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Friday, December 30, 2022

नव वर्ष में हर्ष का विस्तार हो (कविता) #new year 2023 greetings

 #BnmRachnaWorld

#newyeargreetings #happynewyear2023









नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

नव वर्ष की नव रश्मियाँ
दे रहीं संदेश पल - पल।
सुधियाँ वही जो दे खुशी,
हो यही उद्घोष प्रतिपल।
नव स्फूर्ति के साथ नवाचार हो
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

कैलेंडर के बदले जाएँ पन्ने
नव वर्ष  के हर महीने में
नव उत्साह, नव उमंग की
भावनायें जगे हर सीने में.
हर पल खुशियों का संचार हो
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

नव वर्ष कोई भी लड़की
टुकड़ों में ना काटी जाए
नव वर्ष में कोई भी श्रद्धा
आफताबों के जाल में ना बांटी जाये.
नव वर्ष में कभी भी ना दुराचार हो.
नव वर्ष में हर्ष का विस्तार हो.

नव वर्ष में  कन्हैया की
नहीं कटती रहे गर्दन
नव वर्ष में वहशियाना
कृत्यों का  हो मर्दन
वर्ष में निडरता का नया आधार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

छोटी आँखें छोटे कद वालों चीनियों
दम  देखो फौलादी बाजुओं में
मारेंगे, काटेंगे, और गाड़ देंगे
तवांग की बर्फ़ीली  घाटियों में.
इस वर्ष दुश्मनों का सम्पूर्ण संहार हो.
नव वर्ष में हर्ष का विस्तार हो.

हम हैं जो तम की घाटियों से
किरण खुशियों की खींच लाते हैं.
हम हैं कि अँधेरे बादलों पर
बिजलियों का स्यन्दन चलाते हैं.
हमारे तूर्यनाद का दिग दिगंत प्रसार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

घना कोहरा छाया हो गगन में,
रश्मियों का रथ न कोई रोक पाया.
खुशियों के चिरागों की गति को
तमिश्रा का त्वरण न रोक पाया.
नव वर्ष में सदप्रयास सब साकार हो
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

सीमा पर डटे सेनानियों,
हमारे दिलों में आप धड़कते हो
हम मनाते हैं खुशियां यहाँ,
जब आप दुश्मनों पर झपटते हो.
देशवासियों उनका नमन सौ बार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.


नव अन्वेषण के लिए
सिद्धांतों का शोधन करो।
नयी सोच पर, नई रीति से
नये आलोक में चिंतन करो.

नये विमर्श की नई शोध  स्वीकार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/qPOf386Jpfg




Friday, December 23, 2022

अटल होते आज अगर (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#Atalhoteaajagar

#atal









अटल होते आज अगर

पीर पंजाल का नाम होता
पञ्चालधारा  पर्वत माला?
पी ओ जे के होता भारत में,
गिलगिट पर फहराता तिरंगा निराला?

अटल होते आज अगर
रग रग हिन्दू मेरा परिचय,
भारत का वेद वाक्य होता
सत्य सनातन  ही
देश का अभिनव साक्ष्य होता.

अटल होते आज अगर
धर्म कोई भी ना होता
देशधर्म ही होता धर्म एकमात्र.
विपक्ष भी क्या होता सुसंस्कृत,
धर्म रक्षित, होता सुपात्र?

अटल होते आज अगर
जनसंख्या नियंत्रण पर
क्या बदलता संविधान ?
क्या होता एन आर सी पर
विस्तृत और संशोधित विधान?

अटल होते आज अगर
क्या चुनाव प्रक्रिया में
होता व्यापक सुधार?
क्या निर्वाचितों को वापस
बुलाने का मिलता अधिकार?

अटल होते आज अगर
क्या कानूनों में होता
आमूल चूल परिवर्तन?
क्या गुलाम भारत के कानूनों
का समाप्त होता चलन?

अटल होते आज अगर
क्या मदरसों के विद्यालयों
में भी लागू होती राष्ट्रीय शिक्षा नीति?
क्या पूरे भारत में एक सिलेबस
से होते सभी विद्वान और ना होती राजनीति?

ये सभी सवाल तब भी होते
आज भी खोज रहे हैं उत्तर.
देश को विकास के पथ पर
ले जाने को हो अगर तत्पर.

©ब्रजेन्द्र नाथ

Tuesday, December 13, 2022

गीतकार कवि शैलेन्द्र (लेख)#पुण्य तिथि पर

 #BnmRachnaWorld

#shailendra

#makingof#TeesariKasam











मेकिंग ऑफ़ तीसरी कसम

(शैलेन्द्र के पुण्य तिथि 14 दिसंबर पर विशेष )

शायद प्रेम की परिणति यही है कि वह अधूरा रह जाय, उसका अधूरापन ही उसकी पूर्णता है, उसके अधूरेपन से उत्पन्न दर्द की छटपटाहट ही  इसकी गहराई है।  लहरों का उठना, तरंगों में तब्दील होना और किनारे जाकर टूटकर लौट जाना ही उसकी पूर्णता है।
मित्रों, रेणु जी की कहानी "मारे गए गुलफाम"  में पनपते अंतर्निहित  प्रेम के भावनाओं के अनुरूप और उसके विछोह सहित नमी भरे नोट पर अंत ' की कहानी को पर्दे पर उतारना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. इस चुनौती को पूरा करने में कवि शैलेन्द्र ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया. आइये 14 दिसंबर, उनकी पुण्य तिथि पर उनके संघर्षो के कुछ पहलूओं को याद करते हैं.

