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Saturday, September 26, 2020

एक रुपया सुनाता सफर अपना (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#journeyofonerupeecoin











 सिक्के के सफर की कहानी

सुनो सुनता हूँ मैं अपने
सफर की एक कहानी।

पिघल-पिघल कर मैंने पायी
गोल मटोल - सी सुंदर काया।
टकसाल मेरा है जन्मस्थान,
चमक से जग सारा भरमाया।

मैं आते ही पड़ा एक दूल्हे के
वैवाहिक रस्म की थाल में ।
बुद्धि गणेश पर मुझे चढ़ाया,
प्रभु चरणों की संभाल में।

अब मैं सुगंध में लिपटा हूँ,
दुल्हन के आँचल की।
ऐसे ही रुन - झुन सुनूँ
दुल्हन के पायल की।

ऐसे कहाँ भाग्य है मेरे
यहाँ से करुणा भरी कहानी।
सुनो सुनाता हूँ मैं अपने
सफर की एक कहानी।

मैं चला गया सेठ की
नई बनी अलमारी में।
उसने जैसे बंद किया हो,
जेल की चार दिवारी में।

मेरा दम घुटता रहा
हवा नहीं, नहीं पानी।
सुनो सुनता हूँ मैं अपने
सफर की एक कहानी।

वहाँ से किसी तरह निकल
पनवाड़ी की गद्दी के नीचे।
मेरा चेहरा बिगड़ चला,
अब हूँ कबाड़ी के रद्दी के नीचे।

रद्दी के साथ रोज रोज
मैं तौला जाता हूँ।
हर रोज मैं रोता हूँ,
हर रोज धकेला जाता हूँ।

हर सिक्के की अलग-अलग
ढंग से बीती जवानी ।
सुनों सुनाता हूँ मैं अपने
सफर की एक कहानी।

मेरी भी है आश किसी दिन
जा पड़ूँ नन्ही सी मुठ्ठी में।
जैसे कोई रंग - बिरंगी
तितली बंद हो नन्ही मुट्ठी में।

मेरा भी रिश्ता हो जाये
किसी से थोड़ी सी रूहानी।
सुनों सुनाता हूँ मैं अपने
सफर की एक कहानी।
©ब्रजेन्द्रनाथ

Monday, September 21, 2020

मन में तेरा ही नाम रहे (कविता) #bhakti

#BnmRachnaWorld

#shyambhakti


परम स्नेही मित्रों, 

पिच्छले २९ सितम्बर को डॉ राधानंदन सिंह जी के आमंत्रण पर मैं मारुती सत्संग मंडल पुणे के वेबिनार से जुड़ा।  डॉ राधा बाबू के कर्मफल सिद्धांत पर दिए गए प्रेरक वक्तव्य के बाद मैंने अपनी दो भक्तिपूर्ण रचनाएँ प्रस्तुत की।  एक योगेश्वर श्री कृष्ण पर और दूसरी भगवान राम के वन गमन पर। इसी का यूट्यूब वीडियो  लिंक मैं दे रहा हूँ। आपके बहुमूल्य विचारों का स्वागत है। सादर:

--ब्रजेंद्र नाथ

यूट्यूब लिंक: https://youtu.be/fJES-jIN7cw












मन में तेरा ही नाम रहे

श्याम मेरे, घनश्याम मेरे,
मन में तेरा ही नाम रहे।

प्रेम की बाती जलती रहे,
नेह की बूंदे गिरती रहें।
तन मेरा तू सींचित कर दो,
मोहपाश को सीमित कर दो।

मनमोहक तेरी ही छवि,
नयनों में आठो याम रहे।
मन में तेरा ही नाम रहे।

मन में झूठे अहंकार का
पौधा एक पनप रहा है।
काम, क्रोध, लोभ, मत्सर का
विषय - व्याल लिपट रहा है।

मानस में तेरा ही चिंतन
सुबह, दोपहर शाम रहे।
मन में तेरा ही नाम रहे।

भक्ति तेरी मैं पाऊँ कैसे?
चरणों से जुड़ जाऊँ कैसे?
भँवर समर के घेर रहे हैं,
इनको जीत मैं आऊँ कैसे?


