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Monday, August 31, 2020

एनिमल फॉर्म नामक नावेल के बारे में(लेख)

#BnmRachnaWorld

#storieswithanimals #animalcharacters













एनिमल फार्म नामक नावेल के बारे में
एनिमल फार्म (Animal Farm) अंग्रेज उपन्‍यासकार जॉर्ज ऑरवेल की कालजयी रचना है। बीसवीं सदी के महान अंग्रेज उपन्‍यासकार जॉर्ज ऑरवेल ने अपनी इस कालजयी कृति में सुअरों को केन्‍द्रीय चरित्र बनाकर बोलशेविक क्रांति की विफलता पर करारा व्‍यंग्‍य किया था। अपने आकार के लिहाज से लघु उपन्‍यास की श्रेणी में आनेवाली यह रचना पाठकों के लिए आज भी उतनी ही असरदार है।
जॉर्ज ऑरवेल (1903-1950) के संबंध में खास बात यह है कि उनका जन्‍म भारत में ही बिहार के मोतिहारी नामक स्‍थान पर हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश राज की भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थे। ऑरवेल का मूल नाम 'एरिक आर्थर ब्‍लेयर' था। उनके जन्‍म के साल भर बाद ही उनकी मां उन्‍हें लेकर इंग्‍लैण्‍ड चलीं गयीं थीं, जहां से‍वानिवृत्ति के बाद उनके पिता भी चले गए। वहीं पर उनकी शिक्षा हुई।
एनीमल फॉर्म 1944 ई. में लिखा गया। प्रकाशन 1945 में इंग्लैंड में हुआ जिसे तब नॉवेला (लघु उपन्यास) कहा गया, यद्यपि इसकी मूल संरचना एक लंबी कहानी की है। इसके अनुवाद प्रकाशित हुए- फ्रांसीसी भाषा में तो कई-कई!! प्रसिद्ध टाइम मैगजीन ने वर्ष 2005 में एक सर्वेक्षण में 1923-2005 ई. की कालावधि में प्रकाशित 100 सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यासों में इस उपन्यास की गिनती की और साथ ही 20 वीं शती की माडर्न लाइब्रेरी लिस्ट ऑफ बेस्ट 100 नॉवल्स में इसे 31 वां स्थान दिया।
एनीमल फॉर्म उपन्यास साम्यवादी क्रांति आन्दोलन के इतिहास को दिखाता है। आंदोलन के नेतृत्व में प्रवेश कर गयी स्वार्थपरता, लोभ-मोह तथा बहुत-सी अच्छी बातों से किनारा कर किस प्रकार आदर्शो के स्वप्न-राज्य (यूटोपिया) को खंडित कर सारे सपनों को बिखेर देती है, इसे पशुओं के बाड़े में निवास कर रहे पशुओं के माध्यम से दिखाया गया है। मुक्ति आंदोलन जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया गया था, सर्वहारा वर्ग को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए, उस उद्देश्य से भटक कर वह बहुत त्रासदायी बन जाता है। पशुओं के बाडे का पशुवाद (एनीमलिज्म) वस्तुत: सोवियत रूस के 1910 से 1940 की स्थितियों का फिक्शनल प्रतीकीकरण (सिम्बोलिस्म) है।
कहानी:
मेनर फार्म के जानवर अपने मालिक मि जोंस के खिलाफ बगावत कर देते हैं और शासन अपने हाथ में ले लेते हैं। जानवरों में सूअर सबसे चालाक हैं और इसलिए वे ही इनका नेतृत्‍व करते हैं। स्नो बॉल नामक सुअर जानवरों की सभा में सुशासन के कुछ नियम तय करते हैं। पंरतु बाद में एक नैपोलियन नाम का जंगली सुअर स्वयं नेतृत्व करना चाहता है। उसे जानवर नहीं चाहते है। वह जंगली कुत्तों को बुलवाता है और स्नोबॉल को भगा देता है। एक विण्ड मिल बनाने का निर्णय स्नोबॉल ने ही लिया था और बनवाया भी था। इसमें बॉक्सर नामक घोड़ा ने बहुत मेहनत किया था। एक बार आँधी में विंड मिल गिर जाता है। नैपोलियन नामक सुअर आदमी का ही रंग-ढंग अपना लेते हैं और अपने फायदे व ऐश के लिए दूसरे जानवरों का शोषण करने लगते हैं। इस क्रम में वे नियमों में मनमाने ढंग से तोड़-मरोड़ भी करते हैं। मसलन नियम था – ALL ANIMALS ARE EQUAL (सभी बराबर हैं) लेकिन उसमें हेराफेरी कर उसे बना दिया जाता है:-ALL ANIMALS ARE EQUAL, BUT SOME ANIMALS ARE MORE EQUAL THAN OTHERS. (सभी जानवर बराबर हैं किन्तु कुछ जानवर अन्य जानवरों से अधिक बराबर हैं) । फ्रेडरिक नामक किसान फार्म को खरीदना चाहता है । वहाँ से वह जानवरों को भगा देना चाहता है। खूब लड़ाई होती है। बॉक्सर नामक घोड़ा घायल हो जाता है। लड़ाई में जानवर जीत जाते हैं। लेकिन फॉर्म की स्थिति जर्जर है। नेपोलियन बॉक्सर को एक कबाड़ी के यहाँ बेच देता है।
निष्कर्ष यह कि सामंतवाद हो या साम्यवाद जानवरों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है।
©ब्रजेन्द्रनाथ

समर्पित (कहानी) #laghukatha

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#laghukatha #romantic #लघुकथा

