यह फ़िल्म हिन्दी के महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गये गुलफाम' पर आधारित है। इस फिल्म का फिल्मांकन सुब्रत मित्र ने किया है। पटकथा नबेन्दु घोष की है, जबकि संवाद स्वयं फणीश्वर नाथ "रेणु" ने लिखे हैं। फिल्म के गीत शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने लिखें, जबकि फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने दिया है। यह फ़िल्म उस समय व्यावसायिक रूप से सफ़ल नहीं रही थी, पर इसे आज अदाकारों के श्रेष्ठतम अभिनय तथा अप्रतिम निर्देशन के लिए जाना जाता है। इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफ़िस पर पिटने के कारण निर्माता गीतकार शैलेन्द्र का निधन हो गया था। इसको तत्काल बॉक्स ऑफ़िस पर सफलता नहीं मिली थी पर यह हिन्दी के श्रेष्ठतम फ़िल्मों में गिनी जाती है।
हि रामन एक गाड़ीवान है। फ़िल्म की शुरुआत एक ऐसे दृश्य के साथ होती है जिसमें वो अपना बैलगाड़ी को हाँक रहा है और बहुत खुश है। उसकी गाड़ी में सर्कस कंपनी में काम करने वाली हीराबाई बैठी है। हिरामन कई कहानियां सुनाते और लीक से अलग ले जाकर हीराबाई को कई लोकगीत सुनाते हुए सर्कस के आयोजन स्थल तक हीराबाई को पहुँचा देता है। इस बीच उसे अपने पुराने दिन याद आते हैं और लोककथाओं और लोकगीत से भरा यह अंश फिल्म के आधे से अधिक भाग में है। इस फ़िल्म का संगीत शंकर जयकिशन ने दिया था। हीरामन अपने पुराने दिनों को याद करता है जिसमें एक बार नेपाल की सीमा के पार तस्करी करने के कारण उसे अपने बैलों को छुड़ा कर भगाना पड़ता है। इसके बाद उसने कसम खाई कि अब से "चोरबजारी" का सामान कभी अपनी गाड़ी पर नहीं लादेगा। उसके बाद एक बार बांस की लदनी से परेशान होकर उसने प्रण लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वो बांस की लदनी अपनी गाड़ी पर नहीं लादेगा। हीराबाई नायक हिरामन की सादगी से इतनी प्रभावित होती है कि वो मन ही मन उससे प्रीति कर बैठती है उसके साथ मेले तक आने का 30 घंटे का सफर कैसे पूरा हो जाता है उसे पता ही नहीं चलता हीराबाई हिरामन को उसके नृत्य का कार्यक्रम देखने के लिए पास देती है जहां हिरामन अपने दोस्तों के साथ पहुंचता है लेकिन वहां उपस्थित लोगों द्वारा हीराबाई के लिए अपशब्द कहे जाने से उसे बड़ा गुस्सा आता है। वो उनसे झगड़ा कर बैठता है और हीराबाई से कहता है कि वो ये नौटंकी का काम छोड़ दे। उसके ऐसा करने पर हीराबाई पहले तो गुस्सा करती है लेकिन हिरामन के मन में उसके लिए प्रेम और सम्मान देख कर वो उसके और करीब आ जाती है। इसी बीच गांव का जमींदार हीराबाई को बुरी नजर से देखते हुए उसके साथ जबरदस्ती करने का प्रयास करता है और उसे पैसे का लालच भी देता है। नौटंकी कंपनी के लोग और हीराबाई के रिश्तेदार उसे समझाते हैं कि वो हिरामन का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दे नहीं तो जमींदार उसकी हत्या भी करवा सकता है और यही सोच कर हीराबाई गांव छोड़ कर हिरामन से अलग हो जाती है । फिल्म के आखिरी हिस्से में रेलवे स्टेशन का दृश्य है जहां हीराबाई हिरामन के प्रति अपने प्रेम को अपने आंसुओं में छुपाती हुई उसके पैसे उसे लौटा देती है जो हिरामन ने मेले में खो जाने के भय से अमानत के रूप में उसे दिए थे। उसके चले जाने के बाद हिरामन वापस अपनी गाड़ी में आकर बैठता है और जैसे ही बैलों को हांकने की कोशिश करता है तो उसे हीराबाई के शब्द याद आते हैं "मारो नहीं"और वह फिर उसे याद कर मायूस हो जाता है।

अन्त में हीराबाई के चले जाने और उसके मन में हीराबाई के लिए उपजी भावना के प्रति हीराबाई के संवेदना से विगलित ह्रदयाकाश से विदा लेने के बाद उदास मन से वो अपने बैलों को झिड़की देते हुए तीसरी क़सम खाता है कि अपनी गाड़ी में वो कभी किसी नाचने वाली बाई को नहीं ले जाएगा। इसके साथ ही फ़िल्म खत्म हो जाती है।
मित्रों, क्या यह कहानी जिसके अंत में नायक - नायिका का विछुड़न हो, फ़िल्म के व्यावसायिक रूप से सफल या हिट होने के उन दिनों के फॉर्मूले पर फिट बैठता था? यह प्रश्न बार - बार मन में उठता है.  व्यवसायिक अनुभव की कमी के बावजूद शैलेन्द्र ने एक असफल प्रेम पर आधारित साहित्यिक कृति को सेलूलाइड पर उतारने की हिम्मत की, इसे भगीरथ के गंगा को ज़मीन पर उतारने जैसा ही महत कार्य कहा जा सकता है.  इस कहानी में शैलेन्द्र को एक कविता की बहती धारा दिखी होगी, तभी वे उस दुर्गम पथ पर अथाह, असीम, अनंत हिम्मत के साथ बढ़ गए.
कहा जाता है कि कवि शैलेन्द्र ने जब राजकपूर के समक्ष हिरामन की मुख्य भूमिका निभाने का प्रस्ताव रखा, तो वे तत्काल मान गए. यह शैलेन्द्र के प्रति उनके सम्मान का ही प्रतिफल था. लेकिन उन्होंने जब अपने अनुबंध की पूरी रकम की अग्रिम भुगतान की बात कही तो शैलेन्द्र सकपका गए. उन्हें अपने अनन्य मित्र से ऐसी उम्मीद नहीं थी. तब राजकपूर ने हंस कर कहा था, "निकालो मेरा पूरा पेमेंट एक रुपया."
शैलेन्द्र ने अपने को संयत किया और निर्माण की प्रक्रिया सन 1961 में आरम्भ हो गई. उसी समय राजकपूर ने अपनी पहली रंगीन फ़िल्म "संगम" भी आरम्भ कर दी थी. बासु भट्टाचार्य जो विमल राय के असिस्टेंट रह चुके थे, उन्होंने इसके निर्देशन का भार संभाला. सन 1961 में इस फ़िल्म को आठ महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन इसके पूरे होने में पांच वर्ष लग गए. इस फ़िल्म के निर्माण के लम्बे खिंचे  जाने के कई कारण रहे. इसमें मुख्य किरदार निभा रहे कलाकारों का डेट नहीं मिलना, मध्यप्रदेश के बीना में फ़िल्म की शूटिंग शेडूल करना, और अचानक निर्देशक के बिना सूचना के शूटिंग से गायब हो जाना कुछ मुख्य कारण रहे. फ़िल्म निर्माण और पूर्ण होने में विलम्ब के कारण फ़िल्म का बजट जो आरम्भ में एक लाख (ब्लैक और व्हाइट) था, वह बढ़ता चला गया. कहा जाता है कि निर्देशक बासु भट्टचार्य को विमल राय की बेटी से प्रेम हो गया, जिसे विमल राय पसंद नहीं करते थे. बासु भट्टाचार्य बीच में फ़िल्म की शूटिंग छोड़कर कलकत्ता भाग गए. वहाँ उन्होंने उसी लड़की से कोर्ट मैरेज कर लिया. इसतरह फ़िल्म में विलम्ब होता गया. इससे पता चलता है कि फ़िल्म के निर्माण और समय सीमा के अंतर्गत पूरा होने के प्रति प्रोडूसर और गीतकार शैलेन्द्र, कथाकर और संवाद लेखक फणीश्वर नाथ रेणु, गायक मुकेश, संगीत निर्देशक शंकर जयकिशन आदि जितने प्रतिबद्ध थे, उतना टीम के अन्य सदस्य शायद नहीं थे. शैलेन्द्र ने अपनी सारी कमाई झोंक दी, कर्ज भी लिए और जब फ़िल्म पूरी हुई तो उनके ऊपर कर्ज का भारी बोझ था, जो उनकी सांसों पर भारी पड़ता गया. लेकिन यह सही नहीं है. फ़िल्म की दुनिया या किसी भी अन्य व्यवसाय में कर्ज भी उसीको मिलता है, जिसकी विश्वसनीयता होती है. शैलेन्द्र उस समय सबसे अधिक पैसे अर्जित करने वाले गीतकारों में थे. इसलिए कर्ज से मुक्त होने में उन्हें कोई अधिक समय नहीं लगता. फिर वे किस व्यवहार से आहत थे कि उन्हें उसकी कीमत अपनी सांसों को देकर चुकानी पड़ी. फ़िल्म के अंत को राजकपूर बदलना चाहते थे. वे इसे दुखान्त नहीं, सुखांत बनाना चाहते थे. लेकिन यह न शैलेन्द्र को और न ही फणीश्वर नाथ रेणु जी को ही मान्य था.
शैलेन्द्र को फ़िल्म निर्माण से जुड़े उनके अपने लोगों ने भी ठगा. फ़िल्म निर्माण के व्यवसाय से अपरिचित वे सबों की बातें मानते चले गए. कहा जाता है न कि अपनों का घाव बड़ा गहरा होता है. आपका विश्वास जहाँ टूटता है, आपका दिल भी टूटता है. शायद हिरामन का दिल भी ऐसे ही टूटा होगा. हीराबाई हिरामन के निश्छल, निष्कलुष प्यार से प्रभावित और द्रवित होने पर भी अपनी भावनाओं को उसपर प्रत्यक्षतः अभिव्यक्त नहीं कर पायी.
और अंत में जब वह हिरामन से बिछुड़ती है, तो उसका हृदयबेधक वाक्य

