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Friday, October 21, 2022

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ (कविता) #दिवाली

#BnmRachnaWorld

#diwalipoem

#दिवालीपरकविता 








पहले अंतस का तमस मिटा लूँ

तब बाहर दीपक जलाने चलूँ.


गम का अंधेरा घिरा जा रहा हैं,

काली अँधेरी निशा क्यों है आती.

कोई दीपक ऐसा ढूढ़ लाओ कहीं से

नेह के तेल में जिसकी डूबी हो बाती.

अंतस में प्रेम की कोई बूंद डालूँ

तब बाहर का दरिया बहाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दरिया बहाने चलूँ.


इस दिवाली कोई घर ऐसा न हो,

जहाँ ना कोई दिया टिममटिमाये.

इस दिवाली कोई दिल ऐसा न हो,

जहाँ दर्द का कोई कण टिक पाये.

अंतर्वेदना से विगलित हुओं के, 

आंसू की मोती छिपाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ, 

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


क्यों नम हैं आँखें, घिर आते हैं आंसू,

वातावरण में क्यों छाई उदासी?

घर में अन्न का एक दाना नहीं हैं,

क्यों गिलहरी लौट जाती है प्यासी?

अंत में जो पड़ा है, उसको जगाकर,

उठा लूँ, गले से लगाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


तिरंगे में लिपटा आया जो सेनानी,

शोणित में जिसके दिखती हो लाली.

दुश्मन से लड़ा कर गया प्राण अर्पण

देश में जश्न हो, सब मनायें दिवाली.

सीमा में घुसकर, अंदर तक वार करके,

दुश्मन को लगाकर ठिकाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


धुआं उठ रहा हैं, अम्बर में छाया,

तमस लील जाए, ना ये हरियाली.

कम हो आतिशें, सिर्फ दीपक जलाएं,

प्रदूषण मुक्त हो, मनायें दिवाली.

स्वच्छता, शुचिता, वात्सल्य ममता

को दिल में गहरे बसाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.


सनातन हमारी है शाश्वत धारा

युगों से इसे ऋषियों ने संवारा.

इसकी ध्वजा गगन में उठाएं.

यही आज का है कर्तव्य हमारा.

दुश्मन जो, आ जाये मग में

उसको धरा से मिटाने चलूँ.

पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,

तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ.

©ब्रजेन्द्र नाथ



Thursday, October 13, 2022

पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है (कविता)

 #BnmRachnaWorld

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#पिता #pitaparkavita









पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है

वह चिलचिलाती धूप सहता है,
वह मौसम की मार सहता है।
तूफानों का बिगड़ा रूप सहता है
वह बताश, बयार सहता है।
मजबूत अंगद का पाँव होता है।
पिता बरगद की छाँव होता है।
पिता नीली छतरी का वितान होता है।
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है.


वह परिवार के लिए ही जीता है।
परिवार के लिए हर गम पीता है।
पिता सब फरमाइशें पूरी करता है.
सब कुछ करता, जो जरूरी होता है।
पिता न जाने कहाँ कहाँ होता है,
पिता हमारा सारा जहाँ होता है।
पिता परिवार का आसमान होता है।
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है.

पिता को मैंने हंसते ही देखा है,
पिता कभी अधीर नहीं होता है।
पिता को मैने हुलसते ही देखा है।
पिता कभी गंभीर नहीं होता है।
वह आंसुओं को पलकों में रोक लेता है.
वह आँखें चुराकर कोने में सुबक लेता है.
वह खुशियों का मुकम्मल जहान होता है.
पिता आकांक्षाओं की उड़ान होता है.

जब पिता है, तो हमारा अस्तिव है,
जब पिता हैं, तो हमारा व्यक्तित्व है।
जब पिता है, तो हम विस्तार होते हैं।
जब पिता हैं, तो हम साकार होते हैं.
जब पिता है, तो हम सनाथ होते हैं.
जब पिता है, तो हम विश्वनाथ होते है.
वह हमारी उपलब्धियों का प्रतिमान होता है,
वह हमारी आकांक्षाओं की उड़ान होता हैं।

©ब्रजेंद्रनाथ

इस कविता को मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर सुनें :


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