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Thursday, July 30, 2020

बसाउंगी हिय के मधुवन में (कविता) #romantic

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#romantic poem




















बसाउंगी हिय के मधुवन में
शृंगार के गीत (कविता)

अलसाया तन, बौराया मन,
कल्पना का नहीं ओर छोर है।
कोयल गा रही मीठी - सी धुन,
बाग में आया, अमवां का बौर है।

वासंती रंग फ़ैल गया यहां - वहाँ,
लहक गया, दहक गया पलाश वन।
आँखें निहारती चौखट पर क्षण - क्षण
आएंगे साजन और होगा मिलन।

फाग का राग बन आ गई होली भी,
अब तो घर आ जा मेरे सजन।
बयार भी चुभ रही काँटा बन,
मन हुआ बावरा, बिसर गया तन।

आँखे थी टकटकी लगाए हुए,
पड़ती रही ढोलक पर थाप पर थाप।
चुनरी भींगो गयी कोई सहेली मेरी,
पर न मिट पाया मन का संताप।

सावन भी आ गया बैरन बन,
बादल घिर आये नीले गगन में,
आयी नहीं नेह की एक पाती,
जल रिशते रहे कोरे नैनन में।

चैन आएगा होगी दस्तक जब,
आने की, सूने इस आंगन में।
सुध बुध खोकर खूब सताऊंगी
फिर बसाऊंगी हिय के मधुवन में।

@ब्रजेंद्रनाथ

Monday, July 27, 2020

आपातकाल (इमरजेंसी) 1974 का एक संस्मरण(लेख)

#BnmRachnaWorld
#myreminiscence#emergenyin1975











आपातकाल का मेरा संस्मरण:
(मार्च - अप्रील 1974)
उन दिनों मैं एम एस सी में मगध विश्वविद्यलय बोधगया में पढ़ाई कर रहा था। जी पी (जय प्रकाश नारायण) के आह्वान पर विद्यार्थी सड़क पर आ गए थे। मैं जे पी के तरुण शांति सेना में शामिल हो गया था। 18 मार्च 1974 को पटना में हुए गोलीकांड के विरोध में 8 अप्रील को जे पी ने फणीश्वर नाथ रेणु, सर्वोदय के सदस्यों और पटना के विद्यार्थियों के साथ मिलकर मुँह पर पट्टी बांधकर पटना में जो मार्च निकाला था, उसमें तरुण शांति सेना के स्वयंसेवक के रुप में मैंने भाग लिया था। इसी के बाद आंदोलन देश के अन्य शहरों और गांवों में तेजी से फैला था।विहार के पूर्व मुख्य मंत्री महामाया प्रसाद जी को हमलोगों ने वजीरगंज बुलाया था। वहाँ एक बड़ी सभा को उन्होंने संबोधित किया था। उससमय उन सभाओं की अध्यक्षता विद्यार्थी ही किया करते थे। उस दिन संयोगवश मुझे ही अध्यक्षता के लिए मौका मिला था।
उसके बाद 12 अप्रील को मखदुमपुर (गया-पटना रेल खण्ड में एक स्टेशन) में पटना से आ रहे विद्यार्थियों के साथ मुँह पर पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन का कार्यक्रम था। उसी दिन सुबह से विद्यार्थी परिषद और अन्य संगठनों के साथ गया पोस्ट आफिस में रामधुन और धरना का कार्यक्रम था। मैंने सुबह में उसमें भाग लिया और उसके बाद ट्रेन पकड़कर मखदुमपुर चला गया। वहां हमलोग पंक्तिबद्ध होकर जुलूस में घूम ही रहे थे कि खबर आई कि गया में पोस्ट ऑफिस के पास प्रशासन के द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शनकरियों पर गोली चली है। कई विद्यार्थी और सामान्य लोग मारे गए हैं। कर्फ्यू लगा दिया गया है। रात में पटना से गया की ओर कोई ट्रेन नही आई। मेरे साथ उन दिनों मेरी माँ रहती थी। मैंने माँ से भी नहीं कहा था। रात में नहीं आने से यह आशंका विश्वास में बदल गयी कि मैं गोलीचालन में मारा गया। माँ का रो - रो के बुरा हाल था। मेरे एक ममेरे भाई पास में ही रहते थे। किसी ने कहा कि कुछ लाशें सिविल अस्पताल में आयीं है। अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था।
गया कैंटोनमेंट से सेना बुलाकर पूरा शहर उसी को सौंप दिया गया था। देखते ही गोली मारने का आदेश जारी था। लोग कह रहे थे कि ऐसा हाल तो 1947 के दंगों के समय भी नहीं था। मेरे ममेरे भाई गली - गली से होकर सिविल अस्पताल पहुंच गए। वहाँ उन्होंने लाशों के चेहरे पर से चादर हटाकर मेरी पहचान करनी चाही। मैं उनमें नहीं था। इसका मायने मेरी लाश उनमें थी, जिसे कहीं फेंक दिया गया हो।
रात किसी तरह बीती। सुबह की ट्रेन से मैं गया स्टेशन पहुंचा था। बाहर कर्फ्यू होने से सारे लोग स्टेशन में ही जमे हुए थे। बहुत भारी भीड़ थी। मैं रेलवे लाइन के किनारे - किनारे होते हुए अपने डेरा पहुँचा। तब माँ की जान - में -जान आयी। इसी गोलीकांड के बाद जे पी ने बिहार विधान सभा के भंग किये जाने की मांग भी आंदोलन के मुद्दों में जोड़ दिया था।
©ब्रजेन्द्रनाथ