"महुआ घटवारिन को सौदागर ने खरीद लिया है, गुरु जी!"  दर्शक के दिल के टुकड़े - टुकड़े कर देता है.
कितनी बेबसी है, इस वक्तव्य में। बाजार सजा है, खरीददार जिगर भी खरीद रहे है और जिगर के अंदर की भावनाओं को भी इंजन से भाप के साथ निकलती सीटी की तरह उड़ा  दे रहे हैं। किसका क्या चिथड़े - चिथड़े बिखर रहा है, किसकी चिन्दियाँ कहां उड़ रही हैं, किसके तीर किसके जिगर के पार हो रहे हैं, किसका वार किसको लहुलुहान कर रहा है, इससे उसे क्या मतलब? 
यह कहानी है उस फ़िल्म की जो उसके प्रोडूसर की साँसों के चुक जाने बाद सुपरहिट हो गई. जबकि शैलेन्द्र के जीवन काल में कोई भी वितरक इस लीक से हटकर बनी फ़िल्म को खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ. यह डिब्बे में बंद होने ही वाली थी कि शैलेन्द्र की आँखें इसे इस स्थिति में देखने के पहले ही बंद ही गईं.
उसके बाद तो फ़िल्म ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कई पुरस्कार प्राप्त किए. इस फ़िल्म के साथ शैलेन्द्र मरकर भी लोगों के दिलो दिमाग़ में जी उठे...
उनकी स्मृतियों को सादर नमन ❗️

ब्रजेन्द्र नाथ 

Friday, November 25, 2022

मैं यायावरी गीत लिखूँ (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#spiritualpoem

#philosophy #geet










मैं यायावरी गीत लिखूँ


मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाऊँ।
मैं तितली बन फिरूँ बाग में,
कलियों का जी न दुखाऊं।
गुंजन करुँ  लता-द्रुमों  पर,
उनको  कभी ना  झुकाऊँ।


मैं करुँ मधु - संचय और मधु-रिक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाऊँ।

मैं नदी,  सर्पिल पथ से
इठलाती-सी बही जा रही।
इतने बल कमर में कैसे
कहाँ- कहाँ से लोच ला रही?


मैं उफनाती, तोड़ किनारे को उन्मुक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

मेरे गीत उड़े  अम्बर में,
जहां पतंगें उड़ती जाती।
जहां मेघ सन्देश जा रहा,
यक्ष - प्रेम में जो मदमाती।


उसके आंगन में बरसूं  और जल-रिक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

गीत तरंगें चली लहरों पर
कभी डूबती, कभी उतराती।
कभी बांसुरी की धुन सुनने
यमुना तट पर दौड़ी जाती।


मैं नाचूं गोपियों संग और स्नेह-रिक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

मैं जाउँ संगम - तट पर
धार समेटूं  आँचल में ।
मैं चांदनी की लहरों पर
गीत लिखूं, हर कल कल में।


मैं झांकूँ निराला निलय में, छंद मुक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

मैं घूमूं काशी की गलियां,
पूछूं तुलसी औ' कबीर से।
बहती गंगा से बीनो तुम
शब्द शब्द शीतल समीर से।


उनके छंदों  को दुहराउँ, शोध-युक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

उड़ती  रहे धूल मिट्टी की,
शहनाई पर हो नेह राग।
गीत लिखूं औ' तुम टेरो
अंतर के उर्मिल अनुराग!


अणु-वीणा के  सुर गूंजे और बोध युक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।
©ब्रजेन्द्रनाथ

इस कविता को मेरी आवाज में यूट्यूब के इस लिंक पर सुनें. चैनल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें :



Thursday, November 3, 2022

उदधि है अपार नाविक ले चल पार (कविता) #प्रेरक

 #BnmRachnaWorld

#poeminspirational

#प्रेरककविता




 








नाविक ले चल पार 

उदधि है अपार, असीम है विस्तार,
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!

आँधी में, हवाओं में कैसे तेरा बस चले?
धाराएँ प्रतिकूल हों, कैसे तेरा बस चले?
हिम्मत भरो अपार, नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!!

नाव चलाओ साथी मेरे, लहरों से चलो खेलें,
उमंगों की ऊंचाइयों पर, उर के बंध खोलें।
नेह - रथ पर सवार, नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!!

क्षितिज पर इंद्रधनुष, रंगों का लगा मेला है,
साथी चलो मेघ संग, बूंदों का लगा रेला है।
किसका है इंतजार,  नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल  पार!!

तप्त ह्रदय आँगन में, स्नेह की बौछार  करो,
प्लावित हो जाये मन, तृप्ति का संचार करो.
खिल जाये बहार, नाविक चलो उस पार.
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार.

लहरों के पार लक्ष्य है, तूफानों से क्या डरना है,
आगे बढ़ते जाना है, मंजिल पर ही दम लेना है.
टूटे ना जोश का तार, नाविक चलो उस पार.
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार.

@ब्रजेन्द्र नाथ

कविता मेरी आवाज में इस लिंक पर सुनें :
https://youtu.be/E62rpJNb_Ak




Friday, October 21, 2022

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ (कविता) #दिवाली

#BnmRachnaWorld

#diwalipoem

#दिवालीपरकविता 








पहले अंतस का तमस मिटा लूँ

तब बाहर दीपक जलाने चलूँ.


