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Sunday, August 22, 2021

पाठकों से मन की बात भाग 8 (लेख):

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#पाठकों से#मन की बात

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पाठकों से मन की बात भाग 8:
परमस्नेही प्रबुद्ध पाठक और कलमकार मित्रों,
पिछले सप्ताह के अंक में मैंने लिखा था कि हर कहानी के किरदारों के साथ एक और किरदार,  उसका पाठक साथ- साथ चलता  है, दृश्य या अदृश्य रुप में। इसे कोई भी कहानीकार नजरअंदाज नहीं कर सकता। इसपर आ उषा वर्मा जी की बहुत सुंदर टिप्पणी आयी है। आपने सही कहा है कि लेखक का यह दायित्व बनता है कि जो पाठक उसके सामने है उसकी मानसिकता को समझे और उसे परिमार्जित करने का प्रयास करे। पाठक भी अपने मन की बात को सामने रखे, तो यह बहुत बढ़िया संवाद होगा और लेखन की दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग भी बनेगा।
आ सरोज सिंह जी का कथन कि पाठक के बिना लेखक का अस्तित्व नहीं है।  अपने प्रभावशाली लेखन से पाठक की रुचि को बदला जा सकता है। आ प्रीतिमा भदौरिया जी ने मेरे कथ्यों को पाठक की नजर से परखा, इसके लिए हृदय तल से आभार! किसी भी रचना को पढ़कर मन मस्तिष्क प्रफुल्लित होने के साथ- साथ परिमार्जित भी हो। आपका कथन शत-प्रतिशत सच है।
आ उषा वर्मा जी के कथन की उन पांक्तियाँ को याद करना चाहता हूँ, जिसमें आवणे कहा है कि पाठक भी अपने मन की बात को सामने रखे, तो एक अच्छा संवाद बन सकता है। आपके इसी कथन के आलोक में मैनें "प्रतिलिपि" के टीम को एक पत्र लिखा जिसे उद्धृत करना चाहता हूँ:

M/S प्रतिलिपि,
आपके साइट पर लेखकों और पाठकों के  बढ़ते विजिट आपकी बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण है। आपने साइट को इंटरैक्टिव बनाया है, इसमें कोई शक नहीं है। इसके बारे में मेरे कुछ सुझाव हैं। शायद यह इसे और भी उत्तरदायी और सार्थक बना सकेगा।
अक्सर यहाँ देखा जा रहा है कि जो पाठक प्रतिलिपि में अपनी एक भी रचना नहीं लिख सके हैं वे, पिछले कई वर्षों से प्रतिलिपि से सम्बद्ध लेखकों (व्यूज 50 हजार से भी अधिक)  की रचनाओं पर रेटिंग के रुप में ★ या ★★ देकर खानापूर्ति करते हैं और लेखक के ओवरऑल रेटिंग को खराब करते हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब वे रचना के बारे में nice या good लिखकर ★ या ★★  रेटिंग दे देते हैं। मेरा सुझाव इस प्रकार है:
जैसे ही कोई पाठक ★ या ★★ या ★★★ रेटिंग दे, उससे एक डायलाग बॉक्स पॉप अप के बाद यह सवाल पूछा जाए:

1) आपकी कितनी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं? 

2) आपने इस रचना को कम रेटिंग क्यों दिया? कृपया इनमें से किसी एक को टिक करें..

A) क्या रचना में भाषायी अशुद्धता है? उदाहरण के रूप में वाक्य को उदधृत करें।

B) क्या यह रचना मौलिक नही है। प्रमाण के रूप  में लिखें।

C) रचना का कौन सा भाग आपको स्तरीय नहीं लगा? उद्धरण स्वरुप रचना का वाक्य लिखें। 

यदि इन सारे प्रश्नों का वे उत्तर देते हैं, तभी उनकी रेटिंग स्वीकृत की जाय। 

मैं उदाहरणस्वरूप एक स्क्रीन शॉट संलग्न कर रहा हूँ।
सादर! ब्रजेन्द्रनाथ
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प्रतिलिपि की टीम का जवाब यह था

