उन्हें टमटम के अड़ गए टट्टू के कोचवान की तरह धकेलते हुए पूछा, "चचा, आगे कहिए मैं सुन रहा हूँ।"
इसके बाद चचा ने रुक रुक कर कहा, "उनके यहाँ तो मातम छाया है। बेटा बहु दोनों को एयरपोर्ट से ही एम्बुलेंस में डालकर दूर के अस्पताल में रखा गया है। उनकी पूरी जाँच होने पर 14 दिनों बाद ही छोड़ा जाएगा।"
"इसमें मातम की कोई बात नहीं है। वे एक संक्रमित देश से आये हैं। इसलिए उनकी पूरी जाँच कर उनके संक्रमण मुक्त हो जाने पर ही उन्हें घर आने दिया जाएगा, ताकि वे समाज में जाकर संक्रमण फैलाने वाले कारक न बन जाँय।"
जब चचा ने चुपचाप हामी भरी, तब मैंने एहतियात के सारे नियम उन्हें फिर से उन्हीं के मुँह से कहलवाए।
फिर मैंने कहा, "चचा, अब कोरोना को रोकने के सारे नियम अपनाएंगे या नहीं?"
उन्होंने धीरे से कहा, "हाँ।"
मैंने जोर देकर कहा, "जोर से बोलिये, हाँ।।।।"
उन्होंने कहा "हाँ।।।।"
मैंने कहा "आज से गाँजा नहीं पीजियेगा? जोर से बोलिये हाँ।।।"
उन्होंने हल्के से कहा, "हाँ।" और जाने लगे।
मैने कहा, "चचा, हम नए जमाने के बबुआ हैं, ऐसे छोड़ने वाले नहीं हैं, बिना हाँ कहलवाए।"
वे मुस्कराते हुए निकल लिए।
©ब्रजेंद्रनाथ









Saturday, March 14, 2020

कॉलेज का गर्ल्स कॉमन रूम (कहानी)