समर्पित

वो सर्द साँझ थी जब पुष्प को अचानक  सी - बीच पर अंशिका जैसी ही आकृति दिखी थी। वह एक  अदृश्य आकर्षण से बँधा हुआ उस ओर बढ़ गया था। उसे अंशिका के साथ कॉलेज में बिताये हुए दिन रह रह कर याद आ रहे थे। वह भौतिकी के पीजी का छात्र था और अंशि हाँ इसी नाम से उसे पुकारा करता था, इकोनॉमिक्स की।
अंशि की इंग्लिश अच्छी थी। वह धाराप्रवाह किसी भी विषय पर बोल सकती थी। कॉलेज में रोटरी क्लब द्वारा डिबेट कम्पटीशन का आयोजन किया गया था। अंशि के रहते उसका डिबेट में जीत पाना असंभव था। उसे अच्छी तरह याद है कि अंशि ने कैसे डिबेट में उसे जीतने के लिए अंतिम दिन,  ठीक डिबेट शुरू होने के पहले अपना नाम वापस ले लिया था। इसपर दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ था, और उसके बाद खूब प्यार।

"अंशि, सुनो तो..."

ऐसे कौन परिचित नाम से पुकार सकता था। अंशिका  ने मुड़कर देखा था।

"पुष्प, तुम यहां कैसे, मुंबई में।"

"क्यों? मुंबई सिर्फ तुम्हारी है क्या?"

"घूमने आये हो क्या? अकेले हो?" अंशि का मतलब पुष्प की पत्नी, बच्चों से था।

"हां, अकेला तो अकेले ही होगा न।"

"तुम्हारी पहेलियाँ बुझाने की आदत गई नहीं।"

"तुम्हारे, श्रीमानजी, कहाँ है,  वो?"

अंशि का तो मन हुआ कि वह कह दे, सामने खड़े हो और पूछ रहे हो कहाँ हैं वे?

"मैं यहीं इंडियन रेवेन्यू  सर्विस में नौकरी कर रही हूँ।"

"तो, इनकम टैक्स में हो? तब तो डरकर रहना होगा। कहीं रेड न करवा दो।"

"तुम पर तो रेड करने में मज़ा ही आएगा।  तुम कहाँ हो?"

"तुम्हारी शरारत गई नहीं। मैं यही भाभा एटॉमिक रिसर्च सेन्टर में छोटा - सा वैज्ञानिक हूँ।"

"तब तो एटम बम लगाकर उड़ा दोगे।"

"काश, तुझे तुझसे  उड़ा पाता!"  पुष्प ने हंसकर कहा था.

"तो मैं चलूँ, मुझे जाना होगा।"  अंशि  ने अपनी विवशता जताने की मुद्रा में कहा।

"........" पुष्प चुप ही रहा।

अंशिका चल दी। पुष्प जड़वत खड़ा रहा। वह उस ठूँठ की तरह खडा था जिसके सारे पत्ते झड़ चुके थे, जिसके पास देने को कुछ नहीं था, न फल, न पत्ते, न टहनियाँ।

अंशिका ने कुछ दूर जाकर मुड़कर देखा। पुष्प वैसे ही खड़ा था। देखकर वह मुड़ गई थी। उसने पीछे - से पुष्प से लिपटते हुए पूछा था।

"मुझे रोका क्यों नहीं जाने से?"

"मैं तुम्हें चाहता हूँ अंशि। तुझे कैसे रोकता?"

"बुध्धू, जिसे चाहते है, उसे बलपूर्वक रोक लेते है अपने पास।"

अंशि, जिसे चाहते हैं उसे कैसे रोक सकते हैं, प्यार में अधिकार  नहीं जताया जाता।  ये तो निरा स्वार्थ हुआ न।
ये तो पोसेसिव होना हुआ। मैंने  तो तुझे खुद को समर्पित किया है अंशि, तुझे बलात रोक कैसे सकता हूँ?" पुष्प ने अंशि के  सरक गए  समुद्र के जल में भींगते दुपट्टे की छोर को उठाकर  उसके वक्षस्थल पर सजाते हुए कहा था।

"तुम बिलकुल नहीं बदले..." कहकर अंशिका ने उसे और भी पास खींचकर भींच लिया था अपनी बाहों  में।

©ब्रजेंद्रनाथ 

Friday, August 28, 2020

अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ (कविता)

 #BnmRachnaWorld

#poemmotivational














मेरी इस रचना को मेरे यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर मेरी आवाज़ में अवश्य सुनें, चैनल को सब्सक्राइब करें, लाइक और शेयर करें। इसी चैनल पर मेरी अन्य रचनाएँ और कहानियाँ भी सुने:

https://youtu.be/diIk5UQTOnw

अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ

मैं हूँ एक झोंका हवा का,
गंध लेके बिखरता गया।
मैं हूँ एक ज्योति दिया का
पुंज जिसका पसरता गया।

आंधियों को बाहों में लेकर
तूफानों के बीच में पला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।

अपने सरल व्यवहार पर,
अपने सहज विचार पर।
अपने को कितना सताया
अपने ही निश्छल आचार पर।

मैं अपनों द्वारा पग पग पर
सूक्ष्म प्रतिघातों से छला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।

मैं मिट्टी में मिलता रहा हूँ,
मैं उर्वरक जैसा घिसा हूँ।
सृजन किये अन्न सबके लिए,
आँटा बनने में फिर भी पिसा हूँ।

दूसरों को देता रहा जीवन
अपनी आग में मैं ही जला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।

खोजता रहा कहीं सुकुमार,
वृन्तों पर फूलों की बहार।
मधुरिकाओं के मधु संचयन में,
मदनोत्सव में छाया श्रृंगार।

राही चल, नजर न टिक जाए
लोग कहने लगेंगे, मैं मनचला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।

खुश हूँ उस नींव में, जिसकी
गहराई पर टिका हुआ कंगूरा है।
वह पत्थर बन सहता हूँ भार
जिससे चमकता मुकुट का हीरा है।