संकल्पों में शक्ति भर दो,
ओठों पर गोकुलधाम रहे।
मन में तेरा ही नाम रहे।

©ब्रजेन्द्रनाथ

Thursday, September 17, 2020

ब्रह्मांड शिल्पी और भारत शिल्पी (नरेंद्र मोदी) दोनों को नमन (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#Vishwakarmapujapoem

#narendramodibirthday











विश्वकर्मा भगवान का वंदन

सृष्टि के प्रथम शिल्पी का करते हैं अभिनन्दन।
हाथ जोड़ विश्वकर्मा भगवान का करते हैं वंदन।

आपने शिल्प कर्म को कौशल की आभा दी है,
श्रमवीरों को स्वाभिमान से जीने की श्लाघा दी है।

इस जगत में सर्वत्र व्याप्त, आपकी सुंदर संरचना,
निर्माण हुआ या हो रहा, सब आपकी ही प्रेरणा।

ब्रह्मांड सारा आपसे गतिमान है पथ पर अपना,
आपसे ही जीवों का पूरा हो रहा घर का सपना।

धर्म पथ पर बढ़ चलें हम, शुद्ध हो मेरे आचरण,
गमन पथ प्रशस्त करना, बढ़ते चले मेरे चरण।

ब्रह्माण्ड में तेरा ही राज, भक्तों की रखना तू लाज,
भाव मैं अर्पित करूँ, झुके नहीं कभी सच का ताज।

हम अभिमानी, मूर्ख, पूजा विधि से अनजान हैं।
अपनी शरण में ले लो प्रभु, हम तेरी ही संतान हैं।

©ब्रजेन्द्रनाथ








प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर मेरे उदगार:

आज ब्रह्मांड के शिल्पी विश्वकर्मा जी
का करते हैं वंदन,
साथ साथ भारत शिल्पी नरेंद्र जी को
जन्मदिन का अभिनन्दन!

मौन उसे देखकर
भूल मत कोई कर ।
दहाड़ेगा सिंह बन
नियति को तोलकर ।
शक्ति संचयन में लगा हुआ साधक,
टूटेगा मृगराज - सा, अभी
वन - वन डोलता है ।
शान्त पड़ी ज्वाला में भी
अनल - कण होता है ।

स्यारों की हुआ - हुआ
कुकुरों का कुकुरहाव ।
कौओं का  
काँव - काँव,
चापलूसों का हावभाव ।
इन सबसे निरपेक्ष
अपनी  धुन में मग्न ।
एक पथ, एक लक्ष्य
देश - सेवा का एक प्रण।
दुश्मनों की छाती तोड़ेगा, भीम बन
अभी बाजुओं का बल
मन - ही - मन तोलता है ।
शांत पड़ी ज्वाला में भी
अनल - कण होता है ।

©ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र

Monday, September 14, 2020

हिंदी दिवस पर कविता (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#HindiDiwas

यह कविता यूट्यूब पर मेरे चैनल "marmagya net" के नीचे दिए गए लिंक पर मेरी आवाज में सुनें और कमेंट बॉक्स में अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं! सादर!

Link: https://youtu.be/-o0y4UoaCu0


















हिंदी दिवस पर: बारह छंद

हिंदी भूषण के छन्द हैं,
सवैये हैं चंद वरदाई के।
हिंदी है तीर पृथ्वीराज का
भेदती छाती गोरी आतताई के।

हिंदी है सूर तुलसी की भक्ति,
उलटबासियाँ संत कबीर की,
हिंदी है दोहे रहीम रसखान के
और शायरी ग़ालिब मीर की।

हिंदी मीरा के गीतों में है
छंदों में भक्त रैदास के।
हिंदी रमानंद की कुटिया,
गायन में स्वामी हरिदास के।

भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने किया
खड़ी बोली का अनुसंधान।
हिंदी की सरिता बनी गंगा,
बह चली सर्वत्र वेगवान।

हिंदी राणा के भालों में
मेवाड़ की पावन माटी में।
हिंदी है श्यामनारायण की,
रक्त - सरोवर हल्दीघाटी में।


हिंदी है झाँसी की धरती
और लक्ष्मीबाई की तलवार।
सुभद्रा कुमारी चौहान के,
छंदों से गूंजी थी ललकार।