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#lovestoryhindi





















कॉलेज का गर्ल्स कॉमन रूम
("डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" उपन्यास का अंश)
उसे इतना तो मालूम था कि उसका अनन्य मित्र रीतेश इसी शहर में है, लेकिन उससे इसतरह मुलाकात होगी उसने सोचा भी नहीं था। पुष्प इसी शहर में ऑफिस के काम से आया था। उसने भौतिकी से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, बॉम्बे (उन दिनों मुंबई का नाम बॉम्बे ही था) में जूनियर सायंटिस्ट के पद पर नौकरी ज्वाइन की थी। दो वर्ष नौकरी करने के बाद इस शहर में एक नए प्रोजेक्ट की फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार करने के लिए बनाई गई कमिटी का वह भी मेंबर था। इसी सिलसिले में वह यहां आया हुआ था।
रितेश ने ही पीछे से उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुए पूछा था, "का बबुआ, तू यहां का कर तारs?"
उसे आश्चर्य हुआ था। इस शहर में कोई टूटी फूटी हिन्दी बोलने वाला नहीं था, यह खांटी भोजपुरी बोलने वाला कौन हो सकता था?
पीछे मुड़कर देखा तो रितेश ही था. "अबे तू यहां कैसे?"
"जैसे तू यहां, वैसे मैं भी यहां।"
चल - चल मिल - बैठकर इत्मीनान से बातें करते हैं। पास ही पुष्प का गेस्ट हाउस था जिसमें वह ठहरा हुआ था। दोनों वहाँ चले गए। पुष्प जिस कमरे में ठहरा था वहीं दोनों सोफे पर जैसे ही रिलैक्स हुए, बातों का सिलसिला चल निकला। शादी की या नहीं, तुम्हारी स्वीट हार्ट का क्या हुआ, नौकरी कैसी चल रही है से होते हुए बातें जल्दी ही कॉलेज के गलियारों के तरफ बढ़ चली थी। रितेश भी भौतिकी का ही छात्र रहा था, उसी कॉलेज में जिसमें पुष्प पढता था। वह भी अपनी प्राइवेट स्टीलप्लांट के स्टॉक यार्ड सेट अप करने के सिलसिले में यहां आया हुआ था।
पुष्प ने ही बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा था, "अरे, यार गोस्वामी सर का क्या हुआ? वह लड़कियों पर बहुत फ्लाइंग किश फेंका करते थे।"
रीतेश, "अरे, सुना कि वह सिविल सर्विस कम्पीट कर गए और हमलोगों के निकलते ही कॉलेज छोड़ दिए थे।"
पुष्प, "अरे वह टेलिस्कोप वाला किस्सा जरा सुनाओ न, तुम एक्सप्लेन बहुत बढ़िया से करते हो।“
रितेश ने हंसकर ही सुनाना शुरू किया था,
तुम तो जानते ही हो यार, कि क्लास में जबतक लड़कियां नहीं हो तो उस क्लास की रौनक ही क्या? फीका, लौकी की सब्जी की तरह। कॉलेज जीवन नीम और करेले जैसे। … या तो बेस्वाद या फिर कड़वे स्वाद। इस दृष्टि से फिजिक्स और गणित विभाग बिलकुल ही ड्राई थे। कुछ भी हरियाली नहीं। बस वियावान, सुखाड़। बायोलॉजी सेक्शन वाले विद्यार्थी और ब्याख्याता अपने को भाग्यशाली समझते थे क्योंकि लड़कियों की संख्या वहां काफी अधिक रहती थी। बायोलॉजी के अलावा साइकोलॉजी ही ऐसा विभाग था जहाँ लड़कियों की संख्या अच्छी खासी थी। साइकोलॉजी में तो फैकल्टी भी लेडीज ही थी। केमिस्ट्री और कला तथा वाणिज्य के कुछ विभागों में भी कतिपय छींटों के तौर पर कुछ कुछ संख्या लड़कियों की थी। जब भी क्लास ख़त्म होती तो फिजिक्स विभाग के लड़के और प्रोफेसर अपने रूम से बाहर अवश्य निकलते ताकि बायोलॉजी की लड़कियों को केमिस्ट्री विभाग की तरफ जाते हुए ही देख तो सकें। बायोलॉजी से केमिस्ट्री तरफ जाने में बीच में ही फिजिक्स विभाग पड़ता था जिसे क्रॉस करके जाना पड़ता था। वही गलियारा ही था जो विभागों के निर्माणकर्ता की भविष्य की कल्पना के रोमांटिक सुझबूझ का बहुत ही अच्छा नमूना था। इससे फिजिक्स जैसे सुखाड़ग्रस्त विभाग - क्षेत्र में भी कुछ पलों तक रौनक छा जाती थी। इसी रौनक की चर्चा छात्र दिन भर करते नहीं अघाते थे।
एक और चर्चा अक्सर विद्यार्थियों के बीच होती रहती थी। किस लेक्चरर ने किस लड़की को किस (kiss) दृष्टि से देखा। अकेले में फ्लाइंग kiss फेंकते हुए फलां बाबू लेक्चरर देखे गए। यह अक्सर नौजवान, खूबसूरत और कुंवारे लेक्चरर के विषय में जारी की गई अफवाहें चटकारे ले - लेकर चर्चे में आती रहती थीं।
उन दिनों नए नौजवान लेक्चरर भौतिकी विभाग में अक्सर बहाल किये जाते थे मगर टिकते नहीं थे। साल छह महीने काम करते - करते कहीं - न - कहीं सिविल सर्विस की परीक्षाओं में कम्पीट करते और वहाँ की नौकरी छोड़ देते। गोस्वामी एक बहुत ही खूबसूरत, लम्बे, गोरे - चिट्टे लेक्चरर भौतिकी विभााग में नियुक्त किये गए थे। उनका ड्रेस सेन्स भी गजब का था। वे हमेशा पैंट, कोट और टाई लगाकर ही महाविद्यालय आतें। कक्षा में आते ही वे अपने कोट को, किनारे रखी कुर्सी जिसे वे चपरासी से साफ़ करवाते, में टांग देते, इसके बाद ही पढ़ाना शुरू करते। पूरी पीरियड में वे अंगरेजी भाषा का ही प्रयोग करते। इससे नीचे की कक्षाओं में हिन्दी मीडियम से पढ़कर आये छात्र / छात्रों को काफी परेशानी होती।
जिसे अब तक दोलन पढ़ते आये थे यहाँ आकर pendulum कहना था। दोलन में जो भाव था वह pendulum में कहाँ मिल सकता था। जिसे रिसाव लिखते आये थे अब leakage कहना था। क्षरण को erosion कहना था। जो अब तक अवशिष्ट था यहाँ precipitate कहना था। मैथ्स में भी बिंदु point में, सीधी रेखाएं straight line में और तिर्यक रेखाएं diagonal line में बदल गई थीं। परवलय parabola, अपरवलय hyperbola हो गया था। कुछ नई शब्दावलियाँ भी जुड़ गई थीं। Co ordinate maths, quadratic equations, Bianomial equations आदि, आदि...
यानी हिंदी माध्यम से मेट्रिक पास छात्रों को अंग्रेजी के टर्म्स सीखने में खासी मेहनत करनी पड़ रही थी। उन दिनों अंगरेजी माध्यम से पढ़कर आये छात्र बहुत कम होते थे। अगर वे होते भी थे तो माइनॉरिटी में होने के कारण किसी कोने में पड़े रहते थे।
बीच में अगर अंग्रेजी में कोई टिपोरी छाँटने लगता था तो सारे छात्र उसे घेरकर बोलना शुरू कर देते, "देख, ज्यादा बन मत, साले, देसी मुर्गी बिलायती बोल।"
इसके बाद तो उसकी अंगरेजी बोलती बंद ही हो जाती। उसके अगली कई पीढ़ियां भी अंगरेजी बोलना भूल जाती अगर थोड़े दिन इस कॉलेज में पढ़ लेतीं। यहाँ तो लेक्चरर भी कभी - कभी क्लास में अंगरेजी बोलते - बोलते सीधे भोजपुरी बोलने लगते।..और अगर अंगरेजी बोलते भी तो हर अंगरेजी के वाक्य के बाद "ठीक बा नु", "बुझाता", "सम्झा तारs न" आदि तकिया कलाम लगाना नहीं भूलते थे।
