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Saturday, October 26, 2019

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ (कविता )

#BnmRachnaWorld
#poemondiwali






अंतस का तमस मिटा लूँ

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
गम का अँधेरा घिरा आ रहा है,
काली अंधेरी निशा क्यों है आती?
कोई दीपक ऐसा ढूँढ लाओ कहीं से,
नेह के तेल में  जिसकी डूबी हो बाती।
अंतर में प्रेम की कोई बूँद डालूं,
तब बाहर का दरिया बहाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
इस दीवाली कोई घर ऐसा न हो,
जहां कोई दीया न हो टिमटिमाता।
इस दीवाली कोई दिल ऐसा न हो,
जहाँ दर्द का कोई कण टिक पाता।
गले से लगा लूँ, शिकवे मिटा लूँ,
तब बाहर की दुश्मनी मिटाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
क्यों नम है आंखें, घिर आते हैं आँसू,
वातावरण में क्यों  छायी उदासी?
घर में एक भी अन्न का दाना नहीं है
क्यों गिलहरी लौट जाती है प्यासी?
अंत में जो पड़ा है, उसको जगाकर,
उठा लूँ,   गले  से लगाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
तिरंगे में लिपटा आया  लाल जिसका
कि पुंछ गयी हो, सिन्दूर - लाली।
दुश्मन से लड़ा, कर गया प्राण अर्पण
घर में कैसे सब मनाएं दीवाली?
घर में घुसकर अंदर तक वार करके
दुश्मन को लगाकर ठिकाने चलूँ ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।
धुंआ उठ रहा है, अम्बर में छाया,
तमस लील जाये न ये हरियाली।
बंद हो आतिशें, सिर्फ दीपक जलाओ,
प्रदूषण - मुक्त हो, मनाएं दीवाली।
स्वच्छता, शुचिता, वात्सल्य, ममता
को दिल में गहरे बसाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ
तब बाहर का दीपक जलाने  चलूँ।


तिथि : 18-10-2016
वैशाली, दिल्ली, एन सी आर।

यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/ckW_IQ-EgbQ

Thursday, October 24, 2019

जीने की चाह करें (कविता )

#BnmRachnaWorld

#poemonstreetchild





आओ दोस्तों, थोड़ी अपनी भी परवाह करें,
आओ खेलें, मेल बढ़ाएं, जीने की चाह करें।

कोई हाथ बढ़ाने वाला,
क्या आएगा कभी यहाँ?
कोई हमें थामने वाला,
क्या आएगा कभी यहाँ?

चाह नहीं इसकी अब भी,
पहले भी कभी नहीं रही,
मस्ती में जीवन कटता है,
कभी कमी भी नहीं रही।

ऐसे जीवन में मलंग
भी गीत जीत का गाता है,
कल का किसने देखा है,
आज सूरज से नाता है।

रातें कटती, करते बातें,
कभी चाँद, तो कभी सितारे,
आँखे झँपती, जगी हैं आंतें,
रिश्ते सारे स्वर्ग सिधारे।

ऐसे में क्या सोंचे, क्या कोई गुनाह करें?
मेल बढ़ाएं, खेल बढ़ाएं, चलो जीने की चाह करें।

मेरे मन में जगती आसें,
लहरों पर दौड़ें, पंख फुलाएं,
जंग जीतनी है, जीवन की,
क्षितिज पार से कोई बुलाये। 

वहां प्रेम का दरिया बहता,
ठिठुरन भरी नहीं हैं रातें,
पेट भरे की नहीं है चिंता,
रोज नई दावतें उड़ाते।

कल्लू, जददू, आओ, बैठो थोड़ी तो सलाह करें,
आओ खेलें, मेल बढ़ाएं, जीने की चाह करें।
ब्रजेन्द्रनाथ 

Tuesday, October 22, 2019

माँ तुम्हीं मेरा संबल हो! (कविता)

#BnmRachnaWorld
#poem spiritual#durgamaa

गत रविवार ता 20 अक्टूबर 2019 को अपराह्न 4 बजे से स्थानीय तुलसी भवन बिष्टुपुर में सिंहभूम हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में आयोजित "काव्य कलश" कार्यक्रम में मैनेअपनी कविता "माँ तुम्हीं मेरा संबल हो!" सुनायी। इस समारोह की अध्यक्षता मानद सचिव डॉ नर्मदेश्वर पांडेय जी ने की। इस कार्यक्रम को प्रभात खबर समाचार पत्र के चौथे पृष्ठ पर स्थान मिला है।




मेरी कविता मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net पर मेरी आवाज में सुने, चैनेल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें। तुलसी भवन में काव्य पाठ में शामिल सुधीजनों की तस्वीरों का भी अवलोकन करें:

माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!
पड़ी रहीं जो पगडंडी पर,
पाँव तले हैं कुचली जाती।
मिट्टी टूटकर धूल बनी पर,
पथिक पाँव को वे सहलाती.
माँ, मेरा जीवन भी सार्थक,
काम आये उनके जो विकल हों,
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो।

मेरा चढ़ना, गिरना, उठना,
चल देना तूफानों में,
नीरव वन में, फुंकारों में,
सन्नाटों में, और दहानों में.
पार करूँ मैं उनको हरदम,
साहस मेरा अडिग, अटल हो।
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!


