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Friday, February 25, 2022

हाथों में जुगनू उगाते है

 #BnmRacbnaWorld

#motivationalpoem

#jugnuugatehain






(एक ग़ज़लनुमा कविता)

जुगनू उगाते हैं


चलो हाथों में कुछ जुगनू उगाते है,

रेखाओं से परे, किस्मत जगाते हैं।


उन्हीं तस्वीरों पर रोया करते है लोग,

जीवन में जो दूसरों के काम आते है।


कोई तो सूरत होगी इस भीड़ में कहीं,

जिन आंखों से आप आंखें मिलाते हैं।


मैं भटकता हूँ नहीं, तिश्नगी में कहीं,

होगा कोई, जो प्यासे के पास जाते हैं।


कुछ लोग तो होंगे सफर में ऐसे भी,

जो दूसरों का बोझ अपने सर उठाते हैं।


चलो हाथों में कुछ जुगनू उगाते है,

रेखाओं से परे, किस्मत जगाते हैं।


©ब्रजेंद्रनाथ



Saturday, February 19, 2022

मधु - सिंचन (कविता) शृंगार के छंद

 #BnmRachnaWorld

#romanticverses

#शृंगारकेछंद






इमेज गूगल से साभार

मधु - रस सिंचन

(शृंगार के छंद)

अरुणाभ क्षितिज हो रहा निमग्न 
कालिमा से ढँक रहा  हो  व्योम।
सोम की बिखर रही धवल रश्मियाँ
नेह - निमंत्रण पा पुलक उठा रोम।

मलय समीर सुरभित प्रवाहित
लता - द्रुमों में झूमते पुष्पाहार।
ह्रदय गति चल रही पवमान, 
बाहों में सिमटता जा रहा संसार।

प्राणों को निमंत्रण दे रहे थे प्राण।
कहाँ से आ गई,  यह विकलता।
समीप आ गया तेरे आकर्षण में,
मन किंचित जा रहा पिघलता।

लताएँ लिपटती जब वृक्षों की डालों से
ताल तलैया का भी हो रहा संगम है।
नदियां घहराती, उफनती, जा रही मिलने 
सागर में विलीन होना ही लक्ष्य अंतिम है।

तब  नाव तट से खोलने से पूर्व ही
अर्थ ढूँढने में क्यों  भटक  जाता है?
क्यों उत्ताल तरंगों पर बढ़ने से पूर्व ही,
अविचारित से प्रश्न में उलझ जाता है?

यौवन से जीवन, या जीवन ही यौवन है,
प्रश्न पर प्रश्नों का लगा प्रश्न - चिन्ह है।
उत्तर ढूंढते  हुए, बुद्धि, ढूढती समत्व है,
वैसे ही जैसे नहीं हिम से जल भिन्न है।

मधु का ही दीपक है, मधु की ही बाती है,
मधु ही प्रकाशित है, मधु का ही ईंधन है।
मधु - यामिनी में मधु - रस बिखर रहा,
मधु - रस का हो रहा, नित्य नव - सिंचन है।

©ब्रजेंद्रनाथ





Friday, February 11, 2022

बढ़ चलो प्रगति पथ पर (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#motivational poem

#बढ़चलो #प्रगति #पथपर











(इमेज गूगल से साभार)

बढ़ चलो प्रगति पथ पर

बड़ चलो प्रगति पथ पर ,
हो तेरा संकल्प न्यारा।

उदधि की उत्ताल तरंगें,
भर रही हैं नव उमंगें।
लहरें देती हैं निमंत्रण,
बढ़ो नाविक ले नया प्रण।
पवन हो   प्रतिकूल,
पर नाविक कब है हारा।

गगन में घहराते बादल,
हवाएं , उन्मत्त पागल।
डरा   रही  हो  आंधियां,
कड़कती हो बिजलियाँ।
उन्मुक्त पक्षी कब रुका,
पंख है उसका सहारा।
बढ़ चलो प्रगति पथ पर,
हो तेरा संकल्प न्यारा।

तम अगर गहरा रहा हो,
गगन अंधियारा भरा हो।
सितारे सब छिप गए हों,
चिराग सारे बुझ गए हों।
देखो,  सूरज की किरणों,
ने रश्मिरथ को है उतारा।
बढ़ चलो प्रगति पथ पर
हो तेरा संकल्प न्यारा।

झूठ ने सच को है घेरा,
पाखंड, प्रपंच का है डेरा।
अभिमन्यु - सा लड़ते रहो
चक्रव्यूह  का भेदन  करो।
हार सकता है नहीं वह
विजय ही हो जिसका नारा।
बढ़ चलो प्रगति पथ पर,
है तेरा संकल्प न्यारा।

भगवतगीता  का  ज्ञान सकल
अविद्या - तम - प्रहार प्रबल।
विज्ञान - पथ - प्रसार  प्रतिपल,
सत्य  ही हो सतत संबल।
जीना उसी का है सार्थक,
जिसने इन्हें जीवन में उतारा।
बढ़ चलो प्रगति पथ पर
हो तेरा संकल्प न्यारा।

©ब्रजेंद्रनाथ

मेरी यह कविता मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के नीचे दिए गए लिंक पर भी मेरी आवाज में सुनें, अगर अभी तक चैनल को सब्सक्राइब नहीं किये हों, तो सब्सक्राइब कर लें, यह बिल्कुल फ्री है, और आगे भी फ्री ही रहेगा।

Link: https://youtu.be/BK1lXN-9iM4

इस रचना को लयबद्ध किया है, वरिष्ट कवि और गीतकार परम श्रद्धेय परम आदरणीय माधव पाण्डेय 'निर्मल' जी ने

https://drive.google.com/file/d/1aZO54yUzQxn0yAmjQEtonMcwJgs50vp5/view?usp=drivesdk



Friday, February 4, 2022

निकला नया सवेरा है (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#onset of spring season

#springseason









परम स्नेही मित्रों,
शिशिर के अवसान और बसंतागमन की आहट पर प्राकृतिक दृश्यों को शब्दों में गुम्फित करते हुए लिखी गईं मेरी कविता  का शीर्षक है :


निकला नया सवेरा है।

निकला नया सवेरा है।
कोहरे की छाती चीर - चीर,
किरणों के चल रहे तीर।
तम की घाटी को बेध बेध
सूरज ने प्राची को घेरा है।
निकला नया सवेरा है।

तुहिनों ने हरियाली पर चांदी
की चादर को बिछा दिया ।
नव किसलय की  कोमल सी
गंधों की मसि से लिखा दिया।
जो अनुबंध उकेरा  है।
निकला नया सवेरा है।

धूप मुंडेर से उतर रही
आंगन में आकर ठिठकी।
बूढ़ी दादी के सर्द दर्द की
कौन सुने  आकर सिसकी।
गौ के अमृत - दुग्ध- पान का
हक सबका तेरा मेरा है।
निकला नया सवेरा है।

नभ को छूती फुनगियों पर
किरणें  आती टिक जाती हैं।
कोयल भी कुहू कुहू कहकर
नव जीवन राग सुनाती है।
बगुलों की  धवल पांत का
तड़ाग तटों  पर डेरा है।
निकला  नया सवेरा है।

शिशिर अब विदा ले रहा,
बसंत के आने की आहट।
मन्मथ के मृदुल राग ले
मदिर समीर की अकुलाहट।
हर्ष का सर्वत्र बसेरा है।
निकला नया सवेरा है।

@ब्रजेंद्रनाथ

मेरी इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर सुनें, चैनल को सब्सक्राइब करें, अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं! सादर!

Link : https://youtu.be/21-aEDf1Paw






माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...