भौतिकी की ऑनर्स क्लास की लेबोरेटरी ऊपर में थी, यानि दूसरे मालेपर। ऑनर्स और पोस्ट ग्रेजुएट में दो - तीन थ्योरी क्लासेज के बाद सप्ताह के चार या पांच दिन बाकी समय लेबोरेटरी यानि प्रयोगशाला में ही बीतता था। इसमें प्रोफेसर भी लगे होते और विद्यार्थी भी लगे रहते थे। प्रोफेसर लोगों को लेट तक भी कभी- कभी विद्यार्थियों के साथ रुकना पड़ता था। जाड़े की गुनगुनी धूप दोपहर बाद सीधे दूसरे माले पर की प्रयोगशाला के वराण्डे में आती थी। जाड़े की धूप लेने की बड़ी ही उपयुक्त और माकूल जगह थी। वहां कभी - कभी दूसरे विभागों के लेक्चरर भी आकर धूप का आनंद लिया करते थे। गोस्वामी, सोमनाथ और उनके ही साथ अन्य विभागों में नियुक्त किये गए नए लेक्चरर दोपहर बाद करीब चार बजे की आसपास भौतिकी विभाग के दूसरे माले के वराण्डे की जाड़े की धूप का आनंद लेते हुए नजर आते थे।
उसी गुनगुनी धूप में नए ज्वाइन किये हुए नौजवान लेक्चरर अपने कॉलेज के दिनों के चटपटे, चुलबुले संस्मरणों और अनुभवों को एक दूसरे से शेयर करके हास्यरसमय वातावरण को थोड़ी देर जी लिया करते। अन्यथा भौतिकी विभाग वैसे भी नीरस विभाग था जिसके विभागाध्यक्ष अग्निहोत्री अपने कड़क मिजाज, शुष्क अनुशासन और सख्त स्वभाव के लिए इस कॉलेज में ही नहीं पूरे विश्वविद्यालय में मशहूर थे। वे भौतिकी की कक्षा में सबसे नए आये छात्रों का पीरियड जरूर लेते। बाकी सारे क्लास ऑनर्स में लेते थे। प्रैक्टिकल्स में वे अवश्य शरीक होते। खुद लड़कों, लड़कियां तो भौतिकी ऑनर्स में थी ही नहीं (अफ़सोस) के साथ प्रयोग के उपकरणों को चेक करते और रिजल्ट निकलने के सही तरीके भी बताते। उनकी अभिरुचि आत्मलीनता की स्थिति तक पहुँच जाया करती थी।
एक बार वे लोकल टाउन के ही किसी कॉलेज में एक्सटर्नल बनकर गए थे। वहां एक एक्सपेरिमेंट का उपकरण नही था। उस सामान को इस कॉलेज से मँगाकर उस एक्सपेरिमेंट को करने के लिए विद्याथियों की प्रैक्टिकल परीक्षा में सेट कर ही दिए। अब सोचिये जिस कॉलेज में वह उपकरण ही नहीं हो वहां का विद्यार्थी कैसे उस प्रयोग को कर सकेगा? लेकिन उन्होंने परीक्षा में भाग लेने वाले विद्यार्थियों को साफ़ - साफ़ बता दिया कि विद्यार्थी भले ही प्रयोग पूरा नहीं कर सकें, रिज़ल्ट भले ही नहीं निकाल सकें, लेकिन प्रयोग को कैसे किया जाता है अगर बता देंगे तो उन्हें फुल मार्क्स मिलेगा। इससे वे ये भी जानना चाहते थे कि कॉलेज में इस प्रयोग के बारे में इस चैप्टर के पढ़ाने के समय परिचर्चा हुई है या नहीं। यह उनकी शिक्षा और शिक्षण के प्रति प्रतिबद्धता ही थी जिसके लिए वे पूर्णतया समर्पित थे। इसलिए यहाँ पढाई होती और विद्यार्थी यहाँ पढने आते।
उनके इसी अनुशासन और जीवन - पद्धति के कारण कॉलेज में भौतिक विभाग का विशेष स्थान था। उनकी सख्ती से भौतिकी विभाग के सारे ब्याख्याता तो मार्ग दर्शन ग्रहण करते ही थे। सभी लोगों को अपने विभागाध्यक्ष पर गर्व था। सिर्फ जूनियर स्टाफ खासकर लैब असिस्टेंट और चपरासी लोगों को इतना बंधन बड़ा नागवार लगता था। उन्हीं लोगों के बीच में बहुत - सी कहानियां प्रसारित की जाती थी या उड़ाई जाती थी। इसमें कुछ विद्यार्थी ख़ास रूचि लेते थे और चपरासियों को उस्का - उस्काकर पूछते थे, "हां, तो धरीक्षण भाई दुबे जी का स्कूटर कहाँ लगा हुआ देखे?" भुनेशर को यही सब चीज गपियाने में ज्याद मन लगता था और चटपटा मनोरंजन मुफ्त में हो जाता था। भुनेशर जो ऑनर्स का छात्र था चपराशियों के रूम में दोपहर में खाने के समय पूछ रहा था, "पहले दरवाजा बंद कीजिये, टाइगर आ गया तँ हमारा तो पैंटवे उतरवा लेगा।" अग्निहोत्री को सभी ने उनके अनुशासनात्मक कड़ाई को ‘आतंक’ का नाम और उन्हें ‘टाइगर’ का उपनाम दे दिया था।
"अरे चिंता कौनो बात के नइखे, टाइगर एजुकेशन ट्रिप में बनारस गइल बाड़े।" इतने में भुनेशर के दो – तीन दोस्त और आ गए।
"अच्छा, ओही से कहीं कि आज दुबे जी के स्कूटर टाइगर के रेजिडेंस के आगे काहे लागल बा?"
धरीक्षण ने विषय को और भी चटपटा बनाने के लिए उसमें थोड़ा और भी मसाला डाला।
"सचमुच, झूठ ना नु बोलs तारs?" भुनेशर ने बात को और भी क्लियर करने के लिए पूछा था।
"अरे, कोनो आझे के बात बा? ई कॉलेज में सब केहु जानेला। तू लोग नया - नया बाड़s न, एहीसे तू लोग के पूरा बात नइखे मालूम।" धरीक्षण ने बात में रहस्य का डोज़ देते हुए कहा था। किशोर - मन और युवा तन में उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
"अच्छा ई बतावs कि टाइगर के बीबी कइसन बाड़ी?"
"खूब भरा - पूरा गदराईल बदन वाली एकदम गोर दप - दप, अँधरिया में इंजोर लेखा मस्त पर्सनालिटी बा। तुहु लोग देखब तs देखते रह जइबा।"
"और अँधरिया के बा?"
"वही तहर टाइगर। देखत नइख, कइसन भयंकर चेहरा बा?"
"थोड़ा डार्क कलर हैं लेकिन चेहरा तो ठीक ही है।" भुनेशर के एक दोस्त ने कहा था।
"उनकर बाल - बच्चा?"
"देखत नइख टाइगर के सर में एको बाल बाँचल बा? अब का होई बाल - बच्चा?"
"अरे नहीं भाई, देखते नहीं कॉलेज में कितना समर्पण के साथ सारे कार्यों में ब्यस्त रहते हैं। इसीलिये घर पर थोड़ा कम समय दे पाते होंगे। आगे सब ठीक हो जाएगा।" उनमें से एक समझदार जैसी समझ रखने वाला भुनेशर का दोस्त बोला था।
"अच्छा, तू आपन विश्लेषणात्मक विवरण अपने पास रखs। तहरा से कोउ पूछता?"
अब धरीक्षण के बोलने की बारी थी, "अरे ई बुढऊ जेकरा के तू लोग टाइगर कहेलs, कॉलेज में पढ़ाते रह जैंहे और माल केहु और चाभले जाइ।"
एक हलका - सा ठहाका गूंजा था।
"जा, जा तू लोग पढ़ाई करs। ई सब पर ध्यान नइखे देवेके। और ई सब बात बाहर जाके केहु से मत कहिअ कि धरीक्षण ऐसे बोल रहा था। " धरीक्षण ने जबरदस्ती उन लोगों को वहाँ से भगाया था।
दुबे जी हॉस्टल नंबर 3 के वार्डन थे। दुबे जी अकेले ही हॉस्टल में रहते थे। उनकी पत्नी गाँव में रहती थी। उनका एक भतीजा भी उनके साथ उसी हॉस्टल में रहता था। हॉस्टल से कॉलेज आने के रास्ते में ही अग्निहोत्री जी का रेजिडेंस पड़ता था। दुबे जी का स्कूटर पहले वहां पर रुकता था तो लोग समझते थे कि साहब के साथ कंसल्टेशन के लिए रुक गए हैं। कभी - कभी दुबे जी के पीछे बैठकर अग्निहोत्री साहब कॉलेज भी आते थे। लेकिन यही बात, जब बात पर और बात बनकर आगे बढ़ती गयी तो दुनिया के जैसे अन्य जगह पर लोग होते हैं कि उनको अपने काम से फुर्सत - ही - फुर्सत होती है और दूसरों पर नजर रखने की बड़ी बुरी आदत होती है, वैसे ही लोग यहाँ पर भी थे। बस तभी से दुबे जी और उनका वेस्पा स्कूटर आ गया उनकी नज़रों के स्कैन के रेंज में।