गम का अंधेरा घिरा जा रहा हैं,

काली अँधेरी निशा क्यों है आती.

कोई दीपक ऐसा ढूढ़ लाओ कहीं से

नेह के तेल में जिसकी डूबी हो बाती.

अंतस में प्रेम की कोई बूंद डालूँ

तब बाहर का दरिया बहाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दरिया बहाने चलूँ.


इस दिवाली कोई घर ऐसा न हो,

जहाँ ना कोई दिया टिममटिमाये.

इस दिवाली कोई दिल ऐसा न हो,

जहाँ दर्द का कोई कण टिक पाये.

अंतर्वेदना से विगलित हुओं के, 

आंसू की मोती छिपाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ, 

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


क्यों नम हैं आँखें, घिर आते हैं आंसू,

वातावरण में क्यों छाई उदासी?

घर में अन्न का एक दाना नहीं हैं,

क्यों गिलहरी लौट जाती है प्यासी?

अंत में जो पड़ा है, उसको जगाकर,

उठा लूँ, गले से लगाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


तिरंगे में लिपटा आया जो सेनानी,

शोणित में जिसके दिखती हो लाली.

दुश्मन से लड़ा कर गया प्राण अर्पण

देश में जश्न हो, सब मनायें दिवाली.

सीमा में घुसकर, अंदर तक वार करके,

दुश्मन को लगाकर ठिकाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


धुआं उठ रहा हैं, अम्बर में छाया,

तमस लील जाए, ना ये हरियाली.

कम हो आतिशें, सिर्फ दीपक जलाएं,

प्रदूषण मुक्त हो, मनायें दिवाली.

स्वच्छता, शुचिता, वात्सल्य ममता

को दिल में गहरे बसाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


सनातन हमारी है शाश्वत धारा

युगों से इसे ऋषियों ने संवारा.

इसकी ध्वजा गगन में उठाएं.

यही आज का है कर्तव्य हमारा.

दुश्मन जो, आ जाये मग में

उसको धरा से मिटाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.

©ब्रजेन्द्र नाथ



Thursday, October 13, 2022

पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है (कविता)

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#pitaparpoem

#पिता #pitaparkavita









पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है

वह चिलचिलाती धूप सहता है,
वह मौसम की मार सहता है।
तूफानों का बिगड़ा रूप सहता है
वह बताश, बयार सहता है।
मजबूत अंगद का पाँव होता है।
पिता बरगद की छाँव होता है।
पिता नीली छतरी का वितान होता है।
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है.


वह परिवार के लिए ही जीता है।
परिवार के लिए हर गम पीता है।
पिता सब फरमाइशें पूरी करता है.
सब कुछ करता, जो जरूरी होता है।
पिता न जाने कहाँ कहाँ होता है,
पिता हमारा सारा जहाँ होता है।
पिता परिवार का आसमान होता है।
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है.

पिता को मैंने हंसते ही देखा है,
पिता कभी अधीर नहीं होता है।
पिता को मैने हुलसते ही देखा है।
पिता कभी गंभीर नहीं होता है।
वह आंसुओं को पलकों में रोक लेता है.
वह आँखें चुराकर कोने में सुबक लेता है.
वह खुशियों का मुकम्मल जहान होता है.
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है.

जब पिता है, तो हमारा अस्तिव है,
जब पिता हैं, तो हमारा व्यक्तित्व है।
जब पिता है, तो हम विस्तार होते हैं।
जब पिता हैं, तो हम साकार होते हैं.
जब पिता है, तो हम सनाथ होते हैं.
जब पिता है, तो हम विश्वनाथ होते है.
वह हमारी उपलब्धियों का प्रतिमान होता है,
वह हमारी आकांक्षाओं की उड़ान होता हैं।

©ब्रजेंद्रनाथ

इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर सुनें :


(सारे चित्र  कॉपीराइट फ्री गूगल से )

Saturday, September 24, 2022

अमृतमयी माँ, हमें प्यार देना (कविता ) #maa Durga

#BnmRachnaWorld #maadurgapoem















अमृतमयी माँ, हमें प्यार देना.

स्वारथ में हम रत हैं हमेशा,
अपने ही बारे में सोचे हैं निशदिन.
बुद्धि पर छाई घनी विकृति को,
प्रक्षालित करना माता प्रतिदिन.

बालक हैं तेरे हमें दुलार देना
करुणामयी माँ हमें तार देना.
अमृत...

हमें शक्ति देना लडूँ राक्षसों से,
दशानन  दुश्चकरों  में  फाँसता है,
पाकर अकेली  माता सीता को
मर्यादा की लक्ष्मण रेखा  लाँघता है.

हमें शौर्य की तू तलवार देना.
शक्तिमयी माँ हमें तार देना.
अमृत....

महिषासुर फिर रणमत्त होकर
सत्य सनातन पर घात करता.
रक्तबीजों से छाया घनमंडल,
धर्माचरण की ध्वजा ध्वस्त करता.

हमें फरसे की तू धार देना.
शौर्यमयी माँ हमें तार देना.
अमृत...

निकल पड़े हम  करने को रक्षा
केसरिया बाना फहराते  हुए.
कोई भी पापी मिल जाये मग में,
उसको ठिकाने लगाते हुए.

सत्य - समर्थित संसार देना.
श्रद्धामयी माँ हमें तार देना.
अमृत...

प्रकृति के दोहन से दूषित हुए
चराचर जगत को बचाएंगे हम.
शपथ में हमारी साक्षी बनो माँ
धरा को हरा फिर बनायेंगे हम.

शुद्धता शुचिता का विचार देना
विद्यामयी माँ हमें तार देना.
अमृत...

सीमा पर दुश्मन रहता घात में,
करता अतिक्रमण भूखंडों पर.
काल भैरव हमें बना देना माँ
नर्तन करूँ उनके नरमुण्डों पर.

शिराओं में रक्त का संचार देना.
कल्याणमयी माँ हमें तार देना.
अमृत...


साधना क़े पथ पर सघन शक्ति देना,
भावना क़े पथ पर भ्रमर - भक्ति देना
तपस्या में लक्षित हो तप की तितीक्षा
प्रखरता की हो प्रबलतम परीक्षा.

बालक हूँ तेरा अंक में प्यार देना
ममतामयी माँ हमें तार देना.
अमृतमयी...