मुझसे ही प्राचीर यह सुरक्षित
मैं ही अभेद्य, सुदृढ़ किला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।

ढूढने को कुछ - कुछ नया
मैं रहता सदा व्यग्र हूँ।
इस नभ मंडल में गतिमान
मैं ही एक तारा समग्र हूँ।

उल्कापिंडों के टकराव के बाद
निर्माण का एक सिलसिला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ।

©ब्रजेन्द्रनाथ

Friday, August 21, 2020

पत्नियाँ महान हैं (कविता) #prayertowives:

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#पत्नीवन्दना #poemforwives









मेरी यह कविता मेरे यूट्यूब चैनल के marmagya net के नीचे दिए गए लिंक पर मेरी आवाज में सुनें। चैनल को सब्सक्राइब करें, यह बिल्कुल फ्री है। यह शुद्ध साहित्यिक रचनाओं का एक्मात्र हिंदी यूट्यूब चैनल है।

यूट्यूब लिंक:
https://youtu.be/SGt9W7Uka8w

पत्नियाँ महान हैं

(पत्नी वंदना)

पत्नियाँ महान हैं, पत्नियाँ महान हैं।
पत्नियाँ घर की आन - बान औ' शान हैं।

पतियों तुम बदलो न चाल हर घड़ी,
तुमपे जिम्मेदारियाँ आन है पड़ीं।
परिवार को समृद्ध और यशस्वी बनाना,
पतियों को साधना रत और तपस्वी बनाना।

इसलिए पत्नियों के हाथ में तेरी कमान है।
पत्नियाँ महान हैं, पत्नियाँ महान हैं।

पतियों को काम दे दिया, काम पर चलो।
आलस का करो त्याग, आराम मत करो।
तुम्हारी चेतना बनकर पत्नियाँ जी रहीं,
अमृत संचयन के लिए विष भी पी रही।

पतियों तुम्हें जीतना सारा जहान है।
पत्नियाँ महान हैं, पत्नियाँ महान हैं।

है चलानी घर की गाडी, मत रुको, मत ठुको।
पत्नी की बात मानो, थोड़ा - थोड़ा तो झुको।
पत्नी की डाँट चुपचाप जो सुनकर रहोगे।
जीवन में असीम शांति का अनुभव करोगे।

पत्नियों के बिना जीवन वीरान है।
पत्नियाँ महान हैं, पत्नियाँ महान हैं।

करवा चौथ, वट सावित्री, तीज व्रत करती, तेरे लिए,
तुमभी उनकी सेवा करो, उनकी सेहत के लिए।
उनके बल पर ही तू सफल हुआ।
दुर्भाग्य का हर संकट विफल हुआ।

तेरे लिए उनका जीवन कुर्बान हैं।
पत्नियाँ महान हैं, पत्नियाँ महान हैं।

©ब्रजेंद्रनाथ 

🏳️‍🌈



Tuesday, August 18, 2020

मेरी बबूल वन से होकर यात्रा (संस्मरण)

