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Friday, December 30, 2022

नव वर्ष में हर्ष का विस्तार हो (कविता) #new year 2023 greetings

 #BnmRachnaWorld

#newyeargreetings #happynewyear2023









नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

नव वर्ष की नव रश्मियाँ
दे रहीं संदेश पल - पल।
सुधियाँ वही जो दे खुशी,
हो यही उद्घोष प्रतिपल।
नव स्फूर्ति के साथ नवाचार हो
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

कैलेंडर के बदले जाएँ पन्ने
नव वर्ष  के हर महीने में
नव उत्साह, नव उमंग की
भावनायें जगे हर सीने में.
हर पल खुशियों का संचार हो
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

नव वर्ष कोई भी लड़की
टुकड़ों में ना काटी जाए
नव वर्ष में कोई भी श्रद्धा
आफताबों के जाल में ना बांटी जाये.
नव वर्ष में कभी भी ना दुराचार हो.
नव वर्ष में हर्ष का विस्तार हो.

नव वर्ष में  कन्हैया की
नहीं कटती रहे गर्दन
नव वर्ष में वहशियाना
कृत्यों का  हो मर्दन
वर्ष में निडरता का नया आधार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

छोटी आँखें छोटे कद वालों चीनियों
दम  देखो फौलादी बाजुओं में
मारेंगे, काटेंगे, और गाड़ देंगे
तवांग की बर्फ़ीली  घाटियों में.
इस वर्ष दुश्मनों का सम्पूर्ण संहार हो.
नव वर्ष में हर्ष का विस्तार हो.

हम हैं जो तम की घाटियों से
किरण खुशियों की खींच लाते हैं.
हम हैं कि अँधेरे बादलों पर
बिजलियों का स्यन्दन चलाते हैं.
हमारे तूर्यनाद का दिग दिगंत प्रसार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

घना कोहरा छाया हो गगन में,
रश्मियों का रथ न कोई रोक पाया.
खुशियों के चिरागों की गति को
तमिश्रा का त्वरण न रोक पाया.
नव वर्ष में सदप्रयास सब साकार हो
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

सीमा पर डटे सेनानियों,
हमारे दिलों में आप धड़कते हो
हम मनाते हैं खुशियां यहाँ,
जब आप दुश्मनों पर झपटते हो.
देशवासियों उनका नमन सौ बार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.


नव अन्वेषण के लिए
सिद्धांतों का शोधन करो।
नयी सोच पर, नई रीति से
नये आलोक में चिंतन करो.

नये विमर्श की नई शोध  स्वीकार हो.
नव वर्ष में  हर्ष का विस्तार हो.

यूट्यूब लिंक :
https://youtu.be/qPOf386Jpfg




Friday, December 23, 2022

अटल होते आज अगर (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#Atalhoteaajagar

#atal









अटल होते आज अगर

पीर पंजाल का नाम होता
पञ्चालधारा  पर्वत माला?
पी ओ जे के होता भारत में,
गिलगिट पर फहराता तिरंगा निराला?

अटल होते आज अगर
रग रग हिन्दू मेरा परिचय,
भारत का वेद वाक्य होता
सत्य सनातन  ही
देश का अभिनव साक्ष्य होता.

अटल होते आज अगर
धर्म कोई भी ना होता
देशधर्म ही होता धर्म एकमात्र.
विपक्ष भी क्या होता सुसंस्कृत,
धर्म रक्षित, होता सुपात्र?

अटल होते आज अगर
जनसंख्या नियंत्रण पर
क्या बदलता संविधान ?
क्या होता एन आर सी पर
विस्तृत और संशोधित विधान?

अटल होते आज अगर
क्या चुनाव प्रक्रिया में
होता व्यापक सुधार?
क्या निर्वाचितों को वापस
बुलाने का मिलता अधिकार?

अटल होते आज अगर
क्या कानूनों में होता
आमूल चूल परिवर्तन?
क्या गुलाम भारत के कानूनों
का समाप्त होता चलन?

अटल होते आज अगर
क्या मदरसों के विद्यालयों
में भी लागू होती राष्ट्रीय शिक्षा नीति?
क्या पूरे भारत में एक सिलेबस
से होते सभी विद्वान और ना होती राजनीति?

ये सभी सवाल तब भी होते
आज भी खोज रहे हैं उत्तर.
देश को विकास के पथ पर
ले जाने को हो अगर तत्पर.