प्रेम के लिए प्रेम की भाषा,
अरि के लिए अंगार है, हिंदी
सियारों की हुआ हुआ का,
उत्तर सिंहनाद हुंकार है, हिंदी।

हिंदी कोमल पंत और
करुणा महादेवी की।
जयशंकर की कामायनी,
निराला की जूही की कली।

हिंदी है फक्कड़ नागार्जुन सी
और दिनकर की हुंकार भरी।
हिंदी मैथिली शरण गुप्त की,
साकेत, पंचवटी सी संस्कार भरी।

हिंदी नीरज के गीतों में,
बच्चन के रुबाइयों की मधुशाला।
माखन, अटल का देशराग,
जानकी बल्लभ की राधा बाला।

अन्य भाषाओं के मनके से
बनती है हिन्दी की माला।
भारतीयता का साकार रूप
हिंदी में लक्षित माँ वाला।

माँ आँचल की छाँव देकर
होती रही विभोर है।
भारतीय भाषाओं का विकास हो,
स्नेह का नहीं ओर छोर है।
©ब्रजेन्द्रनाथ
यूट्यूब लिंक :


https://youtu.be/-WloLq4wW4A?si=CmMG0fsjHost_jrv


Monday, September 7, 2020

सीमा पर सजग जवान हैं (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#patrioticpoem


यह कविता शुद्ध साहित्यिक रचनाओं के मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के नीचे दिए गए लिंक पर जाकर सुनें, चैनल को सब्सक्राइब करें, यह बिल्कुल फ्री है।

Link: 

https://youtu.be/jPpIzovZ5oA










सीमा पर सजग जवान हैं


आँखें नहीं दिखा सकता
सीमा पर सजग जवान हैं।

आँधी हो, बादल गरजे
या बारिश तूफान हो।
बर्फीली बह रही हवाएं,
टूटता हिम - चट्टान हो।

सांसें अर्पित हैं मेरी माँ
तेरे लिए ही जान है।
आँखें नहीं दिखा सकता
सीमा पर सजग जवान हैं।

कदम बढ़ाऊंगा मैं आगे,
उबल रहा है उष्ण खून,
गंध मधुर अब रोक नहीं,
काँटों में बोने चला प्रसून।

फर्ज पुकार रहा माँ का
मुट्ठी में सारा जहान है।
आँखें नहीं दिखा सकता
सीमा पर सजग जवान हैं।

रेतीले ऊँचे टीले हों, या
आँधी में हो भरी धूल।
दूर तलक है नजर हमारी,
वैरी विनष्ट होगा समूल।

दुश्मन की हर चाल से
नहीं कभी अनजान हैं।
आँखें नहीं दिखा सकता
सीमा पर सजग जवान हैं।

देश के नेताओं से कह दो,
लोकतंत्र में है विश्वास।
तो राष्ट्रहित की बात करें,
जनता में फैले उल्लास।

जयचंदों को पकड़, बता दे,
उनकी जगह श्मशान हैं।
आँखें नहीं दिखा सकता
सीमा पर सजग जवान हैं।

©ब्रजेन्द्रनाथ

गुरु के महत्व पर दोहे (कविता)

 #BnmRachnaWorkd

#poemtoteachers










गुरु के महत्व पर दोहे

1
गुरु - चरणों की धूल हैैं, नयन - अंजन समान।
आँखें रोग मुक्त रहे, दोष रहित हो ज्ञान।।

2
गुरु कृपा हो जाय जहाँ, मिटे विवेक - विकार।
लोभ, मोह, मत्सर धुलें, , निर्मल बनें विचार।।

3
जीवन में आगे बढ़ें, ईश कृपा है साथ।
ईश्वर की शक्ति मिले, सिर पर गुरु का हाथ।।

4
मिट जाते अज्ञान सब, फैले ज्ञान - प्रकाश।
गुरु की कृपा रहे सदा, भीतर भरे उजास।।

©ब्रजेन्द्रनाथ √

Friday, September 4, 2020

शिक्षक दिवस पर, नेतरहाट स्कूल की स्मृतियाँ (लेख)