 #BnmRachnaWorld

#remininsces








बबूल वन से होकर यात्रा 

विद्यालय के दिनों का संमरण
मैंने नवीं कक्षा में प्रवेश लिया था। उसी वर्ष 26 जनवरी के दिन मेरे प्रखंड वजीरगंज में निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिलने पर पुरस्कार लेकर हम वजीरगंज स्टेशन पर आए ही थे कि गाड़ी जो हमेशा लेट रहती थी, आज राइट टाइम थी, इसलिए छूट गयी।
अब पुरस्कार प्राप्ति के बाद की परीक्षा आगे आने वाली थी। अगली ट्रेन रात में दो बजे के बाद ही आती थी। स्टेशन पर ठंड में ठिठुरन भरी रात काटनी कितना कष्टकर होता, इसकी कल्पना से ही मन सिहर गया। जो थोड़े लोग बचे थे, सभी मेरे ही गाँव के तरफ जानेवाले थे। कुछ स्कूल के शिक्षक भी साथ में थे। गाँव यहाँ से ढाई कोस यानि 5 मील से थोड़ा अधिक था। इतनी दूर तक की पैदल यात्रा और वह भी जनवरी की ठंढी रात में मैंने पहले नहीं की थी।
मेरे साथ मुश्किल यह थी कि मेरे एक हाथ में तीन किलों के करीब पुरस्कार में मिले पुस्तकों वाला झोला था और पैर में हवाई चप्पल थी, जिसे पहनकर चलते हुए अन्य लोगों के साथ गति कायम रखने में कठिनाई पेश आ रही थी। मेरी हवाई चप्पल खेतों में पड़े बड़े-बड़े ढेलों में कभी-कभी फँस जाया करती थी। आगे बबूलों के छोटे से जंगलनुमा विस्तार से गुजरना था। उसके पास आने के ठीक पहले मेरा एक चप्पल टूट गया। वह अंगूठे के पास से ही उखड़ गया था। मैं चप्पल को झोले में नहीं रख सकता था। मन में यह संस्कार कहीं बैठा हुआ था कि पुस्तकों में विद्यादायिनी माँ सरस्वती का वास होता है। उसके साथ अपनी चप्पलें कैसे रख सकता था? मेरे लिए कोई दूसरा उपाय नहीं था। किसी को मैं मदद के लिए पुकार भी नहीं सकता था। हर कोई जल्दी घर पहुँचने के धुन में तेजी से कदम-दर-कदम बढ़ा जा रहा था। मैं पिछड़ना नहीं चाहता था। छूट जाने पर कोई पीछे मुड़कर देखने वाला भी नहीं था। मैंने एक हाथ में चप्पल उठायी, दूसरे हाथ में झोला लिए आगे बढ़ चला।
रास्ते में बीच में बबूल-वन पड़ता था। मैं बबूल-वन को करीब आधा से अधिक पार कर चुका था, कि मेरा खाली पाँव बबूल के कांटे पर पड़ा। कांटा मेरे पैर में घुस गया था। मैं थोड़ा रुका, टूटे चप्पल को दूसरे हाथ में लिया, और चुभ गए कांटे को खींचकर बाहर निकाला। खून की धारा निकलने लगी। पॉकेट से रुमाल निकाला और जोर से पैर में बाँध दिया। मन तो किया कि टूटे हुए चप्पल को किताबों वाले झोले में डाल दूँ। पर मन के अंदर बैठी हुई यह मान्यता कि पुस्तकों में वीणा पुस्तक धारिणी माँ सरस्वती का वास होता है, मैने टूटे हुए चप्पल को पुस्तकों के झोले में न डालकर, दूसते हाथ में लिया और भटकते हुए दौड़ लगायी, ताकि आगे निकल गए समूह के लोगों को पकड़ सकूँ। अंधेरे में बबूल के पेड़ों की डालों, पत्तों और कांटों के बीच झांकते चाँद के प्रकाश में, झाड़ियों से बचता-बचाता मैं बेतहाशा पगडंडियों की लकीर पर दौड़ता जा रहा था। आखिर बबूल-वन का क्षेत्र हमलोग पार कर गए। अब पहाड़ की तलहटी से होकर उबड़-खाबड़ पत्थरों पर से होकर गुजरना हुआ। पहले से ही छिल गए पैरों की बाहरी त्वचा पर नुकीले पत्थरों का चुभना मेरे लिए दर्द की एक और इम्तहान से गुजरने की बाधा प्रस्तुत कर रहा था। मैं रुका नही, और न ही मैंने हार मानी। मैं बढ़ता रहा जबतक घर नहीं पहुंच गया।
घर पहुंचते ही पहले घायल पैर में बँधे खून और धूल-मिट्टी से सने रुमाल को खोलकर पॉकेट में रखा और बिना लंगड़ाते हुए आंगन में प्रवेश किया ताकि माँ मेरे पुरस्कार पाने की खुशी का आनन्द तो थोड़ी देर मना पाए न कि मेरे पैरों के घाव को सहलाने बैठ जाए। मेरे मेरे खाट पर बैठते ही माँ गरम पानी से मेरे पैर धोने को बढ़ ही रही थी कि मैंने उसके हाथ से लगभग झपटते हुए लोटा अपने हाथ में ले लिया। माँ मेरे इस व्यवहार पर थोड़ी आश्चर्यचकित जरूर हुई, पर मैंने लोटा हाथ में इसलिए लिया था कि गर्म पानी अगर मेरे घाव पर पड़ेगा तो चीख निकलनी निश्चित थी। माँ मेरे पुरस्कार प्राप्त करने की बात सुनकर खुश होने के पहले ही दुखी हो जाएगी। जब उसे सुनाया कि मुझे पूरे प्रखंड में निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है, तो उसका ध्यान मेरे घायल पाँव से लगभग हट गया और मैं निर्भीक होकर आँगन के चापानल के तरफ पाँव धोने के लिए बढ़ गया।
©ब्रजेंद्रनाथ मिश्र

Sunday, August 16, 2020

कम ज्ञात नारी स्वतंत्रता सेनानी (लेख) #womenfreedomfighters

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परमस्नेही मित्रों, 

जमशेदपुर से प्रकाशित "गृहस्वामिनी" पत्रिका के स्वतंत्रता दिवस विशेषांक में  "कम ज्ञात नारी स्वतंत्रता सेनानी" शीर्षक से मेरा लेख प्रकाशित हुआ है । इसमें झारखंड की "जोन ऑफ आर्क"  संथाल विद्रोह को नेतृत्व देने वाली फूलों और झानो पर एक लेख है। मैं पत्रिका की संपादक आ अपर्णा संत सिंह जी का शुक्रगुजार हूँ, जिन्होंने मेरी रचना को स्थान दिया है। आप भी पढ़ें और कमेंट बॉक्स में  अपने बहुमूल्य  विचारों से अवगत कराएँ। सादर आभार! इसका लिंक इसप्रकार है:

http://www.grihaswamini.com/independence-day-7/



मैं यहाँ पर भी पूरा लेख दे रहा हूँ। आप अपने विचार अवश्य दें:



कम ज्ञात नारी स्वतंत्रता सेनानी


भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास कुछ ऐसी वेरांगनाओं की शौर्य गाथाओं से भरा पड़ा है जिसे पाठ पुस्तकों में कोई स्थान नहीं मिला है और जिसकी चर्चा भी शायद ही होती है। उन्हीं में से कुछ पन्नों की धूल को हटाकर मैं दो वीर माताओं की कहानियाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ, दिनकर की इन पंक्तियों को दुहराते हुए:

अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

1) फूलों और झामो मुर्मू: (1750)