©ब्रजेन्द्र नाथ
यही कविता मेरे यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर मेरी आवाज में सुनें :




















Friday, September 16, 2022

विश्वकर्मा भगवान का वंदन (कविता )

#BnmRachnaWorld #Vishwakarma bhagwan par kavita













विश्वकर्मा भगवान का वंदन

सृष्टि के प्रथम शिल्पी का करते हैं अभिनन्दन।
हाथ जोड़ विश्वकर्मा भगवान का करते हैं हम वंदन।

आपने शिल्प कर्म को कौशल की आभा दी है, श्रमवीरों को स्वाभिमान से जीने की श्लाघा दी है।

इस जगत में सर्वत्र व्याप्त, आपकी सुंदर संरचना, निर्माण हुआ या हो रहा, सब आपकी ही है प्रेरणा।

धर्म पथ पर बढ़ चलें हम, शुद्ध हो मेरे आचरण, सृष्टि के प्रथम शिल्पी का करते हैं अभिनन्दन। हाथ

जोड़ विश्वकर्मा भगवान का करते हैं हम वंदन। ब्रह्मांड सारा आपसे गतिमान है पथ पर अपना,

आपसे ही जीवों का पूरा हो रहा घर का सपना। सारी संरचनाओं में साकार हो रही आपकी प्रेरणा,

जग का विस्तार आपसे है, है निर्माण की कल्पना. प्रगति पथ प्रशस्त करता, बढ़ते चले मेरे चरण।

सृष्टि के प्रथम शिल्पी का करते हैं अभिनन्दन। हाथ जोड़ विश्वकर्मा भगवान का करते हैं हम वंदन।

ब्रह्माण्ड में तेरा ही राज, भक्तों की रखना तू लाज, भाव मैं अर्पित करूँ, झुके नहीं कभी सच का ताज।

हम अभिमानी, मूर्ख, पूजा विधि से हैं अनजान. अपनी शरण में ले लो प्रभु, हम तेरी ही हैं संतान।

बढ़ें चले प्रगति पथ पर, करके तेरा स्मरण. सृष्टि के प्रथम शिल्पी का करते हैं अभिनन्दन। हाथ जोड़

विश्वकर्मा भगवान का करते हैं हम वंदन। ©ब्रजेन्द्रनाथ यूट्यूब लिंक : https://youtu.be/unyI6v1UDQM

Friday, September 9, 2022

बरखा रिमझिम फुहार हो (कविता ) #भोजपुरी पावस गीत

#BnmRachnaWorld #Bhojpuri #Pawasgeet







भोजपुरी में पावस लोकगीत







बरखा क़े रिमझिम फुहार हो

बरखा क़े रिमझिम फुहार हो,
नाचे लागल गुजारिया.

नील आकाशवा पर तनल बा चदरिया
काली काली कजरारी घिरेला बदरिया
गोरी अपन चुनरी संभार हो,
भींग जाई अंचरवा.
बरखा क़े रिमझिम फुहार हो,
नाचे लागल गुजरिया.

पेड़वा क़े पतवा पर गिरेला बुंदिया
जलवा भरल औ उफ़नल बा नदिया.
 मनवा में भरल बा हुलास हो,
 चली अब हरवा कुदरवा.
बरखा क़े रिमझिम फुहार हो,
नाचे लागल गुजरिया.

पूरवैया चलत बाटे सननन सननन,
जियरा क़े मोर नाचे छननन छननन.
प्रकृति नटी क़े सुन्नर सिंगार हो,
नैना भइल बा बावरिया.
बरखा क़े रिमझिम फुहार हो,
नाचे लागल गुजरिया

तडाग क़े मिलन होखेला तलैया से,
सागर क़े संगे संगम होखेला नदिया से.
संसार में पसरल बा प्यार हो,
अब अइहे सावरिया.
 बरखा क़े रिमझिम फुहार हो,
नाचे लागल गुजरिया.
©ब्रजेन्द्र नाथ

परम स्नेही मित्रों,
आप यूट्यूब के "marmagya net" चैनल पर दृश्यों का अवलोकन करते हुए सुने भोजपुरी पावस लोकगीत. यह गीत मैंने अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन की झारखण्ड की प्रांतीय इकाई द्वारा आयोजित पावस संध्या पर 28 अगस्त को तुलसी भवन क़े प्रयाग कक्ष में प्रस्तुत किया था. गीत की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
यूट्यूब लिंक : https://youtu.be/_MswP_4rcCs



Friday, August 12, 2022

हर घर तिरंगा लहरायेंगे कविता)

 #BnmRachnaWorld

#amritmagotsavpoem

#हर घर तिरंगा फहरायेंगे








परमस्नेही मित्रों,
 आजादी की अमृत महोत्सव के तहत 13 से 15 अगस्त तक हर घर तिरंगा फहराने के अभियान का आरम्भ हो रहा है. इस अवसर पर, स्वतंत्रता को कैसे हासिल किया गया, किन अनाम और गुमनाम वीरों ने उस यज्ञ में आहुति दी और अब स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे कंधों पर कर्त्तव्यो की क्या जिम्मेवारी है, उन्हें रेखांकित करते हुए मेरी कविता सुनें "हर घर तिरंगा लहरायेंगे"

हर घर तिरंगा लहरायेंगे 
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आओ मनायें  आजादी का अमृत महोत्सव

स्वतंत्रता की शौर्य गाथा का विजयोत्सव |

सन सैतालिस में तिरंगा जो लाल किले पे लहराया था.
उसमे शहीदों का लाल लहू पाँचवाँ रंग कहलाया था.

आजादी के संघर्षों का इतिहास याद  कर लो प्यारो,
गोली खाकर खेत हुए,  कुछ शूली पर चढ़ गए यारों.

याद करो आजाद, भगत, सुखदेव, राजगुरु, बिस्मिल को,
याद करो आजाद हिन्द वालों  की क्रांति की बिगुल को.

याद करो जो जालियांवला बाग़ में खून बहाए थे.
याद उन्हें भी कर लेना जो अनाम शहीद कहाए थे.

भूल उन्हें भी मत जाना संथाल क्रांति के वीरों को,
सिद्धू - कान्हू, बिरसा मुंडा, फूलो - झामो के तीरों को.

मंगल पांडे, तात्या टोपे, वीर कुंवर,  लक्ष्मीबाई को,
पीर अली, नाना साहेब, जैसे बांकुरों की अथक लड़ाई को.

बर्फ़ानी, बारिश में, आंधी में, रेतीले तूफ़ानों में,
घहराते युद्धक विमानों में, तोपों के विकट दहानों में.

जो डटे रहे, बढ़ते रहे किंचित भी विचलित नहीं हुए.
जो चढ़ गए चोटियों पर, तनिक थकित भी नहीं हुए.

जो तिरंगे में लिपट गए, राष्ट्र - शक्ति - शौर्य - सम्मान किया,
उन्हें याद करते हैं हम, तिरंगे के पांचवे रंग को मान दिया.

उन्हीं की शान में तिरंगा हर  घर में फहराएँगे,
देशाभिमान निज स्वार्थ से ऊपर, राष्ट्र भक्त कहलाएंगे.

आजादी का अमृत पर्व है राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने का,
सत्य सनातन से सशक्त कर विश्व वंन्धुत्व भाव जगाने का.

स्वतंत्रता प्राप्ति का  विजयोत्सव हर गली मोड़ पर मनाएंगे,
आजादी के अमृत पर्व का संदेश घर घर में फैलाएंगे.