"अरे, आज दुबे जीवा तो साहब के एब्सेंस में भी उनके घर पर कंसल्टेशन कर रहा था … हम भी उनके घर के पास वेस्पा ऐश कलर का स्कूटर लगा देखे थे” ... जितने लोग उतनी बातें। …तरह - तरह के लोग तरह - तरह की बातें ... लोगों को तो बस मसाला चाहिए। सच और अफवाह में उतना ही अंतर होता है जितनी बार उनकी पुनरावृत्ति होती है। अगर अफवाह की पुनरावृत्ति की संख्या बढ़ती जाय तो सच धुंधला पड़ने लगता है।
*****
…तो फिर वहीं भौतिकी विभाग के दूसरे माले पर दोपहर बाद जाड़े की गुनगुनी धूप, हल्की - सी ठंढक, अलसाया सूरज, मादकता भरी साँझ को आलिंगनबद्ध करने के लिए अस्ताचल की और दौड़ लगाता सूरज और वहां नौजवान लेक्चररों के बीच हँसने - हँसाने का चलता दौर। … उस दिन सूरज के क्रोमोस्फेयर और स्पेक्ट्रम स्टडी के लिए पावरफुल टेलिस्कोप को अरसे बाद बाहर निकालकर बरामदे में सेट किया गया था। इसमें गोस्वामी काफी रूचि ले रहे थे। अचानक सूर्य के तरफ से टेलिस्कोप का एंगल थोड़ा बदला और पता नहीं कैसे सामने के तरफ चला गया।
"अरे, ये क्या फोकस हो गया?" गोस्वामी चिल्ला उठे, "जल - परी या चन्द्र - परी तो सुना था, ये सूर्य - परी सूर्य के उत्तप्त और उष्ण वातावरण में कैसे प्रकट हो गई?"
"गोस्वामी जी आपको हिंदी का श्रृंगार - रस सन के स्पेक्ट्रम, में कहाँ दिखाई दे गया। जरा हम भी देखें।" गोस्वामी को हटाते हुए सोमनाथ सिंह बोले।
सोमनाथ देखे जा रहे थे, चुपचाप, कुछ बोल भी नहीं रहे थे।
"क्या हुआ? चुप क्यों हो?" गोस्वामी की उत्सुकता चरम पर पहुँच रही थी।
"अरे रुको भी, जरा सा रुको।"
सामने गर्ल्स कॉमन रूम था। वहां का एक - एक परिदृश्य, कण - कण डिटेल्स के साथ उजागर होता हुआ समीप आ गया। कॉमन रूम की दीवारों से सरकती सूर्य की किरणें वहां के मैदान पर बिखरती जाती थी। वहां लड़कियां कोई दुपट्टे में कोई दुपट्टे से बाहर एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले, एक - दूसरे पर लेटी - अधलेटी खिलखिलाती दीख रही थी। आवाज तो कुछ सुनाई नहीं दे रही थी। वहां के मैदान में ही कहीं दो - चार के समूह में बैडमिंटन खेल रही थीं, तो कहीं दस - बारह के समूह में वॉलीबाल। बॉल या बैडमिंटन के कॉर्क के उछालों के साथ उनके वक्ष - प्रदेश की उछाल लेती गेंदें, शोख अदाएं, सबकुछ इतना विस्तृत रूप में अचानक पास आ जाएगा यह तो कल्पना से परे था। ऐसा लग रहा था जैसे दिन में ही तारे, नहीं, नहीं, तारिकाएं, अप्सराओं की वेशभूषा और अदाओं के साथ जमीन पर उतरी हों। इसके बाद तो सारे बैठे नौजवान लेक्चररों की टेलिस्कोप के तरफ बारी - बारी से देखने की होड़ - सी लग गई।
"वाह! आप अकेले - अकेले ही नजारा लिया करते थे, मिस्टर गोस्वामी? दिस इज़ नोट फेयर।" प्रो राजाराम ने शरारत - भरे लहजे में कहा था।
"राजाराम बाबू, आपको तो इस सबमें रूची नहीं थी। भाभी जी जानेंगी तो क्या सोंचेंगी? दिस इस आल्सो नोट फेयर सर।" गोस्वामी जी ने कहा था। एकमात्र राजाराम बाबू ही वहां पर शादी - शुदा थे।
उनमें से कइयों ने विशेष जगहों में, विशेष स्थानों पर फोकस करने के लिए टेलिस्कोप के एंगल को चेंज करना शुरू कर दिया।
सोमनाथ जी ने भी एंगल घुमाना शुरू ही किया था । ऐसा करते हुए वे बोले भी जा रहे थे, "मैं जहाँ पर फोकस करना चाह रहा हूँ, वहां तो हो ही नहीं रहा है।"
"कहाँ फोकस करना चाह रहे हैं, सर?"
"अबे, तू अपनी आवाज बदल कर क्यों बोल रहा है? तुम्हारी यही अदाएं तुम्हें बिलकुल अलग खड़ा कर देती हैं, अन्य लोगो से।"
पीछे उनके कंधे पर एक थपकी - सी पडी, "लाइए मैं ही फोकस कर देता हूँ।"
"अच्छा, तू ही कर।" कहकर जैसे ही उन्होंने गर्दन घुमाई, तो जो कुछ उन्होंने देखा उससे तो उनके होश ही उड़ गये। काटो तो खून नहीं। पीछे ड़ॉ अग्निहोत्री, दी टाइगर, विभागाध्यक्ष खड़े थे।
"अच्छा, तो इसीलिये आपलोग देर शाम तक इधर रुक रहे हैं। मैं समझ रहा था कि आपलोगों का कोई रिसर्च चल रहा है और निकट भविष्य में किसी अन्तर्राष्ट्रीय मैगज़ीन में आपलोगों का कोई शोध - पत्र छपा हुआ देखने को मिलेगा। आइये जरा मेरे चैम्बर में आइये।"
चैम्बर में सारे लेक्चरर के आने के बाद दरवाजा बंद कर दिया गया। "क्या राजाराम बाबू आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। ये सभी तो नौजवान हैं। नई उमंगें हैं। जवानी में कुछ - कुछ गलतियां हो जाया करती हैं। आप तो शादी - शुदा हैं, बाल - बच्चे वाले हैं। आपको यह सब शोभा देता है?"
राजाराम बाबू सोच रहे थे, "किस मुहूर्त में वहां पर गए थे? जो कुछ कहना था वो बॉस को ही कहना था। वे तो आज रिसीविंग एंड में खड़े थे।“
"और आपलोग, मेरी टीम के नौजवान सदस्य। आपलोगों के ऐसे आचरण पर मुझे शर्म आ रही है। पता नहीं आपलोगों को आ रही है या नहीं। आपलोग फिल्म एक्टिंग और प्रोडक्शन के प्रोफेसन में नहीं हैं। आपलोग शिक्षण के ब्यवसाय से जुड़े हैं। आपलोगों को वह बनके दिखाना होगा जो आप दूसरे को बनते हुए देखना चाहते हैं। आदतों से आचरण बनता है, आचरण से चरित्र बनता है और चरित्र से ब्यक्तित्व बनता है। आप दूसरों के ब्यक्तित्व को संवारने के कार्य में लगे हैं और अपनी आदतों को नहीं सुधारेंगे तो दूसरे को सुधारने में क्या भूमिका निभाएंगे। आप चाहें तो ये सारी बातें भोजपुरी, अंगरेजी, तमिल सारी भाषाओं में समझाऊं, अगर नहीं समझ आया हो तो।"
सारे लेक्चरर चुपचाप सुन रहे थे। इसके अलावा कोई उपाय भी नहीं था।
"जाइये, आगे से इसका ख्याल रहे। और जो सारी बातें यहाँ हुई हैं वे यहाँ से बाहर नहीं जाएँ, इसका भी ख्याल रहे।"
सारे नौजवान ब्याख्याता सर झुकाये निकले थे। सोमनाथ सिंह मन - ही - मन बुदबुदा रहे थे, "बड़े आये हमलोगों को ज्ञान देने वाले। । दुबेजीवा के सामने ये चरित्र - ज्ञान का गान कहाँ चला जाता है? हमेशा इनके शहर से बाहर जाते ही इनके घर पर कंसल्टेशन करने पहुँच जाता है।"
गोस्वामी अपने कमीज के कालर को ठीक करते हुए और बाँहों को झाड़ते हुए, जैसे कुछ हुआ ही नहीं बोले, "प्रोफ. सोमनाथ, आप कुछ बोल रहे थे क्या?"
"नहीं नहीं, हम क्या बोलेंगे? सारा चरित्र - निर्माण का जिम्मा यही उठाये हुए हैं। इसीलिये तो दुबइया चरित्र - निर्माण में लगा.... खैर छोड़िये, चलिए, ये सब तो होता ही रहता है....।"
इस लम्बी क्लास के बाद फिर कभी भौतिक विभाग के दूसरे माले के बरामदे में टेलिस्कोप नजर नहीं आया।
इस वाकये को याद कर दोनों दोस्त हंसी से लोटपोट हो रहे थे। कॉलेज की पूरी मस्ती उस गेस्ट हाउस में जीवंत हो उठी थी।