फूलों और झामो मुर्मू बहनें थी या नहीं, इसपर इतिहास में कई मत व्यक्त किये गए हैं। पर इनका जन्म भोगनडी गांव में ही हुआ था, इसपर मतैक्य है। ये दोनों, संथाल आदिवासी थी, जो झारखंड और पश्चिम बंगाल के सीमा में स्थित राजमहल की पहाड़ियों के वन क्षेत्र 1750 ई के आसपास आकर बस गयी थी। इन दो आदिवासी स्त्रियों के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को बहुत कम लोग जानते हैं।
1857 ई में प्रथम भारतीय स्वातंत्र्य आंदोलन के ठीक पहले 1855-1856 में सिद्धू - कान्हू भाइयों द्वारा आहूत संथाल विद्रोह में इन्होंने ने अपनी अहम भूमिका निभायी थी। इतिहासकारों के अनुसार ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने जमींदारों की मदद से संथाल परिवारों से उनकी जमीन हड़प ली। उन्हें खाने के लिए ऋण लेने पर मजबूर कर दिया। ऋण को वसूल करने के लिए बंधुआ मजदूर के रूप में काम करने पर विवश कर दिया।
इस कुकृत्य के विरोध में संथालों ने विद्रोह कर दिया। उन्होंने ब्रिटेन की मिलिट्री कैम्प पर धनुष बाण, कुल्हाड़ी, तलवार, भालों से हमला कर दिया। संथाल विद्रोह के योद्धा पूरी बहादुरी और शौर्य के साथ लड़े। युद्व लंबा चला। ब्रिटिश सेना के बंदूक जैसे उत्तम आयुधों के आगे संथाल नेतृत्व को हार का सामना पड़ा। इस भीषण युद्ध में फूलों और झामों भी शहीद हो गयी। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में अपना नाम अमर कर गयी। किसी भी इतिहास की पुस्तक में इनकी वीर गाथा लिखी नहीं मिलेगी।
इन्हें झारखण्ड का " जोन ऑफ आर्क" कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।


2) कित्तूर की रानी चेन्नम्मा: 


कर्नाटक के बाहर रानी चेन्नम्मा को बहुत कम लोग जानते हैं। चेन्नम्मा का जन्म बेलगाँव के पास काकती गाँव के लिंगायत परिवार में 23 अक्टूबर 1778 में हुआ था।
उसका विवाह कित्तूर के महाराजा मल्लासरिया से 15 वर्ष की उम्र में ही ही गयी थी। उसने घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध की अन्य कलाओं में प्रशिक्षण लिया था।
1824 में महाराजा की मृत्यु ही गयी। आसपास के गुलाम राजाओं की मदद से ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके राज्य को हड़पने का षड्यंत्र रचाया। 1848 ई में ब्रिटेन की सेना ने कित्तूर पर कब्जा कर उसके खजाने को लूटने का प्रयास किया। उन्हीने 21000 सिपाहियों और 500 बंदूकों की सेना के साथ चारो ओर घेरा डाल दिया।
रानी चेन्नम्मा ने युद्धस्थल में स्वयं अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश एजेंट और कलेक्टर जॉन थाकरे को मौत का घाट उतार दिया। साथ ही दो अन्य ब्रिटिश अफसरों को बंदी बना लिया। इसके बाद उन्हें इस संधि और सुलहनामे के साथ वापस किया गया कि दुश्मनी समाप्त हो जाएगी और अमन कायम होगा।
जैसा कि ब्रिटिश सेना का इतिहास रहा है, उन्होंने फिर धोखा किया और कित्तूर पर हमला बोल दिया। इस बार भी ब्रिटश फौज को मुँह की खानी पड़ी। 1826 ई में भेदिये की चाल के कारण धोखे से अंग्रेजों ने रानी चेन्नम्मा को गिरफ्तार कर बैलहोंगल जेल में डाल दिया गया। उसी जेल में 1829 में इस वीरांगना की मौत हो गयी। इतिहास एक और रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और पराक्रम की कहानी लिख गया।
©ब्रजेन्द्रनाथ 



Saturday, August 15, 2020

तिरंगे के आगे अपना शीश झुकता हूँ (कविता ) #inependencedaypoem

 #BnmRachnaWorld 

#independencedaypoem 









स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मैंने जो कविता लिखी है, वह तीन भागों में है|

पहला भाग में आजादी मिलने के समय देश ने बंटवारे का जो दंश और त्राशदी झेली,  उसका वर्णन है |

दूसरा भाग में पिछले कई प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष युद्धों में जब कोई सेनानी का तिरंगे में लिपटा हुआ ताबूत आता ही,  तो उसकी नवविवाहिता पर क्या गुजराती है, उसका चित्रण है |

तीसरा भाग में आजादी के मायने क्या? क्या एक भूभाग, या एक जज्बा, एक भाव जो स्व से ऊपर राष्ट्र को मानता हो | आइये इन्हीं भावों को दिल में संजोये हुए यह कविता सुनें और स्क्रीन पर दृश्यों का अवलोकन करते चलें ...

   

भाग 1

आज तिरंगे के आगे अपना शीश झुकाता हूँ।

भारत माता के चरणों में अपना गीत सुनाता हूँ।

 

देश में आज के दिन कैसी मिली आजादी थी?

नक्शे में भारत माँ के विखंडन की बर्बादी थी।

 

आज के दिन ही मुल्क का दो भागों में फांक हुआ।

आज के दिन ही भारत का दो खंडों में बांट हुआ।

 

पश्चिम और पूरब प्रान्तों से लाखों के घर बर्बाद हुए।

कैसे कहूँ आज के दिन ही हम अंग्रेजों से आजाद हुए?

 

ट्रेनों में भर भर कर लाशों की बोरियां आती थी।

खून के आंसू बहते थे, त्योरियाँ मेरी चढ़ जाती थी।

 

मुल्क कहाँ आजाद हुआ, सत्ता का हस्तांतरण हुआ,

गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेजों का चरण पड़ा।

 

भगत, आजाद, ' सुभाष को खोकर हमने क्या पाया?

