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Friday, April 9, 2021

मास्क लगाना जरूरी है (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#mask #masklaganajaruri









(फ़ोटो गूगल से साभार)

मास्क लगाना जरूरी है

जब कोहरा होने लगा हो घना,
तमिस्रा की फैलने लगी चादर।
टिड्डियों के दल घेरने लगे हो,
शाखों पर आने लगे चमगादड़।

कोई अपशकुन की आशंका से
स्वयं को बचाना जरूरी है।
मास्क लगाना जरूरी है।

जब विष व्याप्त होने लगा हो,
नीले अम्बर में धुआँ - धुआँ हो।
कोई भी राह दिख नहीं रही,
उठ रही धूल भरी आँधियाँ हों।

ऐसे में धूल और धुआँ से,
स्वयं को बचाना जरूरी है।
मास्क लगाना जरूरी है।

मानव ने किया है अतिक्रमण,
स्रोतों का करता रहा है दोहन।
धरती की कोख से फूटा लावा,
प्रकृति शुरू करेगी विष वमन।

ऐसे में व्याप्त विष प्रवाह से
स्वयं को बचाना जरूरी है।
मास्क लगाना जरूरी है ।

इस संकट काल में उलझन से,
कीटाणुओं के कटीले चुभन से।
कोरोना विषाणु के संक्रमण को,
स्व अनुशासन के अनुसरण से।

सोशल डिस्टेंसिनग रखते हुए
सबको को बचाना जरूरी है।
मास्क लगाना जरूरी है।

कोरोना का बढ़ता संक्रमण,
सावधानी का भूले नहीं चलन।
भीड़- भाड़ से दूर- दूर ही रहें,
कोरोना को मत दें निमंत्रण।

हर रोज पांच मिनट भाप लें,
कोरोना को मात देना जरूरी है।
मास्क लगाना जरूरी है।


©ब्रजेन्द्रनाथ

Sunday, April 4, 2021

पात पात विहँस रहा प्रात (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#nature #poemonnature











पात - पात बिहँस रहा प्रात


व्योम की नीलिमा में खोजता पथ,
कौन आ रहा, चढ़ा वह रश्मिरथ।

लालिमा में लुप्त हो रही रात,
पात -पात बिहँस रहा प्रात।

तरु-शैशवों से फूट रहीं कोंपलें,
क्यारियाँ में केसर के सिलसिले।

कामिनी जाग रही, सो रही रात।
पात -पात बिहँस रहा प्रात।

अरुणोदय में खुले कमल-दल-पट,
कैद भ्रमर सांस लेने निकला झट।

हरीतिमा में स्वर्णिमा आत्मसात।
पात -पात बिहँस रहा प्रात।

पर्वतों से सरक रही धवल-धार,
प्रकृति नटी कर रही नित श्रृंगार।

शिखरों से झाँकता अरुण स्यात,
पात -पात बिहँस रहा प्रात।

वृक्षो से लिपट रही लतायें,
संवाद में रत तरु शाखाएं।

अरुनचूड़ बोल उठा बीत गयी रात।
पात - पात बिहँस रहा प्रात।

©ब्रजेंद्रनाथ


मेरी इस कविता का  मेरे  यूटुब चैनल  maramagya net का लिंक नीचे दे रहा हूँ:

 https://youtu.be/wW6I93dHJik


मेरी इस कविता पर, संस्कृत और हिंदी भाषा के उदभट विद्वान आदरणीय उमाकांत चौबे जी के व्हाट्सएप्प वाल से प्राप्त प्रतिक्रिया मैं यहाँ दे रहा हूँ:

मिश्र जी, यह प्रकृति से सम्बन्धित  अद्भुत रचना है |जिस तरह सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते है, उसी तरह आपने भी इस रचना में प्रकृति की विवेचना की है | सचमुच आप  काव्य प्रतिभा के धनी है |पात पात बिहॅऺस रहा प्रात, इस पंक्ति के माध्यम से आपने प्रकृति की प्रातःकालीन सुन्दरता का वर्णन किया है |मिश्र जी आप साहित्य जगत् के गौरव है | इस सतत साहित्य साधना के लिए मैं शुभकामना देता हूँ |

उमाकांत चौबे







माता हमको वर दे (कविता)

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