नोट:
प्रिय पुस्तक प्रेमी परिजनों,
मेरी लिखी कहानी "कॉलेज का गर्ल्स कॉमन रूम" का ऑडियो वर्शन सुमित जी की आवाज में प्रतिलिपि के इस लिंक पर आज ही प्रकाशित हुआ है। आप इसे सुनें और अपने विचार अवश्य दें:
"कॉलेज का गर्ल्स कॉमन रूम", प्रतिलिपि पर सुनें :
https://hindi.pratilipi.com/audio/lozpzudmntmz?utm_source=android&utm_campaign=audio_content_share
भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!
--ब्रजेंद्रनाथ

Friday, March 13, 2020

रामचरितमानस का कम चर्चित स्त्री पात्र- त्रिजटा (लेख)

#BnmRachnaWorld
#रामचरितमानस के स्त्री-पात्र









रामचरितमानस का कम चर्चित स्त्री-पात्र
त्रिजटा
'रामचरितमानस' एक कालजयी ग्रंथ है। यद्यपि सृष्टि में नश्वरता और परिवर्तन की प्रक्रिया एक शास्वत सत्य है, परंतु कुछ रचनाएँ ऐसी होती है जो इस प्रक्रिया से इतर समय के बहाव के साथ और भी प्रासंगिक होती जाती हैं।
अध्ययन के समुद्र में विचार के मेघ मस्तिष्क में उमड़ पड़ते हैं और शब्दों की झड़ी लग जाती है और इसतरह रचना की बेगवती धार नदी के रूप में बह निकलती है। उस युग का पाठक उसकी विशालता से अभिभूत हो उठता है। पर वही नदी जब गंगा की तरह अजस्र अमृत धार लिए निरंतर प्रवाहित होती रहती है, तो वह कालजयी कहलाती है। रामचरितमानस गंगा की तरह है जिसका मूल स्रोत हृदय हिमालय का गोमुख है। यह उद्गम अत्यंत सूक्ष्म प्रतीत होता है, पर काल बीतते-बीतते यह वामन की तरह विराट होता चला जाता है।
इसी विराट महासमुद्र में असंख्य जीव-जंतु और रत्न भरे पड़े हैं। मैंने उनमें से कुछ घोंघे जैसे जीवों को सतह पर लाने की प्रक्रिया में एक ऐसा पात्र चुना है, जो कथा प्रवाह में अपनी अहम भूमिका निभाता है। परंतु स्त्री - पात्र होने के कारण और राक्षस कुल में जन्म लेने कारण पाठकों के उपेक्षा भाव से ग्रस्त भी हो सकता है। आपने सही अनुमान लगाया है। मैं त्रिजटा के बारे में चर्चा करने जा रहा हूँ। कुछ पात्रों को महाकाव्य-महल के सृजन के समय मुख्य पात्रों को महल की ऊंचाई प्रदान करने के लिए नींव में डाला जाता है। त्रिजटा जैसे पात्र भी राम - सीता के चरित्रों को नई ऊंचाइयों प्रदान के लिए गढ़े जाते हैं। इसलिए वे अपनी छोटी भूमिका में भी गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
रावण के द्वारा चोर की भांति छुपकर सीता का अपहरण कर लिया जाता है। सीता को रावण लंका में अशोक वन में रखता है। अशोक वन में सीता की देखभाल करने के लिये, जिन विश्वस्त और समझदार स्त्रियों को जिम्मेवारी दी जाती है, त्रिजटा भी उसमें एक है। संभवतः त्रिजटा उनमें सबसे विदुषी है। इसीलिए उसके विचार सबों के लिए सर्वमान्य होते हैं।
आगे की कहानी - क्रम पर विचार करने से पहले इस पर विचार किया जाय कि रावण उन स्त्रियों के समूह में त्रिजटा को क्यों शामिल करता है? कहा जाता है कि त्रिजटा रावण, कुंभकरण और विभीषण की बहन थी। रामायण के कुछ अन्य स्थानों की कहानियों में त्रिजटा को विभीषण की पुत्री कहा गया है। लेकिन यह सम्बंध मान्यता और विश्लेषण पर सही नही उतरता है।
रावण ने सीता को अपने महल से दूर अपने विश्वस्त परिचारिकाओं के सम्पर्क में रखना इसलिए जरूरी समझा हो कि राक्षसियों के एक समूह के द्वारा समझाने से सीता के मस्तिष्क में यह बात बिठाई जा सके कि इस विकट परिस्थिति में रावण की रानी बनना ही उसके लिए श्रेयस्कर होगा। शायद त्रिजटा भी इसी दिशा में सोच रही होगी। रावण की निकटस्थ होने के कारण उसने सीता को संरक्षण देने के लिए चुनी गई राक्षसियों के समूह का नेतृत्व भी त्रिजटा को सौंपा हो।