भारत- भूमि का खंडित भूभाग ही  हमारे  पास आया।

 

अपनी संतानों के कृत्यों पर भारत माता रोइ थी।

वसुंधरा के  विखंडन पर अस्मिता अपनी खोई थी।

 

 

आज तिरंगे के आगे मैं शर्मिंदा हो जाता हूँ।

भारत माँ के चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।

 

भाग 2

तिरंगे के आगे अपना शीश झुकाती हूँ


आज तिरंगे के आगे अपना शीश झुकाती हूँ।

भारत माता के चरणों में अपना गीत सुनाती हूँ।

 

बीती रातों की मीठे नींदें, सिलवट याद आते है।

ठिठोली सखियों की, सूने  पनघट  याद आते हैं।

 

भुज बंधों में  मधुमास की भीनी सुगंध छाई थी,

अङ्ग अंग में अनंग ने ऐसी प्यास जगाई थी।

 

मिलन हमारा धरती पर और आसमान इतराया था,

पुरुरवा की बाहों में उर्वशी ने यौवन रस छलकाया था।

 

नजर लग गयी मेरे प्यार को, एक संदेशा आया था,

तुम चल पड़े सीमा पर, माँ का कर्ज चुकाया था।

 

वीर सेनानी की मैं पत्नी,  देश हमारा याद करे,

मैं बन जाऊँ रणचंडी,  तोपों की दहाने याद करे।

 

एक बार जो थाल सजाऊँ करूँ रक्त से तर्पण में,

दुश्मन की छाती को चीरुं, आयुधों का करूँ वर्षण मैं।

 

आग जल रही सीने में, अपने जज्बात सुनाती हूँ।

आज तिरंगे के आगे अपना शीश झुकती हूँ।


भाग 3

कैसे मिली थी आजादी,  मन में जरा विचार लो?

दीवाने थे चढ़ गए शूली पर, मन से उन्हें पुकार लो।

 

आजादी का मतलब क्या, इतना भूभाग हमारा है?

आजादी का मतलब क्या, इतना विस्तार हमारा है?

 

आजादी का मतलब है, जज्बा देश के आन  का।

आजादी का मतलब है, शान, और कुर्बान का।

 

आजादी का मतलब क्या, समझाने मैं आया हूँ।

आजादी के साथ देश के दायित्वों को लाया हूँ।

 

देश के प्रति हो त्याग, समर्पण और हो अपनापन,

देश हित हो सबसे ऊपर, न्योछावर कर दें तनमन।

 

आपस की रंजिशें, तल्खियां, अदावतें हम भूलें,

जयचंदों, मीरजाफरों, की  ढीली कर दें  चूलें।

 

आओ ले आज सपथ, देश का गर्व नहीं झुकने दूंगा।

रक्त की अंतिम बूंद तक, अभियान नहीं रुकने दूंगा।

 

देश विरोधी कुकृत्वों पर शर्मिंदा हो जाता हूँ।

भारत माँ के चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ।

©ब्रजेंद्रनाथ √

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Wednesday, August 12, 2020

कान्हा छेड़ो मुरली की तान (कविता) #krishna poem

#BnmRachnaWorld

#krishnapoem

आज (12 अगस्त 2020) कृष्ण जन्माष्टमी पर मैंने एक ऐसी कविता लिखी है जिसमें कवि श्री कृष्ण को मुरली की ऐसी तान छेड़ने को कह रहा है, जो इस युग में व्याप्त प्रवंचनाओं और विसंगतियों का उद्भेदन कर दे। इसे यूट्यूब चैनल marmagya net के इस लिंक पर सुनें, चैनल को सब्सक्राइब करें, यह बिल्कुल फ्री है।

Link: 

https://youtu.be/Q2FH1E7SLYc












कान्हा छेड़ो मुरली की तान

जिसमे हो रण राग गान।
ऐसी छेड़ो मुरली की तान!

छेड़ो इसलिए कि हम सोए
हैं अपने-अपने दड़बों में।
छेड़ो इसलिए कि बनिताएँ,
सिसकती ब्याघ्र के जबड़ों में।

चीख - पुकारों से गूंज रहा,
गिद्धों से भरा है आसमान।
कान्हा छेड़ो मुरली की तान।

गोपियाँ यहाँ छेड़ी जा रही,
सड़कों पर गुंडों का शासन।
द्रौपदियों का चीर हरण,
अट्टहास कर रहा दुश्शासन।

पुरुष वर्ग धृतराष्ट्र बना,
सो गया उनका स्वाभिमान।
कान्हा छेड़ो मुरली की तान।

यह शहर है खामोश क्यों?
मर गयी एक दीक्षा भाटी ।
भारत माता सिसक रही
लज्जित है धरती की माटी।

अपराधी है यहाँ स्वतंत्र,
तलवारों को खा गया म्यान।
कान्हा छेड़ो मुरली की तान।

हर क्षेत्र बना है कुरुक्षेत्र
सो गया धनुर्धर पार्थ वीर।
पांचजन्य फूंको कृष्णा,
जागो भीम हे महावीर।

इस युद्ध में कौरव न जीते,
रखना माता कुंती का मान।
कान्हा छेड़ो मुरली की तान।

आज फिर ओबैसी, मदनी
दे रहा तुम्हें गाली भर-भर।
सौ की गिनती मत करना तुम
चक्र चलाओ हे गिरिधर।

फुंफकार रहा हो विषधर जब,
फन कुचलो हे शक्तिमान।
कान्हा छेड़ो मुरली की तान।

पाक - चीन सीमा पर जब
ललकार रहा, टंकार करो।
दुश्मन की छाती दहल उठे,
ऐसी प्रलयंकर हुंकार भरो।

जागो किसान, जागो जवान,
रैफेल हुआ अब गतिमान।
कान्हा छेड़ो रण राग गान।
कान्हा छेड़ो मुरली की तान।

©ब्रजेन्द्रनाथ

Sunday, August 9, 2020

तुम्हारे झूठ से हमें प्यार है (कहानी ) रोमांटिक भाग 2

 #BnmRachnaWorld 

#storyromantic 

इस कहानी  के दोनों भाग मेरे यूट्यूब चैनल marmagya net के नीचे दिए गए  लिंक पर मेरी आवाज में सुने।  चैनल को सब्सक्राइब करें, यह बिल्कुल फ्री  है। 

LInk: https://youtu.be/7J3d_lg8PME



तुम्हारे झूठ से मुझे प्यार है  भाग 2 :