राष्ट्रप्रेम की अलख जगाएं
हर घर तिरंगा लहारायें.
हर घर तिरंगा लहरायें.

©ब्रजेन्द्र नाथ

इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल "marmagya net" के इस लिंक पर सुने







Thursday, August 4, 2022

पूरण की फसल (कहानी) #लघुकहानी

 #BnmRachnaWorld

#laghukaani #purankifasal










भीषण बाढ़ में एक किसान के  धान की फसल के बर्बाद होने के बाद उस आपदा को अवसर में बदलने की कहानी है "पूरण की फसल". 


पूरण की फसल

बाँध का पानी पिछली रात को छोड़ दिया गया है। पूरण धान की रोपणी के बाद अच्छी फसल के सपने संजोए रात में सोया था। आज सुबह अपने खेत के ऊपर मटमैले पानी के फैलाव को वह देख रहा है और देख रहा है, अपने सपनों को ढहते हुए,  देख रहा है, पानी में हाल में रोपे गए धान के पौधे को धार  में बहते हुए...
देख रहा है अपने बैलों के चारे के अभाव में दम तोड़ते हुए ...देख रहा है अपनी मां की खाँसी के इलाज के अभाव में छटपटाते हुए ...  देख रहा है बिटिया की शादी के लिए पैसे नहीं जुटाने की स्थिति में जमीन को गिरवी रखते हुए ... देख रहा है बैंक के कर्जे की किश्त नहीं जमा करने पर खुद को फंदे से...
नहीं, नहीं वह अपने सपने को पानी की धार में ऐसे बिलाते हुए नहीं देख सकता। उसने बैंक के ऋण से ही उत्तम कोटि के  अच्छे बीज और खाद का इंतजाम कर फसल लगाई थी। खाद अभी बचा ही हुआ था, जिसका इस्तेमाल वह पौधों को खड़ा हो जाने बाद भादो के महीने में करने वाला था।
उसका घर ऊँचे टीले पर बना था, इसलिए घर में पानी नहीं घुसा था। वहीं से छत पर खड़ा हुआ वह चारो ओर फैले समंदर की मानिंद जलजमाव को अपने कातर नयनों से  निहार रहा था।
अपने घर के ऊंचे छत पर, बैठ गगन की  भींगीं छाँह,
पूरण  अपने  भींगे नयनों से देख रहा है प्रलय प्रवाह।
इतने में वह देखता है कि एक बड़े से काठ के कुंदे के एक छोर पर बड़ा सा अजगर और दूसरे छोर पर भींगे पँख लिए मैना बैठी है और कुंदा तेजी से बहा जा रहा है। वह सोचता है अगर सामान्य स्थिति होती तो अजगर मैना को झपटकर निगल जाता। पर  आज उसे अपनी जान बचाने की फिक्र अधिक है, बनिस्वत कि जान लेने की। जब खुद की जान पर बन आती है तो हर जीव में जीजिविषा प्रबल होती है और भयंकर जीव भी अहिंसक हो जाता है। जीजिविषा ने ही दोनों को सहयात्री बना दिया है।
पूरण भी अपनी जीजिविषा को जगा हुआ महसूस करता है। वह जीयेगा और अपने सपने पूरे करेगा... वह अपने सपने को मरने नहीं देगा।
★★★★★
अब पानी धीरे धीरे उतरने लगा है। खेत में रोपा  हुआ धान का एक भी पौधा नहीं बचा है। पर खेत की मिट्टी के ऊपर भूरे मटमैले मिट्टी की एक और परत पसर गयी है। पूरण ने मन में ठान लिया है खेती को फिर शुरू करेगा। वह पारंपरिक खेती के ढंग को ही बदल देगा।
वह बैंक के ऋण के बचे पैसे से सब्जियों जैसे भिंडी, टमाटर, बैगन, लौकी, नेनुआ, करेला आदि का बीज ले आता है। अपनी डेढ़ एकड़ की जमीन के आधे भाग में वह इन सारे बीज को रोप देता है। आधे भाग को वह छोड़ देता है, जिसमें अगहन में वह गेहूँ लगा देगा। तीन महीने के भीतर ही सब्जियाँ लहलहा उठती हैं।  बाढ़ में बह आई मटमैली मिट्टी की उर्वर गोद में इतनी अच्छी सब्जियों की फसल की संभावना को पहले किसी ने देखा ही नही था। वह किसी तरह के रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं करता है।
इसलिए सब्जियाँ ऑर्गेनिक के नाम दूगने दाम पर बिकने लगती हैं। शहर के मॉल वाले और बड़े-बड़े होटल वाले सीधे पूरण की ऑर्गेनिक सब्जियाँ उसके खेत के पास से ट्रकों में भर-भरकर ले जाते हैं। उसे नकद पैसे मिलते हैं। पूरण अपने सपने को सच होते हुए देखता है।
उसका नैराश्य भाव दूर हो जाता है। उसके जीवन में आशा की कोंपलें बढ़ने लगती है।
©ब्रजेंद्रनाथ


इसे दृश्यों के संयोजन के साथ मेरी आवाज़ में यूट्यूब के इस लिंक पर जाकर सुनें और कमेंट बॉक्स में अपने विचार अवश्य लिखें. सादर!
यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/igH7WVr3w5g



Thursday, July 28, 2022

शिव समर्पित तन हो मेरा (कविता )

 #BnmRachnaWorld

#shivapoem



सत्य शोधित मन हो मेरा 










शिव समर्पित तन हो मेरा

उदधि में अथाह हो जल,
पतवार तू चलाता चला चल।
उठती लहरों से डरो मत
बाजुओं में भरो हिम्मत।
उत्साह भर नाविक बढ़ो,
पास  देखोगे  किनारा।
बढ़ चलो...

गीता ज्ञान का नित्य चिंतन
नीति पथ  पर धर चरण।
अविद्या - तम का हो विनाश,
सत्य का  फैला हो प्रकाश।

जीना उसी का है सार्थक,
जिसने इन्हें जीवन में उतारा।
बढ़ चलो प्रगति पथ पर
हो तेरा संकल्प न्यारा।

शिव समर्पित तन हो मेरा,
सत्य शोधित मन हो मेरा।
तपस्वी की हो तितीक्षा,
प्रखरता की हो परीक्षा।
कल्याणकारी पथ के राही
चलो निरंतर सबका प्यारा।
बढ़ चलो प्रगति पथ पर
हो तेरा संकल्प न्यारा।

ताम्र पात्र में भर गंगाजल
चल काँवरिया चल चला चल.
बोल बम का स्वर निनादित,
अभिषेक का बीते न पल.
शिव शंभू, औघड़ दानी
देंगे हर पल तुझे सहारा.
बढ़ चलो...

सावन में  हो रुद्राभिषेक
शंभू की होंगी कृपा विशेष
दूर होंगी सब बाधाएं
लक्ष्य पर दृढ हो निगाहें.
शिव आराधन में मगन मन
दृष्टि पथ में  ध्रुवतारा.
बढ़ चलो...