साधन बना मैं, स्वारथ - हित का,
मैं तो ठहरा सीधा- साधा।
लोगों ने रक्खी बंदूकें,
मेरे काँधे पर से साधा।
बचा लिया तूने माँ, मुझको,
तुम्ही बनी मेरा सतबल हो।
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!

मैं चल रहा उन राहों पर,
जहां हैं पंक और फिसलन।
जो गिर पडूँ, उठाना माँ तुम,
सुलझा देना मेरी उलझन।
तुम्हीं मेरे प्राणों में बहती,
धार निरंतर, गंगाजल हो।
माँ, तुम्हीं मेरा सम्बल हो!
©ब्रजेंद्रनाथ
यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/HAVTZeh1lf8

Sunday, October 6, 2019

जन-जन में रसधार बहा दो (कविता) - माँ दुर्गे पर

#BnmRachnaWorld
#poemdevotinal#maadurgapoem



















माँ की ममता का विस्तार ही यह सारा जगत है। माँ की ममता से ही अभिलाषाएं पाँव-पाँव चलने लगती हैं। आकाश पुरुष के भाल पर सूरज की पगड़ी सज उठती है। चंद्रमा सुहाग के टीके सा रजनी के भाल पर फब उठता है। नदी लहर-लहर तट पर आकर रेत पर लकीर-लकीर स्वागत गीत लिख जाती है। माँ अपने अमृत कणों की रसधार हमेशा बहाती रहती है। मेरी इस कविता में इन्हीं भावों को स्वर देने का प्रयास किया गया है। आइए दृश्यों का अवलोकन करते हुए इसे सुनते हैं मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर:
कुछ पंक्तियाँ:

जन - जन में रसधार बहा दो...

माँ, अपने अमृत - कणों से,
जन - जन में रसधार बहा दो।

माँ, तुम कितनी प्रेममयी हो!
कृपा तुम्हारी सब पर है,
कुछ बच्चे जो ठिठुर रहे है,
आसमान ही छत है उनका,
घुटने मोड़े किकुर रहे हैं।
उनका भी उद्धार करा दो,
जन - जन में रसधार बहा दो...

माँ, तुम कितनी ममतामयी हो!
वात्सल्य तुम्हारा सब पर है,
अपने घर से निष्कासन हो गया,
जिनका रातों रात सब बिखर गया।
उनके टूटे सपनों को,
फिर से इक आकार दिला दो।
जन - जन में रसधार बहा दो...

माँ, तुम कितनी करुणामयी हो!
लाचारों, बेबसों, शोषितों को,
पीड़ित, ब्यथित, थकित, बंचितों को।
जीवन के संघर्षों में से,
रोशनी का उपहार दिला दो।
जन - जन में रसधार बहा दो...

माँ, तुम कितनी शौर्यमयी हो!
सीमा पर जो डटे प्रहरी हैं,
गोली की बौछारों में जो,
आंधी, बर्फीली, तूफानों में जो,
साँसों और संहारों में जो,
सीना ताने खड़े सजग हैं।
देश नमन करता है उनको,
माँ, उनके अंतस्थल में भी,
शक्ति, वीरत्व, अपार दिला दो।
जन - जन में रसधार बहा दो…

माँ, तुम कितनी विवेकमयी हो!
भटक गए जो सत्य शपथ से,
गिर पड़े जो रश्मि रथ से,
प्रज्ञापुत्र, जो जन्म लिए हैं,
मुंह मोड़ खड़े जो सत्य शपथ से,
उनके मन का विकार मिटा दो।
जन - जन में रसधार बहा दो…

माँ, तुम कितनी आनंदमयी हो!
ध्यान हमें ये सदा रहे,
तेरे चरणों में सिर झुका रहे,
ज्योति - पुँज अंतर में फैले,
तमस हमारा मिटा करे।
मन में स्पंदन हो सुविचारों का,
माँ, ऐसा अहसास करा दो।
जन - जन में रसधार बहा दो...

--ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
 जमशेदपुर,


यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/BT5h3Ub9KO4


माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...