Sunday, July 26, 2020

दिलों में बसा लें (कविता) #kargilwar

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#kargilwarpoem






















1999 में कारगिल में जीत को  "विजय दिवस" के रूप में मनाए जाने के उपलक्ष्य पर:

बसा ले दिलों में

जो बर्फ की चोटियों पर चढ़ गए,
जो अस्त्र शस्त्र लेकर भिड़ गए।

अरि जो बैठा था टाइगर हिल ऊपर
शस्त्र मशीन गन, छुपा बनाये बंकर।

यह युद्ध था मौसम के उठते तूफान से
यह युद्ध था, विकट तोपो की दहान से।

शत्रु अस्त्र सजाए था बैठा ऊंचाई पर,
सैनिकों पर बरस रहे गोले जब थे वे चढ़ाई पर।

यह युद्ध था लंबा खिंचता जा रहा,
सैनिकों का धैर्य सिमटता जा रहा।

वायु सेना ने बरसाए गोले ठिकानों पर,
दुश्मनों की व्यूह रचना आ गयी निशानों पर।

घेर कर, चढ़कर जीत ली सारी चोटियाँ,
दुश्मन की बिखर गई एक एक बोटियाँ।

पत्थरों पर बिछ गयीं, 
दुश्मन के लाशों की बोरियाँ,
सो गए कुछ वीर, देकर 
अपने प्राणों की आहुतियों।

उनकी शहादत का जश्न मना ले,
आग को सुलगाये रखने के लिये।
आओ उन्हें बसा ले दिलों में, 
देशप्रेम जगायें रखने के लिए।
©ब्रजेंद्रनाथ
इस कविता को मेरी आवाज में मेरे यूट्यूब
चैनल marmagya net के इस लिंक पर सुनें, चैनल को सब्सक्राइब करें, यह बिल्कुल फ्री है: 
https://youtu.be/1nt6MZpsOzg


Thursday, July 23, 2020

तू है मेरा दिलवर (कविता) #romantic#sawan

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#sawanromantic
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तू है मेरा दिलवर

आनन छुपा करों से,
चौकती हूँ क्षण - क्षण।
आहट पे तेरे पग की
चंचल हुआ है चितवन।

हाथों में सजाए मेंहदी,
प्रतीक्षा करूँ मैं साजन।
आ जाओ सजी धजी हूँ,
सींचित करो ये तन मन।

मेहंदी लगे हाथों को
तेरे हाथों में सौंपती हूँ।
जीवन मेरा है तेरा,
समर्पण मैं करती हूँ।

मेरी सांसों में तेरी ही
अब यादें बसा करेंगीं।
तू ही है मेरा रहबर 
तेरे संग चला करूंगी।

जीवन में आएंगे, कभी 
पतझड़ कभी बसंत।
मुझे उसकी नही परवाह
अब तू है मेरा कंत।

अगर कभी भी कुछ भी
गलती हो जाएगी।
इशारों में बता तू देना,
मैं खुद संभल जाऊंगी।

मन उचाट हो जाये,
कभी मैं रूठ जाऊँ।
मुझको मना लेना तू,
तेरे पास आ मैं जाऊँ।

मन में बसा लिया है,
दिल में समा लिया है।
अपने नाव की पतवार
तेरे हाथों में दे दिया है।