विचार का क्रम एक ओर और भी जाता है। मंदोदरी रावण की सुंदर और सर्वप्रिय रानी थी। वह सुशीला और धर्मशीला भी थी। उसके आचरण को रामचरितमानस में भी उदात्त स्त्री के रूप में वर्णित किया गया है। वह समय-समय पर रावण के दंभाचरण के विपरीत सही वर्ताव और व्यवहार के परामर्श भी रावण को दिया करती थी। जब उसने सुना होगा कि राम और लक्ष्मण ने खर - दूषण का वध किया। सूर्पणखा के आचरण के कारण उसके नाक कान काटे गए। इसके पहले राम ताड़का का वध कर चुके थे, राम ने विश्वामित्र जी के यज्ञ की रक्षा के समय मारीच को अपने वाणों से सौ योजन दूर फेंक दिया था और सुबाहु का तो वध ही कर दिया था। इतनी वीरता और शौर्य के धनी पुरुष की पत्नी को छल से अपहरण कर रावण द्वारा लाया गया है। शायद सीता के धनुष यज्ञ की भी कहानी मंदोदरी के पास अवश्य पहुंची होगी। उसी सीता को रावण अपहृत कर ला चुका है। उसी सीता को मंदोदरी के समानांतर या ऊँचे स्तर पर स्थापित कर लंका की पटरानी बनाना चाहता है। उस सीता से रावण के प्रतिबंधों के कारण वह अकेले में सीधे तो नहीं मिल सकती। इसलिए रावण के साथ मिलने जाते हुए अपनी सबसे प्यारी ननद त्रिजटा को भी अपने साथ रखकर सीता के बारे में सबकुछ जानना चाहती हो।
क्या सीता सामान्य मानवी है? क्या सीता कंचन मृग के प्रति आकर्षण से बंधी हुई कंचन- कृति लंका की पटमहिषी बनाना चाहती है? क्या सीता के अपूर्व सौंदर्य के आकर्षण से बंधे हुए ही रावण अप्रत्यक्ष रूप से ही सही चौर वृत्ति अपनाकर उसका अपहरण कर अपनी संगिनी बनाना चाह रहा है? इन सारे अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर संभवतः त्रिजटा के सीता के साथ लंबे सम्पर्क के बाद प्राप्त हो जाय। इसलिए यहाँ पर यह मानने में अनर्थ नहीं होगा कि त्रिजटा को मंदोदरी के द्वारा सीता की सच्चाई जानने की लिए भी सीता को अशोकवन में सुरक्षा प्रदान करने वाली स्त्री सुरक्षा कर्मियों में शामिल करवाया गया हो।