केट के क्रीक से गुजरने के पहले ही बाला वहाँ आ जाता केट वहाँ आती, अपनी साईकिल धीमा करती, रोक कर  पार्क के फेंस से टिकाती फेंस के पार वह अपने व्हील चेयर पर होता उससे वह बातें करती वह अपने साइक्लिंग के ट्रेनिंग के बारे में बात करती वह साइक्लिंग में चैंपियन बनना चाहती है ओलम्पिक में अपने देश का प्रतिनिधित्व करना चाहती है वह अपने देश के लिए गोल्ड जीतकर लाना चाहती है वह वर्ल्ड चैंपियन बनना चाहती है उसके अरमान बहुत ऊँचे हैं  उसके लिए वह काफी मेहनत कर रही है  पर सबसे पहले उसे कैलिफ़ोर्निया राज्य स्तर के अंडर 19 के चैंपियनशिप में, जो लॉस एंगेल्स में होने वाला था, उसमें अपनी जगह बनानी थी और प्रथम आना था  

केट से बातें करना उसे अच्छा लगता केट अपने बारे में सब कुछ बताती उसे रफ़्तार वाली जिंदगी जीने वाले अच्छे लगते उसमें वह भी एक थी

 केट से वह कहता, "तुम्हारी रफ़्तार बढ़ती रहे यही मेरी दुआ है"

इतना कहने के बाद वह उदास हो जाता उसकी रफ्तार जो धीमी हो गयी है वह व्हील चेयर, नहीं-नहीं आराम कुर्सी पर जो आ गया है

केट उसे हिम्मत देती, "तुम्हारी शारीरिक रफ्तार धीमी है, तो क्या हुआ? तुम्हारी मानसिक रफ़्तार को दुनिया जानेगी मेरी यही दुआ है"

वह बहुत खुश होता, यह सुनकर उसे ऊर्जा मिलती  वह बॉडी माइंड के मोटर फंक्शन्स पर शोध कर रहा था उसमें वह नए सिद्धांतों और शोध परिणामों का प्रतिपादन करने वाला था, जो चौंकाने वाले हो सकते थे उसे केट से बात करने पर नई ऊर्जा प्राप्त होती उसे अपने शोध कार्य में गहरे पैठकर कुछ नई

खोज करने के जज्बे को बल मिलता उसका उत्साह दुगना होता जाता था

गर्मियों का मौसम धीरे- धीरे समाप्त हो रहा था तापमान में गिरावट शुरू हो गयी थी

यह मौसम नवम्बर का रहा होगा कभी- कभी बादल छाते, घने हो जाते और बूँदें बरसा देते सड़कें भीँग जाती ओक के पत्तों से बूँदें सरकतीं, और गुनगुनी ठंढ का अहसास होने लगता सुबह में हर सड़क के किनारे फुटपाथ पर सैर करने वाले लोग नजर आते  इनमें भारतीय भी होते खासकर वे बुजुर्ग जिनके बच्चे यहां नौकरी में थी पूरा वातावरण धूल कण - रहित था लोग सुबह में टहलते हुए गुजरते तो मुस्कुराते, अभिवादन भी करते इससे सुबह की अच्छी शुरुआत हो जाती

दिसंबर महीने में, क्रिसमस के पहले वाले सप्ताह में ठंढ काफी बढ़ गयी थीहर सुबह कुहासा छा जाता था शाम को भी बिजली की रोशनी होने के बावजूद धुंध छायी रहती वह अब भी पार्क में आता था शाम को तो बादल छाये रहते, फिर भी वह सूरज के गोले को पश्चिम क्षितिज में गोता लगाते हुए देखने आता उधर ही उसकी आँखें केट को खोजतीं इधर-उधर भटकतीं, इंतजार में रहतीं जब उन्हें केट कहीं नजर नहीं आती, तो वे निराश हो जातीं

एक दिन वह ऐसे ही इंतज़ार कर रहा था पार्क के उस पार सड़क पर उसकी नजरें टिकी थीं अब केट साईकिल से हवा की तरह आएगी, अपनी साईकिल को पार्क के फेंस से टिकायेगी उससे हाथ मिलाएगी, अपनी साईकिल की ट्रेनिंग और बारीकियों को बताएगी अंत में उसे चेहरे पर उदासी नहीं लाने की हिदायत देकर अपनी साइकिल उठाएगी, और चली जाएगी उसी समय उसे लगेगा कि सूरज ने पश्चिम क्षितिज में गोते लगा दिए हैं

 शाम अब जल्दी घिर आती थी धुंधलका छा जाता था पार्क में इक्के-दुक्के लोग ही दिखते थे इसीलिये वह अपनी निगाहें सड़क पर ही टिकाये था

 वह सड़क की ओर, सड़क का जितना हिस्सा नजर आ रहा था, उसपर ही अपनी नजर टिकाये था, कि किसी के हाथों का स्पर्श उसके कंधे पर हुआ था उसने अपनी गर्दन घुमाई तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा वह केट थी और अपने हाथ को पीछे कर उसमें कुछ छुपाये थी

"बताओ, मेरे हाथों में क्या है?" उसके चेहरे पर बाल - सुलभ हास्य तैर रहा था

कुछ तो ऐसा जरूर है जो तुम्हारी जिंदगी की रफ़्तार बढ़ाने वाला है"

तुम्हें कैसे मालूम?"