©ब्रजेन्द्र नाथ

Tuesday, December 13, 2022

गीतकार कवि शैलेन्द्र (लेख)#पुण्य तिथि पर

 #BnmRachnaWorld

#shailendra

#makingof#TeesariKasam











मेकिंग ऑफ़ तीसरी कसम

(शैलेन्द्र के पुण्य तिथि 14 दिसंबर पर विशेष )

शायद प्रेम की परिणति यही है कि वह अधूरा रह जाय, उसका अधूरापन ही उसकी पूर्णता है, उसके अधूरेपन से उत्पन्न दर्द की छटपटाहट ही  इसकी गहराई है।  लहरों का उठना, तरंगों में तब्दील होना और किनारे जाकर टूटकर लौट जाना ही उसकी पूर्णता है।
मित्रों, रेणु जी की कहानी "मारे गए गुलफाम"  में पनपते अंतर्निहित  प्रेम के भावनाओं के अनुरूप और उसके विछोह सहित नमी भरे नोट पर अंत ' की कहानी को पर्दे पर उतारना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. इस चुनौती को पूरा करने में कवि शैलेन्द्र ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया. आइये 14 दिसंबर, उनकी पुण्य तिथि पर उनके संघर्षो के कुछ पहलूओं को याद करते हैं.

यह फ़िल्म हिन्दी के महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गये गुलफाम' पर आधारित है। इस फिल्म का फिल्मांकन सुब्रत मित्र ने किया है। पटकथा नबेन्दु घोष की है, जबकि संवाद स्वयं फणीश्वर नाथ "रेणु" ने लिखे हैं। फिल्म के गीत शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने लिखें, जबकि फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने दिया है। यह फ़िल्म उस समय व्यावसायिक रूप से सफ़ल नहीं रही थी, पर इसे आज अदाकारों के श्रेष्ठतम अभिनय तथा अप्रतिम निर्देशन के लिए जाना जाता है। इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफ़िस पर पिटने के कारण निर्माता गीतकार शैलेन्द्र का निधन हो गया था। इसको तत्काल बॉक्स ऑफ़िस पर सफलता नहीं मिली थी पर यह हिन्दी के श्रेष्ठतम फ़िल्मों में गिनी जाती है।
हि रामन एक गाड़ीवान है। फ़िल्म की शुरुआत एक ऐसे दृश्य के साथ होती है जिसमें वो अपना बैलगाड़ी को हाँक रहा है और बहुत खुश है। उसकी गाड़ी में सर्कस कंपनी में काम करने वाली हीराबाई बैठी है। हिरामन कई कहानियां सुनाते और लीक से अलग ले जाकर हीराबाई को कई लोकगीत सुनाते हुए सर्कस के आयोजन स्थल तक हीराबाई को पहुँचा देता है। इस बीच उसे अपने पुराने दिन याद आते हैं और लोककथाओं और लोकगीत से भरा यह अंश फिल्म के आधे से अधिक भाग में है। इस फ़िल्म का संगीत शंकर जयकिशन ने दिया था। हीरामन अपने पुराने दिनों को याद करता है जिसमें एक बार नेपाल की सीमा के पार तस्करी करने के कारण उसे अपने बैलों को छुड़ा कर भगाना पड़ता है। इसके बाद उसने कसम खाई कि अब से "चोरबजारी" का सामान कभी अपनी गाड़ी पर नहीं लादेगा। उसके बाद एक बार बांस की लदनी से परेशान होकर उसने प्रण लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वो बांस की लदनी अपनी गाड़ी पर नहीं लादेगा। हीराबाई नायक हिरामन की सादगी से इतनी प्रभावित होती है कि वो मन ही मन उससे प्रीति कर बैठती है उसके साथ मेले तक आने का 30 घंटे का सफर कैसे पूरा हो जाता है उसे पता ही नहीं चलता हीराबाई हिरामन को उसके नृत्य का कार्यक्रम देखने के लिए पास देती है जहां हिरामन अपने दोस्तों के साथ पहुंचता है लेकिन वहां उपस्थित लोगों द्वारा हीराबाई के लिए अपशब्द कहे जाने से उसे बड़ा गुस्सा आता है। वो उनसे झगड़ा कर बैठता है और हीराबाई से कहता है कि वो ये नौटंकी का काम छोड़ दे। उसके ऐसा करने पर हीराबाई पहले तो गुस्सा करती है लेकिन हिरामन के मन में उसके लिए प्रेम और सम्मान देख कर वो उसके और करीब आ जाती है। इसी बीच गांव का जमींदार हीराबाई को बुरी नजर से देखते हुए उसके साथ जबरदस्ती करने का प्रयास करता है और उसे पैसे का लालच भी देता है। नौटंकी कंपनी के लोग और हीराबाई के रिश्तेदार उसे समझाते हैं कि वो हिरामन का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दे नहीं तो जमींदार उसकी हत्या भी करवा सकता है और यही सोच कर हीराबाई गांव छोड़ कर हिरामन से अलग हो जाती है । फिल्म के आखिरी हिस्से में रेलवे स्टेशन का दृश्य है जहां हीराबाई हिरामन के प्रति अपने प्रेम को अपने आंसुओं में छुपाती हुई उसके पैसे उसे लौटा देती है जो हिरामन ने मेले में खो जाने के भय से अमानत के रूप में उसे दिए थे। उसके चले जाने के बाद हिरामन वापस अपनी गाड़ी में आकर बैठता है और जैसे ही बैलों को हांकने की कोशिश करता है तो उसे हीराबाई के शब्द याद आते हैं "मारो नहीं"और वह फिर उसे याद कर मायूस हो जाता है।