जी, आपके सुझावों के लिए शुक्रिया :)
सादर,
मानवी 
भाषा व कम्युनिटी : टीम प्रतिलिपि, बैंगलोर

इसपर आप सभी अपने विचार प्रकट करें। इसपर विशेष चर्चा अगले अंक में,अगले शुक्रवार को।
सादर! 
© ब्रजेन्द्रनाथ


Thursday, August 12, 2021

पाठकों से मन की बात भाग 7 (लेख)

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#पाठकों से मन की बात

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पाठकों से मन की बात भाग 7:
परमस्नेही प्रबुद्ध पाठक और कलमकार मित्रों,
पिछले मन की बात में मैंने रचनाकारों की रचनाओं पर पाठकों की अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं आने पर, उनकी क्या प्रतिक्रिया हो, कैसे प्रतिक्रिया दें, इसके बारे में चर्चा की थी।
इसपर आ दामिनी जी की विस्तृत समीक्षा आयी। आपने सही लिखा है कि जब भी कोई कहानीकार कहानी लिखता है तो वह पाठकों को ध्यान में रखकर नहीं लिखता, उससमय जो विचार उठते हैं, उन्हें ही वह पन्नों पर उतारता चला जाता है। पाठक कभी - कभी कहानी के मोड़ को या अंत को बदलने का आग्रह करते हैं। यह सब सुनने को मिलता है। आ उषा जी ने सही कहा है कि अपनी सृजनशीलता पर विश्वास रखिये। यही सबसे बड़ी बात है। आ सरोज सिंह, आ समता परमेश्वर, आ प्रीतिमा भदौरिया और आ कृष्णा खड़का, आ संतोष साहू जी ने भी अपनी सराहनीय प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जो इस लेख की सार्थकता की ओर संकेत देती है।
अपने कथ्य को आगे बढ़ाता हूँ। कोई भी रचनाकार इसे कैसे भूल सकता है कि पाठक हमेशा साथ चलते हैं। यहाँ पर हिंदी - पंजाबी की  सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम की वह बात उद्धृत करना चाहता हूँ, जो उन्होंने अपनी चुनींदा कहानियों के संग्रह " मेरी प्रिय कहानियाँ" की भूमिका में लिखी थी,  ‘हर कहानी का एक मुख्य पात्र होता है और जो कोई उसको मुख्य पात्र बनाने का कारण बनता है, चाहे वह उसका महबूब हो और चाहे उसका माहौल, वह उस कहानी का दूसरा पात्र होता है पर मैं सोचती हूं, हर कहानी का एक तीसरा पात्र भी होता है। कहानी का तीसरा पात्र उसका पाठक होता है जो उस कहानी को पहली बार लफ्ज़ों में से उभरते हुए देखता है और उसके वजूद की गवाही देता है।’
कहानी के इस तीसरे पात्र की अनदेखी कोई भी लेखक नहीं कर सकता। जब हम उस तीसरे पात्र को अपनी कथा यात्रा में साथ लेकर चलते हैं, तो उसकी रुचि, और उसके स्वास्थ्य दोनों का ख्याल रखना पड़ता है। उसकी रुचि का ख्याल रखते हुए भी हम उसे वही सबकुछ नहीं परोस सकते जो उसे अच्छा लगे। हमें उसे वही सामग्री देनी होगी जो उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो। अर्थात उसकी रुचि का परिष्कार करते हुए उसे मानसिक रूप में सक्षम और संवेदनशील बनाना भी लेखक का दायित्व होता है।
मैं अब अगले अंक में इसपर अपने विचार देना चाहूँगा,  पाठक को, अगर किसी रचना को पढ़ने के बाद लगे कि यह स्तरहीन है, तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी होनी चाहिए?
अपना और अपनों का ख्याल रखें, सुरक्षित रहें।
©ब्रजेन्द्रनाथ

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...