तुझपे है भरोसा
भगवान से भी ज्यादा।
अंतर में उतर गया तू
भगवान से भी ज्यादा।

मुझे साथ लेके चलना
मेरे प्यार मेरे दिलवर।
हम आगे बढ़ चलेंगें
जब तू है मेरा रहबर।

©ब्रजेंद्रनाथ














Saturday, July 18, 2020

शिव जी पर पांच दोहे (कविता) #shiva

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#shivapoem#lordshivadoha



















शिव जी पर पांच दोहे

शशि सुशोभित सिर पर है, आशुतोष भगवान।
माथे से गंगा बहे, मुनि जन करते ध्यान।। (1)

अरि का करते नाश हैं, ले कर हाथ त्रिशूल।
शिव करते उद्धार हैं, मिटता विघ्न समूल।। (2)

जाप करें कैलाश पर, ले कर प्रभु का नाम।
ओम-ओम होता रहे, गूँजे आठों याम।। (3)

शंकर भोलेनाथ हैं, जग के पालनहार।
अपने भक्तों का सदा, करते हैं उद्धार।। (4)

शिव का नाम जपे चलो, पास न आये काल।
करेंगें सुरक्षा सबकी, गणदेव महाकाल।। (5)

©ब्रजेन्द्रनाथ



Saturday, July 11, 2020

सावन में सहलाती झड़ी है (कविता) #nature

#BnmRachnaWorld
#poemnarure




















सावन की सहलाती झड़ी

सावन की सहलाती झड़ी है।
बूंदों की लहराती लड़ी है।

मेघों का शामियाना तान,
सजने लगा है आसमान।
सूरज  छुपा ओट में कहीं,
इंद्रधनुष का फैला वितान।

धुल गए जड़ - चेतन, पुष्प,
सद्यःस्नाता लताएं खड़ी हैं।
सावन की सहलाती झड़ी है।
बूंदों की लहराती लड़ी है।

धुल गई धूल -भरी पगडंडी,
चट्टानों पर बूंदें बिखर रहीं।
गूंज उठे कजरी के गीत,
पर्दे के पीछे गोरी संवर रही।

झूले पड़े, अमवाँ की डालों पर
पिक की कूक हूक सी जड़ी है।
सावन की सहलाती झड़ी है।
बूंदों की लहराती लड़ी है।

यक्ष दूर पर्वत पर अभिशप्त
खोज रहा बादल का टुकड़ा।
भेजूं संदेश कैसे प्रिया को?
प्रतीक्षा-रत, म्लान है मुखड़ा।

कंपित है गात, तृषित है मन
आंगन के कोने में बेसुध पड़ी है।
सावन की सहलाती झड़ी है।
बूंदों की लहराती लड़ी है।

मोर के शोर से गूंजित उपवन,
उमंगों का नहीं ओर छोर है।
कृषक चला खेतों की ओर,
बंध चली आशा की डोर है।

आनंद का मेला लगा है,
गाँव की ओर उम्मीदें मुड़ी है।
सावन की सहलाती झड़ी है।
बूंदों की लहराती लड़ी है।

--ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र

Friday, July 10, 2020

मास्क की हिंदी परिभाषा (कविता) हास्य व्यंग्य

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#मास्क की हिंदी#hindiofmask
#कीटाणुबाधक#विषाणुरोधक#वस्त्रडोरियुक्त#मुखपट्टिका






















मास्क की हिंदी परिभाषा

मै मास्क लगाए,
मुँह छुपाए,
सोच रहा था,
क्या हो सकता है,
इसका हिंदी में अर्थ?
शब्दों से व्याकरण तक,
छन्दों से अलंकरण तक।
नहीं हो रहे समर्थ।

किसी ने मुँह खोला,
मास्क के अंदर ही अंदर,
शब्दों को तोला।
उसमें झंकार लगाया,
अलंकार का चमत्कार लगाया।
शब्दों को पान जैसा चबाकर,
ज्ञान की गगरी से,
बुद्धि की बूंदों को छलकाकर,
उन्हें संयोजित किया,
संदर्भानुसार समायोजित किया,
जुबान की जुम्बिश से,
शब्दों के दीपक में
जलाई बातों की वर्तिका,
बोला "मुख पट्टिका'।