"मेरी प्रार्थनाओं ने असर किया है"

"तुम बिलकुल सही होतुम्हारी प्रार्थनाओं ने असर किया है, इसीलिये मैं तुम्हें भेंट करना चाहती हूँ"

उसने पीछे अपनी हाथों में छुपाई ट्रॉफी सामने लाई थी

"मैं अंडर 19 कैटेगरी में स्टेट लेवल की साइक्लिंग चैम्पियन बन गयी हूँ और यह तुम्हारी प्रार्थनाओं के कारण हुआ है, इसलिए मैं इसे तुम्हें भेंट करना चाहती हूँ"

बाला समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे, कैसे अपनी भावनाओं को  ब्यक्त करे

उसने ट्रॉफी उसके हाथ से ले ली अपने एक हाथ में ट्रॉफी लिए हुए, दूसरे हाथ से उसका एक हाथ काफी देर तक थामे रहा उसके हाथों के स्पर्श से केट के अंदर की खुशी को महसूस करता रहा

वह अपने दैन्य भाव को छुपाना नहीं चाहता था वह केट के सामने खुल जाना चाहता था

"केट, इसके बदले में मैं तुम्हें क्या दूँ? मेरी तो रफ़्तार भी धीमी है" आज पहली बार उसे अपने को व्हील चेयर पर होने का दुःख साल रहा था

उसके होठों पर केट ने अपनी उंगली रख दी "तुम चुप ही रहो अगर तुम चुप नहीं रहे तो अपने होठों से तुम्हारे होठों पर ताले लगा दूंगी

और उसने सचमुच ताले लगा दिए लम्बी किस के बाद जब वह उसके चहरे से हटी तो बाला की आँखों में आँसू आ गए एक धीमी रफ़्तार जिंदगी जीने वाले से इसतरह बेइंतहा प्रेम करने वाली को मैं क्या तोहफा  दूँ?

"क्या मैं जो सोच रही हूँ, तुम भी वही सोच रहे हो?"

"मैं तो कुछ नहीं सोच रहा" बाला के चहरे पर मासूमियत थी

"तुम झूठ बोलते हुए भी कितने अच्छे लगते हो!" वह खिलखिलाकर हँसी थी

केट ने बाला को एक बार फिर लम्बे किस्स से होठों को तरबतर कर दिया था

वह जाने को जैसे ही मुड़ी थी, बाला ने पूरी आवाज में कहा था, "तुम्हें 4 जनवरी को मैं एक गिफ्ट दूंगा और एक और सच के बारे में बताऊंगा"

तुम्हारे एक और झूठ के सच में बदलने का इंतज़ार रहेगा" वह बोलती हुयी दूर चली गयी थी

*****

 

केट की नजरें आज टी वी स्क्रीन पर टिकी थी साइंटिफिक कन्वेंशन शुरू हो चुका था इसमें बाला सुब्रमण्यम भी यंग साइंटिस्ट अवार्ड के लिए नामित हुआ था चीफ गेस्ट के एड्रेस के बाद शोध पत्रों के बारे में घोषणा होनी थी कन्वेंशन के विशिष्ट अतिथि ने लिफाफा जिसपर यंग साइंटिस्ट अवार्ड के लिए चयनित वैज्ञानिक का नाम लिखा था, खोली थी उन्होंने घोषणा की थी, "बॉडी माइंड के मोटर फंक्शन पर चौंकाने वाले खोज करने के लिए आज के यंग साइंटिस्ट अवार्ड के लिए मैं बुलाना चाहता हूँ, बाला सुब्रमण्यम को"

सारा हॉल तालियों से गूँज रहा था बाला अपनी आराम कुर्सी को खुद चलाते हुए स्टेज पर पहुंचे उनके कॉलर में बटन माइक लगा दिया गया उन्होंने कहना शुरू किया, "मैं आज एक झूठ से पर्दा उठाना चाहता हूँ जहाँ भी तुम सुन रही हो, तुम्हें बतला दूँ, मैं हर शाम सूर्य के गोले को पश्चिम क्षितिज में गोता लगाते हुए  देखने नहीं आता था मैं पार्क में, हाँ, इरवाइन के सन डिएगो क्रीक के सामानांतर गुजरने वाली सड़क के बगल वाले पार्क में,  केट मैं तुम्हें साइकिल चलाते हुए सामने से गुजरते हुए देखने आता था हेलमेट से बाहर  निकलकर हवा में उड़ते हुए तुम्हारे पोनी टेल को  देखने आता था जब देख लेता तो वापस लौटकर मैं रात भर शोध - ग्रंथों को पढ़ता और नए - नए प्रयोगों को प्रयोगशाला में करता केट तुम मेरी शोध की प्रेरणा हो मैं अपना यह अवार्ड केट को भेंट करना चाहता हूँ केट ने अंडर 19 की साइक्लिंग चैंपियन की ट्रॉफी मुझे भेंट की थी, मैं यह अवार्ड उसे भेंट करना चाहता हूँ"

इतने में केट की तस्वीर को वीडियो द्वारा बड़े स्क्रीन पर ला दिया

बाला ने उसे देखते हुए फिर कहा था, "Ket, you are my inspiration. This award is a gift for you. Please accept it."

स्क्रीन पर केट की तस्वीर आ रही थी वह रो रही थी

 उसने कहा था, "बाला तुम्हारे झूठ से मैं प्यार करती हूँ, करती रहूंगी तुम यह झूठ बार-बार बोलो, मैं सच निकाल लूंगी सूरज पश्चिम में गोते नहीं लगाता था तुम्हें देखते हुए मैं भी तुम्हें देखना चाहती हूँ  आई लव यु बाला  Be the greatest scientist of the world."

स्क्रीन झिलमिलाता रहा, केट की किस मुद्रा स्क्रीन पर ठहर गयी नीचे के टेक्स्ट में लिखा था, "तुम्हारे झूठ से मुझे प्यार है"

 

©ब्रजेन्द्रनाथ


माता हमको वर दे (कविता)

 #BnmRachnaWorld #Durgamakavita #दुर्गामाँकविता माता हमको वर दे   माता हमको वर दे । नयी ऊर्जा से भर दे ।   हम हैं बालक शरण तुम्हारे, हम अ...