©ब्रजेन्द्र नाथ


मेरी आवाज में इस रचना को मेरे यूट्यूब चैनल "marmagya net" के इस लिंक पर सुनें :

https://youtu.be/PkgIw7YRzyw




Friday, July 22, 2022

पुरस्कार मिलने के बाद की परीक्षा (कहानी )

 #BnmRachnaWold

#inspiringstory








पुरस्कार मिलने के बाद की परीक्षा

जनवरी की सुबह पाँच बजे की ठिठुराती ठंढ... साँय - साँय करती हवा...पहाड़ की तलहटी से गुजरना....पैर तो कटा जा रहा था क्योंकि उसमें हवाई चप्पल पहने ही मैं जल्दी - जल्दी में निकल गया था...बर्फीली हवा ज्यादा तेजी से चलने को विवश कर रही थी...शायद रफ्तार बढ़ाने से शरीर में गर्मी आ जाय...इससे लगभग दौड़ते हुए ही स्टेशन की तरफ सुबह साढ़े छः बजे की ट्रेन पकड़ने जा रहा था। बात सन 1964 की है, जब मैं नवीं में था। अवसर था, 26 जनवरी को ब्लॉक स्तर पर आयोजित  निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने का।
हमलोग वजीरगंज स्टेशन उतरकर प्रतियोगिता स्थल पर सुबह ही सुबह पहुँच गए। दस बजने वाले थे,  लाउडस्पीकर पर प्रतियोगियों को कमरे में जाने की घोषणा हुयी। हमलोग एक कमरे में  निर्धारित स्थान पर बैठ गए। निरीक्षक द्वारा घोषणा की गयी कि अभी आपलोगों के लिए सामने के श्याम पट पर विषय लिखा जाएगा। उसी समय से आपकी प्रतियोगिता का समय प्रारम्भ हो जाएगा। नियत समय 45 मिनट था। एक दूसरे अधिकारी आये। उन्होंने बोर्ड पर बड़े-बड़े अक्षरों में विषय अंकित किया। मैंने विषय देखा और लिखना शुरू कर दिया। कब 45 मिनट समाप्त हो गए, पता ही नहीं चला। निरीक्षक ने स्टॉप राइटिंग की घोषणा की और आकर पुस्तिका एकत्रित कर चले गए।
चार बजे अपराह्न से पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम आरम्भ हुआ। उस क्षेत्र के कलेक्टर पुरस्कार वितरण के लिए पधारे थे। सबसे पहले खेलों और दौड़ आदि प्रतियोगिताओं के पुरस्कार वितरण किये जा रहे थे। पर हमें तो इंतजार था, निबंध प्रतियोगिता के पुरस्कार की घोषणा की। सभी पुरस्कार जब वितरित हो गए, तब एक अन्य उदघोषक, जिन्होंने श्याम पट पर निबंध प्रतियोगिता का विषय लिखा था, आकर बोलना शुरू किये। निबंध प्रतियोगिता के आयोजन के बारे में भाग लेने वाले कुल विद्यालयों और विद्यार्थियों की संख्या के बारे में विवरण देते हुए उन्होंने बताया कि निबंध लेखन की जाँच भाषा की शुद्धता, शब्दों के चयन, विषय प्रवेश की सार्थकता, विषय के विस्तार तथा हस्तलेखन की सुंदरता आदि मानकों पर की गयी।
इसमें मेरे गांव के हाई स्कूल, के प्रतियोगी सारे मानकों पर अन्य विद्यालय के प्रतियोगियों से ऊपर थे। और उन सबों में तृतीय रहे मेरे विद्यालय के ही एक विद्यार्थी का नाम लिया गया, द्वितीय आये मेरे विद्यालय के ही दूसरे विद्यार्थी का नाम लिया गया। ...और प्रथम आये उसी विद्यालय के ब्रजेंद्रनाथ मिश्र! सारा जनसमूह तालियों से गूंज रहा था। हमलोगों को पुस्तकें, जिसमें मुझे याद है कि एक मोटी सी अंग्रेजी हिंदी डिक्शनरी थी और उसके साथ अन्य पुस्तकें भी थी, जिसका वजन तीन किलो के करीब अवश्य रहा होगा, मिलीं। उसके साथ-साथ प्रमाणपत्र भी मिला था। विद्यालय के लिए एक ट्रॉफी मिला जिसे विद्यार्थियों के साथ प्रधानाध्यापक और हिंदी शिक्षक ने एक साथ ग्रहण किया। अधिकारी महोदय के साथ समूह में हमलोगों की तस्वीर भी ली गयी।
◆◆◆◆◆
अब पुरस्कार प्राप्ति के बाद की परीक्षा आगे आने वाली थी। पारितोषिक वितरण समारोह समाप्त होते - होते शाम के साढ़े पाँच बज गए थे। जाड़े के दिनों में सूर्यास्त जल्दी हो जाता है। हमलोग स्टेशन की ओर चले ताकि शाम को साढ़े चार बजे वाली ट्रेन अगर लेट हुई तो मिल जाएगी।  ट्रेन सही समय पर आयी और हमारे स्टेशन पहुँचने के पहले ही निकल गयी। अगली ट्रेन रात में दो बजे के बाद ही आती थी। स्टेशन पर ठंड में ठिठुरन भरी रात काटनी कितना कष्टकर होता, इसकी कल्पना से ही मन सिहर गया। जो थोड़े लोग बचे थे, सभी मेरे ही गाँव के तरफ जानेवाले थे। कुछ स्कूल के शिक्षक भी साथ में थे। गाँव यहाँ से ढाई कोस यानि 5 मील से थोड़ा अधिक था। इतनी दूर तक की पैदल यात्रा और वह भी जनवरी की ठंढी रात में चप्पल पहनकर मैंने पहले नहीं की थी।  अँजोरिया रात थी, इसलिए उसमें भी पैदल चलने में ज्यादा कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा, इसी सोच के साथ सभी लोग आगे बढ़ चले।
मेरे साथ समस्या यह थी कि मेरे एक हाथ में तीन किलों के करीब पुरस्कार में मिले पुस्तकों वाला झोला था और पैर में हवाई चप्पल थी  जिसे पहनकर चलते हुए अन्य लोगों के साथ गति कायम रखने में कठिनाई पेश आ रही थी। लोग जल्दी पहुँचने की जल्दी में तय रास्तों से न होकर खेतों के बीच से निकलते जा रहे थे। खेतों की जुताई हुई थी जिसमें बड़े-बड़े ढेले पड़े हुए थे। मेरी हवाई चप्पल कभी-कभी उसमें फँस जाया करती थी। आगे बबूलों के छोटे से जंगलनुमा विस्तार से गुजरना था। उसके पास आने के ठीक पहले मेरा एक चप्पल टूट गया। वह अंगूठे के पास से ही उखड़ गया था। मैं चप्पल को झोले में नहीं रख सकता था। मन में यह संस्कार कहीं बैठा हुआ था कि पुस्तकों में विद्यादायिनी माँ सरस्वती का वास होता है। उसके साथ अपनी चप्पलें कैसे रख सकता था? मेरे लिए कोई दूसरा उपाय नहीं था। किसी को मैं मदद के लिए पुकार भी नहीं सकता था। हर कोई जल्दी घर पहुँचने के धुन में तेजी से कदम-दर-कदम बढ़ा जा रहा था। मैं पिछड़ना नहीं चाहता था।
रास्ते में बीच में बबूल-वन पड़ता था। ये बबूल लगाए तो नहीं गए थे पर संरक्षित अवश्य थे।
जैसे ही मैं बबूल - वन में आगे की ओर बढ़ा, तो पगडंडी देखकर मुझे खुशी हुई। लोग भी लकीर पकड़कर ही चल रहे थे। मैं बबूल-वन को करीब आधा से अधिक पार कर चुका था, कि मेरा खाली पाँव बबूल के कांटे पर पड़ा। कांटा मेरे पैर में घुस गया था। मैं थोड़ा रुका, टूटे चप्पल को दूसरे हाथ में लिया, और चुभ गए कांटे को खींचकर बाहर निकाला। खून की धारा निकलने लगी। पॉकेट से रुमाल निकाला और जोर से पैर में बाँध दिया। मन तो किया कि टूटे हुए चप्पल को किताबों वाले झोले में डाल दूँ। पर मन के अंदर बैठी हुई यह मान्यता कि पुस्तकों में वीणा पुस्तक धारिणी माँ सरस्वती का वास होता है, मैने टूटे हुए चप्पल को पुस्तकों के झोले में न डालकर, दूसते हाथ में लिया और भटकते हुए दौड़ लगायी, ताकि आगे निकल गए समूह के लोगों को पकड़ सकूँ।  आखिर बबूल-वन का क्षेत्र हमलोग पार कर गए। अब पहाड़ की तलहटी से होकर उबड़-खाबड़ पत्थरों पर से होकर गुजरना हुआ। पहले से ही छिल गए पैरों की बाहरी त्वचा पर नुकीले पत्थरों का चुभना मेरे लिए दर्द की एक और इम्तहान से गुजरने जैसा था। मैं रुका नही, और न ही मैंने हार मानी। मैं बढ़ता रहा जबतक घर नहीं पहुंच गया।
घर पहुंचते ही पहले घायल पैर में बँधे खून और धूल-मिट्टी से सने रुमाल को खोलकर पॉकेट में रखा और बिना लंगड़ाते हुए आंगन में प्रवेश किया ताकि माँ मेरे पुरस्कार पाने की खुशी का आनन्द तो थोड़ी देर मना पाए, न कि मेरे पैरों के घाव को सहलाने बैठ जाए। मेरे खाट पर बैठते ही माँ गरम पानी से मेरे पैर धोने को बढ़ ही रही थी कि मैंने उसके हाथ से लगभग झपटते हुए लोटा अपने हाथ में ले लिया। माँ मेरे इस व्यवहार पर थोड़ी आश्चर्यचकित जरूर हुई, पर मैंने लोटा हाथ में लिए हुए ही जब उसे सुनाया कि मुझे पूरे प्रखंड में निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है, तो उसका ध्यान मेरे घायल पाँव से लगभग हट गया । मैं निर्भीक होकर आँगन के चापानल के तरफ पाँव धोने के लिए बढ़ गया। मुझे इस बात का संतोष था कि अपने जख्मों को छिपाकर में मैं माँ की आंखों में खुशी के कुछ कणों को तैरते हुए  देख सका।
©ब्रजेंद्रनाथ


