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Friday, November 25, 2022

मैं यायावरी गीत लिखूँ (कविता)

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#spiritualpoem

#philosophy #geet










मैं यायावरी गीत लिखूँ


मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाऊँ।
मैं तितली बन फिरूँ बाग में,
कलियों का जी न दुखाऊं।
गुंजन करुँ  लता-द्रुमों  पर,
उनको  कभी ना  झुकाऊँ।


मैं करुँ मधु - संचय और मधु-रिक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाऊँ।

मैं नदी,  सर्पिल पथ से
इठलाती-सी बही जा रही।
इतने बल कमर में कैसे
कहाँ- कहाँ से लोच ला रही?


मैं उफनाती, तोड़ किनारे को उन्मुक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

मेरे गीत उड़े  अम्बर में,
जहां पतंगें उड़ती जाती।
जहां मेघ सन्देश जा रहा,
यक्ष - प्रेम में जो मदमाती।


उसके आंगन में बरसूं  और जल-रिक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

गीत तरंगें चली लहरों पर
कभी डूबती, कभी उतराती।
कभी बांसुरी की धुन सुनने
यमुना तट पर दौड़ी जाती।


मैं नाचूं गोपियों संग और स्नेह-रिक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

मैं जाउँ संगम - तट पर
धार समेटूं  आँचल में ।
मैं चांदनी की लहरों पर
गीत लिखूं, हर कल कल में।


मैं झांकूँ निराला निलय में, छंद मुक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

मैं घूमूं काशी की गलियां,
पूछूं तुलसी औ' कबीर से।
बहती गंगा से बीनो तुम
शब्द शब्द शीतल समीर से।


उनके छंदों  को दुहराउँ, शोध-युक्त हो जाउँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।

उड़ती  रहे धूल मिट्टी की,
शहनाई पर हो नेह राग।
गीत लिखूं औ' तुम टेरो
अंतर के उर्मिल अनुराग!


अणु-वीणा के  सुर गूंजे और बोध युक्त हो जाऊँ।
मैं यायावरी गीत लिखूं और बंध-मुक्त हो जाउँ।
©ब्रजेन्द्रनाथ

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Thursday, November 3, 2022

उदधि है अपार नाविक ले चल पार (कविता) #प्रेरक

 #BnmRachnaWorld

#poeminspirational

#प्रेरककविता




 








नाविक ले चल पार 

उदधि है अपार, असीम है विस्तार,
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!

आँधी में, हवाओं में कैसे तेरा बस चले?
धाराएँ प्रतिकूल हों, कैसे तेरा बस चले?
हिम्मत भरो अपार, नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!!

नाव चलाओ साथी मेरे, लहरों से चलो खेलें,
उमंगों की ऊंचाइयों पर, उर के बंध खोलें।
नेह - रथ पर सवार, नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!!

क्षितिज पर इंद्रधनुष, रंगों का लगा मेला है,
साथी चलो मेघ संग, बूंदों का लगा रेला है।
किसका है इंतजार,  नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल  पार!!

तप्त ह्रदय आँगन में, स्नेह की बौछार  करो,
प्लावित हो जाये मन, तृप्ति का संचार करो.
खिल जाये बहार, नाविक चलो उस पार.
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार.

लहरों के पार लक्ष्य है, तूफानों से क्या डरना है,
आगे बढ़ते जाना है, मंजिल पर ही दम लेना है.
टूटे ना जोश का तार, नाविक चलो उस पार.
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार.

@ब्रजेन्द्र नाथ

कविता मेरी आवाज में इस लिंक पर सुनें :
https://youtu.be/E62rpJNb_Ak




माता हमको वर दे (कविता)

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