मैंने पूछा
इसमें वस्त्र के साथ
एक और वस्तु लगी है
डोरी भी बंधी है।
यह परिभाषा ठीक नहीं बैठती
संपूर्णता का चित्र नहीं गढ़ती।
मस्तिष्क पर जोर और दें,
शोध को एक नई ठौर दें।

तब उन्होंने जो बताया
उससे नया कुछ निकलकर आया।
कीटाणुबाधक,
विषाणुरोधक,
वस्त्रडोरीयुक्त मुखपट्टिका।
मास्क का यह अनुवाद,
सबों को भाया।

अब साड़ी, या सलवार से मैच करती,
पेंट या शर्ट से कंट्रास्ट रखती।
शोभित हो रही साधिका,
कोरोना युग की आराधिका।
क्षण क्षण सजती है मल्लिका।
पल पल सँवरती है अम्बिका,
शर्मीली, छबीली अम्बालिका।
मुख पर सजाती, खुद को सँवारती,
कीटाणुबाधक, विषाणुरोधक,
वस्त्रडोरियुक्त मुखपट्टिका!
वस्त्रडोरियुक्त मुखपट्टिका।

©ब्रजेन्द्रनाथ




Wednesday, July 8, 2020

करते हैं शिव आराधना (कविता)

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#poemonLordShiva


















करते हैं शिव -आराधना

आशुतोष को अर्घ्य चढ़ाएं,
गंगाजल भर कांवर लाएं।
शिव सुनेंगे हमारी प्रार्थना।
करते है शिव -आराधना।

शिव जी, भोले नाथ हमारे,
चन्द्रमौलि भक्तों के प्यारे।
अर्पण चरणों में अर्चना।
करते हैं शिव - आराधना।

भक्तों की है भीड़ लगी,
नीलकंठ में लगन जगी।
पूर्ण हो हमारी साधना।
करते है शिव - आराधना।

सेनानी तुझमें दृढ़ता हो,
शस्त्रों में मारक - क्षमता हो।
तोपों से करें सिंह-गर्जना।
करते हैं शिव - आराधना।

महेश सुनो विनती मोरी,
इच्छा मेरी कर दो पूरी।
समूल नष्ट हो कोरोना।
करते हैं शिव - आराधना।
©ब्रजेन्द्रनाथ 

Friday, July 3, 2020

बच्चों में खुशहाली (कविता)

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बच्चों में खुशहाली

लड़का लटका डाल से
मचता रहा धमाल।
बाकी दोस्त ताकते
उसका देख कमाल।।

बच्चे करते तड़ाग में
जमकर जल विहार।
गरमी के इस जलन से
राहत मिलता यार।।

सूरज ऊपर तप रहा,
सोखे ताल तलैया ।
पानी की बूंदे दे दो,
फुदक रही गोरैया ।।

गर्म हवाओं से जल रहे
धरती और गगन।
बाहर निकलने के पहले
ढंके सिर और बदन।।

छाछ पियें, आमरस पीएं,
और पियें जल जीरा।
मस्त मेलन, तरबूज औ'
खाएँ ककड़ी खीरा।

सूखने दो समंदर को,
और बनने दो बादल।
दौड़ लगाएंगे पावस में,
बरसे बूंदे छल छल।।

पेड़ लगाओ धरा में
छा जाए हरियाली।
पर्यावरण निर्मल हो,
बच्चों में खुशहाली ।।

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

शृंगार के छः छंद (कविता)

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#romanticpoem

















श्रृंगार के छः छंद

डूबती, उतराती है देह नाव पर,
मदमाती, बलखाती जाती उस पार है।
श्रृंगार सभी मौन, आवरण हुए गौण,
यौवन भार अपार, बंध - मुक्त संसार है।

उठती गिरती साँसों से एक छन्द लिखें।
ओठों के मधु - रस से कोई बंद लिखें।
तेरी पलकों के नींदों से, उनींदे पलों को,
नेह निमंत्रण देकर, एक निबंध लिखें।

तू उद्दीप्त यौवन का वेगवान प्रवाह!
ले चलूँ , तटिनी की धारा बन जाऊं।
उज्जवल, धवल सी  फेनिल बूँदें बन,
लिपटूँ बाहों में, किनारा बन जाऊं।

नदी ज्यों उफन रही,  किनारों को तोड़ती,
काष्ठ - पिंड - सा बहा, धारा के बहाव में।
आवरण हुए गौण,  सांसें हो गयी मौन?
उन्मत्त आचरण ज्यों मदिरा के प्रभाव में।