राम का संदेश और राम जी के आशीर्वाद की शक्ति से सम्पन्न हनुमान जब मैनाक पर्वत के थकित श्रम से विश्रांति दूर करने के अनुरोध को नम्रता पूर्वक अस्वीकार करते हुए आगे बढ़ते हैं, तो सुरसा और लंकिनी जैसी बाधाओं से सामना होता है। उन्हें युक्तिपूर्वक विष्णुभक्त विभीषण की कुटिया में पहुंचते ही आगे के पथ संचलन की जुगत मिल जाती है। उसी जुगत को अपनाकर वे अशोक वाटिका में पहुँचते हैं। उन्होंने सीता को पहले नहीं देखा है, पर उस वाटिका में एक ही स्त्री है, जो
कृष तनु सीस जटा एक बेनी।
जपती हृदय रघुपति गुण श्रेणी।। (सुंदरकांड, रामचरितमानस)
हनुमान जी सूक्ष्म रूप में वहाँ पहुँच जाते हैं, जहाँ कोई भी राम का स्मरण कर रहा हो। उस वाटिका में सिर्फ एक स्त्री के अतिरिक्त कोई भी राम का सुमिरन नहीं कर रहा था, यानि सिर्फ सीता को छोड़कर। हनुमान जी का अनुमान सही निकला जब
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारी बहु किएँ बनावा।।
और रावण ने सीता को कैसे समझाया?
कह रावण सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी।।
तव अनुचरी करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा।।
(सुंदरकांड, रामचरितमानस)
सीता की शक्ति के सामने रावण जैसा शक्तिशाली असुर भी निरुपाय है। क्या है उनकी शक्ति ? मात्र "अवधपति का सुमिरन"
तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।।
सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करई विकासा।। (सुंदरकांड, रामचरितमानस)
और इन सारे संवादों की साक्षी त्रिजटा रही है।
स्वयं को "खद्योत सम" सुनते ही रावण के क्रोध का पारा आसमान पर चढ़ जाता है। वह सीता के वध करने पर जब उतारू हो जाता है, तब "मयतनया" यानि मंदोदरी नीति की बात समझाकर सीता को समझाने और समझने के लिए 'मास दिवस' यानि एक महीने का समय मांगती है, जिसे रावण अपनी स्वीकृति प्रदान कर वहाँ से चला जाता है। उस एक मास तक त्रिजटा को भी अशोक वाटिका में रखने की सहमति में मंदोदरी की भी सम्मति है, इसके निश्चित संकेत मानस में हैं।
मंदोदरी की नीति की बातें तो रावण ने सुन ली। लेकिन उसे कितना अमल में लाया या ला सका, उसके आगे के कर्तित्व से पता चलता है। ऐसे ही लोगों के लिए तुलसीदास ने कहा है:
सठ सन विनय कुटिल सन नीति। सहज कृपाण सन सुंदर नीति।।
इसीलिए उसने सारी राक्षसियों को बुलाकर सीता को हरतरह से तंग करने और डर तथा भय दिखाकर उसकी (रावण की) बात मनवाने के लिए कहा। रावण के जाते, जैसे ही राक्षसियों ने सीता को त्रास देना शुरू किया, त्रिजटा से यह देखा नहीं गया।
यहाँ पर त्रिजटा अपने पात्र को जीने लग जाती है। त्रिजटा अपने स्वप्न की बात सबों को सुनाते हुए, सीता जी की वास्तविकता के बारे में बताती है। त्रिजटा जैसे पात्र का सृजन बाल्मीकि जी ने "रामायण" में और गोस्वामी तुलसीदास जी ने "रामचरितमानस" में किया है। एक नए पात्र को जोड़ने के पीछे रचनाकार का क्या उद्देश्य हो सकता है?
एक: कहानी के कथानायक या नायिका के चरित्र को ऊँचाई प्रदान करना
दो: कहानी के मूल तत्व और सिंद्धांत को स्थापित करना
तीन: कहानी को आगे बढ़ाने की दिशा देना
चार: कहानी में स्वयं उस पात्र की पात्रता और सार्थकता स्थापित करना।
इन चारों बिंदुओं पर विचार करते हुए हमलोग त्रिजटा के चरित्र पर दृष्टिपात करते हैं:
★एक: कहानी की नायिका सीता के चरित्र को विषेशतः कैसे ऊँचाई प्रदान करने की कोशिश करती है? इसपर विचार करने से पहले हमलोग त्रिजटा द्वारा राक्षसियों को सुनायी गयी उसके सपने की बात पर विचार करें।
त्रिजटा एक विष्णुभक्त की बहन है। उसके अवचेतन मन में अवश्य कोई बात होगी, जो सपना बनकर उसके मानस पटल पर दृश्यमान होती है। विष्णुभक्त का मन निश्छल होता है। लंका में रहते हुए रावण के कुकृत्यों के प्रत्यक्षदर्शी होते हुए भी कुछ नहीं कर पाने की विवशता में उसने विभीषण को हर क्षण दहकते हुए देखा होगा। अपने राक्षस कुल में जन्म को भी कोसा होगा। पर कर्म शास्त्र सिद्धांत के अनुसार अपने पूर्ववर्ती जन्मों के कुकर्मो का फल समझकर मन को समझाना पड़ा होगा। क्योंकि व्यक्ति को अपने पूर्वकृत कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है, "अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम"। मानस में भी इस सिद्धांत की पुष्टि की गयी है:
करम प्रधान विश्व करि रखा। जो जस करइ सो तस फल चाखा।
त्रिजटा को सीता की उपस्थिति से शायद महसूस हुआ होगा कि अपने अशुभ कर्मों, जिसके कारण राक्षसों के कुल में उसका जन्म हुआ, को शुभ कर्मों के परिपालन और आचरण द्वारा उनके प्रतिगामी प्रभाव को कम करने का समय आ गया है। इसीलिए वह सपने की बात सुनाती है।
"सबन्हौ बोली सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना।।"
क्यों सीता की सेवा के लिए राक्षसियों को सीख देती है?
क्योंकि:
"सपने बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।
खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।।
एहि विधि सो दक्षिण दिसि जाई। लंका मनहु विभीषण पाई।।
यह सपना मैं कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गए दिन चारी।।"
(सुंदर कांड, रामचरितमानस)
एक बानर आकर पूरी सोने की लंका जला देता है। रावण की सारी सेना का वध कर दिया जाता है। रावण की बीसों भुजाओं को काटकर, दसों सिर का मुंडन कर , गदहे पर बिठाकर, दक्षिण दिशा को भेजा जाता है और लंका का राज्याभिषेक विभीषण को किया जाता है। यह सपना दो चार दिनों में ही सत्य होने वाला है। सीता को कोई साधारण स्त्री समझने की भूल मत कर।
इसीलिए "सीतहि सेइ करहु हित अपना।"
इतना सुनते ही सारी राक्षसियों को अपनी गलती का भान होता है और वे सीता जी के चरणों से लिपटकर क्षमा याचना करते हुए उनकी सेवा में रत हो जाती हैं।
शक्तिस्वरूपा, भक्तिस्वरूपा सीता माता के चरित्र को त्रिजटा इतनी ऊंचाई तक पहुँचाती है, इसतरह रचनाकार का इस चरित्र के सृजन का पहला उद्देश्य पूरा हो जाता है।
★दो: क्या त्रिजटा अपने छोटे से रोल में कहानी के मूल तत्व और सिद्धांतों को स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ पाती है?
सीता, भक्ति की शक्ति की साकार स्वरूप हैं। त्रिजटा इसे स्थापित करती है। उसने सीता को एक तृण की ओट से रावण जैसे प्रतापी, बलशाली नृप को "खद्योत सम" कहकर चुनौती देते हुए देखा है। ऐसी स्त्री कोई सामान्य नारी नहीं हो सकती। त्रिजटा को इसका भान हो गया है कि कोई दैवी शक्ति ही मानवी रूप में जगत के हित के लिए लीला करने आई है। इसीलिए जब सीता उससे अनुनय-विनय करते हुए कहती है,
"त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपत्ति संगिनी तैं मोरी।।
तजौं देह करू बेगी उपाई। दुसह विरह अब नहीं सही जाइ।।"
तो त्रिजटा को यह समझते हुए देर नहीं लगती कि सीता मइया, जो स्वयं जगज्जननी है, उसे "मातु" का सम्बोधन देकर उस जैसे अकिंचन का मान बढ़ाने की ही चेष्टा कर रही है। सीता ने त्रिजटा में माता का जो स्वरूप देखा, उससे त्रिजटा को अवश्य भान हुआ होगा मानो उसने राक्षस कुल में भी जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त कर लिया हो। जिस लंका में भौतिकता और दैहिक सुख को प्राप्त करने को ही जीवन लक्ष्य समझा जाता है, वहाँ भी अपनी सात्विकता और ईश्वर भक्ति के सातत्य को कायम रखने वाली त्रिजटा को माँ के उच्च धरातल पर भक्तवत्सला सीता माता ही स्थापित कर सकती है। इसतरह त्रिजटा के पात्र द्वारा गोस्वामी जी ने कथा के मूल तत्व और सिद्धांत को स्थापित किया है।
★तीन: यहाँ से कहानी को आगे बढ़ाने की दिशा मिल जाती है। वैसे सीता स्वयं जगतमाता है, पर उनके लिए विकट और विपरीत परिस्थितियों में भी जो सहानुभूति रखता है, उसे मान देना भी वात्सल्यता की रसानुभूति निःसृत करता है। इसलिए उसका मान रखने और मान देने से कहानी को एक दिशा मिलती है। त्रिजटा सारी राक्षसियों, जिसे रावण ने सीता को संत्रास देने के लिए वहाँ रखा था, उसी के द्वारा सीता की सेवा करवाती है। राक्षसियों के स्वभाव में यह परिवर्तन त्रिजटा जैसी ईश्वर भक्ति में लीन स्त्री ही कर सकती है। इसलिए सीता अपनी अन्तर्भावनाओं को त्रिजटा से साझा करती है। अपनी गलती के कारण जिन परिस्थितियों में उन्हें राम से दूर विरह के समुद्र में डूबने की स्थिति बन रही है, त्रिजटा के रूप में एक नौका मिल जाती है, जो उन्हें जीवन को आगे जीने की आशा जगाती है। सीता को वह समझाती है कि शीघ्र ही राम आयेंगें और रावण का नाश कर तुम्हे इस कष्ट से मुक्त करेंगें। इसतरह आगे कहानी किस दिशा में बढ़ेगी इसका निश्चित संकेत मिल जाता है।
★चार: त्रिजटा अपने सपने की बात राक्षसियों को बताकर उनके मन मस्तिष्क में सीता के प्रति सम्मान को जगाने में सफल होती है। इसे कहा जा सकता है कि कहानी में वह स्वयं अपनी पात्रता स्थापित करती है। वह सीता की शक्ति को जिस रूप में प्रत्यक्ष देखती है, वह उस काल, स्थान और समय में उसके जीवन की सबसे अद्भुत और अलौकिक संदर्भ के जुड़ने के जैसा है। उसकी कल्पना से परे उसका जीवन धन्य हो गया, ऐसे आत्मानुभव से वह गुजरती है।
उपसंहार: कभी-कभी छोटे पात्र भी कथानक को नई ऊँचाई देने में अहम भूमिका निभा जाते हैं। त्रिजटा जैसे पात्र छोटे रोल में भी बामन की तरह हैं, जो देखने में छोटे हैं पर विराट होने की क्षमता रखते हैं। बामन से विराट की यात्रा ही तो जीवन को मोक्ष की ओर ले जाने वाला होता है। इस तत्व का भेद ही त्रिजटा के पात्र को उदात्त बना देता है।
©ब्रजेंद्रनाथ











