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Tuesday, August 27, 2019

मुठ्ठी में जहान है (कविता)

#BnmRachnaWorld
#motivational #childrenpoem


कुछ दिनों पहले जन्माष्टमी थी। जन्म महोत्सव मनाते हुए यह सवाल बार बार मन में उठता था, क्या हम आने वाली पीढी जो सुरक्षित भविष्य दे पाए हैं? इन्हीं सवालों का पड़ताल करती मेरी यह कविता "होठों पर मुस्कान है, मुट्ठी में जहान है" मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर सुनें।
कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:

होठों पर मुस्कान है, मुठ्ठी में जहान है।

आओ साथी बैग उठाओ, स्कूल चलो,
विज्ञान और ज्ञान बढ़ाओ, स्कूल चलो।
मन में हो विश्वास, कौशल की आभा हो,
पग बढ़ते रहें आगे, शिल्प की श्लाघा हो।
ध्यान रहे, हम भारत माँ की संतान हैं।
होठों पर मुस्कान है, मुट्ठी में जहान है।

बातावरण से दूर हो हर तरह का प्रदूषण,
प्लास्टिक से मुक्त, स्वच्छ हो जन जीवन।
लक्ष्य अपूर्ण, गर कचरे का कण विद्यमान है।
होठों पर मुस्कान है, मुठ्ठी में जहान है।

मंगलयान से मंगल तक हुई यात्रा हमारी है,
चंद्रयान से चाँद तक जाने की पूरी तैयारी है।
आकाश गंगा के तारों तक अपनी उड़ान है।
होठों पर मुस्कान है, मुठ्ठी में सारा जहान है।

हम बनते नहीं किसी के विकास में बाधक,
हमारे विकास में कोई भी बने नही विनाशक।
हमें ठिकाने लगाने आता है, जो भी शैतान है।
होठों पर मुस्कान है, मुट्ठी में सारा जहान है।

इतिहास से सीखें हम, कैसे हुए थे पराजित,
जयचंदों ने धोखे देकर, हमें किया अभिशापित।
अब उनकी जरूरी, चिन्हित करें पहचान है।
तभी होठों पर मुस्कान है, मुठ्ठी में सारा जहान है।

देश की सीमाओं पर, बर्फीली हवाओं पर,
सीने में आग से लिखते इतिहास शिलाओं पर।
सभी यहां महफूज, जब उनकी हाथों में कमान है।
होठों पर मुस्कान है, मुठ्ठी में सारा जहान है।

©ब्रजेंद्रनाथ




यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/I7AVOHcp2oQ

Monday, August 5, 2019

जम्मू कश्मीर में धारा 370 के संशोधन पर (कविता)

#BnmRachnaWorld
#hindipoetryjammukashmir



Dear and Respected readers,
Namaskaar,
Please see this video. This is recitation of a poem written by me.
Give your opinion, it is valuable for me.
Brajendra Nath

परमस्नेही आदरणीय साहित्यान्वेषी पाठक गण
नमस्कार!
पिछले वर्ष जम्मू कश्मीर यात्रा के दरम्यान श्रीनगर से लौटते हुए मैंने उदास मन से यह कविता लिखी थी। शायद आज वहाँ "कई-कई चाँद उगेगा" जिसका इंतज़ार वर्षों से हो रहा था।
मेरी यह कविता यूट्यूब के नीचे दिए गए  लिंक पर मेरी आवाज में सुनें:

इस घाटी को किसकी
नज़र लग गयी है?
कि पहाड़ों और झीलों की खामोशी
को तोडती है
बन्दूकों की आवाजें।
,,,,और सुहावनी सुगन्ध
में धीरे-धीरे बारुदी गन्ध
घुलने लगती है।
डरा सहमा -सा चाँद
अब दरख्तों में लुका छिपी नहीं खेलता।
चिनारों के पत्तों से नहीं फिसलता,
चाँद निश्तेज है,
कहीं जाकर छिप जाता है।

छिपकर वह इन्तजार करेगा,
कब फिर खामोश संगीत,
पहाडों में गूंजेगा?
कब फिर वह उतरेगा,
और झरनों में,
कई-कई चाँद कब उगेगा?
कई-कई चाँद कब उगेगा?
-----//-----------

चाँद के इंतज़ार का  अब हुआ अंत,
घाटियों में अब आकर टिकेगा बसंत।

अब नहीं घुलेगी वादियों में बारूदी गंध,
अब फूलों में रहेगी व्याप्त सुहानी सुगंध।

हिमाच्छादित शिखरों से पसरेगी धवल धार,
  गर्वोन्नत, फैलेगा,  झूमेगा, अगरायेगा वह चिनार!

अब वहां का  युवक नहीं लेगा टट्टू और पिट्ठू,
अंत होगा जो बन रहे थे, अपने मुंह मियाँ मिट्ठू।

अब होगा एक निशान, एक संविधान, एक झंडा,
अब नही होगा विकास के अतिरिक्त कोई भी एजेंडा।

आइए शामिल हों, जश्न में, नए कश्मीर के,
सहभागी बने, उसकी  बदलते तकदीर के।

YouTube link: https://youtu.be/hQq9kJoPw7A
सादर आभार
ब्रजेंद्रनाथ

माता हमको वर दे (कविता)

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