अन्त में हीराबाई के चले जाने और उसके मन में हीराबाई के लिए उपजी भावना के प्रति हीराबाई के संवेदना से विगलित ह्रदयाकाश से विदा लेने के बाद उदास मन से वो अपने बैलों को झिड़की देते हुए तीसरी क़सम खाता है कि अपनी गाड़ी में वो कभी किसी नाचने वाली बाई को नहीं ले जाएगा। इसके साथ ही फ़िल्म खत्म हो जाती है।
मित्रों, क्या यह कहानी जिसके अंत में नायक - नायिका का विछुड़न हो, फ़िल्म के व्यावसायिक रूप से सफल या हिट होने के उन दिनों के फॉर्मूले पर फिट बैठता था? यह प्रश्न बार - बार मन में उठता है.  व्यवसायिक अनुभव की कमी के बावजूद शैलेन्द्र ने एक असफल प्रेम पर आधारित साहित्यिक कृति को सेलूलाइड पर उतारने की हिम्मत की, इसे भगीरथ के गंगा को ज़मीन पर उतारने जैसा ही महत कार्य कहा जा सकता है.  इस कहानी में शैलेन्द्र को एक कविता की बहती धारा दिखी होगी, तभी वे उस दुर्गम पथ पर अथाह, असीम, अनंत हिम्मत के साथ बढ़ गए.
कहा जाता है कि कवि शैलेन्द्र ने जब राजकपूर के समक्ष हिरामन की मुख्य भूमिका निभाने का प्रस्ताव रखा, तो वे तत्काल मान गए. यह शैलेन्द्र के प्रति उनके सम्मान का ही प्रतिफल था. लेकिन उन्होंने जब अपने अनुबंध की पूरी रकम की अग्रिम भुगतान की बात कही तो शैलेन्द्र सकपका गए. उन्हें अपने अनन्य मित्र से ऐसी उम्मीद नहीं थी. तब राजकपूर ने हंस कर कहा था, "निकालो मेरा पूरा पेमेंट एक रुपया."
शैलेन्द्र ने अपने को संयत किया और निर्माण की प्रक्रिया सन 1961 में आरम्भ हो गई. उसी समय राजकपूर ने अपनी पहली रंगीन फ़िल्म "संगम" भी आरम्भ कर दी थी. बासु भट्टाचार्य जो विमल राय के असिस्टेंट रह चुके थे, उन्होंने इसके निर्देशन का भार संभाला. सन 1961 में इस फ़िल्म को आठ महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन इसके पूरे होने में पांच वर्ष लग गए. इस फ़िल्म के निर्माण के लम्बे खिंचे  जाने के कई कारण रहे. इसमें मुख्य किरदार निभा रहे कलाकारों का डेट नहीं मिलना, मध्यप्रदेश के बीना में फ़िल्म की शूटिंग शेडूल करना, और अचानक निर्देशक के बिना सूचना के शूटिंग से गायब हो जाना कुछ मुख्य कारण रहे. फ़िल्म निर्माण और पूर्ण होने में विलम्ब के कारण फ़िल्म का बजट जो आरम्भ में एक लाख (ब्लैक और व्हाइट) था, वह बढ़ता चला गया. कहा जाता है कि निर्देशक बासु भट्टचार्य को विमल राय की बेटी से प्रेम हो गया, जिसे विमल राय पसंद नहीं करते थे. बासु भट्टाचार्य बीच में फ़िल्म की शूटिंग छोड़कर कलकत्ता भाग गए. वहाँ उन्होंने उसी लड़की से कोर्ट मैरेज कर लिया. इसतरह फ़िल्म में विलम्ब होता गया. इससे पता चलता है कि फ़िल्म के निर्माण और समय सीमा के अंतर्गत पूरा होने के प्रति प्रोडूसर और गीतकार शैलेन्द्र, कथाकर और संवाद लेखक फणीश्वर नाथ रेणु, गायक मुकेश, संगीत निर्देशक शंकर जयकिशन आदि जितने प्रतिबद्ध थे, उतना टीम के अन्य सदस्य शायद नहीं थे. शैलेन्द्र ने अपनी सारी कमाई झोंक दी, कर्ज भी लिए और जब फ़िल्म पूरी हुई तो उनके ऊपर कर्ज का भारी बोझ था, जो उनकी सांसों पर भारी पड़ता गया. लेकिन यह सही नहीं है. फ़िल्म की दुनिया या किसी भी अन्य व्यवसाय में कर्ज भी उसीको मिलता है, जिसकी विश्वसनीयता होती है. शैलेन्द्र उस समय सबसे अधिक पैसे अर्जित करने वाले गीतकारों में थे. इसलिए कर्ज से मुक्त होने में उन्हें कोई अधिक समय नहीं लगता. फिर वे किस व्यवहार से आहत थे कि उन्हें उसकी कीमत अपनी सांसों को देकर चुकानी पड़ी. फ़िल्म के अंत को राजकपूर बदलना चाहते थे. वे इसे दुखान्त नहीं, सुखांत बनाना चाहते थे. लेकिन यह न शैलेन्द्र को और न ही फणीश्वर नाथ रेणु जी को ही मान्य था.
शैलेन्द्र को फ़िल्म निर्माण से जुड़े उनके अपने लोगों ने भी ठगा. फ़िल्म निर्माण के व्यवसाय से अपरिचित वे सबों की बातें मानते चले गए. कहा जाता है न कि अपनों का घाव बड़ा गहरा होता है. आपका विश्वास जहाँ टूटता है, आपका दिल भी टूटता है. शायद हिरामन का दिल भी ऐसे ही टूटा होगा. हीराबाई हिरामन के निश्छल, निष्कलुष प्यार से प्रभावित और द्रवित होने पर भी अपनी भावनाओं को उसपर प्रत्यक्षतः अभिव्यक्त नहीं कर पायी.
और अंत में जब वह हिरामन से बिछुड़ती है, तो उसका हृदयबेधक वाक्य