#BnmRachnaWorld

#teachersdayspecial 










आज    शिक्षक   दिवस  है
आज मुझे वे शिक्षक याद आ रहे हैं जो ,  देश को आज़ादी   मिलने  के बाद अपनी योग्यता और विद्वत्ता के    बल पर बड़ी - बड़ी  नौकरियां  हासिल  कर सकते थे।  लेकिन उन्होंने शिक्षक का जीवन अपनाया और शिक्षण को  अपना   जीवन - धर्म बनाया ।  उनमें   से  कई  लोगों ने दूर - दराज़  के अपने गावं में ही   विद्यालय  खड़ा  किया और पूरी जिंदगी अपने जीवन जीने के ढंग से विद्याथियों के जीवन को बदलने का कार्य किया । 
पहले  के  बिहार और  अब  झारखण्ड प्रदेश  के पलामू  जिले  में  बीच जंगल में   नेतरहाट नामक जगह  में  एक आवासीय विद्यालय  दसवें तक की पढ़ाई के लिया बनाया गया था । वह विद्यालय पूरी तरह गांधी जी  के आश्रम   की  ब्यवस्था से   मिलता - जुलता जीवन  पद्धति  पर आधारित था।  वहां के शिक्षकों से लेकर विद्यार्थियों तक को सारा  काम  खुद     करना  पड़ता था ।  वहीं  के  कुछ पूर्ववर्ती  छात्रों   से वहां  के शिक्षकों से  जुड़े  कुछ   प्रेरक  प्रसंगों  के  बारे  में रूबरू  करवा रहा हूँ । 

एक पूर्ववर्ती छात्र राजवंश सिंह अनुभव सुनाते हैं। श्री सिंह बिहार सरकार के संयुक्त सचिव पद से रिटायर हो चुके हैं।  
यह उन दिनों की बात है जब नेतरहाट विद्यालय के प्रिंसिपल  डॉ    जीवननाथ दर थे। आपादमस्तक  गांधीवादी।
स्कूल की परंपरा थी कि हर छात्र को, हर काम करना होगा। बरतन धोने से लेकर लैटरिन साफ़ करने तक। राजवंश सिंह ने कहा, मैंने    अपने स्कूल के श्रीमान (वार्डेन) से कहा, मैं लैटरिन साफ़ नहीं   करूंगा। कोई फ़ादर थे। धैर्य से सुना। प्राचार्य डॉ दर को बताया। डॉ दर ने बुलाया, पूछा क्यों नहीं करोगे? 11 वर्षीय राजवंश सिंह ने कहा, मैं राजपूत हूं। 
डॉ दर ने सुना, कहा,  "ठीक है। पूछा, इस काम की जगह उस दिन कौन सा काम करोगे?"
  छात्र राजवंश ने कहा, "फ़लां काम।" 
उन्होंने कहा, "ठीक है, करो।"
 उस दिन   राजवंश सिंह ने देखा, कि उनकी जगह खुद लैटरिन साफ़ करने का काम डॉ दर कर रहे थे। राजवंश जी के लिए यह मानसिक आघात था। वे लिखते हैं, "मेरी जगह लैटरिन साफ़ करने का काम खुद प्राचार्य जी कर रहे थे, मैं यह देख कर अवाक व स्तब्ध था।"       
फ़िर अगली घटना हुई। एक दिन भोजनालय में उन्होंने देखा। दर    साहब जूठी चीजों को एकत्र करनेवाले टब से साबूत रोटी, सलाद नींबू चुन रहे थे।  चुन कर दो खाने के प्लेटों में रखा गया। 
मकसद था, बच्चों को बताना कि वे बिन खाये अच्छी चीजों को बरबाद कर रहे हैं। दर साहब गांधीवादी थे। उनकी आदत थी, एक-एक चीज की उपयोगिता बताना। यह भी कहना कि देश में कितने  लोग भूखे रहते हैं? कितने गरीबों के घर चूल्हे नहीं जलते? फ़िर छात्रों को समझाते कि वे कैसे एक एक चीज का सदुपयोग करें? उस दिन भी वह यही कर रहे थे। किसी छात्र ने मजाक में राजवंश सिंह को कह दिया कि यह जूठा तुम्हें खाना पड़ेगा।  
11 वर्षीय राजवंश सिंह चुपचाप स्कूल से निकल भागे। स्कूल में जाते ही पैसे वगैरह जमा करा लिये जाते थे। इसलिए महज हाफ़ पैंट और स्वेटर (स्कूल ड्रेस) पहने वह जंगल के एकमात्र शार्टकट से बनारी   गांव पहुंचे, भाग कर। लगभग 21 किमी दूर।  शायद ही ऐसी दूसरी घटना स्कूल में हुई हो।  बनारी में वीएलडब्ल्यू (Village Level Worker, यह पंचायतों के सचिव के रूप में काम करने वाला सरकारी व्यक्ति होता था।)  ने देख लिया। वह मामला   समझ गया। पूछा, "कहां जाना है? "
बालक राजवंश ने उत्तर दिया, "300 मील दूर भागलपुर।" 
 वह प्रेम से उन्हें अपने घर ले गया। यह कह कर कि मैं भी भागलपुर का हूँ।  भागलपुर पहुंचा दूंगा। तब तक स्कूल में  हाहाकार मच गया।पाँच- छः तेज  दौड़ाक (छात्र) दौड़े, उन्होंने ढूंढ़ लिया। फ़िर राजवंश सिंह स्कूल लाये गये। वह भयभीत थे कि आज पिटाई होगी। प्राचार्य डॉ दर के पास ले जाये गये। उन्होंने पूछा कि अभी तुम्हारा कौन सा क्लास चल रहा होगा? पता चला, भूगोल का। सीधे कक्षा में भेज दिया। एक शब्द नहीं पूछा. न कुछ कहा, न डांटा-फ़टकारा ।
 माता जी (प्राचार्य की पत्नी) ने सिर्फ़ कहा, बिना खाये हो? खाना खा लो। उधर, पकड़े जाने के बाद से ही राजवंशजी को धुकधुकी लगी थी कि आज खूब पिटाई होग। लेकिन वे आश्चर्यचकित थे कि उन्हें कोई दंड नही दिया गया।    