Tuesday, March 10, 2020

होली को खास बनाएँ(कविता)

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#poemonholi





प्रिय पाठकों,
आपको और आपके समस्त परिवार को होली की अनंत, असीम, अशेष शुभकामनाएँ!
मेरी एक कविता प्रस्तुत है। अवश्य पढ़ें और देखें। सारे छंद  पहले लिखे गए हैं। अंतिम छंद मैंने आज ही जोड़ा है।
इसका वीडियो लिंक भी दे रहा हूँ। अवश्य देखें। अपने मित्रों और करीबियों को मेरे चैनल 'marmagya net' को सब्सक्राइब करने के लिए कहें। आपको  हृदय से होली का पुनः अभिनंदन!

होली को इसबार कुछ खास बनायें

वे रंग जो पुते हैं, उनके चेहरों पर ,
हैं जुदा उनसे, जो हैं उनके अन्दर ।
अन्दर के रंगों में विश्वास जगायें।
होली को इस बार कुछ खास बनायें।

अफसाने गा चुके  मुहब्बतों के
कसीदे सजा चुके उल्फतों के।
इस होली प्रेम का पुख्ता अहसास जगायें।
होली को इस बार कुछ खास बनायें।

वो झोपड़ी जो है गली के मुहाने पर 
कोई बेरंग सवाल  है, जमाने पर।
इस होली वहां का सन्त्रास मिटाएं।
होली को इस बार कुछ खास बनायें।

इस होली कुछ सवाल उथड़े उथड़े से है।
जवाब देते हुये क्यों वे उखड़े उखड़े से हैं ? 
इस होली जवाब में एक  इतिहास रचायें। 
होली को इस बार कुछ खास बनायें।

गेंदे, गुलाब, जूही,  चम्पा और चमेली
चमन में हैं रंगों का मेला मेरी सहेली।
चलो इस बार कुछ  पलाश उगायें।
होली को इस बार कुछ खास बनायें।

वे बच्चे जो बीन रहे बचपन में कचरे,
उनको लौटा दें उनके सपने सुनहरे।
उनके उड़ान का एक आकाश बनायें।
होली को इस बार कुछ खास बनायें।

सीमा पर जो डटे हैं देश के प्रहरी
उनसे ही होली है हमारी रंगों भरी
उनके लिये सीने में आग का उजास धधकायें।
होली को इस बार कुछ खास बनायें।

सड़कों पर बैठे हैं, भ्रम से जो ग्रस्त हैं, 
सियासत में फंसकर जो झूठ में व्यस्त हैं।
उनके दिलों में सच का सुवास बसाएँ।
होली को इसबार कुछ खास बनाएँ।

YouTube link: https://youtu.be/X5rsyNlnokM
©ब्रजेंद्रनाथ
यह कविता और मेरी अन्य कविताएँ मेरे कविता संग्रह "कौंध" को अमेज़न किंडल के इस लिंक से डाउनलोड कर पढ़ें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं:
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Tuesday, March 3, 2020

मति अइह फागुन में (भोजपुरी कविता)

#BnmRachnaWorld
#poembhojpuri



पिछले रविवार 23 फरवरी को सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में तुलसी भवन बिष्टुपुर जमशेदपुर में लोकभाषाओं में काव्य पाठ के लिए आयोजित "लोक मंच" कार्यक्रम में कविता पाठ का सुअवसर मिला। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता आदरणीय यमुना तिवारी "व्यथित" जी ने की, संयोजन माधवी उपाध्याय जी ने किया और ममता सिंह जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। आप तस्वीरों में कार्यक्रम की झलकियों को देखते हुए मेरे द्वारा कविता पाठ का आनंद ले। कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य दें। इस चैनल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें।

सैया अबकी बार तू मति अईह फागुन में।
सीमा पर दुश्मन फिर से घात लगाकर आइल बा।
पलखत पाई के अंदर में घुसे के जुगाड़ में जुटल बा।
उ सब के ठिकाने लगाके रहिह फागुन में।
सैया अबकी बार मति अईह फागुन में।

बर्फ के तूफान उठत होई हम जानs तानी,
तीर जइसन ठंढ चुभत होई हम जानs तानी।
वज्र जइसन बदन बनाके डटल रहिह फागुन में।
सैया अबकी बार तू मति अईह फागुन में।

इहवाँ देश के अंदर भी मीरजाफर गैंग बढ़ता,
सरकार के नरभसावे खातिर चाल अपन चलता।
एकर चिंता मत तू करिह ठिकाने लगिहें फागुन में।
सैया अबकी बार तू मति अईह फागुन में।

इहवाँ रंग गुलाल तो उड़ी बहुत पर राऊर साथ न होई,
इहवाँ ढोलक पर थाप पड़ी, पर राऊर साथ न होई।
चिंता मत करिह हमार, देशवा के सम्मान रखिह फागुन में।
सैया अबकी बार तू मति अईह फागुन में।
©ब्रजेंद्रनाथ
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सादर आभार!
ब्रजेंद्रनाथ

You Tube link:
https://youtu.be/_MKhN7A-4O4

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...