"महुआ घटवारिन को सौदागर ने खरीद लिया है, गुरु जी!"  दर्शक के दिल के टुकड़े - टुकड़े कर देता है.
कितनी बेबसी है, इस वक्तव्य में। बाजार सजा है, खरीददार जिगर भी खरीद रहे है और जिगर के अंदर की भावनाओं को भी इंजन से भाप के साथ निकलती सीटी की तरह उड़ा  दे रहे हैं। किसका क्या चिथड़े - चिथड़े बिखर रहा है, किसकी चिन्दियाँ कहां उड़ रही हैं, किसके तीर किसके जिगर के पार हो रहे हैं, किसका वार किसको लहुलुहान कर रहा है, इससे उसे क्या मतलब? 
यह कहानी है उस फ़िल्म की जो उसके प्रोडूसर की साँसों के चुक जाने बाद सुपरहिट हो गई. जबकि शैलेन्द्र के जीवन काल में कोई भी वितरक इस लीक से हटकर बनी फ़िल्म को खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ. यह डिब्बे में बंद होने ही वाली थी कि शैलेन्द्र की आँखें इसे इस स्थिति में देखने के पहले ही बंद ही गईं.
उसके बाद तो फ़िल्म ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कई पुरस्कार प्राप्त किए. इस फ़िल्म के साथ शैलेन्द्र मरकर भी लोगों के दिलो दिमाग़ में जी उठे...
उनकी स्मृतियों को सादर नमन ❗️

ब्रजेन्द्र नाथ 

माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...