इन घटनाओं ने राजवंश सिंह का जीवन बदल दिया। वही राजवंश सिंह स्कूल में सब काम करने लगे। कैसे अध्यापक थे, उस युग के? चरित्र निर्माण, मन-मस्तिष्क बदलनेवाले अपने आचरण, जीवन और कर्म के उदाहरण से। अनगढ़ इंसान को ‘मनुष्य‘ बना देनेवाले. कितनी ऊंचाई और गहराई थी, उस अध्यापकत्व में? खुरदरे पत्थरों और कोयलों (छात्रों)  के बीच से हीरा तलाशनेवाले। बचपन से ही छात्रों को स्वावलंबी, ज्ञान पिपासु, नैतिक और चरित्रवान बनने की शिक्षा. महज नॉलेज देना या शिक्षित करना उद्देश्य नहीं था। वह भी हिंदी माध्यम से। ऐसे शिक्षक और ऐसी संस्थाएं ही समाज-देश को ऊंचाई पर पहुंचाते हैं।    

डॉ दर के अनेक किस्से हैं। जाने-माने सर्जन, डॉक्टर और लोगों के मददगार अजय जी (पटना) सुना रहे थे,
"मैं इंग्लैंड से डॉक्टर बन कर लौटा। मेरी ख्वाहिश थी कि एक बार ‘श्रीमान’ और माता जी को पटना बुलाऊं। मैंने पत्र लिखा। वह रिटायर होकर देहरादून में रह रहे थे। उनकी सहमति मिली। हमने आदरवश फ़र्स्ट क्लास के दो टिकट भेजे। लौटती डाक से टिकट वापस। उन्होंने मुङो पत्र लिखा कि हम सेकेंड क्लास में यात्रा कर सकते हैं, तो यह फ़िजूलखर्ची क्यों? दरअसल वह राष्ट्र निर्माण का मानस था, जिसमें तिनका-तिनका जोड़ कर देश बनाने का यज्ञ चल रहा था,  राजनीति से शिक्षा तक, हर मोरचे पर। तब कोई प्रधानमंत्री एक शाम भूखा रह कर ‘जय जवान, जय किसान’ की बात कर रहा था। 
काश, भारत में ऐसे 500-600 स्कूल खुले होते। जिले-जिले, तो भारत आज भिन्न होता ।

--ब्रजेंद्र  नाथ   मिश्र

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...