यह कहानी मैंने 29 मई को सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन/तुलसी भवन, जमशेदपुर द्वारा आयोजित "कथा मंजरी" कार्यक्रम में भी सुनाई थी. आइये दृश्यों का दर्शन करते हुए कहानी का आनंद लेते हैं --
यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/os1A1v2MJGA

Wednesday, July 20, 2022

और कितने तीखे मोड़ (कहानी ) उपन्यास

 #BnmRachnaWorld

#novelaurkitaneteehemod

#और कितने #तीखेमोड़













और कितने तीखे मोड़ (उपन्यास):

Amazon Link:

Aur Kitane Teekhe Mod (Hindi Edition) https://www.amazon.in/dp/B0B6FG3JQJ/ref=cm_sw_r_apan_0752920J2ZJFQ1C5SCQJ

Shortened link:

amzn.to/3REqS7K


परमस्नेही साहित्यान्वेषी सुधीजनों,

सादर नमस्ते 🙏❗️

कृपया इस संदेश को अवश्य पढ़ें :

मेरा लिखा उपन्यास "और कितने तीखे मोड़" (133 पृष्ठ ) अमेज़न किंडल के ऊपर दिए गए लिंक पर प्रकाशित हो चुका है.  18 जुलाई से 22 जुलाई तक इसे "फ्री बुक प्रमोशन" के अंतर्गत मुफ्त डाउनलोड किये जाने की सुविधा दी जा रही है. अभी डाउनलोड कर लें बाद में ज़ब मन होगा तब पढ़ लीजियेगा (देखें लिंक )

इस पुस्तक के बारे में मेरा आत्मनिवेदन :

इस उपन्यास में सामाजिक व्यवस्था में अंतर्निहित समरसता को रेखांकित करते हुए पात्रों और कथानक का ताना बाना बुना  गया है |  सामाजिक परिवर्तन के लिए संकल्पित और समर्पित व्यक्ति के सार्थक पहल को किन निःस्वार्थ और निष्कलुष शक्तियों का समर्थन मिलता है और किन स्वार्थी और कुटिल तत्वों से संघर्ष करना पडता है, उसका जीवंत चित्रण इसमें हुआ है | मुझे लगा कि सभी पात्र मुझे प्रेरित कर रहे हैं कि मैं उन्हें शब्दों की किरणों में नहला दूँ ताकि गुमनामी में नीँव की पत्थर की तरह पड़ी दलित महिला रोहिणी भी परिवर्तन की माशाल को लेकर सबसे आगे -. आगे कदम बढ़ाती चली जाय |  कुछ और नहीं कहते हुए आपसे इस उपन्यास से जुड़ने का और अमेज़न किंडल पर, मेरे मोबाइल और इ मेल पर अपने विचारों से अवगत कराने का आग्रह करता हुआ मैं हूँ आपसे आपका थोड़ा समय चुराने वाला

स्नेहास्पद

ब्रजेन्द्र नाथ

मोबाइल : 7541082354

इ मेल : brajendra.nath.mishra@gmail.com

अमेज़न के किंडल इ बुक को कैसे डाउनलोड करें?

अमेज़न का अकाउंट बना ले. इस लिंक पर वीडियो को देखकर सारे स्टेप्स फॉलो करें :

Link:

https://youtu.be/bAdDArZppOI

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...