छा जा मुझपर, ज्यों बादल पर्वत पर,
मैं हूँ तुम्हारा वेग, तू वेगवती धारा।
तोड़कर बांधों को तभी तो बहेंगे हम,
प्लावित कर लेंगें, जीवन अपना सारा।

देह तेरी उल्लसित, उत्कंठित, आलोड़ित,
कम्पित -गात, औ' मुदित हास आनन पर।
यामिनी है जाग रही, सो गए विहग सारे।
आँखों में नींद नहीं, ओठों के कम्पन पर,

ओठों को रखने दो, घोलने दो अमृत - रस।
मन की पाखी उड़ी, थोड़ा तो बहकने दो।
बाहों  में समेटने दो, खोल दो बाहों को,
रात की रानी को रात भर महकने दो। 

©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

आत्मनिर्भर (हास्य व्यंग्य)

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आत्मनिर्भर 
(हास्य - व्यंग्य)
मैं समझता हूँ, कि आप दो समयों पर जितना आत्म निर्भर होते है, उतना कभी नहीं होने का मौका मिलता है - एक स्नानालय में और दूसरा सो(शौ) चालय में। इसलिए वहाँ अच्छे विचार आते है। कहा जाता है कि दुनिया के कई महानतम अविष्कारों और साहित्य सृजन का विचार कजरारे बादलों से घिरे घनमण्डल में बिजली की कौंध की तरह वहीं चमका था। अच्छा हुआ आर्कमिडीज को अपना समाधान जलाशय में मिला था और वहीं से वह बस्त्रविहीन दौड़ पड़ा था। अगर सोचालय में समाधान मिलता, तो पता नहीं क्या होता?
यह सब देखकर और समझकर इस कोरोना काल में कई लोग वहाँ ज्यादा समय बिताने लग गए। शायद कोई विचार सूत्र मिल जाय, जिससे कोरोना पर विजय प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ा जाय।
साथ ही दीपक जी जैसे हास्य - व्यंग्य के हस्ताक्षरों ने स्वयं को गृह कार्य में भी व्यस्त रहने की चर्चा इतनी व्यापकता और रचनात्मकता के साथ अपनी रचनाओं में किया, कि हमलोग जैसे सेवा निवृत्त कलमकारों को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोग पीछे ही पड़ गए। मेरे पड़ोस वाले सत्तर वर्षीय चचा तो एक दिन झाड़ू लगाने को झाड़ू लिए झुके ही थे कि झुके ही रह गए। अब कोरोना काल के बाद ही लगता है सीधे होंगें।
हमलोग आजादी के बाद सत्तर से अधिक वर्षों से परनिर्भरता के ही प्रावधानों पर चलते रहे। पहले पी एल 480 के तहत यहाँ गेहूं आता था। उससे मुक्ति का प्रयास हरित क्रांति द्वारा हुआ। इसके बाद हमने वर्ल्ड बैंक आदि से ऋण लेकर बड़े-बड़े कल कारखाने खड़े किए। ऋण लेकर घी पीने की आदत पड़ गयी। अपनी पूंजी जो भी इकठ्ठी हुई उसे ऋण की अदायगी ही होती रही। जब एकाएक मार्केट इकॉनोमी से जुड़े तब अपनी औकात का पता चल गया। अर्थ तंत्र को पटरी से गिराने में घोटालों ने अपना योगदान दिया।
अब थोड़ा संभल ही पाए थे कि कोरोना ने विश्व स्तर पर आक्रमण कर दिया है। प्रधानमंत्री ने इसे आत्मनिर्भर बनने के लिए एक मौके में बदलने का आह्वान किया है। हमलोग बदलेंगें कैसे? हमलोग तो अबतक सस्ते खरीदने के इतने आदि हो चुके हैं कि यह भी नहीं देखते कि समान हमारा बनाया हुआ है या दुश्मन के द्वारा। हमलोग दूसरों के लिए हाई टेक क्लर्की करते - करते व्हाट्सअप्पीये, फेसबुकिये, गूगलिये, विकिपीडिये, इंस्टाग्रामीये बन चुके हैं कि न अपना कोई अप्प बना सके और न अपना कोई प्रोडक्ट।
यहाँ से आत्मनिर्भरता की यात्रा है तो अगम पर पूरी करनी भी है अहम।
चलते हैं चुनौतियों को हथियार बनाते हैं,
आत्मनिर्भता का संस्कार जगाते हैं।

© ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...